कुलदेवी की पूजा किस दिन करनी चाहिए?
कुलदेवी की पूजा किस दिन करनी चाहिए?
कुलदेवी क्या होती है ?
कुलदेवी को कैसे प्रसन्न करें ?
हमें कुलदेवी का पता नहीं है ?
कुलदेवी की पूजा कैसे करें ?
कुलदेवी का क्या महत्व है ?
मुझ से ऐसे बहुत से सवाल पूछे जाते हैं , इंस्टाग्राम पर मैंने इस विषय पर काफी बताया भी हुआ है।
आज सोचा इस विषय पर एक विस्तृत जानकारी देनी चाहिए।
प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज अपनी कुलदेवी ( कुल के जनक ) की पूजा करते आए हैं , ताकि उनके घर-परिवार और कुल का कल्याण होता रहे। कुल देवी या देवता आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से कुलों की रक्षा करते हैं। जिससे नकारात्मक शक्तियों और ऊर्जाओं का खात्मा होता है।
घर के मेन गेट पर कुलदेवी माता का पहरा होता है
पुराने समय के घर और हवेलिया अब भी मिल जायेंगे ,जिसके दोनों और चौकी और दीपक जलाने का आला मिल जायेगा। वो दीपक कुलदेवी का ही लगता था। घर में जल छिड़क कर मेन गेट पर दोनों और जल चढ़ाया जाता है ,वो भी कुलदेवी को ही चढ़ाया जाता है।
अब बिज़नेस ,रोजी रोटी ,नौकरी के चक्कर में लोग अपनी जड़ों से दूर होगये , अपने पूर्वजो के जन्म स्थान से दूर हो गए , और अपने पूर्वजो के रीती रिवाज छोड़ दिए।
क्या होता है कुल देवी या देवता की पूजा न करने से
कुल देवी या देवता की पूजा नहीं करने से कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नजर नहीं आता। लेकिन धीरे-धीरे जब कुल देवी या देवता का घर-परिवार पर से सुरक्षा चक्र हटता है , तो परिवार में दुर्घटनाएं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है। यही नहीं घर-परिवार की उन्नति रुकने लगती है। संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, अशांति का वास होने लगता है। ग्रह-नशत्र का मेल अच्छा होते हुए भी परिवार का कल्याण नहीं होता। व्यापार में ,धन माया में बरकत नहीं होती। शादी विवाह में अड़चन।
कुलदेवी और पितरों का क्या सम्बन्ध है ?
जब हम अपनी कुलदेवी की पूजा पाठ , मान सम्मान छोड़ देते हैं ,तो हमारे पितरों का आशीर्वाद भी हमारे ऊपर नहीं रहता। हमारी और हमारे पितरों की कुलदेवी एक ही है। जब हमारे पितृ पृथ्वी पर जीवित थे ,तब पुरे विधि विधान से कुलदेवी की पूजा पाठ हमारे घरों में किया जाता था। कुलदेवी की पूजा पाठ छोड़ देने से ,हमने अपने पितृ देवों की परम्परा का उलंघन किया है , पितृ दोष का ये भी एक कारण है । कुलदेवी और पितृ देव हमारे बुजुर्ग हैं ,इनका आशीर्वाद ,इनकी ठंडी निगाहें वही रहेंगी जहाँ इनका मान सम्मान होगा।
यही एक ऐसा मंदिर है , जिसमे हमारा इन्तजार किया जाता है ,कुलदेवी माता अपने कुटुम्भ कबीले वालों का इन्तजार करती है। बाकि हम इधर उधर तीर्थ स्थानों पर जाते हैं वो महज पिकनिक है।
लोग भावुक होकर अथवा आकर्षित होकर कई साधनायें तो करते हैं , पर वो जानते नहीं की जब आप अपनी कुलदेवी को पुकारे बिना किसी भी देवी देवता की साधना करते हैं , तो वह साधना कभी यशस्वी नहीं होती। उलटा कुलदेवी का प्रकोप अथवा रुष्टता और ज्यादा बढ़ती है।
कई मानते हैं कि अगर वे श्रीनाथ जी जाते हैं। तिरुपती जाते हैं। चारधाम जाते हैं, शिर्डी जाते हैं। साल में एक दो बार दर्शन करते हैं। इससे कुलदेवी प्रसन्न नहीं होती । बल्कि वो शक्तियाँ भी आपको यही कहेंगी की पहले अपने माँ बाप को याद करो फिर मेरे पास आओ।
पहले घर में बच्चा पैदा होता था ,उसके सच्चे बाल कुलदेवी के मंदिर में चढ़ाये जाते थे , मुंडन संस्कार वहीँ होता था , नए सदस्य की माता जी के दरबार में हाजरी होती थी।
हमें कुलदेवी का पता नहीं है ?
ये बात खोज का विषय है ,आपके बड़े बुजुर्ग ,आस पड़ोस की बुजुर्ग ओरतें जरूर जानती होंगी आपकी कुल देवी कौन हैं ,या फिर आपके गोत्र के कुनबे के लोग ,चाचा ,ताऊ , बुआ | उन्ही से पता कीजिए ,थोड़ी कोशिश करनी होगी ,इधर उधर फ़ोन घुमाओ ,कुल देवी और उसका दिन , वार , तिथि का पता करो | अगर पता चल जाता है तो पांच -सात दिन दीपक करो ,उसके बाद महीने में एक दिन होता है , कुल देवी का उस शाम को कुछ मीठा बनाओ और माता का भोग लगाओ।
काफी कोशिश के बाद भी कुलदेवी का पता न चले
किसी भी दिन साबुत सुपारी खरीदें ( सुपारी खंडित ना हो साबुत होनी चाहिए ) शुक्रवार सुबह नित्ये कर्म से निबट कर पूजा के स्थान पर एक सिक्का रखें ,उस पर सुपारी रखें ,पास में घी का दीपक जलाएं। जल की कुछ बुँदे सुपारी को अर्पित कीजिए , सुपारी के ऊपर मौली रख कर कहिए - माता जी वस्त्र अर्पित कर रहे हैं। सुपारी पर सिंदूर लगा कर कहें - माता जी श्रृंगार ग्रहण कीजिए। और हाथ जोड़ कर कहें - हे माता जी कोई भूल चूक हुई हो तो अपना समझ कर माफ़ कीजिए। हमारे घर पर स्थान ग्रहण कीजिए। घर के सभी सदस्यों को आशीर्वाद दीजिए और मार्गदर्शन कीजिए। और मुझे दर्शन दीजिए। सुपारी को कुलदेवी मान कर वहीँ रहने दीजिए। मौली चढ़ते ही सुपारी गौरी गणेश का रूप ले लेती है। अब हर रोज शाम को घी का दीपक जलाएं ,और प्रार्थना करें माता जी दर्शन दीजिए। माता प्रसन्न होते ही दर्शन देगी ,कोई रास्ता दिखाएगी।
एक बात याद रखिये ,माता का दीपक शुक्ल पक्ष में ही लगेगा। जैसे शेरों वाली माता यदि किसी की कुलदेवी है , तो इसकी पूजा शुक्लपक्ष की अस्टमी को ही होगी। कोई भी कुलदेवी हो ,पूजा सूर्यास्त के बाद ही होती है।
कुलदेवी माता जी के लिए सबसे उत्तम भोग खीर का होता है।
खीर बनने के तुरंत बाद बाद ,भोग के लिए अलग साफ़ कटोरी में खीर निकालिए ,फिर माता की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष घी का दीप लगाकर , कटोरी से एक चुटकी खीर का भोग कुलदेवी माता को लगाइये। अब सारे घरवाले अपनी अपनी मनोकामना माताजी को मन ही मन बताते है और धोक लगाते हैं।
अब जिस कटोरी से माता जी के लिए भोग अर्पित किया था ,उसमे बची खीर केवल पुरुष या बेटा ही खायेगा। बाकि बची खीर महिला पुरुष खा सकते हैं। इस खीर को प्रशाद के रूप में भी किसी बाहर वाले को नहीं देना है।
इस दिन दूध या दूध से बनी वस्तु दान नहीं करना।
पूरा दिन शाकाहारी रहे।
नशे ,शराब इत्यादि से दूर रहें।
जानकारी अच्छी लगी तो फॉलो कीजिए ,धन्यवाद
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