गरुड़ पुराण के अनुसार 100% सत्य है

(((((( गरुड़ पुराण के अनुसार 100% सत्य है )))))

* मरने के बाद क्या होता है ?

* क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है ?

* मौत दर्दनाक है ?

* पुनर्जन्म कैसे होता है ?

* मरने के बाद जीवात्मा कहाँ जाती है ?

■ ऐसे सवाल तभी आते हैं जब वो हमारे मन में आते हैं... कब - | हमारे रिश्तेदार में से एक की मृत्यु हो गई हो सकती है!

■ ऐसे समय में हम सोचते हैं कि - क्या उस शख्स से हमारा रिश्ता खत्म हो गया है?

■ क्या हम उस व्यक्ति से दोबारा कभी नहीं मिल सकते?

हमारे सभी सवालों का जवाब - हमारे प्राचीन ' गरूड़ पुराण' से मिलेगा :- -

चलो आज को आसानी से समझने की कोशिश करते हैं....

मृत्यु एक रोचक 'कार्य' या 'घटना' है।

पृथ्वी - चक्र का संबंध:

■ मौत से 3 से 4 घंटे पहले अनुमानित - पैरों के नीचे के हिस्से ठंडे होने लगे हैं।

ये लक्षण बताते हैं कि पृथ्वी चक्र जो पैरों के नीचे स्थित है, - शरीर से छुटकारा मिल रहा है। अति: मौत से कुछ देर पहले पैरों के तलवे ठंडे हो जाते हैं।

जब मौत का वक्त आता है...

 जैसा कि कहा जाता है कि....
यमदूत उस जीवन का मार्गदर्शन करने आते हैं।

* लाइफस्टाइल (एस्ट्रल कॉर्ड):

■ जीवन शैली का मतलब है- आत्मा और शरीर से संबंध।

जैसे मौत का वक्त आता है....

यमदूत के मार्गदर्शन से कटती है जीवन शैली.. और, शरीर से आत्मा का संबंध कट जाता है। इस प्रक्रिया को 'मृत्यु' कहा जाता है।

■ एक बार जीवन भर कट जाता है.... यानी - जिस्म से रूह मुक्त हो गई, गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ ऊपर की ओर खिंचाव महसूस करता है।

■ लेकिन आत्मा जो जीवन भर शरीर में रहती है वह इतनी जल्दी शरीर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता..... और, फिर से शरीर में उतरने की कोशिश ।

■ मृत शरीर के पास व्यक्ति इस प्रयास का अनुभव कर सकता है। हम अक्सर देखते हैं कि मरने के बाद भी मृतक के चेहरे या हाथ पैर पर हल्की हलचल होती है।
वह आत्मा तुरंत स्वीकार नहीं कर सकती कि वह मर गया। वह सोचता है कि वह जिंदा है।

■ लेकिन जीवन रेखा कटने के कारण - वह आत्मा ऊपर की ओर खींचने को महसूस करती है।

■■ इस समय -
आत्मा कितनी आवाजें सुनती है। उस स्मारक शरीर के आसपास, जितने लोग रह रहे होंगे .... और, कुछ ऐसा जो हर कोई उस समय सोचता होगा.... यही सब आत्मा सुनती है।

■ वो आत्मा भी वहाँ रहने वाले लोगों से बात करने की कोशिश करती है... लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

■ धीरे धीरे आत्मा समझ जाती है कि उनका निधन हो गया है।

वह आत्मा -
शरीर से 10 से 12 फीट ऊपर छत के पास हवा में तैरते हुए... और, उसके आसपास क्या हो रहा है.. - यह देखा और सुना जाता है।

■ सामान्य रूप से -
जब तक शमशान में आग लगी है... तक आत्मा शरीर के आसपास रहती है।

■ अब इस बात का ध्यान रखें कि -
जब भी आप किसी के शमशान में शामिल होते हैं, सफर के दौरान मृतक की आत्मा भी सबके साथ होगी..... और, इसके पीछे सब क्या कह रहे हैं.. वह आत्मा इसका 'साक्षी' बन जाती है।

■ जब श्मशान में -
वह आत्मा अपने शरीर को 'पंचमहाभूत' में विलीन होते देखती और फिर - वह 'आजाद' महसूस करता है।

■ इसके अलावा -उसे यह समझ में आता है कि - केवल सोचने से ही वह जहां जाना चाहे वहां जा सकता है।

सात दिन पहले तक -
वह आत्मा अपने पसंदीदा स्थान पर चली जाती है। अगर, उस आत्मा में अपने बच्चों के लिए भावनाएं होंगी..... तो  वह बच्चे के कमरे में होगा !
देख लो, अगर उनकी जिंदगी रुपये में है- उसकी अलमारी करीब होगी !

सात दिन बाद -
भगवान करे वो आत्मा अपने परिवार को विदाई दे, | पृथ्वी को ढकने के लिए बाहर जा रहे हैं... जहां से उसे दूसरे ताले में जाना है।

■ इस मृत्युलोक से स्वर्ग जाने के लिए- एक सुरंग से गुजरना पड़ा।
इसी कारण कहा जाता है कि - मृत्यु के 12 दिन बाद अत्यंत परीक्षादायक है।
मृतकों के परिजनों को 12 या 19 में कोई शास्त्रोक्त अनुष्ठान, उसके पीछे पिंडदान और क्षमा करना जरूरी है।

तो वो -
वह आत्मा, किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, राग, , द्वेष, आदि को नहीं लेता है। इसके साथ ।

■ इनके पीछे किया गया हर संस्कार सकारात्मक ऊर्जा के साथ किया गया होगा.... तो, उनके विकास में सहायक सिद्ध होगा।

मृत्युलोक से शुरू होने वाली सुरंग के अंत में - दिव्य - उज्ज्वल स्वर्ग के द्वार पर है।

* पूर्वजों के साथ पुनर्मिलन : *

जब 11वीं, 12वीं में अनुष्ठान, गृह-हवन, आदि किया जाता है.... फिर - वह आत्मा अपने पिताओं, स्वर्गीय मित्रों और स्वर्गीय रिश्तेदारों से मिलती है। जैसे मुद्दतों बाद मिले हो किसी से.... उस समय, हम कैसे गले लगें... इसी तरह यह यहाँ मिलता है।

■ और फिर -
जीव को उसके मार्गदर्शक द्वारा कर्म का लेखा-जोखा रखने वाली समिति में ले जाया जाता है। | इसे चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है।

* मृत व्यक्ति के जीवन की समीक्षा :
यहां कोई जज या किसी भगवान की हाजिरी नहीं है।

■ जीवात्मा स्वयं उज्ज्वल वातावरण में - पृथ्वी पर अपने पिछले जीवन की समीक्षा करते हुए। जैसे कोई फिल्म चल रही हो... इस तरह जीवात्मा अपने पूर्व जन्म के दर्शन कर सकता है।

■ गाट- जीवन में -
जो भी लोगों ने उसे तकलीफ दी.. यह प्राणी शायद अपना बदला लेना चाहेगा।
अपने द्वारा किये गए बुरे कर्मो के लिए - अपराध बोध भी महसूस करता है इस जीवन को .... और, अफसोस अगले जन्म में सजा मांग सकता है। यह स्वर्ग में यह आत्मा अपने शरीर और अहंकार से मुक्त है।

■ आज के कारण - स्वर्ग में स्वीकार किया गया फैसला ही उसके अगले जन्म का आधार बनता है। पिछले जन्म में घटी हर घटना पर आधारित... वह जीव अपने नए जन्म के लिए एक नक्शा- ठेका (नीला-छाप) बनाता है।

■ इस समझौते में - जीवन हर घटना, अवसर, आने वाली कठिनाइयों, वर्जर, बदला, | चुनौती, भक्ति, साधना आदि तय करता है। अपने नए जन्म में।

■ वास्तव में -  ज़िन्दगी खुद जिना में है, उम्र की तरह, हर शख्स का नई ज़िन्दगी में मिलना, कई मौकों से अच्छे और घबराहट यह प्राणी पहले से ही निर्धारित है। के अनुभव आदि...

■ उदाहरण के तौर पर -
क्या कोई ऐसा जीवन देखता है जो- पिछले जन्म में पड़ोसी के सिर में पत्थर मारकर हत्या कर दी। इस घटना के अफसोस के रूप में- वह प्राणी अगले जन्म में भी यही दुःख भोगने का निश्चय करता है। उसके हिस्से के रूप में वह अपने पूरे जीवन के लिए असहनीय सिरदर्द सहन करने के लिए सहमत है कि - उसके हिस्से के रूप में वह अपने पूरे जीवन के लिए असहनीय सिरदर्द सहन करने के लिए सहमत है कि - - जिसके दर्द में किसी दवा का असर नहीं होता।

* अगले जीवन का अनुबंध (ब्लू-प्रिंट) :

■ हर जीव-जो अपने नए जीवन का अनुबंध करता है, यह तो अपनी मूल प्रकृति पर आधारित है। यदि जीवन की प्रकृति वर्ज़र मुक्त है - उसमें बदले की भावना प्रबल होगी। जितनी तीव्रता की भावना होगी.... तदनुसार भुगतना पड़ेगा।

■ आज के कारण - हर किसी को माफ करने की जरूरत है.. या, अपनी गलती के लिए माफी मांगना जरूरी है.....

अगर नहीं तो - अश्लीलता की कीमत चुकाने के लिए - जन्मों जन्मों का 'दर्द' भोगना पड़ेगा। एक बार की बात है - जीव अपने अगले जन्म के अनुबंध का ब्लू प्रिंट तय करता है और फिर - एक बार की बात है जीव अपने अगले जन्म के अनुबंध का ब्लू प्रिंट तय करता है .... और फिर - आराम के लिए समय है।

■ हर जीव की अपनी पीड़ा की तीव्रता पर.... अगले जन्म के बीच का विश्राम समय निर्धारित है।

* पुनर्जन्म :-

■ हर जीव- अपने द्वारा तय किए गए समझौते के अनुसार.... अपने ही तय समय के बाद पुनर्जन्म होता है।

■ हर जीव को - अपने माता-पिता को चुनने का अधिकार मिला है।

उसके अलावा - जीवन को भी माँ के गर्भ में आने का अधिकार है। जीवन अंडकोष की बैठक के दौरान - 5वीं - 5वीं के महीने में... या, प्रसव के अंतिम समय में भी गर्भ में प्रवेश कर सकते हैं।

■ यह ब्रह्मांड उतना ही विकसित और पूर्ण है कि - यदि जीवन की जन्म कुंडली का कथन किया जाए- | जिस तरह से उस जीवात्मा ने जीवन का अनुबंध करके जन्म लिया है...

■ यह ब्रह्मांड उतना ही विकसित और पूर्ण है कि - यदि जीवन की जन्म कुंडली का कथन किया जाए - | जिस तरह से उस जीवात्मा ने जीवन का अनुबंध करके जन्म लिया है... इसका अपना ब्लू-प्रिंट बाहर आएगा।

■ हर जीव का जन्म 30 दिन होगा - अपने पिछले जन्म को याद करते हुए । और फिर -| पिछले जन्म की सारी यादें भुला दी जाती हैं... और, जीवन ऐसा व्यवहार करता है - जैसे कि वह पहले था ही नहीं ।

■ हर जीव- स्वर्ग में किया गया समझौता यहाँ मृत्युलोक में जन्म लेता है.... वह अनुबंध भूल जाती है। और, स्वयं की प्रतिकूल परिस्थिति का अपराध- ग्रहों और देवताओं को देते हुए ।

■ हम सबको एक बात समझ लेनी चाहिए कि हर स्थिति का हम सामना कर रहे हैं (अच्छी या बुरी), उसकी पसंद हमारे स्वयं पैदा होने से पहले ही बन चुकी थी । हर व्यक्ति इस जीवन में माता, पिता, मित्र, रिश्तेदार, जीवनसाथी, शत्रु आदि हमारे द्वारा चुने गए हैं।

■ हम सबको एक बात समझ लेनी चाहिए कि हर स्थिति का हम सामना कर रहे हैं (अच्छी या बुरी), उसकी पसंद हमारे स्वयं पैदा होने से पहले ही बन चुकी थी। 

■ हर व्यक्ति इस जीवन में माता, पिता, मित्र, रिश्तेदार, जीवनसाथी, शत्रु आदि हमारे द्वारा चुने गए हैं। । हमारी जिंदगी रुपी फिल्म की कहानी लिखने वाले निर्माता

निर्देशक हम खुद हैं।

■ एक बात ध्यान रखें - हर कोई जो हमारे जीवन में आता है एक ही भूमिका निभाता है.... | हमने जो भूमिका लिखी है।
तब तब - हम किसी व्यक्ति से शिकायत क्यों करें?

* मरने के बाद क्या - स्वयं के पीछे प्रार्थना और कार्रवाई की आवश्यकता है? मृत्यु के बाद हमारे रिश्तेदारों को गति मिले यह बहुत जरूरी है। गति अर्थात आत्मा मृत्यु से परलोक की ओर प्रस्थान करती है। गति न हो तो जीवन धरती में ही समा जाएगा।

■ कई बार ऐसा भी होता है कि जिंदगी की कोई ख्वाहिश बाकी रह सकती है,

■ कई बार ऐसा भी होता है कि जिंदगी की कोई ख्वाहिश बाकी रह सकती है, - बेहद उदासी में छोड़ दिया होगा जिंदगी, हो सकता है दुर्घटना में मरे हो या घायल अवस्था में, खुदकुशी कर ली होगी, किसी करीबी में जिंदगी रह गई होगी शायद या, जीवात्मा के पीछे अधूरी अंतिम कार्यवाही हुई होगी या फिर आत्मा सोचती है कि वह अभी भी कुछ समय के लिए पृथ्वी पर रहना चाहती है. .. ऐसे हालात में जिंदगी यहीं रह जाती है।

■ लेकिन मरने के बाद - हर जीव को 12 दिन में स्वर्ग जाना है... और फिर  वह प्रवेश द्वार बंद हो जाता है और, वह आत्मा स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकती। और, धरती पर बीच में रहता है 'भूत-योनि'

■ इस तरह - वो रूह जन्नत में दाखिल नहीं होती.. इसलिए, शरीर को दुख सहने के लिए नहीं मिल सकता।

आज कारण- जाने वाले व्यक्ति के पीछे क्रियाकलाप, क्षमा-प्रार्थना आवश्यक है क सो सो सद्गत आत्मा की 'गति'

■ वर्तमान समय में नई पीढ़ी को ये सब संस्कार, मान्यताएं पुरानी लगती हैं। और,  खुद के पीछे कार्रवाई नहीं कर रहा है।

इस वजह से - यहाँ पृथ्वी पर बहुत सारे प्राणी फंसे हुए हैं... और, उनकी गति नहीं है।  हर परिवार अपने स्वजनों की दिवंगत आत्मा की गति के लिए कर्मकांड की उपेक्षा कभी न करें।

■ जिस परिवार ने अपनों को खोया, वो कभी दुखी ना हो। क्योंकि - आत्मा कभी मरती नहीं.... इसलिए, शरीर को दुख सहने के लिए नहीं मिल सकता।

आज के कारण - जाने वाले व्यक्ति के पीछे क्रियाकलाप, क्षमा-प्रार्थना आवश्यक है कि - सो सो सद्गत आत्मा की 'गति'

वर्तमान समय में - नई पीढ़ी को ये सब संस्कार, मान्यताएं पुरानी लगती हैं। और, खुद के पीछे कार्रवाई नहीं कर रहा है।

इस वजह से - यहाँ पृथ्वी पर बहुत सारे प्राणी फंसे हुए हैं.. और, उनकी गति नहीं है।

■ हर परिवार अपने स्वजनों की दिवंगत आत्मा की गति के लिए कर्मकांड की उपेक्षा कभी न करें। जिस परिवार ने अपनों को खोया, वो कभी दुखी ना हो।

क्योंकि - आत्मा कभी मरती नहीं..... वक्त आने पर हम खुद से मिलने चले हैं।

'गरुड पुराण

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