आत्मा का सफर ऐसे चलता है पूरे 1 साल
आत्मा का सफर ऐसे चलता है पूरे 1 साल
मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा प्रेत रूप में एक दिन में 2 सौ योजन यानी 1600 किलोमीटर चलती है। एक योजन 8 किलोमीटर का होता है। इस तरह एक वर्ष में आत्मा यमराज के नगर में पहुंचती है। वैतरणी नदी को छोड़कर यमलोक का मार्ग 86 हजार योजन है। वैतरणी नदी बहुत ही भयानक है जिसे पार कर पाना बहुत ही कठिन है।
ऐसा है यमलोक का मार्ग
यममार्ग में 16 पुरियां यानी नगर हैं। ये सभी नगर बड़े ही भयानक हैं। इस मार्ग में बहुत कम समय से लिए व्यक्ति की आत्मा को महीने में एक बार ठहरने का अवसर मिलता है। यहां आत्मा अपने पूर्वजन्म के कर्मों और परिवार के लोगों को याद करके दुखी होता रहता है। यमदूतों की यातना से दुखी होकर आगे कैसा शरीर मिलेगा यह सोचकर भी घबराता है।
यममार्ग में भयानक नरक
यममार्ग में कई नरक हैं, जिनमें कुछ नाम हैं अंधतम, और ताम्रमय। अंधतम कीचड़ और जोंक से भरा है जबकि ताम्रमय तपे हुए तांबे जैसे गर्म है। इस मार्ग से जाते हुए पाप कर्मों को करने वालों की आत्मा दुख पाती है।
यमलोक के द्वारपाल
यमराज के भवन पर धर्मध्वज नाम का द्वारपाल पहरा देता है। यही चित्रगुप्त को पापी लोगों की आत्माओं के यमलोक में आने की सूचना देते हैं। यमलोक के द्वार पर दो भयानक कुत्ते भी पहरा देते हैं जो पापियों को देखकर लाल आंख किए उनको झपट लेना चाहते हैं
यमराज के सभासद करते हैं कर्मों का हिसाब
यमराज के दरबार में ब्रह्माजी के पुत्र श्रवण और उनकी पत्नी श्रवणी निवास करते हैं।श्रवण पुरुषों के सभी कर्मों का लेखा रखते हैं। ये पुरुषों की सभी बातों को दूर से ही सुनकर उनके पाप-पुण्य का लेखा जोखा रखते हैं। इनके कहने के अनुसार ही यमराज पुरुषों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं।
कर्मों का मिलता है फल
श्रवण की पत्नी स्त्रियों के पाप-पुण्य को यमराज से बताते हैं। इनकी बातों और सलाह के आधार पर यमराज महिलाओं को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। सूर्य, चंद्र, जल, आकाश, मन, दिन-रात और धर्म मनुष्य के कर्मों को जानते हैं। यमराज व्यक्ति के कर्मों का हिसाब करते समय इन्हें भी गवाही के लिए बुलाते हैं।
मिलता है नया शरीर
कई ऋषि और अश्वमेध यज्ञ के फल से उत्तम लोक में गए राजागण भी यमराज के दरबार में सलाहकार होते हैं। सभी से विचार और सलाह लेने के बाद यमराज व्यक्ति को दंड और उसके अगले शरीर के बारे में विचार करते हैं। अपने कर्मों का फल भोगकर प्राणी को फिर से बचे हुए कर्मों का फल भोगने के लिए नया शरीर मिलता है।
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