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Showing posts from November, 2023

यज्ञ हवन का विधान

यज्ञ हवन का विधान हवन कुंड की जानकारी समिधा जड़ी बूटियां मंत्र जाप करते हुए सावधानी बरतें और हमारे मंदिर में और लगातार हवन की व्यवस्था है जहां आपको मात्र पूर्ण श्रद्धा के साथ साफ-सुथरे कपड़े पहन कर आने होते हैं और हवन में बैठना होता है यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी  का प्रयोजन अलग अलग होताहैं । 1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु । 2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं । 3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु । 4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु । 5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु । 6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु । 7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु । 8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु । तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं ।  ध्यान रखने योग्य बाते :- अबतक आपने शास्त्रीय बाते समझने का प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभ...

चरण स्पर्श का विज्ञान

चरण स्पर्श का विज्ञान   पुराने समय से ही परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम किसी विद्वान व्यक्ति या उम्र में बड़े व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इस परंपरा को मान-सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस परंपरा का पालन आज भी काफी लोग करते हैं। चरण स्पर्श करने से धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह के लाभ प्राप्त होते हैं।  चरण छूकर प्रणाम करने के  ग्यारह प्रामाणिक लाभ हैं। 1. चरण छूने का मतलब है पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना. इससे विनम्रता आती है और मन को शांति मिलती है. साथ ही चरण छूने वाला दूसरों को भी अपने आचरण से प्रभावित करने में कामयाब होता है। 2. जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण छूते हैं, तो आशीर्वाद के तौर पर उनका हाथ हमारे सिर के उपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है. ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की पॉजिटिव एनर्जी आशीर्वाद के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश करती है. इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है। 3. शास्त्रों में कहा गया है कि हर रोज बड़ों के अभि‍वादन से आयु, विद्या, यश और बल में बढ़ोतरी होती है। 4. इसका...

100 जानकारी

100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए ----------------------------------------------------- 🔴1. योग, भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है। 🔴2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है। 🔴3. हाई बी पी में (उच्च रक्तचाप) - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा-सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे । 🔴4. लो बी पी(निम्न रक्तचाप) - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें । 🔴5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी । 🔴6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है, फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है। गुड व शहद खाएं 🔴7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी। 🔴8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन, कैल्शियम की कमी । 🔴9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें । 🔴10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें । 🔴11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी। 🔴12. जुकाम - जो प्रातःकाल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें । 🔴13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें। 🔴14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये। 🔴15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेस टेन्शन अ...

ॐ (OM)  उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ : ॐ : ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानीए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग... ● *उच्चारण की विधि* प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं। 01)  *ॐ और थायराॅयडः* ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। *02)  *ॐ और घबराहटः-* अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। *03) *..ॐ और तनावः-* यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तना...

स्वस्तिक

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स्वस्तिक स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करत...
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