क्या आप ॐ के जप की विधि बता सकते हैं?
ॐ जप यज्ञ के संबंध में कुछ आवश्यक जानकारियां नीचे दी जारही हैं:- ओम अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है, हमें कभी भी ॐ अकेला नहीं जपना चाहिये, यह प्रतिकूल प्रभाव डालता है, आपको (हरिओम) या (ॐनमः शिवाय) या ॐ गायत्री मंत्र का जप करना उत्तम कल्याणकारी सिद्ध होगा…।
1.—जप के लिए प्रातःकाल एवं ब्राह्म मुहूर्त काल सर्वोत्तम है। दो घण्टे रात रहे से सूर्योदय तक ब्राह्म मुहूर्त कहलाता है। सूर्योदय से दो घण्टे दिन चढ़े तक
प्रातः काल होता है। प्रातःकाल से भी ब्राह्म मुहूर्त अधिक श्रेष्ठ है।
2—जप के लिए पवित्र एकान्त स्थान चुनना चाहिए मन्दिर, तीर्थ, बगीचा, जलाशय आदि एकान्त के शुद्ध स्थान जप के लिए अधिक उपयुक्त हैं। घर में
जप करना हो तो भी ऐसी जगह चुननी चाहिए जहां अधिक खटपट न होती हो।
3—संध्या को जप करना हो तो सूर्य अस्त से एक घण्टा उपरान्त तक जप समाप्त कर लेना चाहिए। प्रातःकाल के दो घण्टे और सायंकाल का एक घण्टा
इन तीन घण्टों को छोड़कर रात्रि के अन्य भागों में ॐ /गायत्री मंत्र नहीं जपा जाता।
4—जप के लिये शुद्ध शरीर और शुद्ध वस्त्रों से बैठना चाहिए। साधारणतः स्नान द्वारा ही शरीर की शुद्धि होती है पर किसी विवशता, ऋतु प्रतिकूलता या
अस्वस्थता की दशा में हाथ मुंह धोकर या गीले कपड़े से शरीर पोंछ कर भी काम चलाया जा सकता है। नित्य धुले वस्त्रों की व्यवस्था न हो सके तो
रेशमी या ऊनी वस्त्रों से काम लेना चाहिए।
5—जप के लिए बिना बिछाये न बैठना चाहिए। कुश का आसन, चटाई आदि घास के बने आसन अधिक उपयुक्त हैं। पशुओं के चमड़े, मृगछाला आदि
आजकल उनकी हिंसा से ही प्राप्त होते हैं इसलिये वे निषिद्ध हैं।
6—पद्मासन से, पालती मारकर, मेरुदंड को सीधा रखते हुए जप के लिए बैठना चाहिए। मुंह प्रातःकाल पूर्व की ओर और सांयकाल पश्चिम की ओर रहे।
7—माला तुलसी की या चंदन की लेनी चाहिये। कम से कम एक माला नित्य जपनी चाहिए। माला पर जहां बहुत आदमियों की दृष्टि पड़ती हो वहां हाथ
को कपड़े से या गौमुखी से ढक लेना चाहिये।
8—माला जपते समय सुमेरु (माला के प्रारम्भ का सबसे बड़ा केन्द्रीय दाना) को उल्लंघन न करना चाहिये। एक माला पूरी करके उसे मस्तक तथा नेत्रों
से लगाकर पीछे की तरफ उलटा ही वापिस कर लेना चाहिये। इस प्रकार माला पूरी होने पर हर बार उलट कर ही नया आरम्भ करना चाहिये।
9—लम्बे सफर में, स्वयं रोगी हो जाने पर, किसी रोगी की सेवा में संलग्न रहने पर, जनन मृत्यु का सूतक लग जाने पर, स्नान आदि पवित्रताओं की
सुविधा नहीं रहती। ऐसी दशा में मानसिक जप चालू रखना चाहिये। मानसिक जप बिस्तर पर पड़े-पड़े, रास्ता चलते या किसी भी पवित्र अपवित्र दशा
में किया जा सकता है।
10—जप इस प्रकार करना चाहिये कि कंठ से ध्वनि होती रहे, होठ हिलते रहें परन्तु समीप बैठा हुआ मनुष्य भी स्पष्ट रूप से मंत्र को सुन न सके। मल
मूत्र त्याग या किसी अनिवार्य कार्य के लिए साधना के बीच में ही उठना पड़े तो शुद्ध जल से साफ होकर तब दुबारा बैठना चाहिये। जप काल में यथा
संभव मौन रहना उचित है। कोई बात कहना आवश्यक हो तो इशारे से कह देनी चाहिये।
12—जप नियत समय पर, नियत संख्या में, नियत स्थान पर, शान्त चित्त एवं एकाग्र मन से करना चाहिये। पास में जलाशय या जल से भरा पात्र होना
चाहिये। आचमन के पश्चात् जप आरम्भ करना चाहिये। किसी दिन अनिवार्य कारण से जप स्थगित करना पड़े तो दूसरे दिन प्रायश्चित्य स्वरूप एक
माला अधिक जपनी चाहिये।
13—जप के लिए ॐ/गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है। गुरु द्वारा ग्रहण किया हुआ मंत्र ही सफल होता है। स्वेच्छा पूर्वक मन चाही विधि से, मन चाहा मंत्र, जपने से
विशेष लाभ नहीं होता। इसलिए अपनी स्थिति के अनुकूल आवश्यक विधान किसी अनुभवी पथ प्रदर्शक से मालूम कर लेना चाहिए।
उपरोक्त नियमों के आधार पर किया हुआ ॐ जप मन को वश में करने एवं मनोमय कोष को सुविकसित करने में बड़ा ही महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।
Comments
Post a Comment