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कथा अक्षयवट की

कथा अक्षयवट की 〰️〰️🔸〰️〰️   संगमु सिंहासनु सुठि सोहा।   छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम ही उसका अत्यन्त सुशोभित सिंहासन है। अक्षयवट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है।  प्रयाग में अक्षयवट की महिमा बहुत प्राचीन होने के साथ-साथ सर्वविदित है। यह यमुना के किनारे किले की चहारदीवारी के अन्दर स्थित है। अग्निपुराण में कहा गया है कि वटवृक्ष के निकट मरने वाला सीधे विष्णु लोक जाता है। सम्पूर्ण संसार के प्रलय हो जाने पर या भस्म हो जाने पर भी वटवृक्ष नहीं नष्ट होता। अक्षयवट से किले की चहारदीवारी १५ फीट दूरी पर है। इसकी शाखाएं चहारदीवारी से भूमि पर बाहर भी यमुना नदी में लटकती है। सन १९९२ में अक्षयवट के चारों ओर संगमरमर लगा दिया गया है। १९९९ में अक्षयवट के पास ही एक छॊटा सा मन्दिर बनाया गया है जिसमें राम, लक्ष्मण व सीता की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।  अक्षयवट के मूल भाग पर चारों तरफ वस्ञ लपेटने पर लगभग २२ मीटर कपड़ा लगता है। इस अक्षयवट के पत्तों का अग्रभाग अन्य बरगद के पत्तों की तुलना में नुकीला न होकर गोलापन लिए होता है। पत्ते औसत रूप ...