समृद्धि की प्रतीक गाय
समृद्धि की प्रतीक गाय
गाय-बैल के गोबर से निर्मित कंडे-उपले ईंधन के काम आते हैं। वर्तमान में गोबर संयंत्र भी संचालित किए जा रहे हैं जिससे रसोई गैस और विद्युत की भी बचत होती है। स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी गौ मूत्र के सेवन से उदर विकारों में राहत मिलती है। इससे अनेक रोगों से छुटकारा मिल जाता है। हमारी सनातन संस्कृति में गाय को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। उसे जन्मदात्री मां से भी उच्च माना जाता है। हमें जन्म देने वाली माता तो शिशु अवस्था में सीमित समय तक दुग्धपान कराती है परन्तु गौ माता हमें जीवन भर अमृत तुल्य दुग्ध पान कराती है जिससे हम बलिष्ठ बनते हैं एवं जीवन भर निरोग रहते हैं। कहा भी गया है 'मातरः सर्वभूतानां गावः सर्व सुख प्रदाः। इस वसुंधरा पर कामधेनु रूपा सभी सुखों को देने वाली गौ माता ही है इसलिए पुरातन काल से प्रत्येक गृहस्थ एवं आश्रम वासी ऋषि मुनि गाय अवश्य पालते रहे हैं। जमदग्रि मुनि के आश्रम में कामधेनु को देखकर ही सहस्त्रार्जुन का मन विचलित हो गया था और उसे बिना मुनि की आज्ञा के अपने साथ ले गया था।
बशिष्ठ मुनि के आश्रम में भी नंदिनी गाय थी, जो उनकी जीवनाधार थी। आज भी प्रायः प्रत्येक आश्रम में गौशालाओं में गायों का संरक्षण, संवर्धन किया जा रहा है।
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के विकास का गोपालन से गहरा संबंध रहा है। वेद, पुराण, शास्त्र, प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रंथों में भी गौ माता का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का आध्यात्मिक संबंध तो गायों के साथ ही रहा है। बचपन से ही वह ग्वाल बालों के संग गौ चराने का कार्य रुचिपूर्वक करते थे, भगवान का एक नाम गोपाल भी इसी कारण पड़ा। म
गोवर्धन पूजा प्रारंभ कराकर उन्होंने गौचर भूमि की उपयोगिता को भी दर्शाया। वह गायों से इतना स्नेह करते थे कि गाएं भी श्रीकृष्ण के वियोग में अश्रु बहाती और अनशन करती दिखती हैं। उन्होंने धेनुकासुर का वध करके उसके आतंक से गौचर बास भूमि को मुक्त कराकर गायों की रक्षा की थी।
देने भारतीय संस्कृति में गौ दान का बड़ा महत्व है। कन्यादान के बान साथ गौ दान भी किया जाता है। श्रीमद भागवत के समापन एवं बान त्रयोदशी संस्कार तथा पितृ तर्पण पर गौ दान का महत्व पुराणों में हते वर्णित है। कहते हैं कि अंत समय में गाय की पूंछ पकड़ कर बैतरणी पार की जाती है।
महाभारत के अनुशासन पर्व में महर्षि च्यवन ने राजा नहुष को गौ महिमा एवं गौ दान का महत्व बताया है। वेदों में गौ माता के रोम-रोम में देवताओं का निवास माना गया है। उसे ब्रह्मांड का स्वरूप बताते हुए कहा गया है-
त्वं माता सर्व देवानाम् त्वं च यज्ञस्य कारणम।
त्वं तीर्थं सर्व तीर्थन्तं नमस्तेऽस्तु सदानचे ॥
धर्म ग्रंथों में कहा है कि चारों फलों-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाली गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा, कंठ में विष्णु, मुख में रुद्र, मध्य में समस्त देवता, रोम-रोम में समस्त महर्षिगण, पूंछ में नाग, खुराग्रों में अष्ट पर्वत, मूत्र में गंगा आदि नदियां, दोनों नेत्रों में सूर्य-चंद्र और थनों में चारों वेद बसते हैं। जिस गृहस्थ के यहां गाय रहती है वहां तैंतीस कोटि देवताओं का वास रहता है। इसीलिए गौ सेवा को परम धर्म माना जाता है। हिंदू संस्कृति में गौ को माता माना जाता है एवं उसकी पूजा की जाती है। अतः उसकी रक्षा करना भी उसके पुत्रों का पुनीत कर्तव्य है।
सम्पूर्ण भारत में पूर्ण रूप से गौ हत्या बंद होनी चाहिए एवं गौ संरक्षण, संवर्धन पर कठोर, प्रभावशाली कदम उठाना चाहिए। तभी समृद्धि और श्रद्धा का प्रतीक गौ माता अपना अस्तित्व कायम कर सकेगी एवं हमारा गौ महिमा गान भी सार्थक होगा। कुछ गौ पालक गायों को इंजैक्शन लगा कर अधिक से अधिक दूध निकाल लेते हैं और बछड़े के लिए कुछ भी नहीं बचने देते तथा गायों को अयोग्य हो जाने पर उन्हें कसाई के हाथों बेच देते हैं जो सरासर अनुचित है। बहुतायत देसी गाएं
कुपोषण की शिकार हैं। शास्त्रानुसार जो गायों का शोषण करते हैं, वे पाप के भागी एवं अंत में नरकगामी होते हैं। समाजशास्त्रों, मनीषियों, चिंतकों का कथन है कि तीन 'ग' (गुरु, गंगा, गाय) की दशा पर ही समाज और राष्ट्र की प्रगति निर्भर है, परन्तु वर्तमान में तीनों की दशा दयनीय है।
समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक 'गौकरुणा निधि में गौवंश के महत्व का विस्तृत वर्णन किया है। प्राचीन गुरुकुलों में भी गाय और गुरु की सेवा के साथ- साथ शिक्षा दी जाती रही है। गाय सनातन काल से भारतीय मानव जीवन की जीवनाधार रही है परन्तु समय की धारा में यह सब तिरोहित सा होता जान पड़ता है।
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