माला जपने से पूर्व जानें किस साधना में कौन-सी माला उपयोग में लाएं...
माला के दानों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
जप करते समय साधकों के होंठ और जिह्वा स्वत: ही हिलते हैं, जिस कारण कण्ठ की धमनियां प्रभावित होती हैं तो इस वजह से साधक को कण्ठमाला और गलकण्ठ जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं। इन सबसे बचने के लिए गले में माला धारण की जाती है। इसमें तुलसी माला और रुद्राक्ष माला श्रेष्ठ मानी जाती है।
माला कितनी बार जपना चाहिए?
माला का जाप हिंदू धर्म के हिसाब से आपको 108 बार करना चाहिए। वैसे आप इससे ज्यादा बार भी माला का जाप कर सकती हैं। इतना ही नहीं, आप 51 बार या फिर 151 बार भी माला का जाप कर सकती हैं।
किस माला से कौन सा जाप करना चाहिए?
हिंदू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए विभिन्न प्रकार की माला का इस्तेमाल किया जाता है। आप तुलसी, वैजयंती, रुद्राक्ष, कमलगट्टे, स्फटिक, पुत्रजीवक, अकीक, रत्न आदि किसी भी तरह की माला से मंत्रों का जाप कर सकती हैं।
क्या गले में जप माला पहनी जा सकती है?
अगर आप गले में जप करने वाली माला पहन रही हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि आपको हमेशा खुद को साफ-सुथरा रखना है। जब भी आप नित क्रिया के लिए जाएं, तो आपको इस माला को उतार कर पहले ही रख देना चाहिए और दोबारा खुद को साफ करने के बाद ही आपको इस माला को धारण करना चाहिए।
माला फेरने से क्या होता है?
जब आप माला से जाप करते हैं तब आपके अंगूठे और उंगलियों में एक अलग तरह की वाइब्रेशन होती है और ये वाइब्रेशन आप धीरे से पूरे शरीर में महसूस करते हैं, जो आपके मन को शांत करती है।
आप जिस माला से जप करते हैं क्या उसे गले में पहन सकते हैं?
पहनने में बुराई नहीं है, किन्तु अशौच स्थिति में गले से निकाल देना चाहिये। जैसे- लघुशंका, मलत्याग, जननाशौच, मरणाशौच या श्मसान और किसी अपवित्र व्यक्ति या वस्तु का स्पर्श करने से पहले माला को गले से निकाल देना चाहिये। अगर ऐसा नहीं कर सके तो पहनने में कोई बुराई नहीं किन्तु जाप नहीं कर सकते। अतएव उचित यही होगा कि हरदम पहनने के लिये अलग माला और जाप के लिये अलग माला रखें।
माला फेरने का सही तरीका क्या है?
- माला का जाप करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपने माला को सही से पकड़ा हो। आपकी माला नाभि से नीचे नहीं जानी चाहिए और नाक के ऊपर भी आपको माला नहीं रखनी चाहिए। इतना ही नहीं, सीने से माला को चिपका कर उसका जाप न करें।
- यदि आप आंखें खोल कर जाप कर रही हैं तो आपको परमात्मा पर आंखें टिका कर रखनी चाहिए और यदि आंखें मूंदकर आप जाप कर रही हैं, तो आपको अपना ध्यान परमात्मा की छवि पर केंद्रित करना चाहिए।
- जाप करते समय भूल से भी माला को नीचे न गिराएं। इतना ही नहीं, आपको जमीन पर भी माला नहीं रखनी चाहिए। आप माला को आसान या डिब्बे पर ही रखना चाहिए।
जाप करने से पहले क्या करना चाहिए?
जब भी आप जाप करना शुरू करें खुद पर गंगाजल का छिड़काव करें और साथ ही मंत्र जाप से पहले माला की भी गंगाजल से शुद्धि अवश्य करें। जहां बैठ कर जाप करना है उस स्थान को भी साफ करें और एक स्वच्छ आसन पर बैठकर ही जाप करें।
एक माला से कितने मंत्र का जाप कर सकते हैं?
सामान्यतः माला में 108 मनके होते हैं, हालांकि कुछ माला ऐसी भी होती हैं जिसमें 21 अथवा 51 मनके भी होते हैं। आप जिनती बार माला जपना चाहें, उतने मानक वाली माला बाजार से खरीद सकती हैं।
एक मान्यता के अनुसार माला के 108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर दानों की संख्या 108 निर्धारित की गई है।
माला में 108 दाने रहते हैं।
सांसों के आधार पर निर्धारित है जपमाला के 108 दाने
इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि एक पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है, उसी से माला के दानों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति करीब 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 दाने होते हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है यह संख्या
माला के दानों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने माला में 108 दाने रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक दाना नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

108 मनके अपने में गूढ़ अर्थ संजोए हैं।
श्रद्धा, भक्ति और समर्पण की प्रतीक माला के 108 मनके अपने में गूढ़ अर्थ संजोए हैं। भारतीय मुनियों ने एक वर्ष में 27 नक्षत्र बताए हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण हैं, इस प्रकार 108 चरण होते हैं। इसीलिए ज्योतिर्विज्ञान में यह संख्या शुभ मानी जाती है। जैन मत में भी 108 मनकों की माला को पवित्र माना जाता है। मन, वचन और कर्म से जो हिंसा आदि पाप होते हैं, वे 36 प्रकार के होते हैं। इन्हें स्वयं करने, दूसरों से कराने तथा करते हुए को सराहने से यह संख्या 36 का तीन गुना यानी 108 हो जाती है। इन 108 पापों (बुरे कामों) से मुक्ति के लिए इस माला का जप किया जाता है। बौद्ध मत में भी यह संख्या शुभ मानी जाती है। बुद्ध के जन्म के समय 108 ज्योतिषियों के उपस्थित रहने की बात कही जाती है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले देश जापान में श्राद्ध के अवसर पर 108 दीपक जलाने की प्रथा है।
माला के प्रयोग की सावधानियां और नियम क्या हैं?
- माला के मनकों की संख्या कम से कम २७ या १०८ होनी चाहिए. हर मनके के बाद एक गाँठ जरूर लगी होनी चाहिए.
- मंत्र जप के समय तर्जनी अंगुली से माला का स्पर्श नहीं होना चाहिए साथ ही सुमेरु का उल्लंघन भी नहीं होना चाहिए.
- मंत्र जप के समय माला किसी वस्त्र से ढंकी होनी होनी चाहिए या गोमुखी में होनी चाहिए.
- माला हमेशा व्यक्तिगत होनी चाहिए , दूसरे की माला का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
- जिस माला से मंत्र जाप करते हैं , उसे धारण नहीं करना चाहिए.
इन बातों को रखें विशेष ध्यान
जाप करते समय ध्यान रखें कि माला में दिए गए सुमेरु को लांघना नहीं चाहिए. सुमेरु यानि जहां माला का जुड़ाव होता है. इसका मतलब है कि माला की गिनती सुमेरू से शुरू होती है और उसी पर समाप्त होती है. इसे लांधे बिना माला को घुमाकर फिर से जाप शुरू करें.
माला जपने के लिए हमेशा अंगूठे और अनामिका उंगली का ही इस्तेमाल करना चाहिए. इससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
माला जपते समय ध्यान रखें कि माला को किसी कपड़े में ढककर रखना चाहिए. ताकि जपते समय उसे कोई देख न सके. इसके लिए गोमुखी का भी उपयोग किया जा सकता है.
माला हमेशा धरती पर आसन बिछाकर उस पर बैठकर ही जपनी चाहिए. तभी उसका शुभ फल प्राप्त होता है.
अलग अलग माला के प्रयोग के लाभ क्या हैं और क्या तरीका है?
- रुद्राक्ष की माला
- सामान्यतः किसी भी मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से कर सकते हैं
- शिव जी और उनके परिवार के लोगों के मन्त्र रुद्राक्ष पर विशेष लाभकारी होते हैं
- महामृत्युंजय और लघुमृत्युंजय मन्त्र केवल रुद्राक्ष पर ही जपना चाहिए
- स्फटिक की माला
- यह माला एकाग्रता , सम्पन्नता और शान्ति की माला मानी जाती है
- माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी के मन्त्र इस माला से जपना उत्तम होता है
- धन प्राप्ति और एकाग्रता के लिए स्फटिक की माला धारण करना भी अच्छा होता है
- हल्दी की माला
- विशेष प्रयोगों तथा मनोकामनाओं के लिए हल्दी की माला का प्रयोग किया जाता है
- हल्दी की माला से ज्ञान और संतान प्राप्ति के मन्त्रों का जाप भी कर सकते हैं
- चन्दन की माला
- चन्दन की माला दो प्रकार की होती है - लाल चन्दन और श्वेत चन्दन
- देवी के मन्त्रों का जाप लाल चन्दन की माला से करना फलदायी होता है
- भगवान् कृष्ण के मन्त्रों के लिए सफ़ेद चन्दन की माला का प्रयोग कर सकते हैं
- तुलसी की माला
- वैष्णव परंपरा में इस माला का सर्वाधिक महत्व है
- भगवान् विष्णु और उनके अवतारों के मन्त्रों का जाप इसी माला से किया जाता है
- यह माला धारण करने पर वैष्णव परंपरा का पालन जरूर करना चाहिए
- तुलसी की माला पर कभी भी देवी और शिव जी के मन्त्रों का जप नहीं करना चाहिए
उपयोग टालते हैं। हालांकि बीच की उंगली पर माला डालना और मनका को घुमाने के लिए अंगूठे का उपयोग करना इन क्षेत्रों में भी स्वीकार्य है।
जप माला या माला
एक जप माला या माला (संस्कृत: माला अर्थ गार्लेंड)[1] आमतौर पर हिंदू, बौद्ध, जैन और कुछ सिखों के द्वारा आध्यात्मिक अभ्यास जिसे संस्कृत में जप के रूप में जाना जाता हैं उसे प्रार्थना में उपयोग की जाने वाली प्रार्थना मनका की तार की एक माला है। यह आमतौर पर १०८ मनको से बनी होती है, हालांकि अन्य संख्याओं का भी उपयोग किया जाता है। माला का उपयोग, मंत्र या देवता के नाम या नामों को दोहराते हुए, जप करते हुए या मानसिक रूप से दोहराने के समय गिनती रखने के लिए किया जाता हैं।
उपयोगसंपादित करें
उपयोग में भिन्नताएंसंपादित करें
सामग्री
माला के मनका बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष वृक्ष के बीज से बने मोती को शैवा, शिव के भक्तों द्वारा पवित्र माना जाता है, जबकि तुलसी पौधे की लकड़ी से बने मोती का वैष्णव, विष्णु के अनुयायी द्वारा उपयोग और सम्मानित किया जाता हैं। अन्य आम मनका में चंदन के पेड़ की लकड़ी या बोढ़ी पेड़, और कमल के पौधे के बीज शामिल हैं। कुछ तिब्बती बौद्ध परंपराएं जानवरों की हड्डी (आमतौर पर याक) का उपयोग करते हैं जो पिछले लामा के सबसे मूल्यवान हैं। कार्नेलियन और एमेथिस्ट जैसे अर्द्ध कीमती पत्थरों का भी उपयोग किया जा सकता है। हिंदू तंत्र के साथ-साथ बौद्ध तंत्र (या वज्रयान) में, सामग्री और मनका के रंग एक विशिष्ट अभ्यास से संबंधित हो सकते हैं।[3]
बहुत लोग अपने ईष्ट या फिर गुरू के द्वारा दिये मंत्र का जप किसी न किसी माला से जप करता ही हैं । जिस माला से जप किया जाता उसमें 2 बातें मुख्य रूप से देखी जाती हैं, एक तो माला किस चीज की बनी है और दूसरा माला में मनकों की संख्या कितने है । कुछ लोग सामान्य पूजा में 15, 27 या 54 दानों की माला पूजा माला का प्रयोंग करते है, लेकिन 108 दानों कि माला पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है । जाने किस किस माला से जप करना लाभकारी होता हैं ।
माला का आकार प्रकार
माला सही बनी हुई होनी चाहिए । उसका बार-बार टूटना शुभ नहीं होता है माला को ढक कर हृदय के समीप लाकर जप करना चाहिए । रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ मानी गई है अलग-अलग मुखों के रुद्राक्ष की माला से अलग- अलग सिद्धि प्राप्त होती है । सामान्यतः पंचमुखी रुद्राक्ष की माला का प्रयोग किया जाता है ।
1- गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए इस माला से जप करें
बुद्धिप्रदाता श्री गणेशजी के मंत्रों का जप हाथी दांत की माला से करना विशेष लाभदायक होता है । क्योंकि यह बहुत मूल्यवान होती है, इसलिए साधारण लोग इसका उपयोग नहीं कर पाते ।
2- महालक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए इस माला से जप करें
कमलगट्टे की माला- यह माला धन प्राप्ति के लिए सबसे अधिक लाभकारी होती है । लक्ष्मी प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम है । साथ ही यह शत्रु शमन और कर्ज मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयोगों में भी लाभकारी है ।
3- संतान प्राप्ति के लिए इस माला से जप करें
पुत्रजीवा की माला इसका प्रयोग संतान की प्राप्ति हेतु की जाने वाली साधना में होता है यह कुछ मोटी माला होती है ।
4- धनवान बनने के लिए इस माला से जप करें
चांदी की माला- धनवान बनने अर्थात धन की प्रचूर प्राप्ति, सात्विक अभीष्ट की पूर्ति के लिए इस माला को बहुत प्रभावी माना जाता है ।
5- ज्ञान के साथ धन प्राप्ति के लिए इस माला से जप करें
मूंगे की माला - मूंगे की माला गणेश और लक्ष्मी की साधना में प्रयुक्त होती है धन संपति, द्रव्य और स्वर्ण आदि की प्राप्ति की कामना से की जाने वाली साधना की सफलता हेतु मूंगे की माला की अत्यधिक प्रभावषाली माना गया है ।
6- शरीरिक और मानसिक विकारों का शमन के इस माला से जप करें
कुशा ग्रंथि की माला कुशा नामक घास की जड़ को खोद कर उसकी गांठों से बनाई गई यह कुशा ग्रंथी माला सभी प्रकार के शरीरिक और मानसिक विकारों का शमन करके साधक को स्वस्थ्य, निर्मल और तेजश्वी बनाती है । इसके प्रयोग से सभी प्रकार की व्याधियों का नाश होता है।
7- चंदन की माला से इन देवताओं के मंत्रों का जप करें
यह दो प्रकार की होती है सफेद और लाल चंदनकी । सफेद चंदन की माला का प्रयोग शांति पुष्टि कर्मों में तथा श्रीराम, विष्णु आदि देवताओं की उपासना में किया जाता है जबकि लाल चंदन की माला गणेषोपासना तथा देवी साधना के लिए प्रयुक्त होती है धन धान्य की प्राप्ति के लिए की जाने वाली साधना में इसका विषेष रूप से प्रयोग किया जाता है ।
8- तुलसी की माला सबसे ज्यादा पुण्यदायनी
वैष्णव भक्तों के लिए श्रीराम और श्रीकृष्ण की उपासना हेतु यह माला सर्वोत्तम मानी गई है, इसका आयुर्वेदिक महत्व भी है । इस माला को धारण करने वाले या जपने वाले को पूर्ण रूप से शाकाहारी होना चाहिए तथा प्याज व लहसुन से सर्वथा दूर रहना चाहिए ।
9- सात्विक कार्यों के लिए स्फटिक की माला से जपे
स्फटिक माला सौम्य प्रभाव से युक्त होती है इसका प्रयोग धारक को चंद्रमा और शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करवाता है । सात्विक कार्यों की साधना के लिए यह बहुत उत्तम मानी जाती है ।
10- तांत्रिक प्रयोगों के लिए इस माला से जपे
शंख माला विशेष तांत्रिक प्रयोगों में प्रभावषाली रहती है । शिवजी की पूजा साधना और सात्विक कामनाओं की पूर्ति हेतु किए जाने वाले जप तथा सामान्य रूप से धारण करने के लिए इसे उत्तम माना गया है ।
11- हल्दी की माला
हल्दी की माला गणेष पूजा के लिए प्रयोग में लाई जाती है बृहस्पति ग्रह तथा देवी बगलामुखी की साधना में इसका प्रयोग किया जाता है ।
किस माला से मिलता है कौन सा फल
स्फटिक की माला – शुक्र संबंधित दोष दूर करने के लिए यह माला अत्यंत प्रभावी मानी जाती है.
हल्दी की माला – देवगुरु बृहस्पति और बगलामुखी साधना के लिए तुलसी की माला का प्रयोग होता है.
सफेद चंदन की माला – भगवान विष्णु की कृपा पाने और राहु के दोष को दूर करने के लिए यह माला धारण की जाती है.
मोती की माला – चंद्र ग्रह की शुभता और मन की शांति के लिए मोती की माला अत्यंत शुभ फल प्रदान करती है.
लाल चंदन की माला – शक्ति की साधना के लिए लाल चंदन की माला अत्यंत शुभ साबित होती है.
मूंगे की माला – मंगल ग्रह की शुभता पाने के लिए इस माला को धारण किया जाता है.
माला का जाप करते समय ना करें ये गलतियां!
हमें मंदिर में भगवान के दर्शन के समय अभिवादन हेतु सिर झुकाकर नमस्कार करना चाहिए तथा मंत्र जाप करते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए.
माला का जाप करते समय ना करें ये गलतियां!
माला का जप करते समय रखें ये सावधानियां
पुरातन काल से मंदिर दर्शन के साथ-साथ हर घर में नित्य प्रतिदिन पूजा की जाती है. मंदिर में पाठ, पूजा आरती, मंत्र जाप आदि शामिल होता है. इनमे मंत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली मानते जाते हैं, क्योंकि ये मन को तुरंत एकाग्र कर देते हैं और शीघ्र प्रभाव देते हैं. माला का प्रयोग इसलिए भी किया जाता है ताकि मंत्र जप की संख्या में त्रुटि न हो सके. माला में लगे हुये दानों को मनका कहा जाता है. सामान्यतः माला में १०८ मनके होते हैं परन्तु कभी कभी इसमें २७ अथवा ५४ मनके भी होते हैं. अत: हमें मंदिर में भगवान के दर्शन के समय अभिवादन हेतु सिर झुकाकर नमस्कार करना चाहिए तथा मंत्र जाप करते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. यदि परमात्मा के समक्ष बैठकर जाप करना हो तो निम्न ढंग से करें-
जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाकर बैठें.
पद्मासन या सुखासन (पालथी लगाकर) बैठें. कमर से झुकें नहीं. चेहरे को भी सीधा रखें. माला दाहिने हाथ की उंगलियों पर अंगूठे के पोर से फेरें. नाखून का स्पर्श माला को न हो, इसकी पूरी सावधानी रखें. प्लास्टिक की माला न फेरें. माला फेरते समय इधर-उधर तांकझांक न करें. माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें. जाप करते समय आंखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या नाक पर रखें या फिर आंखें मूंद लें. जाप करते समय माला नीचे न गिराएं. जमीन पर न रखें, आसन पर या डिब्बी में रखें.
माला से मंत्र जप के 10 मुख्य नियम और विधि
माला से कैसे करे सही तरीके से मंत्रो का जाप
हमारे धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है की मंत्र जाप अपने आराध्य देवी देवता तक पहुँचने का एक मन से मार्ग है।
मंत्र का अर्थ " मनः तारयति इति मंत्र" अर्थात् जो ध्वनि या कम्पन मन को तारने वाली हो वही मंत्र है। मन्त्र जाप करने से एक कम्पन उत्पन्न होता है जो हमारी प्रार्थना को प्रभु के करीब लेकर जाता है। मंत्र जप द्वारा आध्यात्मिक शारीरिक और मानसिक तीनो सुखो की प्राप्ति होती है। हमारे मन और नयन दिव्य होते हैं।
मंत्र जाप विधि
हमारे धर्म ग्रंथों, वेदों और पुराणों में सभी देवी देवताओ के अलग अलग मन्त्र बताये गये है जिनका पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से एकाग्रचित होकर जाप करने से उक्त देवी देवता को प्रसन्न किया जा सकता है। ध्यान रखे मंत्र तब ही सिद्ध और असरदार होगा जब वो सही विधि और उचित नियम से जाप किया जाये।
मंत्र जप के 10 नियम और विधि
यह आलेख उन सभी के लिए है जो मंत्र की शक्ति तो जानते है पर जप विधि में ध्यान नही दे पाते। मंत्र को कैसे सिद्ध करे और उसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए ध्यान से पढ़े मंत्र से जुड़े मुख्य नियम |
बीज मंत्र की महिमा
मंत्र जप के लिए बैठने का आसन मंत्र को सिद्ध करने के लिए और उसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए सबसे पहले सही आसन का चुनाव करे। हमारे ऋषि मुनि सिद्धासन का प्रयोग किया करते थे। इसके अलावा पद्मासन, सुखासन, वीरासन या वज्रासन भी काम में लिया जा सकता है।
समय का चुनाव
मंत्र साधना के लिए आप सही समय चुने।
जब आप आलस्य से दूर और वातावरण शांत हो। इसके लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात् सूर्योदय से पूर्व का समय उपयुक्त है। संध्या के समय पूजा आरती के बाद भी जप का समय सही माना गया है।
एकाग्रचित ध्यान :
मंत्र जप करते समय आपका ध्यान और मन एकाग्रचित होना चाहिए। आपको बिल्कुल भी बाहरी दुनिया में ध्यान नही देना चाहिए। मन दूसरी बातो में ना लगे। जिस देवता का आप मंत्र उच्चारण कर रहे है बस उन्हें रूप का ध्यान करते रहे।
मंत्र जाप दिशा
ध्यान रखे मंत्र का जाप करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
माला और आसन नमन
जिस आसन पर आप बैठे हो और जिस माला से जाप करने वाले हो उन दोनों को मस्तिष्क से लगाकर नमन करे ।
माला का चयन
आप जिस देवता के मंत्र का जाप कर रहे है, उनके लिए बताई गयी उस विशेष माला से ही मंत्र जाप करे। शिवजी के लिए रुद्राक्ष की माला तो माँ दुर्गा के रक्त चंदन की माला बताई गयी है |
माला छिपाकर करे जाप मंत्र
उच्चारण करते समय माला को कपड़े की थैली में रखे। माला जाप करते समय कभी ना देखे की कितनी मोती शेष बचे है। इससे अपूर्ण फल मिलता है।
मंत्रो का सही उच्चारण : ध्यान रखे की जैसा मंत्र बताया गया है वो ही उच्चारण आप करे। मंत्र उच्चारण में गलती ना करे।
माला को फेरते समय : माला को फेरते समय दांये हाथ के अंगूठे और मध्यमा अंगुली का प्रयोग करे | माला पूर्ण होने पर सुमेरु को पार नही करे ।
एक ही समय मंत्र
जाप जिस समय पर आप कर रहे है अगले दिन उसी समय पर जाप करे ।
एक माला जाप, दिलाएगा सैकड़ों लाभ
सनातन धर्म में ईश आराधना के लिए बहुत सारी पद्धतियों को शामिल किया गया है। इनमें मुख्य तौर पर मंदिर दर्शन, पूजा-पाठ, आरती और मंत्र जाप शामिल हैं। तन और मन को प्रभु चरणों में एकाग्र करने के लिए मंत्रों का जाप सबसे अधिक प्रभावशाली युक्ति है। जाप में किसी भी तरह की भूल से बचने के लिए माला का प्रयोग किया जाता है। माला में लगे दानें मनका कहलाते हैं। आमतौर पर 1 माला में 108 मनके होते हैं लेकिन छोटी माला में 27 या 54 मनके होते हैं। माला फेरते वक्त कुछ बातों पर दें ध्यान, तभी होगा पुण्य लाभ-
सर्वप्रथम धरती माता को प्रणाम करें, कुश या शुद्ध ऊनी बिछौना बिछाकर पलथी मारकर बैठें। अपने शरीर को सीधा रखें, कमर झुकाएं नहीं माला को प्रणाम कर दाहिने हाथ की उंगलियों पर अंगूठे के पोर से फेरना आरंभ करें, ध्यान रखें माला तर्जनी उंगली को स्पर्श न करे। माला और नाखूनों में दूरी बनाकर रखें। माला फेरते समय अपना ध्यान ईष्ट और मंत्र पर केंद्रित रखें। प्रतिदिन की जप संख्या समान अथवा बढ़ते हुए क्रम में होनी चाहिए। माला जाप के बाद उसे आसन अथवा डिब्बी में सहज कर रखें।
इच्छा अनुसार करें माला का चयन- धन की इच्छा है तो कमलगट्टे, वैजन्ती, स्फटिक व मूंगे की माला से लक्ष्मी देवी का जाप करना चाहिए।
विद्या प्राप्त करने के लिए स्फटिक की माला अथवा रुद्राक्ष की माला से सरस्वती मंत्रों का जाप करें। मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए रुद्राक्ष की माला से शिव मंत्रों का जाप करें।
मनभावन पत्नी पाने के लिए स्फटिक की माला से शिव मंत्रों का जाप करें। घर में सुख शांति का वातावरण बना रहे और उत्तम स्वास्थ्य के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप रूद्राक्ष की माला से करें।
शत्रुओं का नाश करने के लिए बगला मुखी मंत्र का जाप हल्दी की माला से करें। रुद्राक्ष की माला गले में धारण करने से हृदय रोग और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।
हनुमान जी की साधना के लिए मूंगे की माला से मंत्रों का जाप करें। देवी की आराधना के लिए स्फटिक की माला से जाप करने से मंत्र शीघ्र सिद्ध हो जाते हैं।
जानिए, बिना माला के उंगलियों पर गिनकर मंत्र जप की विधि
घर से बाहर या जप माला न होने पर बिना जपमाला के उंगलियों से ऐसे भी मंत्र जप कर सकते हैं।
उज्जैन | देव उपासना से संकट दूर करने या मुरादें पूरी करने के लिए मंत्र जप असरदार माने जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक यह तभी संभव है जब मंत्र जप नियम से भी किए जाएं। मंत्र जप के इन नियमों में अहम - मंत्र संख्या । बिना गिने मंत्र जप आसुरी जप कहे जाते हैं, जो शुभ फल नहीं देते।
यही वजह है कि निश्चित संख्या में मंत्र जप के लिए जप माला का उपयोग किया जाता है, किंतु शास्त्रों में मंत्रों की गिनती के लिए ऐसा तरीका भी बताया गया है, जो किसी कारणवश जप माला न होने पर भी कारगर और शुभ माना जाता है। यह तरीका है- करमाला यानी उंगलियों पर मंत्रों की गिनती से मंत्र जप |
घर से बाहर होने पर या जप माला न उपलब्ध हो, तो जानिए बिना जप माला उंगलियों पर मंत्रों की गिनती कर मंत्र जप का यह खास उपाय-
- दाएं हाथ की अनामिका यानी मिडिल फिंगर के बीच के पोरुओं से शुरू कर कनिष्ठा यानी लिटिल फिंगर के पोरुओं से होते हुए तर्जनी यानी इंडेक्स फिंगर के मूल तक के 10 पोरुओं को गिन मंत्र जप करें।
- अनामिका यानी मिडिल फिंगर के बीच के शेष 2 पोरुओं को माला का सुमेरू मानकर पार न करें।
- दाएं हाथ पर दस मंत्र की गिनती कर बाएं हाथ की अनामिका यानी मिडिल फिंगर के बीच के पोरुओं से दहाई की एक संख्या गिने ।
- दाएं हाथ के साथ बाएं हाथ पर दहाई के दस बार मंत्र गिनने पर
100 मंत्र संख्या पूरी हो जाती है।
- आखिरी आठ मंत्र जप के लिए फिर से दाएं हाथ पर ही उसी तरह अनामिका यानी मिडिल फिंगर के मध्य भाग से गिनती शुरू कर शेष 8 मंत्र जप कर पूरे 108 मंत्र यानी एक माला पूरी की जा सकती है।
कैसे करें मंत्र का जप सही विधि से, आप भी जानिए ....
कैसे माला फेरें और कैसे करें मंत्र जाप, जानिए पुरातन काल से मंदिर दर्शन के साथ-साथ हर घर में नित्य प्रतिदिन पूजा की जाती है। मंदिर में पाठ, पूजा-आरती, मंत्र जाप आदि शामिल होता है।
अतः हमें मंदिर में भगवान के दर्शन के समय अभिवादन हेतु सिर झुकाकर नमस्कार करना चाहिए तथा मंत्र जाप करते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। यदि परमात्मा के समक्ष बैठकर जाप करना हो तो निम्न ढंग से करें-
* जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाकर बैठें।
* पद्मासन या सुखासन (पालथी लगाकर बैठें।
* कमर से झुकें नहीं। चेहरे को भी सीधा रखें।
* माला दाहिने हाथ की उंगलियों पर अंगूठे के पोर से फेरें ।
* नाखून का स्पर्श माला को न हो, इसकी पूरी सावधानी रखें।
* प्लास्टिक की माला न फेरें ।
* माला फेरते समय इधर-उधर तांकझांक न करें।
* माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें।
* जाप करते समय आंखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या
नाक पर रखें या फिर आंखें मूंद लें। • जाप करते समय माला नीचे न गिराएं। जमीन पर न रखें, आसन पर * या डिब्बी में रखें।
ऐसी माला से करेंगे मंत्र जप तो पाएंगे सिद्धि
नई दिल्ली। हमारी सनातन संस्कृति के पूजा विधान में माला का बड़ा महत्व बताया गया है। बिना माला के मंत्र जप संभव नहीं है। हम अक्सर साधु-संन्यासियों के गले और हाथ में भी मालाएं बंधी हुई
देखते हैं। यह माला रूद्राक्ष, तुलसी, चंदन या रत्नों की हो सकती है।
यौन दुर्बलता, कहीं आपकी कुंडली में भी ऐसा दोष तो नहीं काम्य जप यानी किसी कामना या मन की इच्छा की पूर्ति के लिए अलग-अलग पदार्थों की माला का उपयोग किया जाता है। कई लोग लाखों मंत्र जप कर लेते हैं लेकिन उन्हें उनकी मनचाही वस्तु का पूरा भाग नहीं मिल पाता और फिर वे मंत्रों की प्रामाणिकता को दोष देते हैं। कि हमने इतनी विधि-विधान से पूजा की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। इसका सबसे बड़ा कारण उचित माला से मंत्र जप का अभाव। इन चीजों से करेंगे हवन, तो पाएंगे समृद्धि मुंडमाला तंत्र में प्रत्येक प्रकार की पूजा के साथ उसके लिए एक माला निश्चित की गई है। यह माला रूद्राक्ष, शंख, कमल गट्टे, जियापोता, मोती, स्फटिक, मूंगा, मणि, रत्न, स्वर्ण, चांदी, कुशमूल, गुंजा आदि अनेकों प्रकार की होती है। आइये सबसे पहले जानते हैं किस उद्देश्य के लिए किस प्रकार की
माला का उपयोग करना चाहिए-
अश्रु की बूंदों से बना है
रूद्राक्ष की माला तंत्र शास्त्रों में रूद्राक्ष की माला को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। रूद्राक्ष स्वयं रूद्र के नेत्रों से गिरे अश्रु की बूंदों से बना है, इसलिए किसी भी उद्देश्य या कामना की पूर्ति के लिए रूद्राक्ष की माला से जप किया जा सकता है। इससे किया हुआ जप कभी निष्फल नहीं होता। रूद्राक्ष की माला को गले, हाथों में ब्रेसलेट के रूप में या किसी भी अन्य रूप में धारण करने से व्यक्ति में उर्जा, साहस, बल में वृद्धि होती है। शत्रु परास्त होते हैं और व्यक्ति को शिवकृपा प्राप्त होती है।
स्फटिक की माला: भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, आकर्षण, सौंदर्य, भोग प्राप्ति के उद्देश्य से मंत्र जप कर रहे हैं तो स्फटिक की माला का उपयोग करना चाहिए। लक्ष्मी मंत्रों का जाप करने में भी स्फटिक की माला प्रयोग में लाई जाना चाहिए। स्फटिक की माला पहनने से व्यक्ति आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होने लगती है और वह शीघ्र ही सभी का प्रिय बन जाता है।
तुलसी की माला का उपयोग तुलसी की माला : वैष्णव परंपरा में तुलसी की माला का बड़ा महत्व है। वैष्ण पंथ का अनुसरण करने वाले व्यक्ति मंत्र जप में तुलसी की माला का उपयोग करते हैं। तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय है इसलिए इसकी माला से विष्णु, कृष्ण मंत्र का जप शीघ्र फलदायी होता है। तुलसी की माला धारण करने से व्यक्ति सात्विक बनता है। उसके भीतर की अनैतिक प्रवृत्तियों का नाश होता है और वह अध्यात्म में उच्च शिखर छू सकता है।
चंदन की माला: चंदन की माला दो तरह की होती है। श्वेत चंदन और रक्त चंदन। दोनों ही प्रकार की माला से मंत्र जप किया जा सकता है, लेकिन जिन लोगों को मंगल ग्रह से जनित पीड़ा हो रही हो उन्हें लाल चंदन की माला से मंत्र जप करना चाहिए। भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति और मोक्ष के लिए भी रक्त चंदन की माला का उपयोग किया जाता है।
चंदन की माला धारण करने से व्यक्ति का मंगल ग्रह मजबूत होता है। और उसकी तरक्की होने लगती है।
धन, वैभव, ऐश्वर्य, भोग-विलास कमल गट्टे की माला : लक्ष्मी को प्रिय है कमल गट्टे की माला धन, वैभव, ऐश्वर्य, भोग-विलास की प्राप्ति के लिए कमल गट्टे की माला से मंत्र जप किया जाना चाहिए। शत्रुओं के नाश के लिए भी कमल गट्टे की माला का उपयोग किया जाता है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार कमल गट्टे की माला को धारण नहीं करना चाहिए। मंत्र जप के बाद इसे पूजा स्थान में ही रखें। या घर में श्रीयंत्र हो तो उस पर लगाकर रखें। जियापोता की माला जो दंपती संतान पाने के इच्छुक हैं, उन्हें जियापोता की माला से मंत्र जप करना चाहिए। चांदी के तार गूंथी हुई जियापोता की माला समस्त सुखों को प्रदान करने वाली है। इससे अनचाही इच्छा की पूर्ति की जा सकती है।
काले रंग का छोटे आकार का बीज
गूंजा की माला: गूंजा एक वृक्ष का फल होता है, जो लाल और काले रंग का छोटे आकार का बीज होता है। इसकी माला से व्यक्ति में जबर्दस्त आकर्षण, सम्मोहन पैदा होता है। जो व्यक्ति अपने आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करना चाहता है या किसी का वशीकरण करना चाहता है उसे गूंजा माला से जप करना चाहिए। गजदंत मालाः भगवान श्री गणेश की कृपा पाने के लिए गजदंत की माला से गणेश मंत्रों का जाप किया जाता है। इससे व्यक्ति में ज्ञान की वृद्धि होती है। उसकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती है और वह सिद्धि-बुद्धि प्राप्त करने में सफल होता है। गणेश शाबर मंत्रों का जाप गजदंत की माला से किया जाए तो सात रात्रि में सिद्ध हो जाता है। इनके अलावा भी अलग-अलग कार्यों की सिद्धि के लिए विभिन्न मणियों, रत्नों, बीजों, स्वर्ण, रजत, शंख आदि की माला से जप करने का विधान है।
इन बातों का रखें ध्यान जिस माला से आप जप करें, उसे जप संख्या पूरी होने तक धारण न करें। यदि आपने जप प्रारंभ करने से पहले मंत्र संख्या सवा लाख करने का संकल्प लिया है तो जब तक सवा लाख मंत्र पूरे न हो जाएं उस माला को धारण न करें।
माला देव स्थान, पूजा घर में किसी साफ वस्त्र में लपेटकर रखें। जप से पहले प्रत्येक दिन उस पर धूप-दीप, पुष्प से पूजन करें। अर्थ साधना के लिए 27 मणियों की माला, मारण कार्यों में 15 मणियों की, काम सिद्धि के लिए 54 मणियों का तथा समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए 108 मणियों की माला का प्रयोग करें। शांति, पुष्टि, स्तंभन, वशीकरण आदि कार्यों के लिए अंगूठे के अग्रभाग से माला चलाएं। आकर्षण के लिए अंगूठे व अनामिका के सहयोग से माला फेरें । विद्वेषण में अंगूठे व तर्जनी तथा मारण कार्यों में अंगूठे व कनिष्ठिका अंगुली से जप करें।
क्यों होते है माला में 108 दाने, क्यों करते है मंत्र जाप के लिए माला का प्रयोग?
हिन्दू धर्म में हम मंत्र जप के लिए जिस माला का उपयोग करते है, उस माला में दानों की संख्या 108 होती है। शास्त्रों में इस संख्या 108 का अत्यधिक महत्व होता है। माला में 108 ही दाने क्यों होते हैं, इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतषिक और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं। आइए हम यहां जानते है ऐसी ही चार मान्यताओं के बारे में तथा साथ ही जानेंगे आखिर क्यों करना चाहिए मन्त्र जाप के लिए माला का प्रयोग Kyon hote hai mala mein 108 manke (daane) सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है माला का एक-एक दाना
एक मान्यता के अनुसार माला के 108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन । अतः सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर दानों की संख्या 108 निर्धारित की गई है।
माला में 108 दाने रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि.....
षट्शतानि दिवारात्री सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा ।।
इस श्लोक के अनुसार एक पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है, उसी से माला के दानों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यतः 24 घंटे में एक व्यक्ति करीब 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 दाने होते हैं।
108 के लिए ज्योतिष की मान्यता
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, है। वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अतः ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है माला के दानों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 दाने रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक दाना नक्षत्र के एक- एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
इसलिए किया जाता है माला का उपयोग
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है, उसकी मनोकामनाएं बहुत जल्द पूर्ण होती हैं। माला के साथ किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
किसे कहते हैं सुमेरू
माला के दानों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है। संख्याहीन मंत्रों के जप से नहीं मिलता है पूर्ण पुण्य शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम् ।
असंख्यता तु यजतं तत्सर्व निष्फलं भवेत् ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है, इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। साथ ही, माला के बिना संख्याहीन किए गए मंत्र जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अतः जब भी मंत्र जप करें, माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। ऐसी मान्यता है कि किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से ही बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते रहे हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। रुद्राक्ष को महादेव का प्रतीक माना गया है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। साथ ही, रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
एक माला न केवल एक सुंदर सहायक वस्तु है बल्कि मध्यस्थता के लिए एक बहुत ही उपयोगी उपकरण भी है। माला का उपयोग कैसे करें और अपनी संपूर्ण माला कैसे प्राप्त करें, इसके बारे में और जानें।
माला क्या है?
एक माला मूल रूप से ध्यान के दौरान मंत्रों की गिनती के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग की जाती है। बहुत से लोग ध्यान के दौरान आसानी से विचलित हो जाते हैं या मंत्र ध्यान के दौरान गिनती खो देते हैं। आपके मंत्रों की गिनती के प्रतिस्थापन के रूप में एक माला एक बड़ी मदद हो सकती है।
एक माला आमतौर पर 108 मोतियों, 1 गुरु मनका और एक लटकन के साथ बनाई जाती है। लेकिन कुछ मालाएं ऐसी भी होती हैं जिनमें छोटे ध्यान के लिए कम माला होती है।
मंत्र साधना
एक माला का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है लेकिन ध्यान के दौरान मात्राओं की गिनती करना, जिसे 'जप ध्यान' के रूप में भी जाना जाता है, सबसे प्रसिद्ध है। जप ध्यान का अभ्यास करने के लिए आप एक मंत्र चुनकर शुरू करें। यह एक वाक्य, शब्द या ध्वनि हो सकता है। कुछ भी तब तक चलता है जब तक वह आपको और आपके इरादे को फिट करता है। अपने अंतर्ज्ञान पर भरोसा करें।
अपने ध्यान के दौरान आप अपना मंत्र दोहराते हैं और गिनने के लिए माला का उपयोग करते हैं। अपने दाहिने हाथ में माला को अपने अंगूठे और मध्यमा उंगली के बीच गुरु मनका के बगल में रखें (अपनी तर्जनी का उपयोग न करें क्योंकि यह अहंकार का प्रतिनिधित्व करता है)। हर बार जब आप अपना मंत्र दोहराते हैं तो आप अपनी उंगलियों के माध्यम से एक मनका हिलाते हैं, जब तक कि आप अंततः गुरु मनके तक नहीं पहुंच जाते। यह रुकने और प्रतिबिंबित करने का क्षण है, जिसके बाद आप माला को घुमाते हैं और दूसरी दिशा में चलते रहते हैं। आप गुरु मनका पास नहीं करते बल्कि इसके विपरीत जाते हैं। जितनी बार चाहें इस प्रक्रिया को दोहराएं।
अपनी माला चुनना
सभी माला स्पिरिट माला (आधा) रत्न और खनिज से बनी होती हैं, प्रत्येक की अपनी विशिष्ट ऊर्जावान विशेषताएं होती हैं। हमारे रत्न गाइड में आपको उनमें से प्रत्येक के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी। ऐसा रत्न चुनें जो आपके इरादे के अनुकूल हो और अपने अंतर्ज्ञान पर भरोसा करें।
माला अलग अलग तरह की होती है जैसे - स्फटिक, रुद्राक्ष, तुलसी की। इनके अलावा भी कुछ अन्य तरह की मालाएं होती हैं। इनमें से कौन सी माला का चयन करना है वो कार्यसिद्धि पर निर्भर करता है।
माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरूप होते हैं। माला का 109 वा मनका सुमेरू कहलाता है।
जप करने के लिए साधारण सरल अवस्था में इस प्रकार बैठना चाहिए कि छाती( वक्ष) गर्दन और सिर एक सीध में हो।
जप करने वाले व्यक्ति को एक बार में 108 जप पूरे करने चाहिए। उसकेे बाद सुमेरू से माला पलटकर पुनः जाप प्रारंभ कर देना चाहिए।
किसी भी स्थिति में सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा उंगली से एक मंत्र पढ़कर एक दाना( मनका) हथेली में खींच लेना चाहिए।
तर्जनी उंगली से माला को छूना वर्जित माना गया है। जप करने के बाद माला को सिर से छूकर स्वच्छ स्थान पर रख देना चाहिए।
दादाजी कहते थे कि लोग खुली माला से भी जाप करते है लेकिन उनका कहना था कि खुली माला से जाप नही किया जाता। दादाजी की माला लाल रंग की गोमुखी में रहती थी और वो उसी के अंदर हाथ में लेकर जाप करते थे। जो हमारे घर में अभी भी रखी है।
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है।
इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो अंगिरा ऋषि के कथन पर ध्यान देना होगा। अंगिरा ऋषि के अनुसार "असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत।" यानी बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।
इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है। इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम माना गया है।
जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है।
मेरे दादाजी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में और संध्याकाल में माला फेरते थे। हम लोग उनसे कुछ न कुछ बातें पूछते रहते थे। माला फेरने की बात भी हमने पूछी थी। उन्होंने जैसा बताया था उसके आधार पर मैं यह जवाब लिख रही हूं।
चित्र -गूगल से प्राप्त
माला अलग अलग तरह की होती है जैसे - स्फटिक, रुद्राक्ष, तुलसी की। इनके अलावा भी कुछ अन्य तरह की मालाएं होती हैं। इनमें से कौन सी माला का चयन करना है वो कार्यसिद्धि पर निर्भर करता है।
माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरूप होते हैं। माला का 109 वा मनका सुमेरू कहलाता है।
जप करने के लिए साधारण सरल अवस्था में इस प्रकार बैठना चाहिए कि छाती( वक्ष) गर्दन और सिर एक सीध में हो।
जप करने वाले व्यक्ति को एक बार में 108 जप पूरे करने चाहिए। उसकेे बाद सुमेरू से माला पलटकर पुनः जाप प्रारंभ कर देना चाहिए।
किसी भी स्थिति में सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा उंगली से एक मंत्र पढ़कर एक दाना( मनका) हथेली में खींच लेना चाहिए।
तर्जनी उंगली से माला को छूना वर्जित माना गया है। जप करने के बाद माला को सिर से छूकर स्वच्छ स्थान पर रख देना चाहिए।
दादाजी कहते थे कि लोग खुली माला से भी जाप करते है लेकिन उनका कहना था कि खुली माला से जाप नही किया जाता। दादाजी की माला लाल रंग की गोमुखी में रहती थी और वो उसी के अंदर हाथ में लेकर जाप करते थे। जो हमारे घर में अभी भी रखी है।
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है।
इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो अंगिरा ऋषि के कथन पर ध्यान देना होगा। अंगिरा ऋषि के अनुसार "असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत।" यानी बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।
इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है। इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम माना गया है।
जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है।
मन्त्र जप में अनुशाशन का बहुत महत्त्व है, और इसिलिए हर एक माला जप त्रुटि-रहित होना चाहिए। ऐसे में अगर आप सुमेरु लांघेंगे तो शायद गिनती 108 से आगे पीछे हो जाए। इसी कारणवश सुमेरु को न लांघने का नियम है। जब आप सुमेरु से माल पलट लेते है तो एक माला जप पूर्ण होता है। इसका एक पौराणिक मत भी है, इसीलिये उसे सुमेरु कहा जाता है। माला के सुमेरु को समुन्द्र मंथन के सुमेरु पर्वत सदृश समझ जाता है जिसके एक तरफ देव हैं तो दूरी तरफ असुर। अब अगर आप सुमेरु लांघेंगे तो आप देव से असुर की तरफ चले जायेंगे, और आपका जप देवों को न मिलकर असुरों को मिलेगा। अब आप जो माने, लेकिन बात केवल अनुशाशन की है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। ... अत: विचरण ग्रहों की संख्या 9 का गुणा 12 राशियों की संख्या में किया जाए तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 दाने होते हैं।
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जैसा की हम सब जानते है हम तर्जनी ऊँगली को दोषारोपण के लिए प्रयोग करते है।
इसलिए हम तर्जनी ऊँगली से जप के समय माला को नहीं छू सकते। इसी कारण से इसे गौमुखी से बहार रखने की व्यवस्था है।यदि आपकी यह ऊँगली माला के मेरु पर्वत से छू जाती है तो आप पर दोष लगता है और साधना सफल नहीं होती।
अतः इसका विशेष ख्याल रखे। साथ ही जिस माला से जाप कर रहे हैं, उसे कभी खूंटी या कील पर न टांगें. इससे माला की सिद्धि समाप्त हो जाती है. जाप के बाद माला को गौमुखी में रखें या किसी वस्त्र में लपेट कर रखें जिससे किसी अन्य का स्पर्श आपकी जाप माला से न हो।
माला के धारण करने से हृदय चक्र (अनाहत चक्र) सक्रिय रहता है जिससे मन शांत रहता है, आत्मविश्वास बना रहता है और मानव मस्तिष्कि में सकारात्मक विचार आते हैं। माला का निर्माण अनेक कार्यो के लिए किया जाता है जैसे : आभूषण की तरह पहनने के लिए, सजावट के लिए व जप के लिए। जप एवं पुरश्चरण के लिए बनाये जाने वाली मालायें मुख्यतः 27, 54 अथवा 108 मनकों की होती है।
माला में 108 मनके क्यों?
• शरीर में स्थित षटचक्र ऊर्जा रेखाओं के आपस में मिलने से बने हैं. ह्रदय चक्र में इस प्रकार की १०८ नाड़ियां मिलती हैं इनमें से एक यानी सुषुम्ता नाड़ी आज्ञा चक्र में जाती है और इसी के खुलने से आत्म ज्ञान मार्ग प्रशस्त होता है।
• श्रीयंत्र में ऐसे मर्म स्थल होते हैं जहां तीन रेखाएं एक दूसरे को काटती है. इस प्रकार के कुल ५४ मर्म स्थल होते हैं. प्रत्येक मर्म स्थल पर शिव और शक्ति दोनों के गुण समाहित होते है. इस प्रकार 54 × 2 = 108 बिंदु हैं जो श्रीयंत्र व मानव शरीर दोनों को परिभाषित करते हैं।
• ज्योतिष में भचक्र में १२ राशियों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक राशि में ९ नवांश होते है. इस प्रकार भचक्र को कुल 12 × 9 = 108 भागों में विभाजित किया गया है। १०९ में शिव और परम सत्य ० रिक्तता व आध्यात्मिक उन्नति की पूर्णता व शक्ति तथा ८ अनंत का प्रतिनिधित्व करता है।
• सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का १०८ गुणा है तथा पृथ्वी से सूर्य की दूरी के व्यास का १०८ गुणा है.
• ऋषियों के द्वारा प्रणीत उपनिषदों की संख्या १०८ है. इसी प्रकार ध्यान के कुल १०८ प्रकार है. यदि मनुष्य प्रतिदिन २१६०० सांसे लेता है तो प्राणायाम के द्वारा इतना इतना शातं व स्थिर हो जाए कि वह एक दिन में 108 × 100 × 2 = 21600 सांसें लेने की बजाए 108 सांसें ही ले तो उसे ज्ञान की प्राप्ति, षट चक्र वेध व ईश्वर साक्षात्कार सभी सिद्ध हो जाता है। कई विद्वानों का मत है कि ध्यान की कुल १०८ प्रणालियां है.
• भावनाएं १०८ प्रकार की है- ३६ वर्तमान, ३६ भूतकाल व शेष ३६ भविष्य से संबंधित होती है.
• वस्ततु : 108 पवित्रता तथा पिडं (मानव) व ब्रह्मांड की कार्ययोजना देने वाली पवित्र संख्या है. इसलिए इसे अंकशास्त्र ने भी सिद्धि का अंक माना है.
माला निर्माण विधि
माला बनाने के लिए सूत का शुद्ध धागा उपयोग में लाया जाता है, रेशमी व अन्य प्रकार का धागा भी उपयुक्त माना जाता है। सफेद सूती धागे में माला बनाने के लिए पहले मनके को पिरोया जाता है उसके बाद प्रत्येक दाने के बाद ढायी गाँठ लगायी जाती है। यदि किसी माला में ढाई गाँठ नहीं होती है तो पूर्ण शुद्ध नहीं मानी जाती। 108 मनकों में पहले सारे मनकों में ढाई गाँठ लगा ली जाती है तत्पश्चात् सुमेरू पिरोया जाता है। सुमेरु में अन्य मनकों की अपेक्षा दोहरा धागा डाला जाता है और एक ओर ढाई गांठ लगायी जाती है। दूसरी ओर यह सुमेरु माला को दो भागों में विभाजित करता है जो आगे चलकर एक बन जाते हैं। जप में इस सुमेरु का उल्लंघन नहीं किया जाता तथा सुमेरु या अन्य दानों को तर्जनी अंगुली से स्पर्श नहीं किया जाता। माला बनाने से पूर्व संकल्प किया जाता है तथा माला बनाने वाले धागे को पैर से नहीं स्पर्श किया जाता एवं प्रत्येक मनके को पिरोते समय ¬ का उच्चारण किया जाता है।
माला संस्कार
माला के मनकों में मुख और पुच्छ का भेद भी होता है। मुख कुछ ऊंचा होता है और पुच्छ समतल। पिरोने के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि मनकों का मुख अथवा पुच्छ परस्पर मिलता जाय । गांठ देनी हो तो तीन फेरे अथवा ढाई फेरे की लगानी चाहिए। ब्रह्म ग्रंथी भी लगा सकते हैं। इस प्रकार माला का निर्माण करके उसका संस्कार करना चाहिए। पीपल के नौ पत्ते लाकर एक को बीच में और आठ को चारों ओर इस ढंग से रखें कि यह अष्टदल कमल सा मालूम हो। बीच वाले पत्ते पर माला रखें और ''ऊं अं आं'' इत्यादि से लेकर ''हं क्षं'' पर्यन्त समस्त स्वर-वर्णो का उच्चारण करके पंचगव्य के द्वारा उसका प्रक्षालन करें और फिर ''सद्योजात'' मंत्र पढ़कर पवित्र जल से उसको धो डालें और प्रतिष्ठित करके धारण करें अथवा जप करें।
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जब कभी जप करते-करते मन अन्यत्र चला जाता है, तब मालूम ही नहीं होता कि जप हो रहा था या नहीं या कितने समय तक जप बंद रहा। यह प्रमाद हाथ में माला रहने पर उचित संख्या से जप करने पर नहीं होता।
माला से सम्बन्धित सावधानियाँ
• स्वयं की बनायी हुई माला जप करने के लिए एवं धारण करने के लिए वर्जित है।
• माला में उपयोग किया गया दाना शुद्ध होना चाहिए तथा खण्डित नहीं होना चाहिए।
• जप करने वाली माला को हमेशा गौमुखी अथवा अन्य स्वच्छ वस्त्र से ढका होना चाहिए।
• जप करने से पूर्व व पश्चात माला की पूजा होनी चाहिए एवं शुक्र देवता का आवाहन होना चाहिए।
• माला टूट जाए, मुंह स्पर्श से अशुद्ध हो तो उससे जाप न करें और न ही धारण करें।
• एक ही माला से पूरे परिवार को जाप नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उसकी दैविक शक्ति क्षीण हो जाती है।
• माला गलती से पैर के नीचे आ जाए, तो, गंगा जल से धो कर, पुनः प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए।
• माला से मंत्र जाप करते हुए अधूरा जप नहीं करना चाहिए। जप संख्या 108 होनी चाहिए।
• सोते समय माला उतार कर रख देना चाहिए तथा सुबह स्नान के बाद उसे धारण करना चाहिए।
पूजा करते समय माला जपने का सही तरीका-
- सबसे पहले आपको जमीन पर शुद्ध आसन बिछाना होगा।
- फिर पद्मासन या सुखासन कर बैठें। कमर को न झुकाएं और चेहरे को सीधा रखें।
- माला को इस्तेमाल करने से पहले उसे शुद्ध जल से धोएं और तिलक जरूर लगाएं।
- जाप करने के लिए एक निश्चित संख्या होनी आवश्यक है।
- माला का जाप करते समय आपको अपना मुख पूर्व दिशा की तरफ रखना चाहिए।
- माल को दाएं हाथ में रखना होगा। उंगलियों को अंगूठे के पोर से फेरना शुरू करें।
- माला पर नाखून से स्पर्श न करें।
- प्लास्टिक की माला का इस्तेमाल न करें।
- जब आप माला फेरे और मंत्रों का जाप करें तो इधर-उधर न देखें।
- माला को पकड़ते समय उसे नाभि से नीचे न रखें और माला नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए।
- माला को सीने से 4 अंगुल दूर रखें।
- जब आप जाप कर रहे हों तो आंखें भगवान के सामने रखें। आप आंखें मूंद भी सकते हैं।
- जाप करते समय माला के ऊपर जो भाग होता है उसे क्रॉस नहीं किया जाना चाहिए। जैले बी आप सुमेरु तक पहुंचे तो तुरंत वापस आ जाएं।
- ध्यान रहे कि जाप करते समय माला नीचे न गिरे। जाप खत्म होने के बाद माला को आसन पर या डिब्बी में रखें।
- बिना संकल्प किए मंत्र का जाप करने से किसी को कोई फल नहीं मिलता है।
माला चयन, मालाओं के लाभ
शास्त्रों में भिन्न देवताओं के मंत्रों का जप करने हेतु विभिन्न प्रकार की मालाओं के प्रयोग करने का विधान है जिसका संक्षिप्त वर्णन निम्नांकित है।
मालाओं के लाभ
रुद्राक्ष माला
शिव मंत्रों के जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी है। तुलसी, चंदन, स्वर्ण मुक्ता प्रवाल माला से करोड़ों गुना अधिक लाभ रुद्राक्ष माला पर जप करने से प्राप्त होता है।
तुलसी माला
सभी प्रकार के मंत्रों के जप के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। शरीर की शुद्धता के लिए भी धारण की जाती है।
कमलगट्टा माला
शत्रु नाश व लक्ष्मी की प्राप्ति से संबंधित मंत्रों के जप के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
हल्दी माला
शत्रु पर विजय व गुरु मंत्र या बगलामुखी जप के लिए।
पारद माला
जादू-टोना व दुख दरिद्रता को नाश करने हेतु
पुत्रप्राप्ति माला
इसका प्रयोग संतान प्राप्ति हेतु की जाने वाली साधना में होता है।
वैजंती माला
वैष्णव भक्तों व लक्ष्मी जी के जप में प्रयोग की जाती है।
मोनालीसा माला
मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मोती माला
चंद्रमा के मंत्र जप के लिए उपयुक्त है। तासीर ठंडी होने के कारण गर्म स्वभाव वाले व्यक्तियों के लिए बहुत लाभदायक है।
मूंगे की माला
हनुमान जी के जप के लिए उपयुक्त है। स्वास्थ्य बढ़ाती है।
कायाकल्प माला
शारीरिक दुर्बलता व नकारात्मक विचारों को शमन कर शारीरिक बल व ऊर्जा प्रदान करती है।
स्फटिक माला
लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा जप के लिए उत्तम है। गायत्री मंत्र के जप के लिए सर्वोत्तम है। इसको धारण करने से मानसिक असंतुलन, शारीरिक कष्ट व आर्थिक बाधाओं के प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सकता है।
रक्त एवं श्वेत चंदन
इसका प्रयोग शांति पुष्टि कर्मों में व श्री राम, विष्णु व अन्य देवताओं की उपासना में होता है।
लाल चंदन
गणेश जी व देवी साधना के लिए उपयुक्त होती है।
हकीक माला
भाग्य वृद्धि व सौभाग्य प्राप्ति के लिए इसका विशेष महत्व है। भूत-प्रेत व दुर्भाग्य को नाश करने की विशेष शक्ति इसमें होती है।
रुद्राक्ष स्फटिक माला
मंत्र सिद्धि व आध्यात्मिक उन्नति हेतु
मोती रुद्राक्ष माला
शिव के प्रत्येक मंत्र जप हेतु
मूंगा-मोती माला
शिव शक्ति के मंत्र जप हेतु
फिरोजा माला
वैवाहिक जीवन की मधुरता के लिए
नवरत्न माला
नवग्रहों की शांति व सर्वविध उन्नति के लिए धारण की जाती है।
तर्जनी अग्नि तत्व की उंगली है। इससे अग्नि सम्बंधित कार्य किये जाते हैं। जैसे बंदूक या रिवाल्वर का ट्रिगर दबाना, माचिस जलाना।
झगड़े के समय तर्जनी उंगली दिखाने से इसीलिए वह बद्व जाता है।
पेड़ों को तर्जनी उंगली दिखाने पर वे सूख जस्ते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार तर्जनी उंगली द्वारा जप करने से तप जलकर नष्ट हो जाता है।
9 गुणा 12: इन दोनों संख्याओं का कई परंपराओं में आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। 9 गुना 12 108 है। इसके अलावा, 1 प्लस 8 बराबर 9। 9 बार 12 बराबर 108 है।
गणित में 1, 2, और 3 की शक्तियाँ: 1 से 1 शक्ति = 1; 2 से 2 शक्ति = 4 (2x2); 3 से 3 शक्ति = 27 (3x3x3)। 1x4x27 = 108
हर्षद संख्या: १०had एक हर्षद संख्या है, जो अपने अंकों के योग से एक पूर्णांक विभाज्य है (हर्षद संस्कृत से है, और इसका अर्थ है "महान आनन्द")
इच्छाएं: कहा जाता है कि नश्वर में 108 सांसारिक इच्छाएं होती हैं।
झूठ: कहा जाता है कि 108 झूठ इंसानों को बताते हैं।
भ्रम: कहा जाता है कि 108 मानव भ्रम या अज्ञानता के रूप हैं।
हृदय चक्र: चक्र ऊर्जा रेखाओं के चौराहे हैं, और कहा जाता है कि हृदय चक्र को बनाने के लिए कुल 108 ऊर्जा रेखाएँ परिवर्तित होती हैं। उनमें से एक, सुषुम्ना मुकुट चक्र की ओर ले जाती है, और इसे आत्म-साक्षात्कार का मार्ग कहा जाता है।
संस्कृत वर्णमाला: संस्कृत वर्णमाला में 54 अक्षर हैं। प्रत्येक में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग, शैव और शाक्ति है। 54 गुणा 2 108 है।
प्राणायाम: यदि कोई ध्यान में इतना शांत हो जाता है कि एक दिन में केवल १० one साँस लेता है, तो आत्मज्ञान आ जाएगा।
उपनिषद: कुछ कहते हैं कि प्राचीन ऋषियों के ज्ञान के ग्रंथ, १०an उपनिषद हैं।
श्री यंत्र: श्री यंत्र पर तीन रेखाओं को काटते हुए मर्म होते हैं, और ऐसे 54 चौराहे हैं। प्रत्येक चौराहों में पुल्लिंग और स्त्रैण, शिव और शक्ती गुण होते हैं। 54 गुना 2 108 के बराबर है। इस प्रकार, 108 बिंदु हैं जो श्री यंत्र के साथ-साथ मानव शरीर को भी परिभाषित करते हैं।
पेंटागन: पेंटागन में दो आसन्न रेखाओं द्वारा निर्मित कोण 108 डिग्री के बराबर होता है।
मर्म: मर्म या मर्मस्थान चक्रों नामक ऊर्जा चौराहों की तरह होते हैं, सिवाय उनके बनाने के लिए कम ऊर्जा रेखाएँ होती हैं। सूक्ष्म शरीर में 108 मर्म कहे गए हैं।
समय: कुछ कहते हैं कि १० feelings भावनाएँ हैं, ३६ अतीत से संबंधित हैं, ३६ वर्तमान से संबंधित हैं, और ३६ भविष्य से संबंधित हैं।
8 अतिरिक्त मोती: माला के दोहराव की संख्या की गिनती करने का अभ्यास करने में, 100 पूर्ण के रूप में गिने जाते हैं। शेष को त्रुटियों या चूक को कवर करने के लिए कहा जाता है। 8 को भगवान और गुरु का प्रसाद भी कहा जाता है।
रसायन विज्ञान: दिलचस्प है, तत्वों की आवर्त सारणी पर लगभग 115 तत्व ज्ञात हैं। उन में से अधिकांश, लगभग 100 नंबर से अधिक या केवल प्रयोगशाला में मौजूद हैं, और कुछ केवल एक सेकंड के हजारवें हिस्से के लिए। पृथ्वी पर स्वाभाविक रूप से मौजूद संख्या लगभग 100 है।
ज्योतिष: 12 नक्षत्र होते हैं, और 9 चाप खंड होते हैं जिन्हें नमास या चंद्रकला कहा जाता है। 9 गुना 12 बराबर 108 हैं। चन्द्रमा चंद्रमा है, और काल एक पूर्ण के भीतर विभाजन हैं।
गंगा नदी: पवित्र नदी गंगा 12 डिग्री (79 से 91), और 9 डिग्री (22 से 31) की अक्षांश पर पहुंचती है। 12 गुणा 9 बराबर 108।
ग्रह और मकान: ज्योतिष में, 12 घर और 9 ग्रह हैं। 12 गुणा 9 बराबर 108।
देवी के नाम: 108 भारतीय देवी के नाम हैं।
कृष्ण की गोपियाँ: कृष्ण परंपरा में, कृष्ण की 108 गोपियाँ या दासी थीं।
१, ०, और Some: कुछ कहते हैं कि १ भगवान या उच्च सत्य के लिए खड़ा है, ० आध्यात्मिक साधना में शून्यता या पूर्णता के लिए है, और practice का अर्थ अनंत या अनंत काल तक है।
सूर्य और पृथ्वी: सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का 108 गुना है। सूर्य से पृथ्वी की दूरी सूर्य के व्यास का 108 गुना है।
चंद्रमा और पृथ्वी: पृथ्वी से चंद्रमा की औसत दूरी चंद्रमा के व्यास का 108 गुना है।
चांदी और चंद्रमा: ज्योतिष में, धातु चांदी को चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा जाता है। चांदी का परमाणु भार 108 है।
संख्यात्मक पैमाना: १ में १० 108, और १०, के The, जब एक साथ जोड़े जाते हैं तो ९ के बराबर होता है, जो कि संख्यात्मक पैमाने की संख्या है, अर्थात १, २, ३ ... १०, आदि, जहाँ ० संख्या नहीं है।
ध्यान: कुछ लोग कहते हैं कि ध्यान की १० Some शैलियाँ हैं।
सांस: तंत्र का अनुमान है कि प्रति दिन सांसों की औसत संख्या 21,600 है, जिनमें से 10,800 सौर ऊर्जा हैं, और 10,800 चंद्र ऊर्जा हैं। 108 को 100 से गुणा करना 10,800 है। 2 x 10,800 को गुणा करना 21,600 के बराबर है।
भगवान के लिए पथ: कुछ सुझाव देते हैं कि भगवान के लिए 108 रास्ते हैं।
छोटे विभाजन: संख्या 108 को विभाजित किया जाता है, जैसे कि आधा, तीसरा, चौथाई, या बारहवां, ताकि कुछ मालाओं में 54, 36, 27 या 9 मालाएं हों।
हिंदू धर्म: 108 को हिंदू देवताओं की संख्या के बारे में कहा जाता है। कुछ कहते हैं कि प्रत्येक देवता के 108 नाम हैं।
इस्लाम: भगवान को संदर्भित करने के लिए इस्लाम में 108 नंबर का उपयोग किया जाता है।
जैन: जैन धर्म में 108 पवित्रों की पाँच श्रेणियों के सम्मिलित गुण हैं, जिनमें क्रमशः 12, 8, 36, 25 और 27 गुण हैं।
सिख: सिख परंपरा में मोतियों की बजाय ऊन की एक स्ट्रिंग में बंधे 108 समुद्री मील की माला है।
बौद्ध धर्म: कुछ बौद्ध अच्छे भाग्य के लिए एक अखरोट पर 108 छोटे बुद्धों की नक्काशी करते हैं। कुछ लोग नए साल का जश्न मनाने के लिए 108 बार घंटी बजाते हैं। कहा जाता है कि साधना करने के लिए 108 गुण हैं और बचने के लिए 108 दोष हैं।
चीनी: चीनी बौद्ध और ताओवादी 108 मनके माला का उपयोग करते हैं, जिसे सू-चू कहा जाता है, और इसमें तीन विभाजित मोती होते हैं, इसलिए माला को 36 में से तीन भागों में विभाजित किया जाता है। चीनी ज्योतिष शास्त्र कहता है कि 108 पवित्र तारे हैं।
आत्मा के चरण: कहा कि आत्मान, मानव आत्मा या केंद्र यात्रा पर 108 चरणों से गुजरता है।
मेरु: यह एक बड़ा मनका है, 108 का हिस्सा नहीं है। यह अन्य मोतियों के अनुक्रम में बंधा नहीं है। यह क्विडिंग बीड है, जो माला की शुरुआत और अंत को चिह्नित करता है।
नृत्य: भारतीय परंपराओं में नृत्य के 108 रूप हैं।
प्रशंसनीय आत्माएं: प्रशंसनीय आत्माओं के 108 गुण हैं।
अंतरिक्ष में पहला आदमी: पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान 108 मिनट तक चली, और 12 अप्रैल, 1961 को सोवियत कॉस्मोनॉट, यूरी गगारिन द्वारा किया गया था।
जप के मुख्यतः चार प्रकार हैं−
पहला वैखरी, दूसरा उपांशु, तीसरा पश्यंती और चौथा परा। किसी भी पुरश्चरण के लिए मानसिक जप की आवश्यकता रहती है। कोइ भी मंत्र एकदम मानसिक रीति से नहीं जपा जा सकता। इसके लिए आरंभ में उस मंत्र को वैखरी से ही जपना चाहिए।
वैखरी जप का अर्थ है− जोर से बोला जाने वाला मंत्र। वैखरी जप का संबंध मानव के जड़ शरीर से है जबकि उपांशु जप का संबंध मानव के वासना शरीर से है। पश्यंती यानी जुबान न हिलाते हुए किए जाने वाले जप का संबंध मानव के मन से होता है।
भाैतिक सुखाें जैसे− द्रव्य प्राप्ति, संतान प्राप्ति, परिवार शांति आदि के लिए माला अंगूठे पर रखकर मध्यमा उंगली से फेरने का विधान है जबकि मोक्ष हेतु अनामिका उंगली से और बैर− क्लेश आदि के नाश के लिए तर्जनी उंगली से माला फेरना उचित है। माला को सदैव दाहिने हाथ के अंगूठे पर रख हृदय के पास स्पर्श करते हुए फेरना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि माला के मणियों को फिराते समय उनके नख न लगें और सुमेरु का उल्लंघन न हो, अन्यथा लाभ कम होता है। इसके अतिरिक्त ये भी नियम है कि माला साफ, समान व पूरे 108 मणियों तथा सुंदर सुमेरु वाली हो। शुभ कार्यों के लिए सफेद माला एवं कष्ट निवारण के लिए लाल माला का प्रयोग प्रायः किया जाता है।
नित्य जप के लिए 27, 54 या 108 मणियों की जपमाला का प्रयोग किया जाता है। जिन लोगों को सहस्त्र बार महापुरश्चरण करना हो, वे 25, 50 या 100 मणियों की जपमाला का उपयोग करें।
मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए हम प्रभु की पूजा या मंत्र जाप करते हैं। परंतु यही मंत्र जाप या पूजा हम बिना आसन के करते हैं तो इसका हमें संपूर्ण फायदा नहीं मिलता। क्योंकि जब हम पूजा करते हैं या मंत्र जाप करते हैं तो उस समय हमें ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
यही पूजा अगर हम बिना आसन के करते हैं तो हमारी ऊर्जा धरती में चली जाती है।इस तरह से हमें पूजा या मंत्र जाप का फायदा नहीं मिलता। अगर हम आसन पर बैठकर पूजा करते हैं तो हमारी उर्जा धरती में ना जाकर हमें मिलती है।
इसीलिए हमें हमेशा पूजा आसन बिछाकर या कोई गरम कपड़ा बिछाकर ही ठीक करनी चाहिए।
बिना आसन पर बैठकर पूजा करना यानी खाली भूमि पर बैठकर पूजा-पाठ जप करने से दरिद्रता आती है। एक खास बात यह है कि जब भी पूजा करते हैं या कोई जाप करते हैं तो भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होता है और इस सकारात्मक ऊर्जा का संचय करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसलिए आसन का महत्व बहुत अधिक होता है।.
आसान शुद्ध और सकारात्मक होते हुए, सकारात्मक ऊर्जा के लॉस होने से बचाता है। वहीं शास्त्रों में भी यह बताया गया है कि पूजन के दौरान किस प्रकार के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है कि पूजन के लिए रेशम, कंबल, काष्ठ और तालपत्र के आसन का प्रयोग शुभ कार्यों के लिए करना चाहिए। आसन के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के आसन बताए गये हैं। जिसमें से कई प्रकार के आसन तो वर्तमान परिपेक्ष में हम लोग नहीं उपयोग कर सकते हैं। पशुओं की चर्म के आसनों का प्रयोग करना अब संभव नहीं है।
ब्रह्मांड पुराण में आसनों का विशेष उल्लेख विस्तारपूर्वक मिलता है। जिस आसन पर कोई साधक साधना कर चुका है साधना के लिए पुनः उसी आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसलिए दर्शकों ध्यान रखिए घर में सभी के आसन अलग होने चाहिए। दूसरे के आसन का प्रयोग करने में दोष होता है। जो नए साधक हैं उनके लिए शुभ और मंगल नहीं होता है। इसलिए साधना के लिए साधक को सदैव नवीन आसन पर ही बैठ कर पूजा पाठ करनी चाहिए।
वैसे प्रावधान तो यह है कि मंत्रों द्वारा आसन को पवित्र एवं शुद्ध किया जाता है। जब भी पूजा करने जाएं तो जब अपना आसन उठाकर उसको अपने शीश पर लगाएं,, प्रणाम करें, और यथास्थान पर रख दें।
कौन सा आसन प्रयोग करें -
- कुशा का आसन - जो व्यक्ति कुशा के आसन पर बैठकर मंत्र, जप पूजा करते हैं उन्हें शुचिता, स्वास्थ्य, तन्मयता और स्वास्थ्य मैं सदैव वृद्धि होती है, उसे अंनत फल की प्राप्ति होती है।
- यह ऊर्जा के लॉस को बचाता है। कुशा का संबंध केतु से हैं और केतु दो चीजों के बीच में विरक्ति पैदा करता है। केतु देव तुल है मोक्षकारक है।
-कार्य सिद्ध की पूर्ण लालसा के लिए किए जाने वाले जप कंबल के आसन में बैठकर करना, सर्वोच्च लाभदायक होता है।
न्यास अर्थात स्थापना … का अर्थ है इष्ट को उचित विधि द्वारा योग्य आसन प्रदान कर पूजा स्थल अथवा साधना स्थल पर स्थापित करना … मुख्यतः सभी पूजन एवं मंत्र तंत्र साधना विधियो में
आत्म शुद्धि
स्थान शुद्धि
आवाहन
दैव शुद्धि
न्यास
पूजन
भजन
ध्यान अथवा जप ध्यान
पुनः पूजन
क्षमा प्रार्थना
अन में विसर्जन किया जाता है …
पूजन अथवा जाप अथवा तंत्र साधना सभी मे न्यास की भिन्न भिन्न विधिया है …
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