महत्वपूर्ण है गोधूलि बेला
महत्वपूर्ण है गोधूलि बेला
विवाह मुहूतों में क्रूर ग्रह, युति, वेध, मृत्युवाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर भी यदि विवाह का शुद्ध लग्न न निकलता हो तो गोधूलि लग्न में विवाह संस्कार सम्पन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है।
जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात् सूर्यास्त होने वाला हो) गाय आदि पशु अपने घरों को लौट रहे हों और उनके खुरों से उड़ी धूल उड़कर आकाश में छा रही हो, तो उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है।
इसे विवाहादि मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। इस लग्न में लग्न संबंधी दोषों को नष्ट करने की शक्ति है। आचार्य नारद के अनुसार, सूर्योदय से सप्तम लग्न गोधूलि लग्न कहलाती है। पीयूषधारा के अनुसार, सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि कहलाता है।
चार का चक्कर
• चार वस्तुएं जाकर फिर कभी नहीं लौटती : मुंह सेनिकली बात, कमान से निकला तीर, बीती हुई आयु और दूर हुआ अज्ञान ।
• चार बातों को सदैव स्मरण रखो : दूसरे के द्वारा किया गया उपकार, अपने द्वारा दूसरे पर किया गया उपकार, मृत्यु और सर्वशक्तिमान प्रभु को ।
• चार वस्तुएं मनुष्य को भाग्य से ही प्राप्त होती हैं: भगवान को स्मरण रखने की इच्छा, संतों की संगति, चरित्र की पवित्रता और उदारता ।
• चार वस्तुओं पर भरोसा रखो : सत्य, पुरुषार्थ, भगवान और स्वार्थहीन मित्र पर।
• चार बातों को सदैव स्मरण रखो : बड़ों का सम्मान करना, छोटों की रक्षा करना, स्रह करना, बुद्धिमानों से परामर्श लेना और मूखों के साथ कभी न लड़ना।
• चार वस्तुएं दुर्बल दिखती हैं परन्तु बाद में दुख का कारण बनती हैं : अग्नि, राग, ऋण और पाप।
• चार वस्तुओं का सदा सेवन करना चाहिए : सत्संग, संतोष, दान और दया।
• चार वस्तुओं पर भरोसा कभी नहीं रखो : बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और व्यवसायी ज्योतिषियों की की भविष्यवाणी।
चार गुण दुर्लभ हैं : धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में अभिमान रहित रहना।
सिद्धियों का खजाना है सिद्धिविनायक पूजन
श्री गणेश पूजन की विधि सर्वविदित है, परंतु इसमें विशेष हवन-सामग्री प्रयोग करने से विभिन्न प्रकार की सिद्धियां मिलती हैं। सिद्धिविनायक पूजन में कंकू, हल्दी, सिंदूर, अक्षत, दूर्वा, अर्क- पुष्प, कमल, गुलाब, गेंदा-पुष्प तथा नैवेद्य में लड्डू, गन्ना, मोदक, क्षीर आदि ग्राह्य हैं।
उल्लेखनीय है कि श्री गणेश जी के पूजन से साधक को सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। गणेश जी शत्रु स्तंभन तथा वशीकरण के लिए प्रशस्त माने गए हैं और गणपति की साधना विशेष सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो गुरुमुख जन्य हैं।
(1) गुड़ की अंगुष्ठ के प्रथम पर्व के बराबर की 'प्रतिमा बनाकर गणेश जी का पूजन करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
(2) नीम की लकड़ी के गणेश का पूजन करने से शत्रु शांति तथा वशीकरण सिद्धि होती है।
(3) श्री गणेश जी की अर्क काष्ठ की प्रतिमा का पूजन साधक को सभी तरह के ऐश्वर्य प्रदान करता है।
(4) पारद गणेश सर्वसिद्धि देने में समर्थ हैं।
धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए
हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें।
सामग्री : १. काले तिल, २. जौं, ३. चावल, ४. गाय का घी, ५. चंदन पाउडर, ६. गूगल, ७. गुड़, ८. देशी कर्पूर, गौ चंदन या कण्डा।
विधिः गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की १-१ आहुति दें।
आहुति मंत्र
१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः
२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः
३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः
४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः
५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः
'सच्चे आभूषण'
* मस्तक में तीन आभूषण सबसे बढ़कर हैं- विनय यानी सबको मस्तक नवाना, निष्काम भाव और सबमें समता ।
* कानों में कुंडल या कर्णफूल हैं अपनी निंदा सुनने की सहनशक्ति । अपनी निंदा और दूसरों की प्रशंसा तथा प्रभु की प्रशंसा सुनकर जो प्रसन्नता होती है और अपनी स्तुति सुनकर जो संकोच करता है, यह कानों का आभूषण है।
* मुख का आभूषण है दांतों में सोने की चुप लगाना। फिर यह प्रिय, सत्य और हितकर मधुर वचनों का बोलना है।
* गले में आभूषण है कंठा। प्रभु के प्रभाव, प्रेम व रहस्य की बातें कंठस्थ होना कंठ के आभूषण हैं।
* चंद्रहार, जो हृदय का गहना है, वह है प्रभु को अपने हृदय में बसा लेना।
* हाथों का आभूषण कंगन है। अपने सत्व का पर के लिए त्याग, दान, सेवा, उपकार आदि हाथों के आभूषण हैं।
* किसी महापुरुष के दर्शन, सत्संग के लिए गमन करना और मंदिरों में प्रभु के विग्रह के दर्शन के लिए जाना पैरों के आभूषण हैं।
* उपरोक्त आभूषणों को जो प्रेम से धारण करता है उस पर प्रभु एकदम मुग्ध हो जाते हैं।
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