*सा रे ग म स्वरों का,और छन्दों का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है।*
*सा रे ग म स्वरों का,और छन्दों का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है।*
***********************
*श्रीमद् भागवत के तृतीय स्कंध के 12 वें अध्याय के 46 वें 47 वें और 48 वें श्लोक में मैत्रेय ऋषि ने विदुर जी को सम्पूर्ण विश्व के निर्माण को बताते हुए, मनुष्यों में विद्यमान विविध विद्याओं की उत्पत्ति और 24 अक्षर वाले गायत्री छन्द आदि की उत्पत्ति बताते हुए,सा रे ग म प ध नी सा इन सात स्वरों की उत्पत्ति बताकर, अ से लेकर ज्ञ तक के वर्णों की अनादिकालीन उत्पत्ति बताते हुए कहा कि -*
*तस्योष्णिगासील्लोमभ्यो गायत्री च त्वचो विभो:।*
*त्रिष्टुब् मांसात् स्नुतोsनुष्टुप् जगत्यस्थन:प्रजापते:।।46।।*
जिसने वनस्पतियों का निर्माण किया है। कीट-पतंगों से लेकर देवताओं तक का निर्माण किया है। नारद, वसिष्ठ, पुलस्त्य आदि ऋषियों का निर्माण किया है। मनुष्यों का निर्माण किया है,उस ब्रह्म शब्द से कहे जानेवाले भगवान ने ही इस सृष्टि में देवताओं को, ऋषियों को तथा मनुष्यों को सभी वेदों को तथा उपवेदों को भी प्रदान किया है।
वेदों का निर्माण किसी ऋषि ने या देवता ने नहीं किया है, तो मनुष्य की तो बात ही क्या है?
इस मृत्युलोक में जो भी कुछ प्राप्त हो रहा है,वह किसी का भी निर्माण नहीं है। जो पूर्व से ही निर्मित है,वही सबकुछ सभी को प्राप्त होता है।
अब आइए, सर्वप्रथम गायत्री आदि छंदों की उत्पत्ति के विषय में जानते हैं।
(1) तस्योष्णिगासील्लोमभ्य:।
उस ब्रह्मा जी के रोमों से 28 अक्षरों वाले,उष्णिक् नाम के छन्द का प्रादुर्भाव हुआ। *उष्णिक् छंद में 28 अक्षर होते हैं।* ये सभी छन्द वेदों में ही होते हैं।
*(2) गायत्री च त्वचो विभो:।*
उस विभु सगुण स्वरूप धारी परमात्मा की त्वचा से *24 अक्षरों वाला गायत्री छन्द प्रगट हुआ।*
*(3) त्रिष्टुब् मांसात्।*
उस विराट पुरुष के मांस से *44 अक्षरों वाला त्रिष्टुभ छंद उत्पन्न हुआ।*
*(4) स्नुतोsनुष्टुप्*
सगुणरूपधारी भगवान की स्नायुओं से *32 अक्षरों वाला अनुष्टुप छंद उत्पन्न हुआ।*
*(5) जगत्यस्थन:प्रजापते:।*
प्रजापति की अस्थियों से *48 अक्षरों वाला जगती छन्द प्रगट हुआ।*
अब 47 वां श्लोक देखिए।
*मज्जाया:पंक्तिरुत्पन्ना बृहती प्राणतोsभवत्।*
*स्पर्शस्तस्याभवज्जीव:स्वरो देह उदाहृत:।।47।।*
ब्रह्मा जी, भगवान नारायण की नाभि से उत्पन्न हुए हैं, सृष्टि विधाता भगवान ही ब्रह्मा जी के रूप में विराजमान हैं। इसीलिए ब्रह्मा जी के लिए ही प्रजापति,विभु,ब्रह्मा,विराट आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है।
*(1)मज्जाया: पंक्तिरुत्पन्ना।*
ब्रह्मा जी की मज्जा से *40 अक्षरों वाला पंक्ति नामका छंद उत्पन्न हुआ।*
*(2)बृहती प्राणतोsभवत्।*
ब्रह्मा जी के प्राणों से *36 अक्षरों वाला,बृहती नामका छंद उत्पन्न हुआ।*
अर्थात आप जिस ब्रह्मा जी को एक साधारण देवता मानते हैं, उनके ही दिव्यदेह से सभी ऋषियों का प्रादुर्भाव हुआ है,तथा सभी प्रकार के वर्णों की तथा कलाओं की और ज्ञान की उत्पत्ति हुई है। ब्रह्मा जी साक्षात ब्रह्मस्वरूप ही हैं।
अब अ से ज्ञ तक के अक्षरों का प्रादुर्भाव देखिए।
*(3) स्पर्शस्तस्याभवज्जीव:।*
क से म तक के सभी वर्णों को स्पर्श वर्ण कहते हैं।
ब्रह्म का जीवकार्य है। अर्थात जैसे ब्रह्म के बिना जीव नहीं होता है,इसी प्रकार अ आ आदि स्वर वर्णों के बिना क आदि व्यंजन वर्णों का उच्चारण भी नहीं होता है।
*कवर्ग- क ख ग घ ङ।*
*चवर्ग-च छ ज झ ञ।*
*टवर्ग-ट ठ ड ढ ण।*
*तवर्ग-त थ द ध न।*
*पवर्ग-प फ ब भ म।*
इन पांचों वर्गों को क से म तक को स्पर्श वर्ण कहते हैं। इन सभी को ब्रह्मा जी का जीव कहा जाता है। जैसे जीव पराधीन होता है,इसी प्रकार इन सभी का उच्चारण भी अ आ आदि स्वरों के बिना नहीं होता है। अर्थात जीवों को उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मा जी हैं और भगवान नारायण तो साक्षात अ आ आदि स्वर वर्ण हैं।
*(4)स्वरो देह उदाहृत:।*
*अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ* ये स्वर कहे जाते हैं। इन स्वरों की उत्पत्ति, ब्रह्मा जी के देह से उत्पन्न होते हैं।
अब 48 वें श्लोक में देखिए कि और क्या कहां से उत्पन्न हुआ है?
*ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहुरन्त:स्था बलमात्मन:।*
*स्वरा:सप्त विहारेण भवन्ति स्म प्रजापते:।48।।*
*(1) ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहु:।*
*श ष स ह* इन चारों वर्णों को ऊष्म वर्ण कहते हैं । ये सभी ब्रह्मा जी की इन्द्रियों से उत्पन्न हुए हैं।
*(2)अन्त:स्था बलमात्मन:।*
अन्त:स्थ वर्णों को आत्मा अर्थात ब्रह्मा जी का बल कहा जाता है। य र ल और व इन चारों वर्णों को अन्तस्थ वर्ण कहते हैं।
*(3) स्वरा:सप्त विहारेण।*
भगवान प्रजापति ब्रह्मा जी के *विहार से अर्थात क्रीडा से* गान्धर्वेद के *सा रे गा मा प ध नी सा,* ये सात स्वरों का प्रादुर्भाव हुआ है।
ये जो संगीत के सात स्वर हैं। ये संक्षेप में कहे गए हैं।
इन सातों स्वरों के नाम देखिए।
*षडजर्षभगान्धारमध्यमपंचमधैवतनिषादा:।*
*ये संगीत के सात स्वर हैं।*
*(1) षड्ज - स*
*(2)ऋषभ - रे*
*(3)गान्धार - गा*
*(4)मध्यम- म*
*(5) पंचम - प*
*(6) धैवत - ध*
*(7) निषाद - नी*
सभी राग रागनियों के गायन इन सात स्वरों के अन्तर्गत ही होते हैं। राग रागनियों की संख्याएं तो अनन्त हो सकती हैं, किन्तु इन सात स्वरों में ही होंगे।
इसी प्रकार संसार की कोई भी भाषा, लिखने में कैसी भी हो सकती है, अर्थात लिपि में भेद हो सकता है किन्तु कोई भी भाषा के स्त्री पुरुष हों,वे संस्कृत भाषा के अ से लेकर ज्ञ तक के उच्चारण को ही करेंगे।
भले ही कोई भी जल,को वाटर कहे, किन्तु संस्कृत के वा ट और र का ही उच्चारण करेंगे।
*इसी प्रकार कोई भी स्त्री पुरुष, उर्दू लिखे या अंग्रेजी लिखे,या अन्य किसी भी भाषा को लिखे , किन्तु जब भी बोलेगा तो संस्कृत भाषा के अक्षरों का ही उच्चारण मुख से निकलेगा।*
*इसीलिए भारतीय संस्कृति के धर्म को सनातन धर्म कहा जाता है। जिसको कभी भी कोई भी नष्ट नहीं कर सकता है,उसे सनातन शब्द से कहा जाता है। न ही कभी नष्ट होता है। सृष्टि से लेकर प्रलय तक इन वर्णों का ही उच्चारण होता रहेगा।*
*अपनी सनातन संस्कृति को, और सनातन धर्म को जानने के लिए संस्कृत भाषा के ज्ञान के अतिरिक्त और कोई दूसरा उपाय नहीं है।*
Comments
Post a Comment