तंत्र विद्या में ब्रह्मांड वर्णन
श्रीयंत्र
कांसा - रांगा, लकड़ी, कपड़ा और दीवार पर श्रीयंत्र नहीं बनाना चाहिए। श्रीयंत्र की रेखाएं सीधी बनानी चाहिए। यह पवित्र यंत्र तीन क्रम से बनाया जा सकता है। सहार क्रम में चार शिव त्रिकोण ऊपरी सिरे वाले ऊपर की ओर होते हैं और ५ शक्ति त्रिकोण निचले सिरेवाले नीचे की ओर होते हैं। स्थिति क्रम का श्रीयंत्र अलग तरीके से बनाया जाता है। सृष्टि क्रम से बनाए गये यंत्र में पांच शक्ति त्रिकोण निचले सिरे की ओर होते हैं।
श्रीयंत्र की उपासना हमारे ज्ञानी, विज्ञानी ऋषियों द्वारा दिव्य दृष्टि के आधार पर शुरू की गयी थी। यह एक अति विराट कल्पना है।
इस अनंत ब्रह्मांड की सीमा नहीं है। आज के वैज्ञानिक भी इसकी सीमा का अनुमान नहीं लगा सकते। हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने भी यही बात कही थी। अनंत ब्रह्मांड में हमारी धरती का आकार एक बिंदु के बराबर भी नहीं है।
तंत्र पुस्तकों में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड बहुत बड़ा है। हमारी धरती से हमारे सूरज की दूरी लगभग नौ करोड़, तीस लाख मील है। तंत्र विद्या में धरती सहित सभी ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। हमारी धरती और ग्रहों में सात लोकों की कल्पना की गयी है।
पृथ्वी भू लोक है,
बुध भुवर्लोक,
मंगल स्वर्गलोक,
वृहस्पति महलोंक,
यूरेनस जनलोक,
नेप्च्यून तपलोक और
शुक्र सत्यलोक है।
शनि राहु केतु को मिलाकर सूर्य के साथ एक सौर मंडल बनता है। यह भू-सौर मंडल है।
इसी तरह के सात सौर मंडल को मिलाकर एक ब्रह्मलोक ब्रह्मांड की रचना हुई है। इसे भू- ब्रह्मांड कहा जाता है।
इसी तरह के सात ब्रह्मांड मिल कर एक महाब्रह्मांड का निर्माण होता है।
सात महाब्रह्मांडों को मिलाकर एक अति ब्रह्मांड का निर्माण होता है।
सात अति ब्रह्मांडों से एक वृहत् ब्रह्मांड बनता है।
सात वृहत ब्रह्मांडों को मिलाकर एक लव ब्रह्मांड,
सात लव ब्रह्मांडों का एक सतत् ब्रह्मांड,
सात सतत् ब्रह्माडों का एक महासौर ब्रह्मांड और
सात महासौर ब्रह्मांड को मिलाकर एक पूर्ण सप्तक बनता है।
इनमें से एक पूर्ण सप्तक के स्वामी भगवान शंकर हैं। इस सप्तक में कुल सत्तावन लाख चौसठ हजार आठ सौ एक सूर्य हैं।
इस सप्तक से भी सौ गुना बड़े सप्तक ब्रह्माण्ड के महाशून्य में मौजूद हैं। इन सप्तकों के बीच जो महाशून्य है, उसे पार नहीं किया जा सकता।
इस महाविस्तार को एक केयूर कहा गया है। हर सप्तक अलग-अलग शून्य में महाशक्ति जगदम्बा की कृपा से परिक्रमा कर रहे हैं। हर सप्तक के अधिष्ठाता पुरुष भगवान शंकर अलग-अलग हैं। इन्हें सप्तकाधीश कहा गया है।
इन सप्तकाधीशों से परे आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा चैतन्य और आनंद रूप मे विराजमान हैं।
सिद्ध और योगियों को महाशून्य स्थित ब्रह्मांड की अद्भुत छवि दिखाई देती है। आज का भौतिक विज्ञान योगियों की इस कल्पना से असहमत नहीं हैं। अभी इस धरती के बाद भी वे सिर्फ चंद्रमा पर कदम रखे हैं। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक अभी दूसरे ग्रहों- मंगल, वृहस्पति, बुध और शनि वगैरह की खोज कर रहे हैं। हमारे सौरमंडल के पूरे महाशून्य में जो अनंत ब्रह्मांड मौजूद हैं, उसके बारे में पूरी जानकारी तभी हासिल हो सकती है, जब यह धरती अरबों खरबों बरस तक कायम रहे। हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान से दूसरे ग्रहों तक पहुंचने में कामयाब हो जायें।
लेकिन हमारे ऋषि मुनियों और योगियों ने श्रीयंत्र के जरिए ब्रह्मांड की विराट कल्पना के बारे में हमें एक विचार दिया है। यह विचार किस हद तक सही है, इस बारे में बहस हो सकती है। आध्यात्म विज्ञान का तरीका अलग है। योगी और साधक संयम, एकाग्रता के जरिए जब अंतर्मन को देखने लगते हैं, तब उन्हें अपने सौर मंडल और उससे बाहर के विराट ब्रह्मांड की झांकी दिखाई देने लगती है। श्रीयंत्र की साधना इसका एक जरिया है। इस यंत्र की आराधना करनेवाले को सांसारिक सुख समृद्धि और संपत्ति आसानी से मिल जाती है। सांसारिक सुख उसके लिए बहुत छोटी चीज है। जिन सुखों के पीछे आम संसारी दौड़ता रहता है, जिन्हें हासिल न कर पाने की वजह से वह चिंता में डूबा रहता है, वह श्रीयंत्र की साधना करनेवाले संयमी श्रद्धालु के लिए बहुत तुच्छ बन जाते हैं।
जगदम्बा कामेश्वरी और जगद्धिता कामेश्वर की उपासना के साथ ही सभी देवताओं की आराधना का पुण्य फल इस अलौकिक चमत्कारी यंत्र के पूजन से प्राप्त हो सकता है।
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