तिरुपति बालाजी श्री वेंकटेश्वर देव स्थानम्

तिरुपति बालाजी श्री वेंकटेश्वर देव स्थानम्

तिहासिक मंदिर अपनी लोकप्रियता को शताबदियों से संजोए हैं।

आंध्र प्रदेश में सात पहाड़ों के ऊपर स्थापित भारत का सबसे धनी मंदिर तिरुपति बालाजी श्री वेंकटेश्वर देव स्थानम् के नाम से जाना जाता है जहां प्रतिदिन करोड़ों रुपए का चढ़ावा आता है। भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों से संबद्ध इस मंदिर की जानकारी निम्न अनुसार है :

तिरुपति बाला जी को भगवान विष्णु की मान्यता है। इन्हें प्रसन्न करने पर देवी लक्ष्मी की कृपा हमें स्वत: ही प्राप्त हो जाती है और जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

समाप्त कर दता ह। इसलिए यहा अपना सभा अपवित्र भावनाएं छोड़ जाने और पापों के रूप में अपने सिर के बाल कटाने के लिए श्रद्धालुओं की इतनी अधिकभीड़ होती है कि उसके लिए लंबी लाइन लगाकर स्त्री, पुरुष तथा बच्चे टिकट लेकर प्रवेश करते हैं। वहां कटे बालों के विशाल अम्बार को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि इनकी बिक्री द्वारा करोड़ों रुपए की राशि प्रतिवर्ष तिरुपति धर्मार्थ ट्रस्ट को प्राप्त होती है। सिर के बाल त्यागने पर भगवन विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रसन्न हों और सदैव उन पर धन-धान्य की कृपा बनी रहे इसी कामना से भक्तगण अपने बालों का मुंडन करवाते हैं।

तुलसी दल भक्तों को नहीं दिया जाता

भगवान विष्णु एवं श्री कृष्ण को तुलसी बहुत प्रिय है, इसीलिए उनकी पूजा-अर्चना में तुलसी के पत्ते का अति महत्व है। वैसे तो सभी मंदिरों में विग्रह पर चढ़ाया गया तुलसी पत्र बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को प्रदान किया जाता है परंतु यहां नित्य तुलसी पत्र चढ़ाया तो जाता है लेकिन उसे प्रसाद रूप में देने के स्थान पर पूजा के बाद मंदिर परिसर के कुएं में डाल दिया जाता है।

मूर्ति स्वयंमेव प्रकट हुई थी

मान्यता है कि मंदिर में स्थापित काले रंग की मूल मूर्ति है। वेंकटाचल पर्वत को भी लोग पवित्रता की मान्यता देते हैं। स्वयंमेव स्थापित मूर्ति की इसीलिए बहुत मान्यता है।

भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर क्यों कहते हैं

मेरू पर्वत के सप्त शिखरों पर निर्मित यह मंदिर भगवान शेषनाग का प्रतीक माना जाता है। इसे शेषांचल भी कहते हैं। पर्वत की सात चोटियां शेषनाग के फनों का प्रतीक कही जाती हैं। इस पर्वत की चोटियों शेषाद्रि, नीलाद्रि, गुरूडादि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है।


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