चन्द्रवंशी तंवर (तोमर) राजपूतो का इतिहास
चन्द्रवंशी तंवर(तोमर) राजपूतो का इतिहास=
चन्द्रवंशी तंवर (तोमर) राजपूतो का इतिहास
तोमर या तंवर उत्तर-पश्चिम भारत का एक राजपूत वंश है। तोमर राजपूत क्षत्रियो में चन्द्रवंश की एक शाखा है और इन्हें पाण्डु पुत्र अर्जुन का वंशज माना जाता है.इनका गोत्र अत्री एवं व्याघ्रपद अथवा गार्गेय्य होता है। क्षत्रिय वंश भास्कर,पृथ्वीराज रासो,बीकानेर वंशावली में भी यह वंश चन्द्रवंशी लिखा हुआ है,यही नहीं कर्नल जेम्स टॉड जैसे विदेशी इतिहासकार भी तंवर वंश को पांडव वंश ही मानते हैं.
उत्तर मध्य काल में ये वंश बहुत ताकतवर वंश था और उत्तर पश्चिमी भारत के बड़े हिस्से पर इनका शाशन था। देहली जिसका प्राचीन नाम ढिल्लिका था, इस वंश की राजधानी थी और उसकी स्थापना का श्रेय इसी वंश को जाता है।
नामकरण---------
तंवर अथवा तोमर वंश के नामकरण की कई मान्यताएं प्रचलित हैं,कुछ विद्वानों का मानना है कि राजा तुंगपाल के नाम पर तंवर वंश का नाम पड़ा,पर सर्वाधिक उपयुक्त मान्यता ये प्रतीत होती है
तोमर वंश की पवित्र वस्तु
- वंश - चन्द्र (चंद्रवंशी)
- कुलगोत्र - कौन्तेय (पाण्डव वंशी )
- कुलदेवी - योगमाया मंशा देवी
- कुल देवता -भगवान श्रीकृष्ण, हनुमान
- राज़ चिह्न – गौ बच्छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
- वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
- माला – रूद्राक्ष की माला,
- पक्षी- गरूड़, (चील)
- राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
- तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर,
- आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
- आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल),
- राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
- तिलक – रामानन्दी,
- गुरू – व्यास,
- राजध्वज – भगवा पर अर्द्ध चन्द ,कपिध्वज
- मंत्र – गोपाल मंत्र,
- हीरा - मदनायक (कोहेनूर ) ,
- मणि – पारसमणि,
- राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र,
- यंत्र – श्रीयंत्र,
- महाविद्या – षोडशी महाविद्या
इतिहासकार ईश्वर सिंह मडाड की राजपूत वंशावली के पृष्ठ संख्या 228 के अनुसार,,,,,,,
"पांडव वंशी अर्जुन ने नागवंशी क्षत्रियो को अपना दुश्मन बना लिया था, नागवंशी क्षत्रियो ने पांड्वो को मारने का प्रण ले लिया था, पर पांडवो के राजवैध धन्वन्तरी के होते हुए वे पांड्वो का कुछ न बिगाड़ पाए । अतः उन्होंने धन्वन्तरी को मार डाला ! इसके बाद अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मार डाला !परीक्षित के बाद उसका पुत्र जन्मेजय राजा बना । अपने पिता का बदला लेने के लिए जन्मेजय ने नागवंश के नौ कुल समाप्त कर दिए । नागवंश को समाप्त होता देख उनके गुरु आस्तिक जो की जत्कारू के पुत्र थे, जन्मेजय के दरबार मैं गए व सुझाव दिया की किसी वंश को समूल नष्ट नहीं किया जाना चाहिए व सुझाव दिया की इस हेतु आप यज्ञ करे । महाराज जन्मेजय के पुरोहित कवष के पुत्र तुर इस यज्ञ के अध्यक्ष बने । इस यज्ञ में जन्मेजय के पुत्र, पोत्र अदि दीक्षित हुए क्योकि इन सभी को तुर ने दीक्षित किया था इस कारण ये पांडव तुर, तोंर या बाद तांवर, तंवर या तोमर कहलाने लगे । ऋषि तुर द्वारा इस यज्ञ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है.
इंद्रप्रस्थ के तोमर(कुंतल) राजवंश परिवार का उल्लेख (महाभारत के पहले से)
1. भरत
2. हस्ती
3. शान्तनु
4. विचित्रवीर्य - शांतनु के की मौत के बाद, विचित्रवीर्य सिंहासन पर बैठे थे.
5. पांडु
6. पांडवों - (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)
युधिष्ठिर से केशमक तक तोमर राजा
1. युधिष्ठिर
2. अभिमन्यु (अर्जुन के पुत्र और कुरुक्षेत्र की लड़ाई में मारे गए )
3. परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)
4. जनमेजय ( परीक्षित का पुत्र था)
5. शातनक (जनमेजय का पुत्र था)
6. यज्ञदत्त (शातनक का पुत्र था)
7. निशस्त्चक (यज्ञदत्त का पुत्र था )
8. उस्त्ररपाल (निशस्त्चक का पुत्र था )
9. चित्ररथ (उस्त्ररपाल का पुत्र था )
10. धृतिमान ( उग्रसेन ) (चित्ररथ का पुत्र था )
7. सुसेन (धृतिमान का पुत्र था )
8. सुनित (सुसेन का पुत्र था )
9. मखपाल (सुनित सेन का पुत्र था )
10. चाकशु (मखपाल का पुत्र था )
11. सुखवंत (चाकशु का पुत्र था )
12. परील्लव (सुखवंत का पुत्र था )
13. सुनाया (परील्लव का पुत्र था )
14. मेंदावि (सुनया का पुत्र था )
15. नरीपांजाया (मेंदावि का पुत्र था )
16. मादू ( मदू ) (नरीपांजाया का पुत्र था )
17. तीमजोति (मादू का पुत्र था )
18. बृहदत्त (तीमजोति का पुत्र था )
19. वासुदान (बृहदत्त का पुत्र था )
20. शाष्टनक द्वितीय (शातनक) (वासुदान का पुत्र था )
21. उदायन (शातनक का पुत्र था )
22. अहिनर (उदायन का पुत्र था )
23. निरामित्रा (भीमपाल) (अहिनर का पुत्र था )
महाभारत काल के बाद तंवर वंश का वर्णन----------
महाभारत काल के बाद पांडव वंश का वर्णन पहले तो 1000 ईसा पूर्व के ग्रंथो में आता है जब हस्तिनापुर राज्य को युधिष्ठर वंश बताया गया,पर इसके बाद से लेकर बौद्धकाल,मौर्य युग से लेकर गुप्तकाल तक इस वंश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती,समुद्रगुप्त के शिलालेख से पाता चलता है कि उन्होंने मध्य और पश्चिम भारत की यौधेय और अर्जुनायन क्षत्रियों को अपने अधीन किया था,यौधेय वंश युधिष्ठर का वंश माना जा सकता है और इसके वंशज आज भी चन्द्रवंशी जोहिया राजपूत कहलाते हैं जो अब अधिकतर मुसलमान हो गए हैं,इन्ही के आसपास रहने वाले अर्जुनायन को अर्जुन का वंशज माना जा सकता है और ये उसी क्षेत्रो में पाए जाते थे जहाँ आज भी तंवरावाटी और तंवरघार है,यानि पांडव वंश ही उस समय तक अर्जुनायन के नाम से जाना जाता था और कुछ समय बाद वही वंश अपने पुरोहित ऋषि तुर द्वारा यज्ञ में दीक्षित होने पर तुंवर, तंवर,तूर,या तोमर के नाम से जाना गया.(इतिहासकार महेन्द्र सिंह तंवर खेतासर भी अर्जुनायन को ही तंवर वंश मानते हैं)
अर्जुन के सुत सो अभिमन्यु नाम उदार.
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार."
तोमर वंश की पांडववीर अर्जुन से दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल तक की वंशावली :-
1. अर्जुन
2. अभिमन्यु
3. परिक्षत
4. जनमेजय
5. अश्वमेघ
6. दलीप
7. छत्रपाल
8. चित्ररथ
9. पुष्टशल्य
10. उग्रसेन
11. कुमारसेन
12. भवनति
13. रणजीत
14. ऋषिक
15. सुखदेव
16. नरहरिदेव
17. सूचीरथ
18. शूरसेन
19. दलीप द्वितीय
20. पर्वतसेन
21. सोमवीर
22. मेघाता
23. भीमदेव
24. नरहरिदेव द्वितीय
25. पूर्णमल
26. कर्दबीन
27. आपभीक
28. उदयपाल
29. युदनपाल
30. दयातराज
31. भीमपाल
32. क्षेमक
33. अनक्षामी
34. पुरसेन
35. बिसरवा
36. प्रेमसेन
37. सजरा
38. अभयपाल
39. वीरसाल
40. अमरचुड़
41. हरिजीवि
42. अजीतपाल
43. सर्पदन
44. वीरसेन
45. महेशदत्त
46. महानिम
47. समुद्रसेन
48. शत्रुपाल
49. धर्मध्वज
50. तेजपाल
51. वालिपाल
52. सहायपाल
53. देवपाल
54. गोविन्दपाल
55. हरिपाल
56. गोविन्दपाल द्वितीय
57. नरसिंह पाल
58. अमृतपाल
59. प्रेमपाल
60. हरिश्चंद्र
61. महेंद्रपाल
62. छत्रपाल
63. कल्याणसेन
64. केशवसेन
65. गोपालसेन
66. महाबाहु
67. भद्रसेन
68. सोमचंद्र
69. रघुपाल
70. नारायण
71. भनुपाद
72. पदमपाद
73. दामोदरसेन
74. चतरशाल
75. महेशपाल
76. ब्रजागसेन
77. अभयपाल
78. मनोहरदास
79. सुखराज
80. तंगराज
81. तुंगपाल इनके नाम से इनके वंशज तोमर या तंवर राजपूत कहलाते हैं।
82. अनंगपाल तंवर (तोमर) - दिल्ली राज्य के संस्थापक, इस वंशावली से पता चलता है कि अनंगपाल तंवर और तंवर (तोमर) वंश चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, और इनका संबंध पाण्डु पुत्र अर जुन से जुड़ता हैं।
तंवर वंश और दिल्ली की स्थापना ------------
ईश्वर का चमत्कार देखिये कि हजारो साल बाद पांडव वंश को पुन इन्द्रप्रस्थ को बसाने का मौका मिला,और ये श्रेय मिला अनंगपाल तोमर प्रथम को.
दिल्ली के तोमर शासको के अधीन दिल्ली के अलावा पंजाब ,हरियाणा,पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी था,इनके छोटे राज्य पिहोवा,सूरजकुंड,हांसी,थानेश्वर में होने के भी अभिलेखों में उल्लेख मिलते हैं.इस वंश ने बड़ी वीरता के साथ तुर्कों का सामना किया और कई सदी तक उन्हें अपने क्षेत्र में अतिक्रमण करने नहीं दिया
दिल्ली के तंवर(तोमर) शासक (736-1193 ई)------
1.अनगपाल तोमर प्रथम (736-754 ई)-दिल्ली के संस्थापक राजा थे जिनके अनेक नाम मिलते हैं जैसे बीलनदेव, जाऊल इत्यादि।
2.राजा वासुदेव (754-773)
3.राजा गंगदेव (773-794)
4.राजा पृथ्वीमल (794-814)-बंगाल के राजा धर्म पाल के साथ युद्ध
5.जयदेव (814-834)
6.राजा नरपाल (834-849)
7.राजा उदयपाल (849-875)
8.राजा आपृच्छदेव (875-897)
9.राजा पीपलराजदेव (897-919)
10.राज रघुपाल (919-940)
11.राजा तिल्हणपाल (940-961)
12.राजा गोपाल देव (961-979)-इनके समय साम्भर के राजा सिहराज और लवणखेडा के तोमर सामंत सलवण के मध्य युद्ध हुआ जिसमें सलवण मारा गया तथा उसके पश्चात दिल्ली के राजा गोपाल देव ने सिंहराज पर आक्रमण करके उन्हें युद्ध में मारा
12.सुलक्षणपाल तोमर (979-1005)-महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया
13.जयपालदेव (1005-1021)-महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया, महमूद ने थानेश्वसर ओर मथुरा को लूटा
14.कुमारपाल (1021-1051)-मसूद के साथ युद्ध किया और 1038 में हाँसी के गढ का पतन हुआ, पाच वर्ष बाद कुमारपाल ने हासी, थानेश्वसर के साथ साथ कांगडा भी जीत लिया
16.अनगपाल द्वितीय (1051-1081)-लालकोट का निर्माण करवाया और लोह स्तंभ की स्थापना की, अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मन्दिर बनवाये थे।दिल्ली सम्राट अनगपाल द्वितीय ने तुर्क इबराहीम को पराजित किया
17.तेजपाल प्रथम(1081-1105)
18.महिपाल(1105-1130)-महिलापुर बसाया और शिव मंदिर का निर्माण करवाया
19.विजयपाल (1130-1151)-मथुरा में केशवदेव का मंदिर
20.मदनपाल(1151-1167)-
मदनपाल अथवा अनंगपाल तृतीय के समय अजमेर के प्रतापी शासक विग्रहराज चौहान उर्फ़ बीसलदेव ने दिल्ली राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और संधि के कारण मदनपाल को ही दिल्ली का शासक बना रहने दिया,मदनपाल ने बीसलदेव के साथ मिलकर तुर्कों के हमलो के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें मार भगाया,मदलपाल तोमर ने विग्रहराज चौहान उर्फ़ बीसलदेव के शोर्य से प्रभावित होकर उससे अपनी पुत्री देसलदेवी का विवाह किया,पृथ्वीराज रासो में बाद में किसी ने काल्पनिक कहानी जोड़ दी है कि दिल्ली के राजा अनंगपाल ने अपनी दो पुत्रियों की शादी एक कन्नौज के जयचंद के साथ और दूसरी कमला देवी का विवाह पृथ्वीराज चौहान के साथ की,जिससे पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ,जबकि सबसे प्रमाणिक ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय के अनुसार सच्चाई ये है कि पृथ्वीराज चौहान की माता चेदी राज्य की कर्पूरी देवी थी,और पृथ्वीराज चौहान न तो अनंगपाल तोमर का धेवता था न ही जयचंद उसका मौसा था,ये सारी कहानी काल्पनिक थी.
21.पृथ्वीराज तोमर(1167-1189)-अजमेर के राजा सोमेश्वर और पृथ्वीराज चव्हाण इनके समकालीन थे
22.चाहाडपाल/गोविंदराज (1189-1192)-पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गोरी के साथ युद्ध किया,तराईन दुसरे युद्ध मे मारा गया।पृथ्वीराज रासो के अनुसार
तराईन के पहले युद्ध में मौहम्मद गौरी और गोविन्दराज तोमर का आमना सामना हुआ था,जिसमे दोनों घायल हुए थे और गौरी भाग रहा था। भागते हुए गौरी को धीरसिंह पुंडीर ने पकडकर बंदी बना लिया था। जिसे उदारता दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान ने छोड़ दिया। हालाँकि गौरी के मुस्लिम इतिहासकार इस घटना को छिपाते हैं।
23.तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई)-दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा , जिन्होंने स्वतन्त्र 15 दिन तक शासन किया, और कुतुबुद्दीन ने दिल्ली पर आक्रमण कर हमेशा के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
ग्वालियर,चम्बल,ऐसाह गढ़ी का तोमर वंश--------
दिल्ली छूटने के बाद वीर सिंह तंवर ने चम्बल घाटी के ऐसाह गढ़ी में अपना राज स्थापित किया जो इससे पहले भी अर्जुनायन तंवर वंश के समय से उनके अधिकार में था,बाद में इस वंश ने ग्वालियर पर भी अधिकार कर मध्य भारत में एक बड़े राज्य की स्थापना की,यह शाखा ग्वालियर स्थापना के कारण ग्वेलेरा कहलाती है,माना जाता है कि ग्वालियर का विश्वप्रसिद्ध किला भी तोमर शासको ने बनवाया था.यह क्षेत्र आज भी तंवरघार कहा जाता है और इस क्षेत्र में तोमर राजपूतो के 1400 गाँव कहे जाते हैं.
वीर सिंह के बाद उद्दरण,वीरम,गणपति,डूंगर सिंह,कीर्तिसिंह,कल्याणमल,और राजा मानसिंह हुए,
राजा मानसिंह तोमर बड़े प्रतापी शासक हुए,उनके दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर युद्ध हुए,उनकी नो रानियाँ राजपूत थी,पर एक दीनहींन गुज्जर जाति की लडकी मृगनयनी पर मुग्ध होकर उससे भी विवाह कर लिया,जिसे नीची जाति की मानकर रानियों ने महल में स्थान देने से मना कर दिया जिसके कारण मानसिंह ने छोटी जाति की होते हुए भी मृगनयनी गूजरी के लिए अलग से ग्वालियर में गूजरी महल बनवाया.इस गूजरी रानी पर राजपूत राजा मानसिंह इतने आसक्त थे कि गूजरी महल तक जाने के लिए उन्होंने एक सुरंग भी बनवाई थी,जो अभी भी मौजूद है पर इसे अब बंद कर दिया गया है.
मानसिंह के बाद विक्रमादित्य राजा हुए,उन्होंने पानीपत की लड़ाई में अपना बलिदान दिया,उनके बाद रामशाह तोमर राजा हुए,उनका राज्य 1567 ईस्वी में अकबर ने जीत लिया,इसके बाद राजा रामशाह तोमर ने मुगलों से कोई संधि नहीं की और अपने परिवार के साथ महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के पास आ गए,हल्दीघाटी के युद्ध में राजा रामशाह तोमर ने अपने पुत्र शालिवाहन तोमर के साथ वीरता का असाधारण प्रदर्शन कर अपने परिवारजनों समेत महान बलिदान दिया,उनके बलिदान को आज भी मेवाड़ राजपरिवार द्वारा आदरपूर्वक याद किया जाता है.
मालवा में रायसेन में भी तंवर राजपूतो का शासन था ,यहाँ के शासक सिलहदी उर्फ़ शिलादित्य तंवर राणा सांगा के दामाद थे और खानवा के युद्ध में राणा सांगा की और से लडे थे,कुछ इतिहासकार इन पर राणा सांगा से धोखे का भी आरोप लगाते हैं ,पर इसके प्रमाण पुष्ट नही हैं,सिल्ह्दी पर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने 1532 इसवी में हमला किया,इस हमले में सिलहदी तंवर की पत्नी जो राणा सांगा की पुत्री थी उन्होंने 700 राजपूतानियो और अपने दो छोटे बच्चों के साथ जौहर किया और सिल्हदी तंवर अपने भाई के साथ वीरगति को प्राप्त हुए,
बाद में रायसेन को पूरनमल को दे दिया गया,कुछ वर्षो बाद 1543 इसवी में रायसेन के मुल्लाओ की शिकायत पर शेरशाह सूरी ने इसके राज्य पर हमला किया और पूरणमल की रानियों ने जौहर कर लिया और पूरणमल मारे गये इस प्रकार इस राज्य की समाप्ति हुई.
तंवरावाटी और तंवर ठिकाने ---------------
देहली में तोमरो के पतन के बाद तोमर राजपूत विभिन्न दिशाओ में फ़ैल गए। एक शाखा ने उत्तरी राजस्थान के पाटन में जाकर अपना राज स्थापित किया जो की जयपुर राज्य का एक भाग था। ये अब 'तँवरवाटी'(तोरावाटी) कहलाता है और वहाँ तँवरों के ठिकाने हैं। मुख्य ठिकाना पाटण का ही है,एक ठिकाना खेतासर भी है,इनके अलावा पोखरण में भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं,बाबा रामदेव तंवर वंश से ही थे जो बहुत बड़े संत माने जाते हैं,आज भी वो पीर के रूप में पूजे जाते हैं.
मेवाड़ के सलुम्बर में भी तंवर राजपूतो के कई ठिकाने हैं जिनमे बोरज तंवरान एक ठिकाना है,
इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में बेजा ठिकाना और कोटि जेलदारी,बीकानेर में दाउदसर ठिकाना,mandholi जागीर,भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं,धौलपुर की स्थापना भी तंवर राजपूत धोलनदेव ने की थी। 18 वी सदी के आसपास अंग्रेजो ने जाटों को धौलपुर दे दिया। ये जाट गोहद से सिंधिया द्वारा विस्थापित किये गए थे और पूर्व में इनके पूर्वज राजा मानसिंह तोमर की सेवा में थे और उनके द्वारा ही इन्हें गोहद में बसाया गया था।अब भी धौलपुर में कायस्थपाड़ा तंवर राजपूतो का ठिकाना है।
तंवरवंश की शाखाएँ------
तंवर वंश की प्रमुख शाखाएँ रुनेचा,ग्वेलेरा,बेरुआर,बिल्दारिया,खाति,इन्दोरिया,जाटू,जंघहारा,सोमवाल हैं,इसके अतिरिक्त पठानिया वंश भी पांडव वंश ही माना जाता है,इसका प्रसिद्ध राज्य नूरपुर है,इसमें वजीर राम सिंह पठानिया बहुत प्रसिद्ध यौद्धा हुए हैं.जिन्होंने अंग्रेजो को नाको चने चबवा दिए थे.
इन शाखाओं में रूनेचा राजस्थान में,ग्वेलेरा चम्बल क्षेत्र में,बेरुआर यूपी बिहार सीमा पर,बिलदारिया कानपूर उन्नाव के पास,इन्दोरिया मथुरा, बुलन्दशहर,आगरा में मिलते हैं,मेरठ मुजफरनगर के सोमाल वंश भी पांडव वंश माना जाता है,जाटू तंवर राजपूतो की भिवानी हरियाणा में 1440 गाँव की रियासत थी,इस शाखा के तंवर राजपूत हरियाणा में मिलते हैं,जंघारा राजपूत यूपी के अलीगढ,बदायूं,बरेली शाहजहांपुर आदि जिलो में मिलते हैं,ये बहुत वीर यौद्धा माने जाते हैं इन्होने रुहेले पठानों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया,और अहिरो को भगाकर अपना राज स्थापित किया...
पूर्वी उत्तर प्रदेश का जनवार राजपूत वंश भी पांडववंशी जन्मेजय का वंशज माना जाता है। इस वंश की बलरामपुर समेत कई बड़ी स्टेट पूर्वी यूपी में हैं।
इनके अतिरिक्त पाकिस्तान में मुस्लिम जंजुआ राजपूत भी पांडव वंशी कहे जाते हैं जंजुआ वंश ही शाही वंश था जिसमे जयपाल,आनंदपाल,जैसे वीर हुए जिन्होंने तुर्क महमूद गजनवी का मुकाबला बड़ी वीरता से किया था,जंजुआ राजपूत बड़े वीर होते हैं और पाकिस्तान की सेना में इनकी बडी संख्या में भर्ती होती है.इसके अलावा वहां का जर्राल वंश भी खुद को पांडव वंशी मानता है,
मराठो में भी एक वंश तंवरवंशी है जो तावरे या तावडे कहलाता है ,महादजी सिंधिया का एक सेनापति फाल्किया खुद को बड़े गर्व से तंवर वंशी मानता था.
तोमर/तंवर राजपूतो की वर्तमान आबादी-------
तोमर राजपूत वंश और इसकी सभी शाखाएँ न सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में मिलती है,चम्बल क्षेत्र में ही तोमर राजपूतो के 1400 गाँव हैं,इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिलखुआ के पास तोमरो के 84 गाँव हैं,भिवानी में 84 गाँव जिनमे बापोड़ा प्रमुख है,,मेरठ में गढ़ रोड पर 12 गाँव जिनमे सिसोली और बढ्ला बड़े गाँव हैं,
कुरुक्षेत्र में 12 गाँव,गढ़मुक्तेश्वर में 42 गाँव हैं जिनमे भदस्याना और भैना प्रसिद्ध हैं. बुलन्दशहर में 24 गाँव,खुर्जा के पास 5 गाँव तोमर राजपूतो के हैं,हरियाणा में मेवात के नूह के पास 24 गाँव हैं जिनमे बिघवाली प्रमुख है.
ये सिर्फ वेस्ट यूपी और हरियाणा का थोडा सा ही विवरण दिया गया है,इनकी जनसँख्या का,अगर इनकी सभी प्रदेशो और पाकिस्तान में हर शाखाओ की संख्या जोड़ दी जाये तो इनके कुल गाँव की संख्या कम से कम 6000 होगी,चौहान राजपूतो के अलावा राजपूतो में शायद ही कोई वंश होगा जिसकी इतनी बड़ी संख्या हो.
जाट, गूजर और अहीर में तोमर राजपूतो से निकले गोत्र-----------
कुछ तोमर राजपूत अवनत होकर या तोमर राजपूतो के दूसरी जाती की स्त्रियों से सम्बन्ध होने से तोमर वंश जाट, गूजर और अहीर जैसी जातियो में भी चला गया।जाटों में कई गोत्र है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है जैसे सहरावत ,राठी ,पिलानिया, नैन, मल्लन,बेनीवाल, लाम्बा,खटगर, खरब, ढंड, भादो, खरवाल, सोखिरा,ठेनुवा,रोनिल,सकन,बेरवाल और नारू। ये लोग पहले तोमर या तंवर उपनाम नहीँ लगाते थे लेकिन इनमे से कई गोत्र अब तोमर या तंवर लगाने लगे है। उत्तर प्रदेश के बड़ौत क्षेत्र के सलखलेन् जाट भी अपने को किसी सलखलेन् का वंशज बताते है जिसे ये अनंगपाल तोमर का धेवता बताते है और इस आधार पर अपने को तोमर बताने लगे है।गूँजरो में भी तोमर राजपूतो के अवशेष मिलते है। खटाना गूजर अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है। ग्वालियर के पास तोंगर गूजर मिलते है जो ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर की गूजरी रानी मृगनयनी के वंशज है जिन्हें गूजरी माँ की औलाद होने के कारण राजपूतों ने स्वीकार नहीँ किया। दक्षिणी दिल्ली में भी तँवर गूजरों के गाँव मिलते है। मुस्लिम शाशनकाल में जब तोमर राजपूत दिल्ली से निष्काषित होकर बाकी जगहों पर राज करने चले गए तो उनमे से कुछ ने गूजर में शादी ब्याह कर मुस्लिम शासकों के अधीन रहना स्वीकार किया।इसके अलावा सहारनपुर में छुटकन गुर्जर भी खुद को तंवर वंश से निकला मानते हैं और करनाल,पानीपत ,सोहना के पास भी कुछ गुज्जर इसी तरह तंवर सरनेम लिखने लगे हैं,हरयाणा के अहिरो में भी दयार गोत्र मिलती है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है।दिल्ली में रवा राजपूत समाज में भी तंवर वंश शामिल हो गया है.....
इस प्रकार हम देखते हैं कि चन्द्रवंशी पांडव वंश तोमर/तंवर राजपूतो का इतिहास बहुत शानदार रहा है,वर्तमान में भी तोमर राजपूत राजनीति,सेना,प्रशासन,में अपना दबदबा कायम किये हुए है,पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह भिवानी हरियाणा के तंवर राजपूत हैं,और आज केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं,मध्य प्रदेश के नरेंद्र सिंह तोमर भी केंद्र सरकार में मंत्री हैं,प्रसिद्ध एथलीट और बाद में मशहूर बागी पान सिंह तोमर के बारे में सभी जानते ही हैं,स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल भी तोमर राजपूत थे,इनके अतिरिक्त सैंकड़ो राजनीतिज्ञ,प्रशासनिक अधिकारी,समाजसेवी,सैन्य अधिकारी,खिलाडी तंवर वंशी राजपूत हैं
तोमर क्षत्रिय राजपूतो के बारे में कहा गया है की
"अर्जुन के सुत सो अभिमन्यु नाम उदार.
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार."
Tomar Gotra Ka Itihas
तोमर गोत्र का परिचय
तोमर ,तंवर,शिरा तंवर ,तुर ,सुलखलान ,सुलख,चाबुक,भिण्ड तोमर ,पांडव,जाखौदिया,कुंतल एक ही जाट गोत्र है जिसकी 10 उप गोत्र शाखाएं है| तोमर गोत्र जाटों में जनसंख्या के अनुसार बड़े गोत्रो में से एक है ।तोमर जाट गोत्र बहुत अधिक प्राचीन गोत्र है ।तोमर जाट गोत्र भरतवंशी (राजा भरत के वंशज ) पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज है । तोमर जाट गोत्र की 10 शाखाये है । तोमर गोत्र का ही अपभ्रश तंवर है इतिहासकारों ने दिल्ली के तोमर राजाओ के लिए कही पर तोमर तो कही पर तंवर शब्द का उपयोग किया है तोमरो का दिल्ली पर शासन था उनकी शान में यह कहावत प्रचलित थी की जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा तोमर जाट गोत्र उत्तर प्रदेश ,हरियाणा , पंजाब , राजस्थान , मध्य प्रदेश दिल्लीमें निवास करते है । तोमर गोत्र हिन्दू और सिख जाटो में भी है । जट सिख में तोमरो को तुर कहते है । तुर जाटो की एक शाखा है । जिसको गरचा कहते है । तोमर जाटों के 50 गाँव ऐसे है जिनकी जनसंख्या 10,000 से अधिक है । जैसे बावली , पृथला आदि ।
तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र शाखाएं है
1.कुंतल/(खुटेल), 2.पांडव, 3.सलकलायन, 4.चाबुक, 5.तंवर, 6.भिण्ड तोमर (भिंडा), 7.जाखौदिया, 8.सुलख, 9.देशवाले, 10.शिरा तंवर 11. मोटा,12.कपेड या कपेड़ा उप गोत्र शाखाएं है, लेकिन गोत्र तोमरहै ।
उत्पत्ति
तोमर गोत्र (कुंतल/(खुटेल), पांडव, सलकलायन,तंवर, भिण्ड तोमर (भिंडा), सुलख , शिरा तंवर ) की उत्पत्ति पांड्वो से है इस कारण तोमर गोत्र पाण्डुवन्शी , कुंतलवंशी (कुंती के) भी कहलाते है तोमर जाट अर्जुन के वंशज है उनकी कुल देवी मनसा देवी (योगमाया कृष्ण की बहिन) और शाकुम्भरी देवी है । यह देवी पांड्वो की भी कुल देवी थी |
तोमर एक संस्कृत शब्द है जिस मतलब भाला या लोहदंड है। तोमर जो कि माँ दुर्गा का एक हथियार है तोमर हथियार का वर्णन दुर्गा कवच पथ में दुर्गा माँ के हथियार के रूप उल्लेख कियागया है। यह हथियार अर्जुन को महाभारत युद्ध में माँ से मिला था। तोमर एक हथियार है जो अर्जुन द्वारा महाभारत युद्ध में इस्तेमाल किया गया था जो यह इंगित करता है कि तोमर महाभारत अवधि मे तोमर हथियार के साथ विशेषज्ञ योद्धा थे। कुंतल जाट खाप मथुरा और भरतपुर में पाया जाता है तोमर जाट कुंती और पांडु के वंशज हैं, तो उन्हें कुंतल बुलाया। 36 राजवंशों के गिनाये हुए नामों के अधिकांश राजवंश जाटों में भी पाये जाते हैं। कर्नल टॉड ने तो पूरी जाट जाति को 36 राजवंशों में से एक राजवंश माना है| कर्नल टाड ने इसी बात को इस भांति लिखा है-
“जिन जाट वीरों के प्रचण्ड पराक्रम से एक समय सारा संसार कांप गया था, आज उनके वंशधर खेती करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।“
तोमर जाट गोत्र ने बहुत बार अपनी वीरता के दम पर इतिहास बनाया है|तोमर गोत्र के जाट बहुत सादा जीवन, उच्च विचार, बोल्ड और मजबूत व्यक्तियों रहे हैं. दिलीप सिंह अहलावत ने तोमर जाट को मध्य एशिया में सत्तारूढ़ जाट कुलों के रूप में उल्लेख किया है.
तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र शाखाएं है
कुंतल जाट मथुरा और भरतपुर में पाया जाता है वे कुंती और पांडु के वंशज हैं, तो उन्हें कुंतल बुलाया| राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए। इन्हीं लोगों ने सौख क्षेत्र की खुटेल, (कुंतल) पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है। उसी समय इनके कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है। इन्हीं के पास बाद में चौहान जाटों ने मित्रोल और नौरंगाबाद गांव बसाए जिन्हें आज भी जाट कहा जाता है राजपूत नहीं।
पांडू- तोमर जाट पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज होने के कारन पांडू या पांडव भी कहते है तोमर जाटो के पांडु वंशी होने के कारनपांडव जाट टाइटल कुछ तोमर आगरा और जयपुर में पांडू और पांडव उपनाम के रूप में काम लेते है
भिंडा-तोमर जाट जो भिण्ड शहर से फैल उन्हें भिण्ड तोमर बुलाया तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र भिंडा (भिण्ड तोमर) है.भिण्ड मध्य परदेश में एक जिला है
तूर (तुअर) जाट गोत्र हिन्दी में तोमर और पंजाबी और देसी बोली में Taur (तुअर जट) कहा जाता है
जाखौदिया तंवर- जाखौदिया गोत्र नहीं होता है इनका गोत्र तोमर है तोमर(तंवर ) जाट 1857 के आसपास जब दिल्ली के जाखौद गॉव से आकर भरतपुर के छोंकरवाड़ा गाव में बसे तो यह के स्थानीय निवासयो ने इनको इनके पैतृक गाँव जाखौद के नाम पर जखोदिया कहना शुरू कर दिया . पुरे भारतवर्ष में यह एक मात्र गाँव है जाखौदिया तंवर जाटों का और किस जगह पर यदि कोई जाखौदिया तोमर निवास करते है तो वो मूल रूप से छोंकरवाड़ा से गए हुए है । दिल्ली पर तोमर जाटों का राज्य रहा है उनको ही तंवर बोला जाता है दोनों एक ही गोत्र है जाखौद गांव को एक महाराजा अनंगपाल तोमर के सात बेटे के द्वारा स्थापित किया गया था । दिल्ली में तोमर जाटों के बहुत से गाव थे जो दिल्ली से कुछ मुज़्ज़फरनगर जिले के बलेड़ा ,बहादरपुर जैसे गावो में जा बसे । 1857 की क्रांति में जाटों में अंग्रेज़ो का विरोध किया था 1857 की क्रांति के असफल हो जानेके बाद अंग्रेज़ो ने दिल्ली में बहुत से जाटों के गाँवों को उजाड़ दिया उनमे से जाखौद भी एक था ।
सलकरान शाखा - सलअक्शपाल सलकपाल तोमर द्वारा उत्पन्न किया गया था. जब दिल्ली के अंतिम तोमर राजा अनंगपाल ने अपने राज्यों को खो दिया तो सलअक्शपाल तोमर फिर से अपने परिवार के 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की, राजा सलअक्शपाल तोमर की समाधि स्थल बदोत नई ब्लॉक कृषि प्रसार विभाग से सटे दिल्ली सहारनपुर रोड पर है.
सुलख - सुलख तोमरो को रोहतक , भिवानी जिले में कहते है इनको वह पर सुलखलान भी कहते है.
चाबुक- तोमर जाटो ने चाबुक से ब्राह्मण को पीटा था इसलिए इन लोग को चाबुक के रूप में जाने जाते है.
देशवाले -तोमर लोग एक समय देश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है.
कपेड - कपेड या कपेड़ा गोत्र नहीं इनको एक मोहल्ले के नाम पर मिला है । कुछ इनको कल्याण सिंह तोमर के नाम पर कपड़े नाम पड़ने बताते है । यह बागपत के बावली गाव से आकर बसे तोमर जाट है जो सब से पहले बिजनौर जिले में आकर बसे थे बिजनौर में यह सिर्फ तोमर ही लिखते है यह अपना गोत्र तोमर ही लिखते है जबकि 4 परिवार जो मुरादाबाद जिले के रामनगर उर्फ़ रामपुरा गाव में रहते है वो ही कपेड या कपेड़ा लिखते है. [1]
मोटा - मोटा गोत्र नहीं है यह सिर्फ एक नाम है । इनका गोत्र तोमर (तंवर) यह लोग राजस्थान में हरयाणा के जाटोली गाँव से सवाई माधोपुर जिले के वज़ीरपुर के पास आकर बसे वहां से ही खण्डार तहसील में गए, सवाई माधोपुर जिले के वज़ीरपुर के पास केकुन्साय और खेड़ला गॉवों में वो अपना गोत्र तोमर (तंवर ) ही लिखते है
पार्थ- अर्जुन का ही दूसरा नाम है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ ही सम्बोदन दिया था । महाभारत के युद्ध में श्री भगवत गीता का ज्ञान देते समय, इसलिए कुछ तोमर पार्थ को उपनाम के रूप में काम लेते है क्योकि तोमर जाट पाण्डुवंशी अर्जुन के ही वंशज है । शूरसेन कुंती के वास्तविक पिता थे कुंती के बचपन का नाम पृथा था| इसलिए अर्जुन को पार्थ ( पृथा पुत्र ) भी कहा जाता है । पृथा को बचपन में राजा कुन्तीभोज ने गोद ले लिया था । इसलिए पृथा का नाम कुन्ती रख दिया गया था। कुंती के नाम पर पांडवो को कोंतेय भी कहा जाता है| तोमर जाटो को कोंतेय से ही कुंतल कहा जाने लगा.
शीरा (शिरे)तंवर - यह तंवर जाटो की ही एक शाखा है पेहोवा के इतिहास के अनुसार यहाँ पर जाटों का शासन रहा है। पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है। महिपाल तोमर का भी पेहोवा पर शासन रहा है थानेसर जो की हिन्दू के लिए उतना ही पवित्र था जितना मुस्लिमो के लिए मक्का, थानेसर अपनी दोलत के लिए और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध था । दिल्ली के राजा अनगपाल और ग़ज़नी के राजा महमूद के बीच यह संधि थी की दोनों ही एक दुसरे के क्षेत्र में हमला नही करेगे लेकिन जैसा की गजनवी धोखे बाज़ था । उस ने धन ले लालच में हमले की योजना बनाई । और पंजाब तक आ गया । दिल्ली के तोमर (तंवर ) राजा अनगपाल तोमर तक उस के नापाक योजना की सुचना पहुच गयी थी अनगपाल तोमर ने अपने भाई को 2000 घोड़े सवारो के साथ महमूद से बात करने पंजाब भेजा दोनों बीच में बातचीत हुई और वो वापस दिल्ली अपने भाई के पास चल दिया उसको रास्ते में सुचना मिली की महमूद हमला करने वाला है इस बात की सूचना उस ने अपने बड़े भाई अनगपाल तोमर को दे दी । जो उस समय दिल्ली में थे । उन्होंने कई हिन्दुओ राजो को साथ लिया और थानेसर की तरफ चल दिए उनके पहुचने से पहले ही महमूद ने थानेसर के मंदिरों को लुटा । थानेसर से उस को बहुत धन दोलत प्राप्त हुई । फिर उसने दिल्ली पर हमले के सोची पर उसके सेनापति ने महमूद गजनवी से कहा की दिल्ली के तोमरो को जितना असम्भव है । क्यों की तोमर इस समय बहुत शक्तिशाली है ध्यान देने वाली बात है गजनवी ने भारत पर 17 बार हमले किये पर दिल्ली पर कभी हमला करने की उसकी हिम्मत नही हुई | 1025 के सोमनाथ के हमले के बाद उस को खोखर जाटों ने रास्ते में ही लुट लिया । उसको सबक सिखा दिया । और वो वापस मुल्तान लोट गया । अनंगपाल तोमर इस क्षेत्र में पहुचे हूँ बहुत दुःखी हुए और वो पालकी की जगहे सीढ़ी पर बैठ पर गये । इस कारण से ही तो तोमर जाटों को इस क्षेत्र में सिरा तोमर ,या शिरा तंवर कहते है (शिरा (सिरे)=सीढ़ी वाले ) कहा जाता है ।सिरा तंवर अनंग पाल तोमर के वन्सज है जिनके आज 12 से ज्यादा गाँव गुहला और पेहोवा के पास है कुछ गाँव पंजाब में है ।
गरचा जट तोमर जाटो की एक उप गोत्र शाखा है । जो की कोहरा गाँव जिला लुधियाना पंजाब से निकली है यह तोमर जाटोके निकट संबंधि है
महाभारत में तोमर जाट कुल का उल्लेख है :-
वायु पुराण के अनुसार नलिनी नदी मध्य एशिया के बिन्दसरा से निकल कर तोमर और हंस लोगो की भूमि से प्रवाहित होती है[2]
तोमरो का नाम का जिक्र वायु पुराण ,और विष्णु पुराण में भी है [3]
महाभारत के भीष्म पर्व (10.68 VI.) में तोमर जाट कुल है. [4] [5]
1337 विक्रम संवत.के बोहर शिलालेख के अनुसार तोमर दिल्ली में चौहान से पहले सत्तारूढ़ थे पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है.।. वायु पुराण कहते हैं वे मूल रूप से मध्य एशिया में नदी नलिनी, जो बिंदुसरोवर में उठता है और पूर्व की ओर चला जाता है पर थे|
महाभारत के आदि पर्व (I.17.11) तोमर का उल्लेख है.
महाभारत जनजाति (तामर) Tamara 'भूगोल' महाभारत (10.68 VI.) में उल्लेख किया है,
.शल्यपर्व तोमर (IX.44.105) महाभारत में भीष्म पर्व, महाभारत / बुक छठी 68 श्लोक में उल्लेख तोमर (VI.68.17) अध्याय के रूप में उल्लेख है.
कर्ण पर्व महाभारत बुक आठवीं के 17 अध्याय विभिन्न श्लोकों VIII.17.3, VIII.17.4, VIII.17.16, VIII.17.20, VIII.17.22, VIII.17.104 आदि में तोमर का उल्लेख पांडु के वंशज में उल्लेख किया हैं.
विभिन्न श्लोकों में तोमर जाट कुल का उल्लेख किया
1. परासाः सुविपुलास तीक्ष्णा नयपतन्त सहस्रशः।तॊमराश च सुतीक्ष्णाग्राः शस्त्राणि विविधानि च (I.17.11)
2. ↑ तामरा हंसमार्गाश च तदैव करभञ्जकाः । उथ्थेश मात्रेण मया देशाः संकीर्तिताः परभॊ ।। (VI. 10.68)
3. गदा भुशुण्डि हस्ताश च तदा तॊमरपाणयः । असि मद्गरहस्ताश च दण्डहस्ताश च भारत ।। (IX.44.105)
4. शक्तीनां विमलाग्राणां तॊमराणां तदायताम । निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलॊत्पलनिभाः परभाः ।। (VI.68.17)
5. ↑ मेकलाः कॊशला मथ्रा थशार्णा निषधास तदा । गजयुथ्धेषु कुशलाः कलिङ्गैः सह भारत ।। (VIII.17.3)
6. शरतॊमर नाराचैर वृष्टिमन्त इवाम्बुथाः । सिषिचुस ते ततः सर्वे पाञ्चालाचलम आहवे ।। (VIII.17.4)
7. थिवाकरकरप्रख्यान अङ्गश चिक्षेप तॊमरान ।नकुलाय शतान्य अष्टौ तरिधैकैकं तु सॊऽचछिनत ।। (VIII.17.16)
8. मेकलॊत्कल कालिङ्गा निषाथास ताम्रलिप्तकाः । शरतॊमर वर्षाणि विमुञ्चन्तॊ जिघांसवः ।। (VIII.17.20)
9. ततस तथ अभवथ युथ्धं रदिनां हस्तिभिः सह । सृजतां शरवर्षाणि तॊमरांश च सहस्रशः ।। (VIII.17.22)
10. अपरे तरासिता नागा नाराचशततॊमरैः । तम एवाभिमुखा यान्ति शलभा इव पावकम ।। (VIII.17.104)
तोमर वंश की पवित्र वस्तु
वंश - चन्द्र (चंद्रवंशी)
कुलगोत्र - कौन्तेय (पाण्डव वंशी )
कुलदेवी - योगमाया मंशा देवी
कुल देवता -भगवान श्रीकृष्ण, हनुमान
राज़ चिह्न – गौ बच्छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
माला – रूद्राक्ष की माला,
पक्षी- गरूड़, (चील)
राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर,
आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल) ,
राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
तिलक – रामानन्दी,
गुरू – व्यास,
राजध्वज – भगवा पर अर्द्ध चन्द ,कपिध्वज
मंत्र – गोपाल मंत्र,
हीरा - मदनायक (कोहेनूर ) ,
मणि – पारसमणि,
राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र,
यंत्र – श्रीयंत्र,
महाविद्या – षोडशी महाविद्या
इंद्रप्रस्थ के तोमर(कुंतल) राजवंश परिवार का उल्लेख (महाभारत के पहले से)
1. भरत
2. हस्ती
3. शान्तनु
4. विचित्रवीर्य - शांतनु के की मौत के बाद, विचित्रवीर्य सिंहासन पर बैठे थे.
5. पांडु
6. पांडवों - (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)
युधिष्ठिर से केशमक तक तोमर राजा
1. युधिष्ठिर
2. अभिमन्यु (अर्जुन के पुत्र और कुरुक्षेत्र की लड़ाई में मारे गए )
3. परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)
4. जनमेजय ( परीक्षित का पुत्र था)
5. शातनक (जनमेजय का पुत्र था)
6. यज्ञदत्त (शातनक का पुत्र था)
7. निशस्त्चक (यज्ञदत्त का पुत्र था )
8. उस्त्ररपाल (निशस्त्चक का पुत्र था )
9. चित्ररथ (उस्त्ररपाल का पुत्र था )
10. धृतिमान ( उग्रसेन ) (चित्ररथ का पुत्र था )
7. सुसेन (धृतिमान का पुत्र था )
8. सुनित (सुसेन का पुत्र था )
9. मखपाल (सुनित सेन का पुत्र था )
10. चाकशु (मखपाल का पुत्र था )
11. सुखवंत (चाकशु का पुत्र था )
12. परील्लव (सुखवंत का पुत्र था )
13. सुनाया (परील्लव का पुत्र था )
14. मेंदावि (सुनया का पुत्र था )
15. नरीपांजाया (मेंदावि का पुत्र था )
16. मादू ( मदू ) (नरीपांजाया का पुत्र था )
17. तीमजोति (मादू का पुत्र था )
18. बृहदत्त (तीमजोति का पुत्र था )
19. वासुदान (बृहदत्त का पुत्र था )
20. शाष्टनक द्वितीय (शातनक) (वासुदान का पुत्र था )
21. उदायन (शातनक का पुत्र था )
22. अहिनर (उदायन का पुत्र था )
23. निरामित्रा (भीमपाल) (अहिनर का पुत्र था )
केशमक से कांलिग तोमर
1. केशमक ( निरामित्रा का पुत्र था ) Kshemak abandoned his kingdom and went to Kalapgram
2. प्ररोदयोत
3. सुनंक (केशमक का मन्त्री)
4. तुनंगा
5. अभगा (नंदा)
6. जावलपाल (विजयपाल )
7. सोमदेव (गावल) Gwalior was later established on his name at Gopanchal mountain range
8. लोरीपीण्ड
9. अदनगल
10. गनमल
11. नाभनग
12. चुककर तोमर
13. परोलराजा काकाति
14. धरावंदन (धराविदन)
15. दुर्गापाल तोमर
16. मनभा तोमर
17. करवाल तोमर
18. कांलिग तोमर
19. केशमक- द्वितीय (इंद्रप्रस्थ के अंतिम तोमर राजा थे )
दिल्ली के तोमर राजवंश का उल्लेख
अनंगपाल I (736-754 ई. ) - अनंगपाल तोमर ने फिर से अपने पूर्वजों की प्राचीन राजधानी दिल्ली में शासन स्थापित किया था . अनंगपाल ने 18 साल लिए शासन किया|
वासदेव (754-773-ई). ने, 19 साल, 1 महीने के लिए शासन किया|
गंगदेव (गांगेय) (773-794 ई) ने 21 साल -4 महीने के लिए शासन किया
पृथ्वीपाल (794-814 ई.) ने 19 साल -6 महीने के लिए शासन किया
जयदेव (814-834 ई.) ने 20 साल -7 महीने के लिए शासन किया
नरपाल (वीरपाल) (834-849 ई.) ने 14 साल -4महीने के लिए शासन किया
उदय सिंह (Adhere) (849-875 ई.) ने 26 साल 7 महीने के लिए शासन किया
विजयपाल (875-876 ई.) ने 1 साल के लिए शासन किया
जयदास (876-897 ई.) ने, 21 साल के लिए शासन किया
वाछल देव (897-919 ई.) ने, 22 साल 3 महीने के लिए शासन किया
पावक (रिक्शपाल) (919-940 ई.) 21 साल 6 महीने के लिए शासन किया
विहंगपाल (940-961 ई.) 24 साल 4 महीने के लिए शासन किया
गोपाल (961-976 ई.) 18 साल 3 महीने के लिए शासन किया
सलअक्शपाल, (सकपाल) (Salakshpal) (976-1005 ई.) 25 साल 10 महीने के लिए शासन किया
जयपालदेव (1005-1021 ई.) 16 साल के लिए शासन किया
कुमारपालदेव (1021-1051 ई.)
अनंगपाल द्वितीय (1051-1081 ई.) ने 29 साल 11 महीने के लिए शासन किया और महरौली में लौह स्तंभ पर शिलालेख 1052 और लालकोट दिल्ली का पुराना किला बनाया था
तेजपाल (1081-1105 ई.)
महीपाल (1105-1130 ई.) - महीपाल तोमर ने अनंगपाल द्वितीय द्वारा बसाई राजधानी का विस्तार किया और उसी के पास महीपालपुर नगर बसाया. कुतुब मीनार के पूर्व-उत्तरपूर्व दिशा में महीपालपुर नामक ग्राम बसा हुआ था और पौन मील लम्बा तथा चौथाई मील चौडा बांध भी था. वहां उसने एक शिव मंदिर भी बनवाया था. [6]
विजयपालदेव (1130-1151 ई.): विजयपालदेव का वि.सं. 1207 (सन 1150 ई.) का शिलालेख प्राप्त हुआ है.[7]
मदनपाल देव (1151-1167 ई) : ललितविग्रहराज नाटक में चौहान राजा को तुरुषकों की सेना की हलचल का पता बब्बेर नामक स्थान के पास लगता है. बब्बेर की भौगोलिक स्थिति खतरगच्छ बृहदगुर्वावली से प्रकट होती है.उसके अनुसार जिनचन्द्र सूरि अजयमेरू से बब्बेरक गये. बब्बेरक से वे आसिका पहुंचे और आसिका से महावन होते हुये इन्द्रपुर गये. विक्रम सम्वत 1228 में जिनपति सूरि ने बब्बेरक में विहार किया. आसिका के राजा भीम सिंह को जब यह ग्यात हुआ कि सूरिजी इतने निकट आ गये हैं तब वह उन्हें लेने के लिये पहुंचे. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बब्बेरक या बब्बेर हांसी के अति निकट था. हांसी और इन्द्रपुर अर्थत इन्द्रप्रस्थ के मार्ग मे महावन था. हांसी मदनपाल के समय तोमरों के अधीन थी.इन सब तथ्यों को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि तुरुष्कों का यह आक्रमण इन्द्रप्रस्थ के राजा के विरुद्ध हुआ था, जिसका नाम अन्य स्रोतों से मदनपाल प्राप्त होता है. [8]
पृथ्वीराज तोमर (1167-1189 ई) - मदनपाल तोमर के पश्चात पृथ्वीराज और चाहडपाल नामक दिल्ली के दो तोमर राजा हुये थे और उन्होने अपनी मुद्रायें जारी की थी.[9] इतिहास में अत्यधिक विवेचित और अनेक शताब्दियों से आख्यान-पुरुष बनाये गये पृथ्वीराज चौहान के समकालीन होने के कारण पृथ्वीराज या पृथ्वीपाल तोमर को इतिहास में बहुत क्षति उठानी पडी है. अबुलफ़जल द्वारा दी गई वंशावली के अनुसार इनका राज्यकाल 22 वर्ष 2 माह 16 दिन रहा.[10] पृथ्वीराज तोमर की मृत्यु सन 1189 में हुई. हरिहर निवास द्विवेदी लिखते हैं कि 1177 ई. के पश्चात उत्तर-पश्चिम भारत विश्रृंखल राजाओं का संघ रह गया था, जो दिल्ली के तोमर राजा को अपना मुखिया मानता था. यह संभव है कि तोमर-साम्राज्य का यह स्वरूप अनंगपाल द्वितीय के समय में भी हो. अर्थात वह अनेक राज्यों का संघ हो. उस युग में इस प्रकार के शंघ थे. ’वल्ल-मण्डल’ प्रतिहारों के राज्यों का संघ ही था. परन्तु अनंगपाल तोमर के समय में समस्त अधिनस्त सामन्त या भुमिपति दिल्ली का नियन्त्रण पूर्णतः मानते थे. पृथ्वीराज तोमर के समय में चौहानों के साथ हुये लम्बे विग्रहों के कारण यह नियन्त्रण शिथिल हो गया था. हांसी का भीम सिंह तथा वे अनेक (या फ़रिस्ता के अनुसार 150) राजा इसी तोमर संघ के अधीन थे. [11]
चाहड़पाल तोमर (1189-1192 ई.) - ठक्कुर फ़ेरु की द्रव्यपरीक्षा के आधार पर यह भी सुनिश्चित रूप में कहा जा सकता है कि पृथ्वीराज या पृथ्वीपाल तोमर के पश्चात चाहड़पाल नामक दिल्ली का तोमर राजा हुआ था. [12] सन 1178 ई.. में शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर आक्रमण किया. उसने किराडू के पास स्थित सोमेश्वर महादेव के मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट किया और नाडोल के चौहान राज्य को उजाड दिया. शहाबुद्दीन गौरी का यह भारत अभियान पूर्णत: विफ़ल हुआ. वह अपनी अधिकांश सेना नष्ट कराकर ही गजनी लौट सका. शहाबुद्दीन गौरी ने 1189 ई. में उसने तोमरों के साम्राज्य (या राज्य संघ) [13] के मार्ग से आक्रमण किया. सन 1189 ई. में उसने तंवरहिन्द (सरहिन्दा या भटिण्डा) पर आक्रमण कर दिया और उस गढ को हस्तगत कर लिया तथा वहां जियाउद्दीन नामक सेनापति को सेना सहित नियुक्त किया. [14] तराइन पर तुर्कों और राजपूतों की सेना का युद्ध हुआ. इस युद्ध में दिल्ली के चाहड़पाल तोमर ने सुल्तान को पराजित किया और तंवर हिन्दा का गढ वापस ले लिया. [15] सन 1192 में शहाबुद्दीन गौरी ने तराइन का अन्तिम युद्ध लडा. इसमें हिन्दु सेना को धोके से परास्त किया. दिल्ली के तोमर वंश के इतिहास का यह निर्णायक युद्ध में 1 मार्च 1192 ई. को अथवा फ़ाल्गुणी पूर्णीमा (होली) वि.सं. 1249 को दिन के 2 और 3 बजे के बीच दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा चाहडपाल मारा गया.[16]
तोमरों का ऐसाह आगमन
तोमरों का ऐसाह आगमन : सन 1192 में तराइन के निर्णायक युद्ध में चाहडपाल डेव तोमर की मृत्यु के पश्चात तोमरों के दिल्ली साम्राज्य का पतन हो गय.[17] दिल्ली तथा उसके आस-पास के हिन्दु राजाओं पर विदेशी आक्रान्ताओं का दवाब बढने लगा तब वे लोग मैदानी क्शेत्रों को छोडकर मध्य भारत के बीहडों तथा दुर्गम क्षेत्रों की ओर नई सत्ता की स्थपना के लिये बढने लगे. पराजित तोमर शासक चम्बल के बीहडों मे स्थित अपने प्राचीन स्थान एसाह आ गये. [18][19]
चम्बल का पनी चम्बल में -
प्रिन्सेप[20] ने विल्फ़ोर्ड[21] द्वार विवेचित एक अनुश्रुति का उल्लेख किया है. किसी अनंगपाल का पौत्र दिल्ली के पतन के बाद अपने देश गौर चला गया. यह गौर निश्चय ही ग्वालियर क्षेत्र है और अनंगपाल है अनंगप्रदेश का अन्तिम राजा चाहड़पाल. दिल्ली का तोमर राजवंश ग्वालियर आया था. वे चम्बल के ऐसाहगढ में आकर निवास करने लगे थे.
तोमर जाट और राजपूत:
कुछ इतिहास कार चाहड़पाल तोमर को अनंगपाल तृतीय (अक्रपाल) (दत्तपाल) नाम से भी पुकारते हैं. दिल्ली के अंतिम तोमर राजा अनंगपाल थे। इनसे 20 पीढ़ी पहले भी एक अनंगपाल तोमर राजा हुए थे। लेकिन बाद वाले इस 20वें अनंगपाल राजा का 1164 ई० में दिल्ली पर राज था। इनको कोई पुत्र न होने के कारण इन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र (दयोहते) पृथ्वीराज को अपनी सुविधा के लिए अपने पास रख लिया और एक दिन गंगास्नान के लिए चले गए। जब वापिस लौट कर आए तो पृथ्वीराज ने राज देने से मना कर दिया। इस पर तोमर और चौहान जाटों में आपस में युद्ध हुआ जिसमें चौहान जाट विजयी रहे। राजस्थान के चौहान जाट पहले से ही अपने को राजपूत (राजा के पुत्र) कहलाने लगे थे। इस प्रकार दिल्ली पर बाद में राजपूत चौहानों का राज कहलाया। लेकिन ऐसी कौन सी विपदा आई कि दिल्ली में जाट तो रह गए लेकिन राजपूत गायब हो गए? इससे यह प्रमाणित है कि जाट और राजपूत एक ही थे। यह सब काल्पनिक बृहत्यज्ञ का ही परिणाम है। राज पुत्र होने के कारण तोमर जाट से राजपूत हो गए (पुस्तक राजपूतों कि उत्पत्ति का इतिहास)। हम कहते हैं कि तोमर राजपूत ही तोमर जाटों से निकले है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से कई शताब्दियों पहले का है क्योंकि राजपूत शब्द को कोई भी इतिहासकार छठी शताब्दी से पहले का नहीं बतलाता। लेकिन जाट शब्द जो कि पाणिनि के धातुपाठ व चन्द्र के व्याकरण में क्रमशः ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व और ईसा से 400 वर्ष पीछे का लिखा हुआ मिलता है इस बात का प्रमाण है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से प्राचीन है। ऐसी दशा में संभव यही हुआ करता है कि पुरानी चीज में से नई चीज बना करती है।
दिल्ली में जब जाट राजा अनंगपाल तोमर का राज था जिनके कोई पुत्र नहीं था इसलिए गंगा स्नान जाने से पहले अपने दोहते पृथ्वीराज चौहान को राज संभलवा गए परन्तु उनकी वापिसी पर पृथ्वीराज ने राज देने से इनकार कर दिया जिस पर जाटों में आपस में भारी खून-खराब हुआ और इसमें कुछ तोमर और चौहान जाटों के दल पलवल और मथुरा के पास जाकर बसे जिनके आज वहां कई गांव हैं । [22]
देश खाप के तोमर जाटों का एक इतिहास है:-
तोमर गोत्र को दिल्ली के राजा सलअक्शपाल तोमर के नाम पर ही सलाकलान कहते है इनकी खाप को देश खप कहते जिस नाम दो कारन से देश खाप है एक तो यह की सलअक्शपाल राजा के पुत्र देशपाल इस खाप के मुखिया थे । इनके नाम पर ही इस खाप का नाम देश खाप पड़ा है दूसरा यह खाप बहुत अधिक क्षेत्र में है जी को देश नाम से जानते इसलिए ही इनको देश वाले भी कहते है देश खाप कभी गुलाम नहीं रही किसी गैर राजा के अधीन नहीं रही | तोमर जाट ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में निवास करते है बागपत क्षेत्र में तोमर गोत्र के 84 गांवों हैं तोमर खाप इस क्षेत्र में देश खाप के रूप में जाना जाता है श्री सुखबीर सिंह के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र श्री सुरेन्द्र सिंह इस देश खाप के चौधरी के रूप में मनोनीत किया गया है 976 ई. में सलअक्शपाल तोमर दिल्ली (इंद्रप्रस्थ) के सिंहासन पर सत्तारूढ़ थे| उन्होंने 25 साल 10 महीने के लिए शासन किया| जब अपने भाई जयपाल के लिए 1005 में दिल्ली के राज सिहांसन छोड़ कर समचना चले गये कुछ समय बाद यमुना को पार कर के 1005 ई. में सलअक्शपाल ने समचना (आधुनिक रोहतक) को और फिर कुछ समय के बाद में यमुना नदी को पार किया और इस तोमर क्षेत्र का हिस्सा बन गया मेरठ गजट हमें बताता है कि जिले "मेरठ” महिपाल राजा के राज का हिस्सा था| जब राजा सलअक्शपाल तोमर इस क्षेत्र में आया था उसे के साथ 500 योद्धा थे जिनमें से 405 जाट थे, और बाकी दूसरे समुदायों से थे |उसके कुछ ही समय बाद ही मोहम्मंद गज़नी के भारत पर आक्रमण शुरु हो गये । मोहम्मंद गज़नी का अंतिम आक्रमण 1027 में खोकर जाटो पर था | सलअक्शपाल ने चौधरत का समाज शुरू किया था उन्होंने इस क्षेत्र में 14 गांवों के प्रत्येक छह में चौधरत शुरू कर दिया था उसने कुल 6 गाँव की चौधरत शुरू की , प्रत्येक चौधरत में 14 गाँव थे| इस तरह 84 की चौधरत शुरु हुई और इस को चौरासी (84)के कुल और चौरासी की चौधरत ( या 84 के रूप) में जाना गया था. पहले एक गांव पर चौधरी का चयन किया गया था, और फिर 14 गांवों और अंत में प्रत्येक समुदाय के चौधरी (बिरादरी) 84 ग्राम स्तर पर उनके चौधरी को चुना है.
•उन्हें चौधरी कहा जाता था, जिन्होंने अपने लोगों की सेवा का काम ले लिया था और लगातार ऐसा करने के लिए तैयार था इसे ही जाट चौधरी जनपद कहा जाता है.
•इस जनपद को इस समय में सलकरान जनपद बुलाया गया था. इस गणराज्य को बाद में "देश" के रूप में जाने लगा जो आज भी है यदि वास्तव में वहाँ एक देश है तो यह तोमर (सलकरान) देश खाप का है.
" चौधरत”.गणराज्यों की इसप्रकार नामकरण के बहुत पहले से अस्तित्व में था जहां एक गोत्र के सदस्य एक कबीले में एक साथ रहते थे और सम्राट के साथ अपने रिश्तों को बनाए रखते थे | इस तेजी से विकास में प्रत्येक कबीले में अपने स्वयं के खाप विकसित होते चले गए. वह संघर्ष को पंचायत या पांच साल की परिषद के माध्यम से निपटाते थे.
तोमर देश खाप के 84 गांवों में सबसे पहले चौधरत (CHAUDHRAT):-
1. बडौत में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी रामपाल तोमर ने आयोजित की
2. बावली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी राव महिपाल तोमर ने आयोजित की
3. किसानपुर (किशनपुर) बिराल में 14 गांवों की पहली चौधरत कृष्णपाल तोमर ने आयोजित की
4. बिजरौल में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी चंद्रपाल तोमर ने आयोजित की
5. बामडौली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी हरिपाल तोमर ने आयोजित की
6. हिलवाड़ी में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी शाहोपाल (शाहपाल ) तोमर ने आयोजित की
पहली चौधरत शाहपुर बडहोली के 14 गांवों में स्थापित किए गए थे जो की कोइल (अलीगढ) में थे यहा पर सलाक्पल सलाकपाल तोमरो के 14 गाँव है जिनको सलकयान तोमर (काढिर ) कहा जाता है बाद में शाहपुर बडहोली को मेहर पट्टी और बडौत चौधरत के लोगों द्वारा बसा गया था और बडौत चौधरत. के रूप में 14 गांवों की चौधरत की स्थापना की लेकिन सलअक्शपाल के ज्येष्ठ पुत्र महिपाल ने 14 गांवों की चौधरत की स्थापना की 6 गांवों की चौधरत में स्थापना की इस तरीके से 84 गांवों के एक गणतंत्र स्थापित किया गया था|.जिसमे अब 84 से अधिक गाँव थे इसकी राजधानी बडौत में स्थापित की. इस गणतंत्र के पहले चौधरी सलकपाल का सबसे छोटा बेटा देशपाल था| यह देशपाल चौधरी बन गया था|इस ही समय में सुखपाल तोमर ने बखेना (अब बिजनौर) में राजधानी की स्थापना की और स्थापित राजधानी में देश चौधरत के हासमपुर , हुसैनपुर, कालेनपुर मुस्तफाबाद, म्यूकरपुर हिरनाखेडा ,मुस्तफाबाद, शेखपुरी, मलरीया, सलमाबाद, और मुरादाबाद में ,शादीपुर में, जिला मुजफ्फरनगर, के गांवों में हैदरनगर, कृष्णापुर, वेंनपुर, और शाहपुर भी इस चौधरत में आते हैं और नगला भाईया भी चौधरी सलकपाल द्वारा स्थापित किए गए थे, हरियाणा में समचना के गांव `'देश से अधिक पुराने है.एक महान जाट योद्धा गोपालपुर खनडाना बुंदेलखंड चला गया वह वहाँ बसे और सलकरान चौधरत शुरू की व बाद में एक राजपूत महिला से शादी की और जब राजपूत जागीर की सिवपुर की स्थापना की तो वह जागीरदार बन गए और राजपूत समुदाय में शामिल हो गए. बुंदेलखंड और बावली और खनडाना और किसानपुर (किशनपुर) बिराल के रूप में वर्तमान युग में आज भी है बुंदेलखंड में तोमर ( सलकलायन ) राजपूत है सलअक्शपाल का सबसे छोटा बेटा देशपाल था जिसकी गतिविधि का केंद्र बडौत में था ज्येष्ठ पुत्र राव महिपाल जिसकी गतिविधि का केंद्र में बावली था और मध्य बेटा राव कृष्णपाल था जिसकी गतिविधि का केंद्र बिराल में था।
तोमर जाटो की रियासत पिसावा
पिसावा जाट रियासत है यह पर तोमर गोत्र के जाटों का राज था । पिसावा के तोमर राजाओ का मूल निकास पृथला गाव पलवल हरियाणा से है पृथला गाम के दो सगे भाई आवे(आदे) और बावे(बादे)थे| जो किसी कारणवश पृथला को छोड़ कर आधुनिक अलीगढ जिले की खैरतहसील में पिसावा रियासत बनाई । बाद में बादे गंगा पार चला गया और एक अलग राज बनाया शोयदान सिंह (शिवध्यानसिंहजी), विक्रम सिंह तोमर और चन्दराज सिंह आज पिसावा के मुखिया है वे घोड़ों के अंतरराष्ट्रीय व्यापारी है उनके के एक पूर्वज स्वरूपसिंह सिंह ने इब्राहिमपुर(ख़ुर्जा ) गाव में जागीरी प्राप्त की थी उनके सात लड़के थे इब्राहिमपुर पर तोमर जाटो से पहले अत्री जाटो का राज था । स्वरूपसिंह जी ने अत्री जाटो को युद्ध में हरराकर इब्राहिमपुर और शेरपुर की रियासत पर कब्ज़ा कर लिया तक से अत्री जाट और शेरपुर व इब्राहिमपुर गाव के तोमरों में शादी नही होती है, तोमर जाटो ने चाबुक से ब्राह्मण को पीटा था इसलिए इन लोग को अलीगढ में चाबुक के रूप में जाना जाता है. तोमर लोग पिसावा के मालिक थे। अलीगढ़ में मराठों की ओर से जिस समय जनरल पीरन हाकिम था, इस गोत्र के सरदार मुखरामजी तोमर ने पिसावा और दूसरे कई गांव परगना चंदौसी में पट्टे पर लिए थे। सन् 1809 ई. में मि. इलियट ने पिसावा के ताल्लुके को छोड़ कर सारे गांव इनसे वापस ले लिए। किन्तु सन् 1883 ई. में अलीगढ़ जिले के कलक्टर साहब स्टारलिंग ने मुखरामजी के सुपुत्र भगतसिंहजी को इस ताल्लुके का 20 साल के लिए बन्दोबस्त कर लिया। तब से पिसावा उन्हीं के वंशजों के हाथ में है। शिवध्यानसिंहऔर कु. विक्रमसिंह तोमर एक समय पिसावा के नामी सरदार थे। किन्तु खेद है कि उसी साल कुं. विक्रमसिंह का देहान्त हो गया। आप राजा-प्रजा दोनो ही के प्रेम-भाजन थे। प्रान्तीय कौंसिल के मेम्बर भी थे। शिवध्यानसिंहजी भी जाति-हितैषी थे। शोयदान सिंह और चन्दराज सिंह पिसावा के मुखिया है वे घोड़ों के अंतरराष्ट्रीय व्यापारी है. गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938 जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था. विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को शिवदानसिंह अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी, शामिल हुए
जलन्दर (जालंदर) की नौगाजा रियासत
यह भिंड तोमर गोत्र की रियासत थी जिसके राजा अमर सिंह जी थे इन के पूर्वज रायसिंह तोमर थे जो पहले तोमर थे जिन के साथ तोमर जाट पंजाब ने बसे ।
तोमर जाटों के बारे में कुछ अनछुए पहलू
सलअक्शपाल (सलकपाल) तोमर, अनंगपाल तोमर -2nd के सगे दादा जयपाल के सगे बड़े भाई थे|सलअक्शपाल तोमरने (976-1005 ई.) 25साल 10 महीने के लिए दिल्ली परशासन किया। सलअक्शपाल तोमर(सकपाल) ने 1005ई. में जयपाल को दिल्ली के सिंहासन के बीठाया था और तोमरजाटोकी सलकरान शाखा सलअक्शपाल (सलकपाल) तोमर द्वारा उत्पन्न की गयी थी .सलअक्शपाल तोमर ने अपने परिवार के 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की, इस खाप का नाम शुरु में सलकरान था बाद में उनके बेटे देशपाल के नाम पर देश खाप हो गया जो आज भी है । जो इस बात को को सिद्ध करता है की तो तोमर जाटो का दिल्ली के तोमर राजवंश से सीधा रक्त सम्बन्ध है ।
इतिहासकारों ने तोमरो को चन्द्रवंशी पांडु पुत्र अर्जुन के वंशज माना है । तोमर जाटो को आज भी कुंतल (कुंती पुत्र ), पार्थ (पृथा पुत्र), कोंतये ,पांडव भी कहते है जो तोमर जाटो के पांडुवंशी होने पर मोहर लगाते ।जो तोमर जाटो को पाण्डुवंशी सिद्ध करती है (कुंतल जाटो के मथुरा व भरतपुर में 100 से अधिक गाँव है)
कुन्तलो के मथुरा में बसने का इतिहास हमे बताता है की अनंगपाल-3rd(अर्कपाल) का दिल्ली से राज्य खत्म हो गया तो अनंगपाल तोमरकेसगे परिवार के लोगो ने पृथला (कुंती (पृथा) के नाम पर ) गाँव पलवल में बसाया जो आज भी है ।राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए। कुछ परिवार के लोगो ने कुंतल पट्टी बसाकर , सौख क्षेत्र की खुटेल, (कुंतल) पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है।मथुरा में तोमरो के वंशजो को कुंतल (कुंतीपुत्र ) कहते है उसी समय इनके कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है।
पांडवो का लाक्षागृह ( महाभारत काल का ) आज भी बरनावा गाँव है जो तोमर जाटो का गाँव है
दिल्ली के चारो तरफ तोमर जाटो की एक बड़ी आबादी आज भी निवास करती है जिसका वीरतापूर्ण इतिहास (जाट इतिहास के अनुसार कुछ उदाहरण- तोमर जाटो ने युद्ध में तुर्क मुसलमानों की आंत निकाल ली थी इसलिए आज भी उनको आन्तल तंवर कहते है,देश खाप का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है ,तंवर (तोमर) जाटो ने मुग़लों से युद्ध करने की ठाननी इसलिए तोमरो को ठेनुवा कहा जाने लगा( इस बात का वर्णन आधुनिक जाट इतिहास की किताब-1998 के पेज न.249 पर है ) इन ठेनुवा जाटो ने मुरसान और हाथरस की रियासत बनाई ) यह सिद्ध करता है की वो महान पराकर्मी भारतवंशी ( जिसके नाम पर भारत का नाम है ) के वंशज अर्जुन के वंशज है|
1857 में तोमरों जाटो की कई रियासते थी -
1. पिसावा - अलीगढ जिले में है यहाँ तोमरो को चाबुक भी कहा जाता है जो मूल रूप से पृथला गाँव के निवासी थे
2.मुरसान - ठेनुवा जाटो की रियासत है जिस में राजा महेंद्रप्रताप सिंह पैदा हुए थे
3.हाथरस -ठेनुवा जाटो की रियासत है
4.नौगाजा (जालंदर) - भिंड तोमर (तोमरो की एक शाखा ) की रियासत थी
5.देशवाले तोमर -पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत क्षेत्रमें तोमर गोत्र के 84 से अधिक गांवों में हैं. इस क्षेत्र में तोमर खाप को देश खाप के रूप में जाना जाता है| बडौत देश खाप की राजधानी है|देशखाप कोतोमर की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. शाहमलने देश क्षेत्र को स्वतंत्र रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार शाहमल जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े के क्षेत्र अधिपति (राजा )बन गए. तोमर लोग एक समयदेश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है
तोमर जाट गोत्र से उत्पन्न अन्य जाट गोत्र
नीचे दिए गये गोत्र तोमर (तंवर) जाटों से बने है लेकिन इतिहास की कमी के कारण आज उनकी तोमर जाटो से शादी होती है
तोमर से निकले जाट गोत्र की सूची नीचे दी गयी है जो की उनके भाट ,जगा ,बडवा के अनुसार और कुछ H.A. Rose, दिलीप अहलावत जी रामस्वरूप जून ,और बहुत से जाट इतिहासकारों के बताये अनुसार है:
आंतल
बाछी
बधाल
बन्छऱी
बेरवाल
भादो
चंदड़
ढांड
गढ़वाल
गर्चा
जंघारा
जांजुआ
जार्राल
जसवाल
जटासरा
जाटू
जावला
कालू
कंढोले
खांगल
खरब
खरवाल
खटगर
खोसा
लनबा
मल्लन
मलू
नैन
नांदल
नारू
राघव
रावत
साकन
सहरावत
सोखिड़ा
ठेनुआ
जावला गोत्र की उत्पत्ति:
जावला गोत्र जावलपाल (विजयपाल ) तोमर ( तंवर ) से चला है पेहोवा के इतिहास के अनुसार यहाँ पर जाटों का शासन रहा है ।पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला(जौहला)और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है। लेकिन आज जावला गोत्र तोमर (तंवर ) गोत्र से अलग गोत्र बन गया है और तोमर (तंवर ) की जावला में शादी है जावलायह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर (तंवर) जाटों से बने है लेकिन इतिहास की कमी के कारण आज उनकी तोमर जाटो से शादी होती है
बधाल गोत्र की उत्पत्ति:
तोमर जाटों का वह समूह, जो राजस्थान में बधाल नामक स्थान पर बसा था, वह बधाला गोत्र के नाम से मशहूर हुआ।दिल्ली से खडगल तोमर नामक सरदार ने अपने साथियों समेत राजस्थान में जहां अपने रहने के लिए छावनी बनाई, वहीं आगे चलकर खंडेल नाम से मशहूर हुई। यह भी कहा जाता है कि खडगल के नाम से ही कुल खंडेलावाटी प्रसिद्ध हुआ। खडगल के कई पीढ़ी बाद बधाल नाम का एक पुत्र हुआ। उसने बधाल में अपना प्रभुत्व कायम किया। खंडेल और बधाल में लगभग 30 मील का अन्तर है। इन लोगों के दसवीं सदी से लेकर चौदहवीं तक भूमियां ढंग के शासन-तंत्र इस भू-भाग पर रहे हैं।लेकिन इतिहास की कमी के कारण आज अलग गोत्र बन गया है| (पुस्तक - जाट इतिहास:ठाकुर देशराज)
विजयराणिया (बीजयराणिया) गोत्र की उत्पत्ति:-
ठाकुर देसराज लिखते हैं -विजयराणिया सिकन्दर महान् के समय के प्रतीत होते हैं, यह हम पहले ही लिख चुके हैं। यूनानी लेखकों ने जो कि सिकन्दर के साथ भारत में आये थे, विजयराणिया लोगों का हाल लिखते समय उनके नाम का अर्थ लिख डाला। विजयराणिया यह इनका उपाधिवाची नाम है। रण-क्षेत्र में विजय पाने से इनके योद्धाओं को विजयराणिया की उपाधि मिली थी। जागा (भाट) लोगों ने इन्हें तोमर जाटों में से बताया है। हम उन्हें पांडुवंशी मानते हैं। कुछ लोगों का ऐसा मत है कि तोमर भी पांडुवंशी हैं। भाट लोगों ने इनके सम्बन्ध में लिख रखा है-‘‘सोमवंश, विश्वामित्र गोत्र, मारधुने की शाखा, 3 प्रवर’’। कहा जाता है संवत् 1135 विक्रमी में नल्ह के बेटे विजयसिंहराणिया ने बीजारणा खेड़ा बसाया। फिर संवत् 1235 में लढाना में गढ़ बनवाया। हमें बताया गया है कि लढाने में गढ़ के तथा घोड़ों की घुड़साल के चिन्ह अब तक पाए जाते हैं। उस समय देहली में बादशाह अल्तमश राज्य करता था। अन्य देशी रजवाड़ों की भांति विजयराणिया लोग भी विद्रोही हो गये। इस कारण अल्तमश को उनसे लड़ना पड़ा। इन्हीं लोगों में आगे जगसिंह नाम का योद्धा हुआ, उसने पलसाना पर अधिकार कर लिया और कच्ची गढ़ी बनाकर आस-पास के गांवों पर प्रभुत्व कायम कर लिया। यह घटनासंवत् 1312 विक्रमी की है। संवत् 1572 में इस वंश में देवराज नाम का सरदार हुआ
गढ़वाल गोत्र की उत्पत्ति:-
भाट ग्रन्थों में इन्हें तोमर लिखा है ।गढ़मुक्तेश्वर का राज्य जब इनके हाथ से निकल गया, तो झंझवन (झुंझनूं) के निकटवर्ती-प्रदेश मे आकर केड़, भाटीवाड़, छावसरी पर अपना अधिकार जमाया। यह घटना तेरहवीं सदी की है। भाट लोग कहते हैं जिस समय केड़ और छावसरी में इन्होंने अधिकार जमाया था, उस समय झुंझनूं में जोहिया, माहिया जाट राज्य करते थे। जिस समय मुसलमान नवाबों का दौर-दौरा इधर बढ़ने लगा, उस समय इनकी उनसे लड़ाई हुई, जिसके फलस्वरूप इनको इधर-उधर तितर-बितर होना पड़ा। इनमें से एक दल कुलोठ पहुंचा, जहां चौहानों का अधिकार था। लड़ाई के पश्चात्कुलोठ पर इन्होंने अपरा अधिकार जमा लिया। सरदार कुरडराम जो कि कुलोठ के गढ़वाल वंश-संभूत हैं नवलगढ़ के तहसीलदार हैं। यह भी कहा जाता है कि गढ़ के अन्दर वीरतापूर्वक लड़ने के कारण गढ़वाल नाम इनका पड़ा है। इसी भांति इनके साथियों में जो गढ़ के बाहर डटकर लड़े वे बाहरौला अथवा बरोला, जो दरवाजे पर लड़े वे, फलसा (उधर दरवाजे को फलसा कहते हैं) कहलाये। इस कथन से मालूम होता है, ये गोत्र उपाधिवाची है। बहुत संभव है इससे पहले यह पांडुवंशी अथवा तोमर कहलाते हों। क्योंकि भाट ग्रन्थों में इन्हें तोमर लिखा है और तोमर भी पांडुवंशी बताये जाते हैं।यह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर(तंवर ) गोत्र से यह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर(तंवर ) गोत्र से
सहरावत गोत्र की उत्पत्ति:-
इन्हीं तंवर में से एक सहरा तंवर नाम का प्रसिद्ध व्यक्ति हुआ जिससे जाटों का सहरावत गोत्र प्रचलित हुआ जिनके दिल्ली में आज 12 गांव हैं। याद रहे इतिहास से प्रमाणित है कि कुंतल, तंवर, आदि जाट तोमर (पांडवों )के वंशज हैं। (पुस्तक - रावतों का इतिहास) कुछ जगहे सहरावत को तोमरो के मित्र गोत्र के रूप में भी बताया गया है लेकिन तोमर नही बताया हैयह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर(तंवर ) गोत्र से
आंतल गोत्र की उत्पत्ति:-
जाट इतिहास किताब के अनुसार एक बार तोमर जाटो ने तुर्क मुसलमानों की युद्ध में आत निकाल ली थी इस लिए तोमर जाटो को सोनीपत में आंतल कहा जाता हैयह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर(तंवर ) गोत्र से
ठेनुआ गोत्र की उत्पत्ति:-
यह गोत्र तंवर (तोमर ) जाटो से उत्पन्न हुआ है । तोमर जाटो ने मुग़ल बादशाह से युद्ध करने की ठानी थी इसलिए इनको ठेनुआ कहते है यह गोत्र तोमर (तंवर ) से बना है लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग है उनकी शादी होती है तोमर (तंवर ) गोत्र से [23]
नैन गोत्र की उत्पत्ति:
नैन गोत्र की वंशावली - राजा आनंदपाल के दो लड़के थे. बड़े का नाम अनंगपाल तथा छोटे का नाम नैनपाल था. बड़ा बेटा होने के कारण अनंगपाल को दिल्ली की गद्दी मिली थी. छोटा बेटा नैनपाल राजकाज के अन्य काम देखता था. वह बड़ा सीधासादा तथा शील स्वभाव का था. कुछ लोगों का मानना है कि नैनपाल से नैन गोत्र शुरू हुआ.
शमशेर सिंह गाँव धमतान साहिब, जिला जींद की वंशावली इस प्रकार है: 1. आनंदपाल → 2. नैनपाल (अनंगपाल का छोटा भाई)→ 3. थरेय → 4. थरेया → 5. थेथपाल → 6. जोजपाल → 7. चीडिया → 8. बाछल → 9. बीरम → 10. बीना → 11. रतुराम → 12. मोखाराम → 13. सोखाराम → 14. भाना राम → 15. उदय सिंह → 16. पहराज → 17. सिन्हमल → 18. खांडेराव → 19. जैलोसिंह → 20. बालक दास → 21. रामचंद्र → 22. आंकल → 23. राजेराम → 24. लालदास → 25. मान सिंह → 26. केसरिया → 27. बख्तावर → 28. बाजा → 29. फतन → 30. कलिया राम → 31. बल देव सिंह → 32. शमशेर सिंह → 33. सुमेर सिंह
लेकिन आज यह गोत्र पूर्ण रूप से अलग हैतोमर(तंवर ) गोत्र से उनकी शादी होती है
जीवन जाट के वंशजों का वर्णन
इसी दिल्ली पर जीवन जाट के वंशजों का राज 445 वर्ष रहा है जीवन और उसके वंशज पांडव-वंशी ही थे तोमर जाट पांडु के ही वंशज हैं । स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश में जीवन के 16 वंशजों (पीढ़ी) का राज 445 वर्ष 4 महीने 3 दिन लिखा है। (पुस्तक - रावतों का इतिहास, सर्वखाप का राष्ट्रीय पराक्रम आदि-आदि)। ईसा से 481 वर्ष पूर्व महाराज जीवनसिंह देहली के राज सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने 26 वर्ष तक राज्य किया था। उनके राज्य-काल का सन् रिसाल 2619 से तूफानी सत् तक दिया हुआ है। उनका राजवंश इस प्रकार है-
राजा वीरमहा
↓
महाबल अथवा स्वरूपबल
↓
वीरसेन
↓
सिंहदमन या महीपाल
↓
कांलिक या सिंहराज
↓
जीतमल या तेजपाल
↓
कालदहन या कामसेन
↓
शत्रुमर्दन
↓
जीवन
↓
वीरभुजंग या हरिराम
↓
वीरसेन (द्वितीय)
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उदयभट या आदित्यकेतु
राजा वीरसलसेन को राजा विरमाहा ने युद्ध में मार दिया । विरमाहा की16 पीढ़ी ने दिल्ली पर 445 साल 5 महीने और 3 दिनों तक राज्य किया था रिसाल के अनुसार महाबल 800 ईसा पूर्व में दिल्ली का राजा था उस ही समय भुद्धा उज्जैन का और बह्मंशाह पर्शिया का राजा था .महाबला के सर्वदत्त (स्वरुप दत्त ) 744 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना महाराजा वीरसेन 708 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना जब दारा शाह ईरान का राजा था .महाराजा महिपाल 668 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने वो इतने बहादुर थे की उनको सिंहदमन (शेरो का दमन करने वाला ) कहा जाने लगा । इस समय में कस्तप ईरान का राजा था सिंह दमन के बाद संघराज राजा बने राजा जीतमल 595 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने इस के बाद कल्दाहन(कामसेन )राजा बने उन्होंने अपने राज्य को ब्रह्मपुर तक बढाया। इस के बाद कई राजा और हुए । जिन होने कई सालो तक दिल्ली पर राज्य किया
महाराज पांडु के दो रानी थीं - कुन्ती और माद्री,। कुन्ती के पुत्र कौन्तेय और माद्री के माद्रेय नाम से कभी-कभी पुकारे जाते थे। ये कौन्तेय ही कुन्तल और आगे चलकर खूटेल कहलाने लग गए। जिस भांति अनपढ़ लोग युधिष्ठिर को जुधिस्ठल पुकारते हैं उसी भांति कुन्तल भी खूटेल पुकारा जाने लगा। बीच में उर्दू भाषा ने कुन्तल को खूटेल बनाने में और भी सुविधा पैदा कर दी। खूटेल (तोमर जाट) अब तक बड़े अभिमान के साथ कहते हैं -
“हम महारानी कौन्ता (कुन्ती) की औलाद के पांडव वंशी क्षत्रिय हैं।”
भाट अथवा वंशावली वाले खूटेला नाम पड़ने का एक विचित्र कारण बताते हैं - “इनका कोई पूर्वज लुटेरे लोगों का संरक्षक व हिस्सेदार था, ऐसे आदमी के लिये खूटेल (केन्द्रीय) कहते हैं।” किन्तु बात गलत है। खूटेल जाट बड़े ही ईमानदार और शान्ति-प्रिय होते हैं वंशावली वाले इन्हें भी तोमरों से अलग हुआ मानते हैं
राज पुत्र होने के कारण तोमर जाट से राजपूत हो गए (पुस्तक राजपूतों कि उत्पत्ति का इतिहास)। हम कहते हैं कि तोमर राजपूत ही तोमर जाटों से निकले है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से कई शताब्दियों पहले का है क्योंकि राजपूत शब्द को कोई भी इतिहासकार छठी शताब्दी से पहले का नहीं बतलाता। लेकिन जाट शब्द जो कि पाणिनि के धातुपाठ व चन्द्र के व्याकरण में क्रमशः ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व और ईसा से 400 वर्ष पीछे का लिखा हुआ मिलता है इस बात का प्रमाण है कि वह राजपूत शब्द से प्राचीन है। ऐसी दशा में संभव यही हुआ करता है कि पुरानी चीज में से नई चीज बना करती है। ‘मथुरा सेमायर्स’ पढ़ने से पता चलता है कि हाथीसिंह नामक जाट (खूटेल) ने सोंख पर अपना अधिपत्य जमाया था और फिर से सोंख के दुर्ग का निर्माण कराया था। हाथीसिंह महाराजा सूरजमल जी का समकालीन था। सोंख का किला बहुत पुराना है। राजा अनंगपाल के समय में इसे बसाया गया था। गुसाई लोग शंखासुर का बसाया हुआ मानते हैं। मि. ग्राउस लिखते हैं - "जाट शासन-काल में सोंख स्थानीय विभाग का सर्वप्रधान नगर था।1 राजा हाथीसिंह के वंश में कई पीढ़ी पीछे प्रह्लाद नाम का व्यक्ति हुआ। उसके समय तक इन लोगों के हाथ से बहुत-सा प्रान्त निकल गया था। उसके पांच पुत्र थे - (1) आसा, (2) आजल, (3) पूरन, (4) तसिया, (5) सहजना। इन्होंने अपनी भूमि को जो दस-बारह मील के क्षेत्रफल से अधिक न रह गई थी आपस में बांट लिया और अपने-अपने नाम से अलग-अलग गांव बसाये। सहजना गांव में कई छतरियां बनी हुई हैं। तीन दीवालें अब तक खड़ी हैं ।
मि. ग्राउस आगे लिखते हैं -
"इससे सिद्ध होता है कि जाट पूर्ण वैभवशाली और धनसम्पन्न थे। जाट-शासन-काल में मथुरा पांच भागों में बटा हुआ था - अडींग, सोसा, सांख, फरह और गोवर्धन।2 ‘मथुरा मेमायर्स’ के पढ़ने से यह भी पता चलता है कि मथुरा जिले के अनेक स्थानों पर किरारों का अधिकार था। उनसे जाटों ने युद्ध द्वारा उन स्थानों को अधिकार में किया। खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है। अडींग के किले पर महाराज सूरजमल से कुछ ही पहले फौंदासिंह नाम का कुन्तल सरदार राज करता आजकल सोंख पांच पट्टियों में बंटा हुआ है - लोरिया, नेनूं, सींगा, और सोंख। यह विभाजन गुलाबसिंह ने किया था। पेंठा नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था। कुन्तलों का एक किला सोनोट में भी था। कुन्तल तोमर (खूंटेल) सिनसिनवार व सोगरवारों की भांति डूंग कहलाते हैं। लोग डूंक शब्द से बड़े भ्रम पड़ते हैं। स्वयं डूंग कहलाने वाले भी नहीं बता सकते कि हम डूंग क्यों कहलाते हैं? वास्तव में बात यह है कि डूंग का अर्थ पहाड़ होता है। पंजाब में ‘जदू का डूंग’ है। यह वही पहाड़ है जिसमें यादव लोग, कुछ पाण्डव लोगों के साथ, यादव-विध्वंश के बाद जाकर बसे थे। बादशाहों की ओर से खूंटेल सरदारों को भी फौजदार (हाकिम-परगना) का खिताब मिला था।
तोमर (तंवर) जाटो का मलकी और लाघड़िया ,ढाका के युद्ध में योगदान
मलकी और लाघड़िया युद्ध
राजस्थान के सिवानी के तोमर (तंवर) सरदार नरसिंह जाट थे । उस समय पूला सारण भाड़ंग का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. पूला की पत्नी का नाम मलकी था जो बेनीवाल जाट सरदार रायसल की पुत्री थी. उधर लाघड़िया में पांडू गोदारा राज करता था. वह बड़ा दातार था. एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के सरदार पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया. उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के सरदार पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया. लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश होता. [24]इस सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित दोहा है -
धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।
ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।[25]
सरदार पूला मद में छका हुआ था. उसने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू पर रीझी है तो उसी के पास चली जा. पति की इस हरकत से मलकी मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी से बोलना बंद कर दिया. मलकी ने अपने अनुचर के मध्यम से पांडू गोदारा को सारी हकीकत कहलवाई और आग्रह किया कि वह आकर उसे ले जाए. इस प्रकार छः माह बीत गए. एक दिन सब सारण जाट चौधरी और चौधराईन के बीच मेल-मिलाप कराने के लिए इकट्ठे हुए जिस पर गोठ हुई. इधर तो गोठ हो रही थी और उधर पांडू गोदारे का पुत्र नकोदर 150 ऊँट सवारों के साथ भाड़ंग आया और मलकी को गुप्त रूप से ले गया. [26] पांडू वृद्ध हो गया था फ़िर भी उसने मलकी को अपने घर रख लिया. परन्तु नकोदर की माँ, पांडू की पहली पत्नी, से उसकी खटपट हो गयी इसलिए वह गाँव गोपलाणा में जाकर रहने लगी. बाद में उसने अपने नाम पर मलकीसर बसाया. [27]
पूला ने सलाह व सहायता करने के लिए अन्य जाट सरदारों को इकठ्ठा किया. इसमें सीधमुख का कुंवरपाल कसवां, घाणसिया का अमरा सोहुआ, सूई का चोखा सियाग, लूद्दी का कान्हा पूनिया और पूला सारण स्वयं उपस्थित हुए. गोदारा जाटों के राठोड़ों के सहायक हो जाने के कारण उनकी हिम्मत उन पर चढाई करने की नहीं हुई. ऐसी स्थिति में वे सब मिलकर सिवानी के तंवर सरदार नरसिंह जाट के पास गए [28] और नजर भेंट करने का लालच देकर उसे अपनी सहायता के लिए चढा लाए. [29]
तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. [30] युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया. [31]
ढाका का युद्ध (1488) और जाट गणराज्यों का पतन
नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था, इसलिए रात्रि में वह अपने सेनापति किशोर के साथ ढाका के तालाब मैदान में शिविर लगाये हुए रात्रि विश्राम कर रहा था। कुछ जाटों ने बीका कान्धल व नकोदर गोदारा को नरसिंह के रुकने का गुप्त भेद बता दिया तो बीका, कान्धल और नकोदर ने मध्य रात्रि को नरसिंह पर हमला बोल दिया। इधर गोदारों की और से पांडू का बेटा नकोदर राव बीका व कान्धल राठोड़ के पास पुकार लेकर गया जो उस समय सीधमुख को लूटने गए हुए थे. नकोदर ने उनके पास पहुँच कर कहा कि तंवर नरसिह जाट आपके गोदारा जाटों को मारकर निकला जा रहा है. उसने लाघड़िया राजधानी के बरबाद होने की बात कही और रक्षा की प्रार्थना की. इसपर बीका व कान्धल ने सेना सहित आधी रात तक नरसिंह का पीछा किया. नरसिंह उस समय सीधमुख से ६ मील दूर ढाका नमक गाँव में एक तालाब के किनारे अपने आदमियों सहित डेरा डाले सो रहा था. रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था.[32] [33]
राव कान्धल ने रात में ही नरसिंह जाट को युद्ध की चुनोती दी. नरसिंह चौंक कर नींद से उठा. उसने तुरंत कान्धल पर वार किया जो खाली गया. कान्धल ने नरसिंह को रोका और और बीका ने उसे मार गिराया. [34] घमासान युद्ध में नरसिंह जाट सहित अन्य जाट सरदारों कि बुरी तरह पराजय हुई. दोनों और के अनेक सैनिक मरे गए. कान्धल ने नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट को भी मार गिराया. इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार भाग निकले. भागती सेना को राठोड़ों ने खूब लूटा. इस लड़ाई में पराजय होने के बाद इस एरिया के सभी जाट गणराज्यों के मुखियाओं ने बिना आगे युद्ध किए राठोड़ों की अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह अपनी स्वतंत्रता समाप्त करली. फ़िर वहाँ से राव बीका ने सिधमुख में डेरा किया. वहां दासू बेनीवाल राठोड़ बीका के पास आया. सुहरानी खेड़े के सोहर जाट से उसकी शत्रुता थी. दासू ने बीका का आधिपत्य स्वीकार किया और अपने शत्रु को राठोड़ों से मरवा दिया. [35] इस तरह जाटों की आपसी फूट व वैर भाव उनके पतन का कारण बना.[36]
1857 की में क्रांति में तोमरों का योगदान
बाबा शाहमल जाट (तोमर)
बाबा शाहमल जाट (तोमर) बागपत जिले में बिजरौल गांव के एक साधारण परन्तु आजादी के दिवाने क्रांतिकारी किसान थे. वह मेरठ और दिल्ली समेत आसपास के इलाके में बेहद लोकप्रिय थे. मेरठ जिले के समस्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में अंग्रेजों के लिए भारी खतरा उत्पन्न करने वाले बाबा शाहमल ऐसे ही क्रांतिदूत थे. गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए इस महान व्यक्ति ने लम्बे अरसे तक अंग्रेजों को चैन से नहीं सोने दिया था. यह 1836 क्षेत्र में अंग्रेजों के अधीन गया. अंग्रेज अदिकारी प्लाउड ने जमीन का बंदोबस्त करते समय किसानों के साथ हुए अत्याचार को कुछ सुधारा परन्तु मालगुजारी देना बढा दिया. पैदावार अच्छी थी. जाट किसान मेहनती थे सो बढ़ी हुई मालगुजारी भी देकर खेती करते रहे. खेती के बंदोबस्त और बढ़ी मालगुजारी से किसानों में भारी असंतोष था 1857 जिसने की क्रांति के समय आग में घी का काम किया. शाहमल का गाँव बिजरौल काफी बड़ा गाँव था. 1857 की क्रान्ति के समय इस गाँव में दो पट्टियाँ थी. उस समय शाहमल एक पट्टी का नेतृत्व करते थे. बिजरौल में उसके भागीदार थे चौधरी शीशराम और अन्य जिन्होंने शाहमल की क्रान्तिकरी कार्रवाइयों का साथ नहीं दिया. दूसरी पट्टी में 4 थोक थी. इन्होने भी साथ नहीं दिया था इसलिए उनकी जमीन जब्त होने से बच गई थी. शाहमल की क्रान्ति प्रारंभ में स्थानीय स्तर की थी परन्तु समय पाकर विस्तार पकड़ती गई. आसपास के लम्बरदार विशेष तौर पर बडौत के लम्बरदार शौन सिंह और बुधसिंह और जौहरी, जफर्वाद और जोट के लम्बरदार बदन और गुलाम पियासी विद्रोही सेना में अपनी - अपनी जगह पर जमे थे. शाहमल के मुख्य सिपहसलार बगुता और सज्जा थे और जाटों के दो बड़े गाँव बाबली और बडौत अपनी जनसँख्या और रसद की तादाद के सहारे शाहमल के बन केंद्र गए. 10 मई को मेरठ से शुरू विद्रोह की लपटें इलाके में फ़ैल गई. शाहमल ने जहानपुर के गूजरों को साथ लेकर बडौत तहसील पर चढाई करदी. उन्होंने तहसील के खजाने को लूट कर उसकी अमानत को बरबाद कर दिया. बंजारा सौदागरों की लूट से खेती की उपज की कमी को पूरा कर लिया. मई और जून में आस पास के गांवों में उनकी धाक जम गई. फिर मेरठ से छूटे हुये कैदियों ने उनकी की फौज को और बढा दिया. उनके प्रभुत्व और नेतृत्व को देख कर दिल्ली दरबार में उसे सूबेदारी दी.12 व 13 मई 1857 को बाबा शाहमल ने सर्वप्रथम साथियों समेत बंजारा व्यापारियों पर आक्रमण कर काफी संपत्ति कब्जे में ले ली और बड़ौत तहसील और पुलिस चौकी पर हमला बोल की तोड़फोड़ व लूटपाट की. दिल्ली के क्रांतिकारियों को उन्होंने बड़ी मदद की. क्रांति के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना ने जल्दी ही उनको क्रांतिवीरों का सूबेदार बना दिया. शाहमल ने बिलोचपुरा के एक बलूची नवीबख्श के अल्लादिया पुत्र को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा ताकि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए मदद व सैनिक मिल सकें. बागपत के थानेदार वजीर खां ने भी इसी उद्देश्य से सम्राट बहादुरशाह को अर्जी भेजी. बागपत के नूर खां के मेहताब पुत्र खां से भी उनका सम्पर्क था. इन सभी ने शाहमल को बादशाह के सामने पेश करते हुए कहा कि वह क्रांतिकारियो के लिए बहुत सहायक हो सकते है और ऐसा ही हुआ शाहमल ने न केवल अंग्रेजों के संचार साधनों को ठप किया बल्कि अपने इलाके को दिल्ली के क्रांतिवीरों के लिए आपूर्ति में क्षेत्र बदल दिया. अपनी बढ़ती फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के नजदीक जमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया. उनकी इन सफलताओं से 84 उन्हें गांवों का आधिपत्य मिल गया. उसे आज तक देश खाप की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. वह एक क्षेत्र स्वतंत्र के रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार वह जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े के क्षेत्र अधिपति बन गए. कुछ अंग्रेजों जिनमें हैवेट, फारेस्ट ग्राम्हीर, वॉटसन कोर्रेट, गफ और थॉमस प्रमुख थे को यूरोपियन फ्रासू जो बेगम समरू का दरबारी कवि पियासी था, ने अपने गांव हरचंदपुर में शरण दे दी. इसका पता चलते ही शाहमल ने निरपत सिंह व लाजराम जाट के साथ फ्रासू के हाथ पैर बांधकर काफी पिटाई की और बतौर सजा उसके घर को लूट लिया. बनाली के महाजन ने काफी रुपया देकर उसकी जान बचायी. मेरठ से दिल्ली जाते हुए डनलप, विलियम्स और ट्रम्बल ने पियासी फ्रासू की रक्षा की. फ्रासू को उसके पड़ौस के गांव सुन्हैड़ा के लोगों ने बताया कि इस्माइल, रामभाई और जासूदी के नेतृत्व में अनेक गांव अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए है. शाहमल के प्रयत्नों से हिंदू व मुसलमान एक साथ मिलकर लड़े और हरचंदपुर, ननवा काजिम, नानूहन, सरखलान, बिजरौल, जौहड़ी, बिजवाड़ा, पूठ, धनौरा, बुढ़ैरा, पोईस, गुराना, नंगला, गुलाब बड़ौली, बलि बनाली (निम्बाली), बागू, सन्तोखपुर, हिलवाड़ी, बड़ौत, औसख, नादिर असलत और असलत खर्मास गांव के लोगों ने उनके नेतृत्व में संगठित होकर क्रांति का बिगुल बजाया. कुछ बेदखल हुये जाट जमींदारों ने जब शाहमल का साथ छोड़कर अंग्रेज अफसर डनलप की फौज का साथ दिया तो शाहमल 300 ने सिपाही लेकर बसौड़ गाँव पर कब्जा कर लिया. जब अंग्रेजी फौज ने गाँव का घेरा डाला तो शाहमल उससे पहले गाँव छोड़ चुका था. अंग्रेज फौज ने बचे सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया 8000 और मन गेहूं जब्त कर लिया. इलाके में शाहमल के दबदबे का इस बात से पता लगता है कि अंग्रेजों को इस अनाज को मोल लेने के लिए किसान नहीं मिले और न ही किसी व्यापारी ने बोली बोली. गांव वालों को सेना ने बाहर निकाल दिया पर दिल्ली से आये दो गाजी एक मस्जिद में मोर्चा लेकर लड़ते रहे और सेना नाकामयाब रही. शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को मुख्यालय बना लिया था और अपनी गुप्तचर सेना कायम कर ली थी. हमले की पूर्व सूचना मिलने पर एक बार उन्होंने 129 अंग्रेजी सैनिकों की हालत खराब कर दी थी. इलियट 1830 ने में लिखा है कि पगड़ी बांधने की प्रथा व्यक्तिको आदर देने की प्रथा ही नहीं थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा पियासी थी. शाहमल ने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया. शाहमल बसौड़ गाँव से भाग कर निकलने के बाद वह गांवों में गया और 50 करीब गावों की नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा. दिल्ली दरबार और शाहमल की आपस में उल्लेखित संधि थी. अंग्रेजों ने समझ लिया कि दिल्ली की मुग़ल सता को बर्बाद करना है तो शाहमल की शक्ति को दुरुस्त करना आवश्यक है. उन्होंने शाहमल को जिन्दा या मुर्दा उसका सर काटकर लाने वाले के 10,000 लिए रुपये इनाम घोषित किया. डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है - "चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था." एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि एक जाट (शाहमल) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन - चार अन्य परगनों पर नियंत्रण कर लिया था. दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी. छपरा गांव के त्यागियों, बसोद के जादूगर और बिचपुरी के गूर्जरों ने शाहमल के नेतृत्व में क्रांति में पूरी शिरकत की. अम्हेड़ा के गूर्जरों ने बड़ौत व बागपत की लूट व एक महत्वपूर्ण पुल को नष्ट करने में हिस्सा लिया. सिसरौली के जाटों ने शाहमल के सहयोगी सूरजमल की मदद की जबकि दाढ़ी वाले सिख ने क्रांतिकारी किसानों का नेतृत्व किया. जुलाई 1857 में क्रांतिकारी नेता शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना संकल्पबद्ध हुई पर 7 लगभग हजार सैनिकों किसानों सशस्त्र व जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया. शाहमल के भतीजे भगत के हमले से बाल - बाल बचकर सेना का नेतृत्व कर रहा डनलप भाग खड़ा हुआ और भगत ने उसे बड़ौत तक खदेड़ा. इस समय शाहमल के 2000 साथ शक्तिशाली किसान मौजूद थे. गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण के एक बाग में खाकी रिसाला से आमने सामने घमासान युद्ध हुआ. डनलप शाहमल के भतीजे भगता के हाथों से बाल - बाल बचकर भागा. परन्तु शाहमल जो अपने घोडे पर एक अंग रक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया. उसने अपनी तलवार के वो करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गए. तलवार के गिर जाने पर शाहमल अपने भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा. इस दौर में उसकी पगड़ी खुल गई और घोडे के पैरों में फंस गई. जिसका फायदा उठाकर एक फिरंगी सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया. अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने शाहमल के शरीर के टुकडे - टुकडे करवा दिए और उसका सर काट कर एक भाले के ऊपर टंगवा दिया. फिरंगियों के लिए यह सबसे बड़ी विजय पताका थी. डनलप ने अपने कागजात पर लिखा है कि अंग्रेजों के खाखी रिशाले के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा था और दूसरे भाले पर शाहमल का सर टांगकर पूरे इलाके में परेड करवाई गई. चौरासी गांवों के 'देश' की किसान सेना ने फिर पियासी हार नहीं मानी. और शाहमल के सर को वापिस लेने के लिए सूरज मल और भगता स्थान - स्थान पर फिरंगियों पर हमला करते रहे. शाहमल के गाँव सालों तक युद्ध चलाते रहे. 21 जुलाई 1857 को तार द्वारा अंग्रेज उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई कि मेरठ से आयी फौजों के विरुद्ध लड़ते हुए शाहमल 6000 अपने साथियों सहित मारा गया. शाहमल का सिर काट लिया गया और सार्वजनिक रूप से इसकी प्रदर्शनी लगाई गई. पर इस शहादत ने क्रांति को और मजबूत किया तथा 23 अगस्त 1857 को शाहमल के लिज्जामल पौत्र जाट ने बड़ौत क्षेत्र में पुन: जंग की शुरुआत कर दी. अंग्रेजों ने इसे कुचलने के लिए खाकी रिसाला भेजा जिसने पांचली बुजुर्ग, नंगला और फुपरा में कार्रवाई कर क्रांतिकारियों का दमन कर दिया. लिज्जामल को बंदी बना कर साथियों जिनकी 32 संख्या बताई जाती है, को फांसी दे दी गई. शाहमल मैदान में काम आया, परन्तु उसकी जगाई क्रांति के बीज बडौत के आस पास प्रस्फुटित होते रहे. बिजरौल गाँव में शाहमल का एक छोटा सा स्मारक बना है जो गाँव को उसकी याद दिलाता रहता है. शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्ममहाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्थान दिल्ली क्रांतिकारी बाबा शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करा रहा है. फिल्म निर्माता डॉ. केसी यादव एवं गुलबहार सिंह के निर्देशन में फिल्म तैयार की जा रही है. फिल्म क्रांतिकारी बाबा शाहमल के जीवन पर आधारित है. बाबा शाहमल ने अंग्रेजों के खिलाफ लम्बी जंग लड़ी थी. देश की आजादी में उनके बलिदान को लोग भूल नहीं पायेंगे. डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करने के लिए महाराज सूरजमल अनुसंधान एवं प्रकाशन दिल्ली केन्द्र ने कुछ शॉट वहां फिल्माये. बाबा शाहमल जिस कुएं पर बैठकर अपने साथियों के साथ रणनीति तय करते थे, वहां के शॉट फिल्माये गये. इसके अलावा बाबा शाहमल के गांव व घर के शॉट तैयार किये गये. इस दौरान गांव के लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. फिल्म निर्माता ने बताया कि फिल्म शोध करने में भी काम में आयेगी तथा क्रांतिकारी शाहमल पर अभी तक कोई फिल्म तैयार भी नहीं हुई है.
सैनिक 1857 विद्रोह में रमाला गाँव
23 अप्रेल 1857 को मेरठ छावनी में सैनिक विद्रोह हुआ और 10 मई 1857 को सर्वखाप पंचायत के वीरों ने अंग्रेजों को गोली से उड़ा दिया. 11 मई 1857 को चौरासी खाप तोमर के चौधरी शाहमल गाँव बिजरोल (बागपत) के नेतृत्व में पंचायती सेना 5000 के मल्ल योद्धाओं ने दिल्ली पर आक्रमण किया. शामली के मोहर सिंह ने आस - पास के क्षेत्रों पर काबिज अंग्रेजों को ख़त्म कर दिया. सर्वखाप पंचायत ने चौधरी शाहमल और मोहर सिंह की सहायता के लिए जनता से अपील की. इस जन समर्थन से मोहर सिंह ने शामली, थाना भवन, पड़ासौली को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया गया. बनत के जंगलों में पंचायती सेना और हथियार बंद अंग्रेजी सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मोहर सिंह वीर गति को प्राप्त हुए परन्तु अंग्रेज एक भी नहीं बचा. चौहानों, पंवारों, और तोमरों ने रमाला छावनी का नामोनिशान मिटा दिया. सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धाओं ने अंततः दिल्ली से अंग्रेजी राज ख़त्म कर बहादुर शाह को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया. 30 और 31 मई 1857 को मारे गए कुछ अंग्रेज सिपाहियों और अधिकारीयों की कब्रें गाजियाबाद जिले में मेरठ मार्ग पर हिंडोन नदी के तट पर देखी जा सकती हैं.
देशवाले तोमर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत क्षेत्र तोमर गोत्र के 84 से अधिक गांवों में हैं. इस क्षेत्र में तोमर खाप को देश खाप के रूप में जाना जाता है बडौत -.देश खाप की राजधानी है देशखाप (तोमर) की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. देश क्षेत्र को स्वतंत्र रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार शाहमल जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े के क्षेत्र अधिपति (राजा )बन गए. तोमर लोग एक समय देश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है
सत्यवीर चौधरी (तोमर) -2000 में अमेरिकी इतिहास में पहले एशियाई - भारतीय सीनेटर बने,1969 में का जन्म हुआ था उनके माता -पिता 1966 में रोहतक से आकर बसे थे उनके पिता एक डॉक्टर है. जबकि सत्यवीर चौधरी ने अमेरिका के कृषि विभाग में एक वरिष्ठ पशु चिकित्सक के रूप में काम किया है
तोमर जाट गोत्र के भारत में गांवों की सूची
भारत में तोमर गोत्र 400 से अधिक गांवों में हैं.
उत्तर प्रदेश में गांव :-
तोमर जाट ज्यादातर बागपत जिले में पाए जाते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत क्षेत्र तोमर गोत्र के 84 से अधिक गांवों में हैं. इस क्षेत्र में तोमर खाप को देश खाप के रूप में जाना जाता है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों में में सबसे बड़ा गोत्र तोमर है. कुंतल मथुरा जिले में 110 गांव हैं
बागपत जिले में गांव
बडौत ,बामडौली ,मलकपुर, पट्टी मेहर ,बावली, हिलवाड़ी,सूप ,आमवाली, आदमपुर,अमलापुर, अंछड़/अंछाड़, असर्फाबाद, औरंगाबाद जाटोली, बड़का, बसोली, बिजवाड़ा, बाजीतपुर, बिहारी, बिजवारा, बिराल, बामखेड़ी या बामणखेड़ी, बरनावा, बिजरौल, बोहाला, छतरपुर, चारजखेड़ा, चोभळी,फतेहपुर चक , गढ़ी-अंछड़, गूंगा ख़ेरी,गोपालपुर खड़ाना,गौरीपुर, जोहडी, कासमपुर खेड़ी, खिवाई, लढवाड़ी, लोयान , नसौली, रांछड़(रन्छार) ,मुकन्दपुर ,मुकर्राबपुर कंडेरा, नीनाना , ओढपुर रहेटना, शिकोहपुर, सिक्का, सिरसली, सिरसलगढ़, तोहडी, छाछारपुर ,वाजिदपुर ,इब्राहिमपुर माजरा ,ढिकाना,शाहपुर बडोली ,घाटोल,मवई खुर्द,हरचन्दपुर,सोठी,हसनपुर जिवानी, कनहर तालिबपुर,कोटाना,महावतपुर,महवार, सदकपुर जोंमाना,अमलापुर,अंगदपुर/ अंगतपुर, बडौली, छतरपुर, गुराना,हारा,इदरीसपुर,जलालपुर, जीमाना, जीमानी,जीमानी, जोहड़ी,काम्बाला/कम्बला, कंडेरा ,कानगुरा की गढ़ी, करीमपुर, खड़खड़ी,खेड़की, खेड़ी, लोहद्दा, लोन, मक्खड़, मांगडोली, माज़रा, पूसर, पूठी, सिसाना, सूप,ठसका,रुस्तमपुर, बिजवारा, फज़लपुर,गढ़ी कंमरण, शिकोहपुर, त्योढ़ी
तंवर गोत्र का गाँव सुनहेडा
देश खाप के गांवों की सूची
तोमर गोत्र के देश खाप के 84 गांवों की सूची:-
1 आदमपुर 2 आमवाली 3 अलावलपुर 4 अमलापुर 5 अन्छाड, 6 औरंगाबाद जाटोली, 7 असर्फाबाद 8 बड़ाका 9शाहपुर बडोली 10 बाजीतपुर, 11 बामखेड़ी या बामणखेड़ी,12बामनौली/बामडौली 13बरनावा 14 बडौत -देश खाप की राजधानी 15बरवाला 16 बावली 17 बिहारी, 18 बिजरौल, 19बिजवाड़ा 20 बिराल 21 बोहाला 22 बुद्धपुर 23 चारजखेड़ा 24 छतरपुर 25 चोभळी 26चीलोरा 27 ढिकाना 28फतेहपुर, 29 गढ़ी-अंछड़ 30 गौरीपुर 31 गुगाखेड़ी 32 गुराना, 33 हैदरनगर 34 हारा, 35 हिलवाड़ी 36 ईदरसपुर, 37 जलालपुर 38झिझारपुर, 39 जीमाना- जीमानी 40 जीमानी 40 जोहाडी, , 41 जोनमाना 42 कैड़ावा 43काम्बाला/कम्बला44 कंडेरा 45 कानगुरा की गढ़ी 46 करीमपुर, 47 कासिमपुर,, 48 खडाना, 49 खड़खड़ी 50खेड़की 51 कासिमपुर खेड़ी 52 खेड़ी 53 खिवाई 54 किशनपुर ( किसानपुर बिराल ) 55 खूटाना 56 लढावङी 57 लोहद्दा 58 लोन 59 मक्खङ 60 मलकपुर 61 मांगडोली 62 माज़रा, 63 नसौली 64 पीपलसाना, 65 नीरोजपुर, 66 नुवादा 67 ओढपुर, 68पूसर, 69 पूठ (पूटथी) 70 रहेटना 71 भराला 72 शिकोहपुर, 73सिक्का, 74 सिरसलगढ़, 75 सिरसली 76सिसाणा 77 सोंटी 78सूप 79 ठसका(थास्का) 80 तोहडी 81माहावतपुर 82रुस्तमपुर83 गनसूरपुर 84पीपली जाट
मथुरा जिले में गांव
कुंतल खाप के गाँव कुंतल खाप के गाँव -
धना तेजा, बण्डपुरा, बोरपा, जाटोली नगला भूरिया, , मगोरा ,बेरू, सबला, सीरा गुलास ,बलसीरा, गुला, बछगांव सोन, सोंख ,सहजना,सोसा, पेंठा, सोनोट ,गोवर्धन,जाजमपट्टी,,, अबहुआ ,भवनपुरा
तोमर खाप के गाँव
छोटी सोंख,नीमगांव,अन्छ,भवनपुरा , कोंकेरा , पंजाबी नगला , राधाकुंड रूरल, पाण्डर, नगला फूलपुर ,अवेरनी ,गदसौली,नगला जमुनी नगला उदय सिंह ,महराणा,जुगसाना,सूपाणा,सलेमाबाद ,जदोन्पुर (जड़ोंपुर),गढ़ी शीशा,नगला बुर्ज,नगला पातिराम,मोहनपुर,राम नगरिया,हरनोल,बीरबला,लालगढ़ी,लक्ष्मनगढ़ी
हाथरस जिले में गांव
खाऊंदा ,गढसोऊली डूंगरा ,करसौरा
आगरा जिले में गांव
टीकरी, पुरा,खंदौली,
इटावा जिले में गॉव
मोजा सीसहट
लखीमपुर जिले में गांव
गोला
बरेली जिले में गांव
बिहारीपुर ,मानपुर ,मनकारा ,रामपुर ,रोहानिया ,रूपपुर ,
मेरठ व हापुड जिले में गांव
भराला, चीलोरा, टीगीरी, मवाना,गढ़गंगा, मेरठ कैंट, परीक्षितगढ़ ,जँगेठी,फ़ालूदा,आत्मदनगर अलीपुर,झिझारपुर,जिथौली,आट्टा चिन्दोदी,
मुजफ्फरनगर व शामली जिले में गांव
बामनौली ,बेलडा, छाचरपुर,फाहिमपुर,हैदरनगर ,कृष्णपुर,खुद्दा,लपराणा, मखियाली, मुजफ्फरनगर, पूटी , सिकंदपुर,शामली,पिण्डौरा गढ़ी,मुकुंदपुर ,मदीनपुर, सदरपुर, शाहबूउदीननगर, ,जनसद, तितावी ,खातोली ,गंग्धारी,राजपुर छाजपुर,भुम्मा,घटायन,मौलाहैडी,पुट्ठी इब्राहिमपुर,मोरना,बीबीपुर जलालाबाद शाहपुर,वीनपुर,गढ़ी अजरू ,कादीपुर ,करहेड़ा,ताजेल हेडा उर्फ़ तेज हेडा जैतपुरा कि गढ़ी ,जोहड़ा जानसठ,बहादुरपुर
बिजनौर जिले में गांव
बागरपुर ,बकैना, बमनपुरा (वमनपुर) ,भवानीपुर, बीदीआ खेड़ा, गनसूरपुर, हिसमपुर , हुसैनपुर, केलनपुर , मुस्तफाबाद, म्यूकरपुर साटी, चाँदपुर ,काला पहाड़पुर,मलईसहिया ,पीपली जाट,पीपलसाना,सरैया , शाहपुर,तिसोतरा (तिसोत्रा),हाजीपुर, ,हल्दौर, ,रवती,समसपुर,शेखपुरी मीना,इमालिया (इमलिया),भरेरा,सलमाबाद,बुडपुर, रुकनपुर (रुकन्पुर ),लतीफपुर उर्फ़ चुखेड़ी, हिरनाखेडी,कान्हा नंगला,जाट नंगला ,श्योहरा,ढकौली , जगन्नाथ पुर ,मिठारी ,ढाक्की .,सालमाबाद फत्तनपुर , सिकंदरपुर,मिट्ठेपुर /मीठेपुर,गुरदासपुर जगत,हमा नगली,कादराबाद,गुनियापुर,बालापुर,जटपुरा,खलीलपुर,इस्माइलपुर,
बुलंदशहर जिले में गांव
बुलंदशहर (उत्तर परदेश) में 12 गांव में हैं. खुर्जा,मुस्तफाबाद दादुआ,खुशहाल पुर, छोटी केसर ,ममाऊ,औरंगाबाद,मुकीमपुर,सलाबाद धमैडा
अलीगढ़ जिले में गांव
कोइल,जलालपुर,शेरपुर,पिसावा,भैयाका , मजूपुर /मंजूपुर, सिद्धपुर,सुजावलगढ़(सुगावलगढ़), कथागिरी,डेटाखुर्द ,पोस्तीका , सिमरौठी,थानपुर,शादीपुर,प्रेमपुर,बलरामपुर, डेटा कलां,सैदपुर,अहरौला, छाजूपुर ,इतवारपुर(इत्वारपुर) , बिछपूरी , जलालपुर ,मढ़ा हबीबपुर,सबलपुर, बलमपुर ,रूपनगर
मुरादाबाद जिले में गांव
ग्वारऊ , शादीपुर,कासमपुर,भवानीपुर, अन्जेरा,कंठ,सदरपुर
अमरोहा जिले में गांव
करना , दीवान कालोनी
खिरी जिले में गांव
खिरी लखिमपुर,गोला,
पीलीभीत जिले में गांव
चंदोई,
गोतमबुद्धनगर जिले में गांव
इब्राहिमपुर,कनगढ़ी,गोविंदगढ़
गाजियाबाद जिले में गांव
गढ़मुक्तेश्वर ,भाद्स्याना ,गलंद,हसनपुर,भदौला,
बदायूं जिले में गांव
सेमारी,
बहराईच जिले में गाँव
ननपारा देहाती,
फ़िरोज़ाबाद जिले में गॉव
छीछामई
ज्योतिबा फुले नगर (अमरोहा) जिले में गांव
बावनपुरा माफ़ी ,
दिल्ली में (वितरण) गांव:-
कमलपुर,बूरारी, डाबरी ,मोहम्मदपुर, तोमरपुर,
दिल्ली में कालोनी वितरण
द्वारका मे, आदर्श नगर, करावल नगर, तिमन पुर, भजन पुरा, यमुनापुर विहार, गंगा विहार, गोकुल पुरी, इंदरपुर, जनकपुरी, शालीमार पार्क, भोलानाथ नगर शालीमार बाग,
हरियाणा में गांव:-
यहाँ तोमर गोत्र के 32 गांव अस्तित्व में हैं वे सोनीपत और रोहतक जिले में 4 गांव में भी पाए जाते हैं तोमर गोत्र के कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है
फरीदाबाद और पलवल जिले में गांव
अगवानपुर,दिघेट गाँव , पृथीला गांव, पलवल, बनडोली ,लिखि, बिदूकी, दूधोला.जटौला,गढ़पुरी,हरफली,चिरवारी,सिकंदरपुर पोघ तीर ,डाराणा ,रतिपुर,जैन्दापुर,मोहना
मेवात जिले में गाँव
अट्टा,छाछेड़ा,छापेडा,किरा
रोहतक जिले में गांव
गुढान, बेरी,मोरखेड़ी ,बड़ी बाह,बखेटा, आंवळ,किसरांटी,मेहम,
सोनीपत जिला में गांव
तोमर गोत्र के कुछ गांव अस्तित्व में हैं, गोरर ,गोरड ,सोनीपत,
भिवानी जिला में गांव
द्वारकापुरी, छोटी गुढान,बरडू चैना,
रेवाड़ी जिले में गांव
नयागाँव-गुदा का बास,सुलखा,
गुड़गांव जिले में गांव
सीलानी , भूलवाना,लोकरी,मओं,जटौला ,खंदेवला,खेडली लाला,खूँटपूरी
झज्जर जिले में गाँव
ढ़राणा ,जैतपुरा,मातनहेल,
जींद जिले में गाँव
जजवान,हथवाला ,
कैथल जिले में गाँव
मैंगडा, चीका, हरिगढ़ किंगन, खुशहाल माजरा, नंदगढ़, सदरेहडी, कसोली, सौगलपुर, न्योल, सलेमपुर, कलरमाजरा, भुसला
अम्बाला जिले में गाँव
धनोरा(धनोड़ा ),मिर्जापुर,मीरपुर
करनाल जिले में गांव
काल्हेरी (कालेहेडी),रगंरूटी खेडा,
पानीपत जिले में गांव
पानीपत शहर ,मॉडल टाउन पानीपत,दीवाना,नीमड़ी,
मध्य प्रदेश में गांव:-
तोमर मुरैना क्षेत्र में ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के निकट. हैं वहाँ तोमर ज्यादातर राजपूत हैं, लेकिन कुछ तोमर जाट गांव भी हैं.
मंदसौर जिले में गांव
मंदसौर, थाठौड़ी,पहाड़पुर,समनपुर,मानपुर, कूतबपुर,
नीमच जिले में गांव
नीमच, देवास
रतलाम जिले में गांव
रतलाम जिले में तोमर गोत्र की जनसंख्या कुछ गांवों में हैं: रघुनाथगढ़ ,रतलाम
राजस्थान में वितरण:-
भरतपुर जिले में गांव
अबहोरा,भरतपुर,बूरावाली,जाटोली,रथमन,नगलाचौधरी,रूपबस,अजान,गुनसारा,सिमला,रारेह ,जहाजपुर,छोंकरवाडा,खुटेल नगला(बहज)
कंजोली ,सिकरोदा,सलीमपुर ,बड़ा खुर्द, कन्दोली,वीनूआ(बिनुआ),नगला जटमासी,नगला जटमासी,बिर्रूआ,खान सुरजापुर,जोतरोली,सज्जनवास,गादौली,नारोली,नगला कोठारी,नगला बरताई,घाना,पहाडपुर,बन्सी
सवाई माधोपुर में गांव
कूसाया,खीदरपुर जाटान,खेडला,पीपलेट,सिंगोरकलां,
करौली जिले में गांव
सिकरोली,पीपलहेडा,लहचोड़ा,चक सिकंदरपुर,दहमोली
दौसा जिले में गांव
जागीर,पंडितपुरा,
जयपुर जिले में गांव
शाहपुरा पांडू जाटो के दो परिवार जोतड़ावाला गाँव में है
जयपुर शहर में स्थान
जवाहर नगर, खातीपुरा, महापुरा (सांगानेर), मालवीय नगर, मानसरोवर कालोनी, शांति नगर, सांगानेर,
अलवर जिले में गांव
अलवरशहर, तोमरपुर कलां ,निठारी गांव ,
चुरु जिले में गांव
खायली
चित्तौड़गढ़ जिले में गांव
डागला का खेड़ा ,
हनुमानगढ़ जिले में गांव
कसमपुर खेड़ी,
पाली जिले में गांव
भिंडर गांव रोहट तहसील में है.
उत्तराखंड में वितरण
जिला हरिद्वार गांव
मुंडाटी ग्राम, झबिरनजट,बहादरपुर जाट ,दहिया की, ठिथिकी क़वादपुर,हरजौली जट
पंजाब में वितरण:-
रोहिड़ावाली
मोगा जिले में गांव
भिंडर कलां, भिंडर खुर्द गांव, मोगा तहसील में पंजाब में
संगरूर जिले में गांव
रामपुर गांव, मलेरकोटला तहसील में है.
फतेहगढ़ साहिब जिले में गांव
सरहिंद जिसको की तंवर हिन्द भी बोलते के पास तोमर जाटों के 25 गाँव है बधोछी कलां,
लुधियाना जिले में गांव
मुल्लनपुर,शिरा,सिधवान कलां,
पटियाला जिले में गांव
अरणों,नन्हेडा,
भटिंडा जिले में गांव
जंगीराणा,
आन्ध्र प्रदेश में वितरण:-
नलगोडा
इस गोत्र से उल्लेखनीय व्यक्ति
ऐतिहासिक व्यक्ति
बाबा शाहमल जाट - स्वतंत्रता सेनानी
वीर योद्धा पाखरिया कुंतल - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति तोमर गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये।पाखरिया -खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है
हाथीसिंह -हाथीसिंह नामक जाट (खूटेल) ने सोंख पर अपना अधिपत्य जमाया था और फिर से सोंख के दुर्ग का निर्माण कराया था
सीताराम (कुन्तल)- पेंठा नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था
फौंदासिंह -अडींग के किले पर महाराज सूरजमल से कुछ ही पहले फौंदासिंह नाम का कुन्तल सरदार राज करता था
शिवध्यानसिंहजी - पिसावा रियासत के राजा
नरसिंह जाट - सिवाना के राजा
चौधरी पृथ्वीसिंह बेधड़क - राष्ट्रवादी कवि, स्वतंत्रता सेनानी
दिल्ली के तोमर राजा
अमर सिंह- नौगजा के राजा
राजनैतिक व्यक्ति
चौधरी कंवरपालसिंह तोमर (अध्यक्ष जाटमहासभा दौसा और जयपुर ग्रामीण बस्सी ,पूर्वउपाध्यक्षराजस्थान कृषि यूनिअन )
डॉ.फूलचंद भिंडा - एक कांग्रेस विधायक विराट नगर, जयपुर, राजस्थान से 2009 में निर्वाचित. है
सत्यवीर चौधरी (तोमर) -2000 में अमेरिकी इतिहास में पहले एशियाई - भारतीय सीनेटर बने. 1969में का जन्म हुआ था,.उनके माता -पिता 1966 में से आकर बसे थे उनके पिता एक डॉक्टर है. जबकि सत्यवीर चौधरी ने अमेरिका के कृषि विभाग में एक वरिष्ठ पशु चिकित्सक के रूप में काम किया है,
किशनपाल तोमर - यह अध्यक्षAJA के रहे है
खिलाडी
राजीव तोमर -एक भारतीय पहलवान है. वह पुरुषों की फ्रीस्टाइल बीजिंग में 2008 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में 120 किलोग्राम वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व कियावह उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में मलकपुर से है.वह अर्जुन पुरस्कार विजेता 2010 (कुश्ती). उन्होंने यह भी भारतीय शैली कुश्ती घटना, हिंद केसरी जीता.
शोकिन्द्र तोमर -अर्जुन अवार्ड विजेता पहलवान
सुभाष तोमर - अर्जुन अवार्ड विजेता पहलवान और यह Bsf में Sp भी रहे है
चन्द्रो तोमर - -बुजुर्ग निशाने बाज़
सीमा तोमर-रजत पदक विजेता ट्रैप निशानेबाज विश्व कप 2010 गांव जोहाडी से,
एस.क. तोमर - राष्ट्रीय एकता पुरस्कार - 2007
दिनेश कुमार तोमर - ग्राम बूढ़पुर जिला बागपत यूपी, एशिया चैंपियन पहलवान, 8 बार राष्ट्रीय चैंपियन, दिल्ली पुलिस के सहायक आयुक्त।
अभिनेत्री और अभिनेता
यूवीका चौधरी - बॉलीवुड अभिनेत्री
सरकारी अधिकारी
.सत्येन्द्रपाल सिंह आईपीएस - डीजीपी, महाराष्ट्र (प्रथम गैर मराठी डीजीपी)
अरिंदम तोमर - आईएफएस राजस्थान, 1989
उमेशचन्द तोमर- आरएस राजस्थान
श्रीमती सुनैना तोमर - आईएएस, हरियाणा (गुजरात काडर 1989)
बी पी. तोमर- आरएस राजस्थान राजस्थान
फूल सिंह तोमर - आर.जे. एस, राजस्थान
आकाश तोमर आरएएस राजस्थान
राज वीर सिंह तोमर उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी उद्योग में महाप्रबंधक है
बिजेंद्र पाल तोमर - आरएएस (1996) राजस्थान, गृह जिला – बागपत
स्वर्गीय महावीर सिंह (1932-1979) तोमर मध्य प्रदेश कैडर में भारतीय वन सेवा,
डॉ. आर.एस. तंवर -तकनीकी अधिकारी ( कृषि) कैमिस्ट्री आईएआरआई, कृषि, D-3, आईएआरआई कैम्पस, नई दिल्ली
श्री शेरसिंह तंवर - सरकार. सर्विस. इंजीनियरिंग. डीडीए शहरी विकास, ए 568, सरिता विहार, नई दिल्ली 110,076 फोन: 9560596078, 9891266810 (पीपी 727)
श्री योगेश तंवर - अर्थशास्त्री NCEAR, S-164, 1 तल, ग्रेटर कैलाश, पं. नई दिल्ली Ph: 011-23379861, 011-29232260, 9899097345 (पीपी 849)
रविंदर तोमर- RAF, दिल्ली
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