वेद ज्ञान विज्ञान है
🙏ॐ नमो विश्वकर्मणे🙏
वेदों के अध्यन नही करेंगे तो संस्कृति खो देंगे वेद ही सब सत्य विधाओं की पुस्तक है वेद ज्ञान विज्ञान है इसलिए वेदों के अनुसरण करने चाहिए
त्वष्टा को पौराणिक संदर्भ में विश्वकर्मा कहा जाता है। जैसा कि आप पहले जान चुके हैं कि वैदिक साहित्य में त्वष्टा ( विश्वकर्मा ) को ही शिव, सविता, पशुपति, विष्णु, सृष्टिकर्ता, आदि नामो से जाना जाता है। त्वष्टा देव शिल्पी ( वैज्ञानिक) के रूप में विख्यात है। विभिन्न निर्माण कला में वे सक्षम है- त्वष्टा हि रुपाणि विकरोति( तैति० ब्रा० २,७,२,१) त्वष्टा वै रुपाणामीशे ( तैत्ति० स० १,४,७,१) त्वष्टा देव ने देवताओं के निमित्त वज्र, आयस, परशु, भोज्य व पानाक वस्तुओं को रखने के लिए चमस बनाया है- उत त्य॑ चमस॑ नव॑ त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम। अकर्त चतुर:पुन:।।ऋ०१,१२०,६) निर्माण में हाथ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अतएव त्वष्टा को सुपाणि कहा गया है-
सुकृत सुपाणि: स्वर्वा ऋतावा देवत्वष्टावसे तानि नो धातु।
(ऋ०,३,५४,१२)
त्वष्टा भास्वरित ( देदिप्मान) रुपो के निर्माता है-
प्रथमभाज॑ यशस॑ वयोधा॑ सुपाणि देव॑ सुगभस्तिमृभव्म्।
( ऋ०,६,४९,९)
चमस- तिरछे मुख वाला , एवम ऊपर की ओर पेंदी वाला एक चमस पात्र हैं। उसमे विश्वरूप यज्ञ निहित है। सात ऋषि गण इस महान शरीर की रचना हेतु विराजते हैं।(अथर्व०१०,८,९)
वेदों में चमस एक ऐसे पात्र के रूप में दर्शाया गया है जिसमें सभी देवता ( ग्रह, उपग्रह, दिशाएं, उप दिशाएं,) निवास करते हैं।
अथर्वा ने इन्द्र के लिए पूर्ण चमस बनाया था।(अथर्व०,१८,३,५४)
वेदों में इन्द्र को संगठक बल के रूप में मान्यता मिली है, सारे ग्रह, उपग्रह दिशाएं उप दिशाए अपने अपने स्थान पर घूर्णन करते हैं और आपस में टकराते भी नहीं है, ये कार्य इन्द्र संगठक बल करता है। ये सभी ग्रह उपग्रह , दिशाएं उप दिशाएं जिस घर या जिस पात्र में निवास करती है उसे चमस कहा गया है। इस चमस का निर्माण त्वष्टा ( अथर्वा ) ने देवताओं के लिए किया था। जब हम यज्ञ करते हैं तो लोटे के रूप में एक प्पत्र ( लोटा) जल भरकर रखते हैं जिसमे सभी देवताओं का प्रतीकात्मक वास होता है। वह चमस के रूप में रखते हैं।
वज्र- इन्द्र के लिए त्वष्टा देव ने, अथर्वा ने या ब्रहस्पति देव ने वज्र का निर्माण किया था। ( देवताओं ने तीन वज्र तो अलग अलग नहीं बनाए थे? एक ही वज्र बनाया था। त्वष्टा, अथर्वा या ब्रहस्पति एक ही के लिए प्रयुक्त हुआ है।
वज्र के द्वारा इन्द्र संगठक बल बादलों को विदिर्ण करके जल की वर्षा करते हैं और इस वज्र के द्वारा कोई भी तत्व, पूरे ब्रह्मांड में अगर इन्द्र के अनुशासन को तोड़ता है तो इन्द्र उसे तुरंत दंड देते हैं। जैसे कोई उल्का पिंड आता है तो उसे इन्द्र का वज्र तुरंत समाप्त कर देता है। इसी लिए वेदों में एक रूपक के रूप में बताया कि किस प्रकार इन्द्र ने विश्वरूप ( त्रिशिरा त्वाश्ट्र) ब्राह्मण का वध कर दिया था। क्योंकि वह इन्द्र के अनुशासन का उल्लंघन कर रहा था। इस वज्र से कोई भी इन्द्र का अनुशासन नहीं तोड़ सकता चाहे वो उसका पुत्र ही क्यों न हो।
पानक- एक पात्र हैं, जिसमे से खाना कभी समाप्त नहीं होता। ये सारा ब्रह्मांड है, प्रकृति है इसमें कभी खाना समाप्त नहीं होता। एक वैज्ञानिक यंत्र का भी जिक्र आता है जिसे कृष्ण जी महाराज ने द्रोपदी को उस समय दिया था जब पांडव वन में गए थे। उस पानक में कभी अन्न समाप्त नहीं होता था।
ऋग्वेद 10,64,10, के ऋषि गय प्लात है और देवता है विश्वदेवा । ऋषि ने यज्ञ में प्रार्थना की है कि-
उत माता बृहद्दिवा शृनोतु नस्त्वष्टा देवेभिर्जनिभि: पिता वच: ।
ऋभुक्षा वाजो रथस्पतिर्भगो रण्व शशमानस्य पातु न:।।10।।
अर्थ- तेजस्विनी देवमाता हमारे निवेदन को सुने, देवपिता त्वष्टा अपने पुत्र देवों - देवपत्नियों के साथ हमारे वचनों के अभिप्राय को समझे। इन्द्र, वाज, रथपति, भग एवं स्तुत्य मरुदगण हम स्तोताओं का संरक्षण करे।।10।।
( यज्ञ में ॐ विश्व देवाय नमः, कह कर इन्हे ही संबोधित करते हुए आहुति दी जाती है।
इसी लिए वेदों में त्वष्टा देव को ही विष्णु,शिव, सविता, प्रजापति, विश्वकर्मा, विराट , इन्द्र, आदि अनेकों नामों से पुकारा गया है।)
धाता - विधाता - - विधान करने वाला, रचने वाला, बनाने वाला, उत्पन्न करने वाला, सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा या ईश्वर को विधाता कहा गया है। इसे धाता भी कहा गया है, जिसका अर्थ है पालन करने वाला, धारण करने वाला या रक्षा करने वाला। ऋग्वेद में आदित्य देव को विश्वकर्मा, धाता, और विधाता कहा है- विश्वकर्मा विमना आद्विहाया धाता विधाता प्रमोद स॑दृक् ( ऋग्वेद ८,३,१७)। निरूक्त की दुर्गवृत्ति में सब भूतों को उत्पन्न करने वाले को धाता तथा आजीविका आदि कर्मों में प्रवृत्त करने वाले को विधाता कहा गया है- दाता उत्पादयिता सर्वभूतानाम् ....... विधाता जीवनस्य जीवता॑ च साध्वसाधुषु कर्मसु प्रवृतमानाना॑ ( निरुक्त दुर्गवृत्ति १०,२६) आगे नीरुक्त में वर्णित है कि धाता ही सबका विधाता है - दाता सर्वस्य विधाता ( निरुक्त ११,१०) । वह परमेश्वर ही विष्णु, नारायण, अर्क, सविता, धाता, विधाता, इन्द्र है - विष्णुर्नारायणोऽर्क: सविता दाता विधाता सम्राडिन्द्र इति ( मैत्रा०, ५,८)
त्वष्टा देव ने जो भी वस्तुओं का निर्माण देवताओं के लिए किया था वे सभी विज्ञान का विषय है।
त्वष्टा को जहां सृष्टिकर्ता, विष्णु, सविता, शिव आदि कहा है वहीं इन्हे प्रजापति के पुत्र त्वष्टा ऋषि के रूप में, अथर्वा ऋषि के रूप में, व अम्बरीष राजा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
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