पलाश,पीपल,और वटवृक्ष,ये तीनों ही ब्रह्मा, विष्णु,महेश हैं
*पलाश,पीपल,और वटवृक्ष,ये तीनों ही ब्रह्मा, विष्णु,महेश हैं।*
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*पद्मपुराण के उत्तरखण्ड के 115 वें अध्याय के 21 वें 22 वें और 23 वें श्लोक में वटवृक्ष अर्थात बरगद की, और अश्वत्थ अर्थात पीपल की तथा पलाश की महिमा बताते हुए उनके पूजन का विधान बताने वाले सूत जी से ऋषियों ने कहा कि -*
*कथं त्वयाश्वत्थवटौ गोब्राह्मणसमौ कृतौ।*
*सर्वेभ्योsपि तरुभ्यस्तौ कस्मात् पूज्यतरौ कृतौ।।21।।*
*अष्टादशपुराणप्रवक्ता* श्रीसूत जी से शौनकादिक ऋषियो ने आदरपूर्वक प्रश्न पूंछा कि - हे सूत जी! अभी अभी आपने अश्वत्थ अर्थात पीपल के वृक्ष को तथा वटवृक्ष को गौ और ब्राह्मण के समान ही पूज्य और श्रेष्ठ बताया है।
*कथं त्वयाश्वत्थवटौ गोब्राह्मणसमौ कृतौ।*
*आपने अश्वत्थ अर्थात पीपल और वटवृक्ष अर्थात बरगद को, गौ और ब्राह्मण के समान ही श्रेष्ठ और पूजा के योग्य किस कारण से बताया है?*
*सर्वेभ्योsपि तरुभ्यस्तौ कस्मात् पूज्यतरौ कृतौ।*
*अश्वत्थ और वटवृक्ष* भी तो सभी वृक्षों के समान ही हैं। सभी वृक्षों में से इन दोनों वृक्षों को सबसे श्रेष्ठ और पूजा के योग्य किस कारण से बताया है? इन दोनों वृक्षों में अन्यवृक्षों की अपेक्षा ऐसा कौन सा विशेष गुण है कि मनुष्यों को इनकी पूजा उपासना करना चाहिए?
अब 22 वें श्लोक में वटवृक्ष और अश्वत्थ वृक्ष की विशेषता देखिए।
*अश्वत्थरूपी भगवान् विष्णुरेव न संशय:।*
*रुद्ररूपीवटस्तद्वत् पलाशो ब्रह्मरूपधृक्।।22।।*
*सूत जी ने कहा कि महर्षियो!*
*अश्वत्थरूपी भगवान् विष्णुरेव न संशय:।*
*यद्यपि संसार में सभी प्रकार वृक्ष हैं। किन्तु इन सभी वृक्षों में जो अश्वत्थ अर्थात पीपल वृक्ष है,वह तो साक्षात भगवान विष्णु ही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है।*
भगवती पार्वती जी ने कैलाश में पधारे हुए भगवान विष्णु से कहा था कि आप तो सर्वव्यापक हैं। किन्तु आपके स्वरूप का विशेष रूप में सभी स्त्री पुरुष,पूजन करके आपके पूजन का फल प्राप्त कर सके, इसलिए आप अश्वत्थवृक्ष का रूप धारण करके मृत्युलोक के ज्ञानी, अज्ञानी सभी स्त्री पुरुषों को अपनी भक्ति और सेवा का अवसर प्रदान करें।
भगवती पार्वती जी की इच्छा सुनकर तभी से ही भगवान विष्णु,इस मृत्युलोक में अश्वत्थवृक्ष के स्वरूप में विद्यमान हैं।
*रुद्ररूपी वटस्तद्वत्*
इसी प्रकार वटवृक्ष अर्थात बरगद भी साक्षात रुद्रस्वरूप है।
भगवती पार्वती जी ने भगवान शिव जी को वटवृक्ष के रूप में ही स्थित होने के लिए कहा था।
*इसीलिए रामचरितमानस में जब भी शिव जी की समाधि के विषय में कहा गया है तो यही कहा है कि शिव जी एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर भगवान का भजन ध्यान करते हैं।*
*पलाशो ब्रह्मरूपधृक्।*
पलाश भी साक्षात भगवान पितामह ब्रह्मा जी का स्वरूप है। इसीलिए ब्राह्मणबालक के यज्ञोपवीत के समय ब्राह्मण को पलाश का दण्ड ग्रहण करने का विधान है।
*इस प्रकार पलाश,ब्रह्मा जी का स्वरूप है, और पीपल भगवान विष्णु का स्वरूप है तथा पलाश ब्रह्मा जी का स्वरूप है। इसीलिए इन वृक्षों को काटने से दोष लगता है।*
अब 23 वें श्लोक में देखिए कि इन वृक्षों का पूजन करने से क्या फल मिलता है?
*दर्शनं पूजनं सेवा तेषां पापहरा:स्मृता:।*
*दु:खापद् व्याधिदुष्टानं विनाशकरणीध्रुवम्।।*
*दर्शनं पूजनं सेवा तेषाम्।*
*विष्णुस्वरूपी अश्वत्थ का,शिवस्वरूपी वटवृक्ष अर्थात बरगद का, तथा ब्रह्मास्वरूपी पलाश वृक्ष का दर्शन,पूजन और सेवा अर्थात जलसिंचन करने से ही मनुष्य को जो जो कामनाएं होतीं हैं,वे पूर्ण हो जातीं हैं।*
मनुष्य की कामनाएं भी तो यही और इतनी ही होतीं हैं।
*दु:खापद् व्याधिदुष्टानं विनाशकरणीध्रुवम्।*
दुख और आपत्ति का नाश हो जाए, कोई जीवननाशक शारीरिक व्याधि का नाश हो जाए, दुष्टों का अर्थात ईर्ष्यालु शत्रुओं का विनाश हो जाए,
यदि ऐसी कामना है तो पीपल वटवृक्ष और पलाश वृक्ष का दर्शन करने से,उनका पूजन करने से तथा उनकी सेवा करने से आपकी सभी प्रकार की कामनाएं भी पूर्ण हो जाएंगी,तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सेवा, पूजा, दर्शन करने का फल भी प्राप्त होता है।
हमारे सनातन धर्म जैसा,इस मृत्युलोक में दूसरा धर्म नहीं है। किसी भी मनुष्य द्वारा निर्मित धर्म का पालन करने से कुछ नहीं मिलता है। हमारी व्यापक उपासना पद्धति जैसी पद्धति भी कहीं नहीं है।
हमारे उपासकों, धार्मिकों तथा आस्तिकों जैसी कहीं भी दयाबुद्धि,सत्यबुद्धि और समताबुद्धि नहीं है।
*अपने धर्म को जानिए, समझिए, स्वाध्याय करिए और सभी प्रकार के लौकिक,* *अलौकिक सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य को प्राप्त करिए।*
*यहां वहां भटकने वाले स्त्री पुरुषों को न तो शान्ति मिलती है, और न ही सुख मिलता है।*
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