माँ आदिशक्ति का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
#माँ आदिशक्ति का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
यह ब्रह्मांड रहस्यमय से ऊर्जामय है हम सभी के भीतर भी ऊर्जा है और हमारा जीवन उसी ऊर्जा से संचालित है, लेकिन सब लोग इस ऊर्जा व्यक्तिगत शक्ति में नहीं बदल पाते। कहाँ खर्च हो जाती है ये ऊर्जा? और क्या उपाय है इसे शक्ति में बदलने का?
इस पर विचार विवेचन से पूर्व हमें जानना होगा कि शक्ति और ऊर्जा की मौलिक तत्व और उसकी परिभाषा
आधुनिक विज्ञान दृष्टि सर्वमान्य परिभाषा यह है कि
जब ऊर्जा कोई कार्य करती है तब वह #शक्ति कहलाती है।
जब तक वह कार्य में संलग्न नहीं है तब तक उसका नाम ऊर्जा है।
विज्ञान सूत्र रूप में कह तो यह है
#शक्ति =ऊर्जा या कार्य / समय
P= W/T
ऊर्जा कार्य सम्पन्न होने में लगे समय पर निर्भर करती है, जबकि शक्ति समय पर निर्भर करती है। किसी कार्य को संपन्न होने में जितना कम समय लगता है, शक्ति उतनी ही अधिक होती
अगर आप गौर से पृथ्वी और प्रकृति के ऊपर नजर दौड़ाएंगे तो , आपको पता चलेगा की हर एक प्रक्रिया के होने के पीछे ऊर्जा की कोई न कोई एक रूप अवश्य ही निहित होता हैं | इसलिए आपको अपने आसपास ऊर्जा के कई सारे भेद (types of energy) देखने को मिलेंगे |
मूल रूप से भौतिक विज्ञान में ऊर्जा को स्थितज ऊर्जा और गतिज दो प्रकारों के अंदर बांटा गया हैं , परंतु आपको इसके कई सारे रूप देखने को मिलेंगे |
प्रकाश ऊर्जा, #यांत्रिक ऊर्जा, #गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, रसायनिक ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा।
याद रखिये गति ऊर्जा का रूप नहीं है । जबकि गति के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती है ।
शक्ति ही, सञ्चालन, निर्माण तथा विध्वंस का प्रतीक हैं, शक्ति या बल के अभाव में स्थिति शून्य ही रहेगी। आद्या शक्ति ही वह बल या कहे तो प्रेरणा का श्रोत हैं, जिनसे इस चराचर जगत के सुचारु सञ्चालन का कार्य पूर्ण होता हैं। सूर्य से प्रकाश, हवा का वहन, बादल द्वारा जल वर्षा, प्रकृति में घटित होने वाली सभी जैविक तथा अ-जैविक क्रियाएं शक्ति के अभाव में अस्तित्व में नहीं रह सकती हैं।
प्रकृति में उपस्थित #energy, force, power, torque, friction, gravity, tension, magnetic field, nuclear force, electrostatic force, centripetal force etc.
बहुत सी अदृश्य शक्तियां होती हैं।
गुरुत्वाकर्षण शक्ति,दाब शक्ति,आकर्षण शक्ति,चुम्बकीय शक्ति,विद्युत शक्ति ये सब अदृश्य शक्तियां हैं।
अब उपर दी गई सारी शक्तियां अब विज्ञान द्वारा प्रमाणित और परिभाषित शक्तियों को वैज्ञानिक शक्तियो के तौर पर प्रचलित है आप जब चाहे तब जान- समझ और देख सकते है, अगर वो नही दिखती तो उसका अनुभव भी कर सकते है। और सबसे महत्वपूर्ण ये सारी शक्तियां प्रमाणित की जा सकती है।
जो चीज साबित की जा सकती है सिर्फ उसी को ही विज्ञान मानता है। आप विज्ञान के सारे नियमों को परीक्षण कीजिए वो हमेशा काम करेंगे और आपको वो दिखाई भी देंगे।
हां जिस को आप समझ रहे हैं वो भी है। पर उसको विज्ञान मान्यता नहीं देता। परंतु इंकार भी नही करता है ।विश्वविद्यालययों और संस्थानों मे मनोविज्ञान और पारलौकिक विज्ञान पर शोध जारी है, विज्ञान कहता है कि अभी हमारे पास वो यंत्र और तकनीकी विकसित नही कर पाएं जो सूक्ष्म शक्तियों को प्रमाणित कर सके इसका अर्थ यह कतई नही है कि यह होती नही है , अतीत में जिन्हें अदृश्य शक्ति माना जाता है ,आज उन्ही शाक्तियों को प्रयोग उपयोग से लाभान्वित है ,भविष्य में इसी प्रकार लाभान्वित अन्य वर्तमान में अज्ञात शक्तियों से होंगें।
मायारूपी प्रकृति की भूमि में ईश्वर की अद्भुत और रहस्यमयी शक्तियां क्रियाशील हैं। भिन्न भिन्न देवता उन्हीं शक्तियों के प्रतीकमात्र हैं। यदि यह कहा जाय कि एक ही मूल शक्ति भिन्न भिन्न भावों और रूपों में क्रियाशील है तो
अतिशयोक्ति न होगी। उन विभिन्न शक्तियों से संपर्क
स्थापित कर उनसे भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में प्रचुर सहायता लेकर उसे स्वस्थ, समृद्ध और सुख-साधन संपन्न बनाने का एकमात्र माध्यम मन्त्र-यंत्र-तंत्र की सहायता से प्रकट होता है इसमें कोई सन्देह नहीं है।
अगोचर जगत में रात-दिन क्रियाशील शक्ति के प्रतीक देवताओं की अपनी सीमा और कार्य-सम्पादन क्षेत्र है। ये अपनी सीमा के प्रवर्तक और अधिष्ठाता हैं। जिस प्रकार रेडियो स्टेशन से ध्वनि तरंगें और दूरदर्शन केंद्रों से ध्वनि और प्रकाश तरंगें बिना यंत्रों के प्रकट नहीं होतीं, उसी प्रकार से दैवीय जगत की क्रियाशील शक्तियां भी हमारे चारों ओर बिखरी हुई हैं
जिनका प्राकट्य उपासना तथा विविधि साधनाओं के
माध्यम से साधक के स्थूल शरीर में या इष्ट प्रतिमा में होता है।
उपरोक्त भूमिका स्वरूप संक्षिप्त बातें तो हुई शक्ति और ऊर्जा के विज्ञान गणितीय प्रतिपादन, दर्शन, विज्ञान दृष्टिकोण से , अब मानस आध्यत्म दर्शन और मनोविज्ञान से.......जिन्हें जान समझ कर प्रयोग में लाकर दैहिक ,दैविक, भौतिक अधिकतम लाभ प्राप्त करने के संदर्भ में,
क्यों इनकी आराधना ,साधना, उपासना महत्वपूर्ण और आवश्यक है
सर्वप्रथम एवं आदि शक्ति 'आद्या शक्ति काली'
यहाँ हम टर्मिनोलॉजी का अतिक्रमण कर शक्ति और ऊर्जा को एक दूसरे के पूरक ,समानार्थी रख रहे है यह आगे स्पष्ट हो जाएगा ,ऐसा क्यों कहा
ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति से पूर्व घोर अंधकार से उत्पन्न होने वाली महा शक्ति या कहे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली शक्ति, 'आद्या या आदि शक्ति' (initial power/energy) के नाम से जानी जाती हैं। अंधकार से जन्मा होने के कारण वह #'काली' (डार्क मैटर /डार्क एनर्जी )नाम से विख्यात हैं। विभिन्न कार्य के अनुरूप इन्हीं देवी ने नाना गुणात्मक रूप धारण किये हैं, सर्वप्रथम शक्ति होने के परिणामस्वरूप इन्हें आद्या शक्ति के नाम से जाना जाता हैं।
एक समय चारों ओर केवल अन्धकार था, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, ग्रह इत्यादि विहीन थे। ना तो दिन और रात का विभाजन था, न ही अग्नि का कोई रूप था, न ही कोई दिशाएं थीं, उस समय यह समस्त जगत शब्द, स्पर्श आदि इन्द्रिय विषयों से रहित था। उस समय केवल उस ब्रह्म की सत्ता थी, जिसे वेद शास्त्र ‘सत् एवं एकमात्र’ रूप में प्रतिपादित करते हैं। उस समय केवल सत् चित् आनंद विग्रह वाली, शुद्ध ज्ञान रूप, नित्य भगवती “प्रकृति” ही विद्यमान थीं, जिसका कोई विभाजन नहीं था। वह प्रकृति सर्वत्र व्याप्त थीं तथा विघ्न-बाधा आदि उपद्रवों से रहित तथा नित्यानंद स्वरूप एवं सूक्ष्म थीं।
यह समस्त प्राणी जिनमें अंतर्भुक्त हैं और यह चराचर समग्र जगत जिनसे प्रवृत्त हैं जिस तत्त्व से पालित हैं, अवभाषित होता ,जिसका #योगी एकांत में ध्यान करते हैं जिनका भक्तजन एकांत में साधना करने में जिनका साक्षात्कार पाते हैं। विद्वान जन जिन्हें #परम-तत्त्व कहते हैं, , वह तत्त्व एकमात्र स्वयं आदि शक्ति है
विश्व के सृष्टि, पालन तथा संहार, तीनों विशिष्ट कार्यों में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, अपने-अपने स्वभाव अनुसार, आदि शक्ति की इच्छा से ही व्याप्त हैं
वे भगवती देवी वस्तुतः रुप रहित हैं, परन्तु नाना प्रकार के लीला करने हेतु वे नाना देह धारण करती हैं।
इन भगवती प्रकृति भगवती देवी स्वयं ही माया, विद्या और पारा नाम से त्रिधा में विभक्त हो गई। उनमें से #माया’ जगत के प्राणियों को विमुग्ध कर इस संसार के सञ्चालन का कारण बनी। समस्त देहधारियों के देह में प्राण रूप से संचालित (परिस्पंदन) करने वाली ‘परा’ शक्ति कहलाई, तथा तत्त्व ज्ञान वाहिनी शक्ति ‘विद्या’ कहलाई।
त्रिगुणात्मक प्रकृति, शक्ति या बल, "सात्विक (सत्व), राजसिक (रजो) तथा तामसिक (तमो)" तीन श्रेणियों में विभाजित हैं। हिन्दू वैदिक दर्शन के अनुसार संसार के प्रत्येक जीवित और निर्जीव तत्त्व, की उत्पत्ति या जन्म इन्हीं गुणों के अधीन हैं। ब्रह्मांड के सुचारु संचालन हेतु, यह तीन प्राकृतिक बल या गुण अत्यंत अनिवार्य तथा आवश्यक हैं, इनके बिना ब्रह्मांड का सञ्चालन संभव नहीं हैं। निर्माण, पालन और विनाश के बिना संभव नहीं है,
उदाहरण स्वरूप, आद्या शक्ति, जिन्होंने समस्त जीवित तथा अजीवित तत्व का प्रत्यक्ष (पदार्थ की तीन अवस्था) तथा अप्रत्यक्ष रूप से निरूपण किया हैं, वे भी इन्हीं तीनों गुणों के अधीन त्रि शक्ति के भिन्न-भिन्न रूपों में अवतरित हुई। आद्या शक्ति, एक होते हुए भी, लोक कल्याण के अनुरूप, भिन्न-भिन्न रूपों में अवतरित हो, ज्ञान, बल तथा क्रिया रूपी शक्तियों से अवतरित होकर महा-काली, महा-लक्ष्मी तथा महा-सरस्वतीरूप धारण करती हैं।
परिणाम स्वरूप देवी त्रि-शक्ति, नव-दुर्गा, दस #महाविद्या तथा ऐसे अन्य अनेक अवतारी नामों से पूजिता हैं।
महा-काली, #पार्वती, दुर्गा, सती तथा अनगिनत सहचरियों के रूप में, वे ही तामसिक शक्ति हैं, महा सरस्वती, सावित्री, गायत्री इत्यादि के रूप में वे ही राजसिक शक्ति हैं, महा लक्ष्मी, कमला इत्यादि के रूप में वे ही सात्विक शक्ति हैं। साथ ही इन देवियों के भैरव क्रमशः भगवान शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु, क्रमशः सात्विक, राजसिक, तामसिक बल से सम्बंधित हैं।
जिस प्रकार मकड़ी का जाल मकड़ी से उत्पन्न होकर मकड़ी के साथ रहता है, मकड़ी से भिन्न स्थानों पर रहता है, मकड़ी में ही उसका लय होता है । उसी प्रकार अक्षर रूप कारण से विश्वरूप जगत् का प्रादुर्भाव और तिरोभाव होता है।
इस चराचर जगत के समस्त जीवों का जन्म, स्वभाव तथा प्रकार इन तीनों गुणों से अंतर्गत प्रतिपादित होता हैं।
संसार के समस्त जीवित तथा अजीवित तत्वों में इन्हीं आद्या शक्ति का अंश व्याप्त होना।
देवी आद्या शक्ति, नाना स्वरूपों में अवतरित हो, संपूर्ण ब्रह्माण्ड के समस्त तत्वों में विद्यमान हैं।
देवी स्वयं कहती है - #विद्या अहम #अविद्या अहम ।
#शास्त्रों में शक्ति का प्रायः #माया के नाम से अविद्या के रूप में ही अधिक वर्णन मिलता है ।
माया का अर्थ है मा (नही ) या (जो ) ,अर्थात जो नही है , अर्थात जो नही है उसे भी भासित कर देने वाली शक्ति माया है ।
ईश्वर जगत का उपादान कारण है ,
उपादान कारण वह कारण है जिसमें समवाय संबंध से रहकर कार्य उत्पन्न होता है। अर्थात् वह वस्तु जो कार्य के शरीर का निर्माण करती है, उपादान कहलती है।
मिट्टी की कार्योत्पादिनी शक्ति (स्नेहक शक्ति , कम्पाउंडिंग प्रापर्टी ) मिट्टी को घट का स्वरूप दे देती है ।
ईश्वर जगत का उपादान कारण है , जैसे मिट्टी घट का उपादान कारण है ।
मिट्टी की कार्योत्पादिनी शक्ति (स्नेहक शक्ति , कम्पाउंडिंग प्रापर्टी ) मिट्टी को घट का स्वरूप दे देती है । इसी प्रकार ईश्वर की कार्योत्पादक शक्ति (मूल प्रकृति ) ईश्वर को जगत का रूप दे देती है ।
अन्य उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं - सोना गहने का उपादान कारण है । जब सोने का गहना बनाया जाता है तो वह उस गहने में स्वरूपतः विद्यमान होता है और गहने की परिसमाप्ति पर भी वह अपने मूल स्वरूप को खो नहीं देता । वहीं सुनार गहना निर्माण प्रक्रिया का निमित्त कारण है । उसके क्रिया से ही गहना निर्मित होता है । वह सोने की गहना बनने की छिपी हुई शक्ति को प्रकट करता है । गहना बन चुकने के बाद उसकी कारणता भी समाप्त हो जाती है ।
किन्तु स्वर्ण का ही स्वरूप गहना और मिट्टी का घट होने पर भी हमारी दृष्टि गहने में स्वर्ण और घट में मिट्टी का दर्शन नही कर पाती वैसे ही ईश्वर का ही स्वरूप जगत होने पर भी हमारी दृष्टि जगत में ईश्वर का दर्शन नही कर पाती यही माया अथवा अविद्या है ।
इन सबके लिए चाहिए सुनार और कुम्हार जैसी दृष्टि और विवेक जिससे वह आभूषणो में स्वर्ण देखता है , और कुम्हार उपयुक्त मिट्टी ,
ये दृष्टि और विवेक ,कौशल सब उनकी निरंतर विधि पूर्वक की गई साधना (अभ्यास) का प्रतिफल स्वरूप है,
जब कोई जादूगर #कौतुक विद्या से रस्सी को साँप बना कर दर्शकों को दिखाता है तब वह दर्शकों के लिए तो अविद्या है किंतु स्वयं जादूगर के लिए तो विद्या है ।
इसी प्रकार जब ईश्वर प्रकृति की सहायता से जब स्वयं को जगत के रूप में प्रदर्शित करता है तब प्रकृति हमे भ्रम में डाल कर हमारे लिए तो अविद्या होती है किंतु स्वयं ईश्वर के लिए तो विद्या ही है । वैसे भी मां शक्ति के पास अविद्या का क्या काम ?
जो दर्शक #जादूगर के रस्सी को साँप बनाने के रहस्य को जान लेते है उनके लिए भी जादूगर की ट्रिक विद्या हो जाती है ।
जब कोई तत्वज्ञ जगत को माँ शक्ति के रूप में समझ लेता है तब यही अविद्या उसके लिए भी विद्या बन जाती है , जिसे वेद , उपनिषद ब्रम्ह-विद्या कहते है ।
एक व्यक्ति की कोई महत्वपूर्ण शक्ति नहीं होती है जब तक कि यह समझ नहीं पैदा होती कि समष्टि ही शक्ति है. जैसे कुएँ के जल का कोई निजी स्रोत नहीं होता. कुआँ गहराई में भूमि जल से कहीं जुड़ा होने से सदा जल वाला होता है, अपनी सीमाओं से नहीं. यद्यपि लोग कुएँ की रुपरेखा और बाह्य आकार के कारण उसके पास आते हैं, पर कुएँ की मुख्य वस्तु जल है. उसी तरह मानव चेतना की शक्ति सम्पूर्ण समष्टि ही है, आदि शक्ति ही समिष्ट का स्रोत्र है । इस सत्य का हृदय की गहराई से अनुभव उसे शांति और आनंद से भर देता है.
समस्त जगत ब्रह्म से उद्भूत हैं और वह ब्रह्म भी शक्ति-स्वरूप हैं, सभी पर-ब्रह्म से भी ऊपर शक्ति की शक्ति हो मानते हैं।
वास्तविक ईश्वरत्व #शिव में नहीं, अपितु शक्ति में ही स्थित हैं। अतएव समस्त देवता भी शक्ति की विधि पूर्वक आराधना, साधना, उपासना करते
एक व्यक्ति को गहरे पानी से डर लगता है , इससे डर भय की मुक्ति के लिए वह तैरना सीखना चाहता है , अब वही व्यक्ति चाहे कि वह सिर्फ तैराकी की पुस्तक पढ़कर सफल तैराक बन जाये तो भला क्या यह सम्भव है, चूंकि तैराकी ज्ञानात्मक की स्थान पर क्रियात्मक प्रधान है ,इसलिए उसे एक मार्गदर्शक के मार्गदर्शन पानी में उतरना होगा और बताई विधि क्रियाकलाप का अनुसरण करना ही होगा , तब ही वह तैराक बन सकेगा और अपने भय से मुक्त हो सकेगा ,
हमारे जीवन को आसान बनाने के लिये हमारे तंत्र में चीजों को बुद्धिमता पूर्वक को लाया जाये, संवर्धन और संरक्षण किया जाये।
हमें ऐसी कल्पना करने की ज़रूरत नहीं है कि ये सृष्टि ,#प्रकृति ,शक्ति कोई समस्या है जिसे आपको सुलझाना है। वह तो स्वयं एक समाधान वह तो अविद्या को मिटाने वाला विद्या रूपी उसका एक स्वरूप भी उसी का है ।ये सब में कोई समस्या नहीं है। ये एक जबर्दस्त अद्भुत घटना है...मार्ग है...समाधान है। बस आपको इनकी लहरों पर सवार होने का तौर तरीका सीखना है,आप चाहें तो इस पर सवारी कर सकते हैं या भँवर में फंस कर डूब सकते है। चुनना आपको है।
उपकरण/ साधन महत्वपूर्ण है पर आप उसको किस तरह इस्तेमाल करते हैं वो ज्यादा महत्वपूर्ण है।
आप किस तरह से इनका इस्तेमाल सीखते हैं ये आपका मामला है। आप इनको अपनी खुशहाली के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं,
#साधन का साध्य से बड़ा गहरा संबंध है। #साध्य है आवश्यकताओं की पूर्ति और साधन है शक्ति। चूँकि हम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सर्वदा प्रयत्नशील रहते है। अतः शक्ति की आवश्यकता भी निरन्तर बनी रहती है। साधन और साध्य के संबंधों की यह अनवरतता ही शक्ति को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बना देती है। इसका फल यह होता है कि हम केवल वर्तमान की सुनिश्चित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शक्ति का प्रयास मात्र ही नहीं करते वरन् भविष्य के गर्भ में निहित अनिश्चित , आवश्यकताओं के लिए शक्ति एकत्र करने का उद्यम भी करने लगते हैं। इस तरह शक्ति संचय स्वयं एक लक्ष्य बन जाता है ।
शक्ति–आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते रहना चाहिए
शक्ति साधना उद्देश्य भी मोक्ष है।
क्योंकि शक्ति स्त्रैण है स्त्री जन्मदात्री है।। ...तो निश्चित ही मृत्यु भी #स्त्री से ही आती होगी। क्योंकि जहां से जन्म आता है वहीं से मृत्यु भी वहीं से आती होगी। जहां से जन्म आया है, वहीं से जन्म खींचा भी जाएगा।तो जहां से वर्तुल शुरू हुआ है वहीं समाप्त होगा जिसके गर्भ से जन्म होता है तो निसंदेह मृत्यु का द्वार... कारण भी वही है.... #मोक्ष भी वही है क्योंकि जो मूल और अंतिम स्रोत्र है उसी में पैदा होना और विलीन भी उसी में हो जाना
इसलिए शक्ति का संचय करो, शक्ति की #उपासना करो, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो।
शक्ति से ही मोक्ष पाया जा सकता है। शक्ति नहीं है तो सिद्ध, बुद्धि और समृद्धि का कोई मतलब नहीं है।
सिद्धों ने शक्ति साधना की प्रक्रिया को इस तरह बनाया गया है कि कम से कम प्रयास और में ज्यादा से ज्यादा परिणाम मिलें। चीज़ ये होगी कि आप उसको अपने से जोड़ लें, मिला लें, अपने में शामिल कर लें।
अगर गुरु शक्ति की कृपा से शक्ति का कर्म और मर्म,हस्तगत करने की विधि विधान, जान समझ जाएं ,समर्थ #सिद्ध गुरु की सहायता मार्गदर्शन से जीवन में आदि शक्ति का बीज पड़ जाए ...उनकी छाप आपके हृदय में पड़ जाये, बस जाये तो फिर आपको हर - जीत की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, न ही संपन्नता-गरीबी की! और तो और, जीवन-मरण की भी नहीं! जो भी दिव्यता की गोद में पहुँच जाता है, उसके लिये ये सब चीजें मामूली हो जाती हैं, उनसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
मेरी शुभकामना है कि ये प्रक्रिया आपको पूरी तरह अभिभूत कर दे।माँ आदि शक्ति की कृपा से हम अभिसिंचित और परिपूरित हो जायें
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
#यक्ष
#कुलांत #कौलान्तक #IKSVP #महाविद्या
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