किन्नरों की कुलदेवी का मंदिर 'बहुचरा माता'
किन्नरों की कुलदेवी का मंदिर 'बहुचरा माता'
बहुचरा माता का प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के मेहसाणा जिले के बेचराजी नामक कस्बे में स्थित है। इसको बेचराजी माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर कई सदियों पहले बनाया गया था।
कैसे पड़ा बहुचरा नाम
माता को लोग 'मुर्गे वाली देवी के नाम से भी जानते हैं। मान्यताओं की मानें तो कई राक्षसों का एक साथ संहार करने के चलते माता को बहुचरा कहा जाता है। वहीं 'मुर्गे वाली देवी' के नाम के पीछे अलग कहानी बताई जाती है। स्थानीय लोग इस कहानी को अलाउद्दीन खिलजी के जमाने से जोड़कर बताते हैं। कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन जब पाटण जीतकर यहां पहुंचा तो उसके मन में मंदिर लूटने की इच्छा होने लगी। जैसे ही वह अपने सैनिकों के साथ मंदिर पर चढ़ाई करने लगा, उसे प्रांगण में बहुत से मुर्गे दिखाई देने लगे। उसके सैनिकों को भूख लगने पर उन्होंने सारे मुर्गे पकाकर खा लिए और केवल एक ही मुर्गा बचा। जब सुबह उस मुर्गे ने बांग देनी शुरू की तो उसके साथ-साथ सैनिकों के पेट से भी बांग की आवाजें आने लगी और देखते ही देखते सैनिक मरने लगे। बताते हैं कि यह सब देख कर खिलजी और बाकी सैनिक वहां से भाग निकले।
इस तरह से मंदिर सुरक्षित रह गया। तब से ही इसे मुर्गे वाली माता का मंदिर कहा जाने लगा। किन्नरों की देवी बहुचरा देवी को किझर समाज की कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है। किलर समाज के लोग बहुचरा माता को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजते हैं। किन्नरों द्वारा मां को पूजने को भी एक कहानी है। माना जाता है कि गुजरात में एक राजा था जिसके कोई संतान नहीं थी। संतान पाने के लिए राजा ने देवी बहुचरा से बरदान मांगा।
राजा की भक्ति से मां खुश हुई और उन्होंने उसको संतान प्रप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद राजा को संतान तो हुई, लेकिन वह नपुंसक निकली। एक दिन माता उसके सपने में आई और उसे गुप्तांग समर्पित करने के साथ मुक्ति के मार्ग पर चलने को कहा। राजकुमार ने ऐसा ही किया और देवी का उपासक बन गया। इसके बाद से सभी किन्नर समाज ने देवी बहुचरा को अपनी कुलदेवी मानकर उनकी उपासना शुरू कर दो।
अगले जन्म में पूरे शरीर के साथ मिलता है जन्म
मान्यता है कि अगर कोई किजर बहुचरा माता की पूजा करता है तो वह अगले जन्म में पूरे शरीर के साथ जन्म लेता है। किन्नरों के लिए इस मंदिर का विशेष महत्व है और वे कोई भी शुभ काम मुर्गे वाली माता की पूजा-अर्चना के बगैर नहीं करते।
शक्तिपीठ का एक हिस्सा
माता को शक्तिपीठ का हिस्सा भी माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने उनके पार्थिव शरीर को उठाकर पूरे विश्व में तांडव किया था।
मुर्गे वाली माता
शिव के क्रोध और सती की तपस्या को देख सभी देवी- देवता घबरा गए थे, जिसके चलते सभी ने भगवान विष्णु से मदद मांगी और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे।
ये टुकड़े पृथ्वी पर 55 जगहों पर गिरे थे, जिनमें से एक बहुचरा भी है जहां माता सती के हाथ गिरे थे इसीलिए इसे शक्तिपीठ का हिस्सा भी कहा जाता है।
कैसे पहुंचें
यह मंदिर अहमदाबाद से करीब 110 किलोमीटर की दूरी पर है। अहमदावाद से गांधीनगर होते हुए बेचराजी पहुंचा जा सकता है। मेहसाणा से यह धाम 38 किलोमीटर दूर स्थित है।
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