हनुमान जी का पूजन करने से लाभ

@ॐ हं हनुमते नम:! 
श्रीगणेशायनमो नित्यं केशवाय च शम्भवे।
हनुमते च दुर्गायै सरस्वत्यै नमो नमः। 
ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजायै धीमहि तन्नो हनुमान प्रचोदयात्।।

ॐ आंजनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

ॐ अंजनिसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुति प्रचोदयात्।

अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहं 
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्र गण्यम्। 
सकलगुणनिधानं  वानराणामधीशं 
रघुपतिप्रियभक्तं  वातजातं नमामि।।*

अतुल बलकेधाम,सोनेके पर्वत(सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वनको ध्वंस के लिये अग्निरूप, ज्ञानियोंमें अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणोंको जानने वाले, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी को मैं प्रणाम करता हूँ। मंगलवारको हनुमानजी की पूजा से मिलती है समस्त दुखोंसे मुक्ति। मंगलवार और शनिवार बजरंगबली के दिन माने जाते हैं। इन दिनों में हनुमान जी का पूजन करने से बहुत लाभ होता है।

1. अगर प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का सिंदूर से पूजन किया जाए तो समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है।

2. हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा में सावधानी बहुत जरूरी है। मंगलवार को अगर सुबह बरगद के पेड़ के एक पत्ते को तोड़कर गंगा जल से धो कर हनुमान जी को अर्पित करें तो धन की आवक बढ़ती है। आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है।

3. मंगलवार को पान का बीड़ा नियम से चढ़ाया जाए तो रोजगार के रास्ते खुलते हैं। नौकरीपेशा को प्रमोशन के अवसर मिलते हैं।

4. मंगलवार को शाम के समय हनुमान जी को केवड़े का इत्र एवं गुलाब की माला चढ़ाएं और कोशिश करें कि स्वयं लाल रंग के वस्त्र पहनें। धन के लिए हनुमान जी को प्रसन्न करने का यह सबसे सरल उपाय है।

5. मंगलवार के दिन शाम को व्रत करके बूंदी के लड्डू या बूंदी का प्रसाद बांटें। इससे संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।

6. इस दिन हनुमान जी के पैरों में फिटकरी रखने से बुरे सपनों से पीछा छूट जाता है।

7. हनुमान जी के मंदिर में जा कर रामरक्षास्त्रोत का पाठ करने से सारे बिगड़े काम संवर जाते हैं। अटके कामों की बाधा दूर होती है। कर्ज से भी मुक्ति मिलती है।

8. मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष बैठ राम नाम का 108 बार जाप करें। हनुमान जी रामजी के अनन्य भक्त हैं इसलिए जो भी श्रीराम की भक्ति करता है, उन्हें वह पहले वरदान देते हैं। हनुमान जी इस उपाय से प्रसन्न हो विवाह संबंधी मनोकामना को पूरी करते हैं।

9. मंगलवार के दिन हनुमान जी के सामने सरसों के तेल का दिया जलाएं और चालीसा का पाठ करें। यह उपाय दांपत्य जीवन में सरसता लाता है।

10. ॐ हं हनुमंते नमः मंत्र का जाप करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट का रुद्राक्ष की माला से जाप करने से भी हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं। 

संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा के उच्चारण से सभी बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं और आरोग्य का वरदान मिलता है।                                             

*धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं, शौचमिन्द्रिय निग्रह:। 
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।* 

धर्मके दश लक्षण हैं 
धैर्य,क्षमा,आत्म-नियंत्रण, चोरी नाकरना,पवित्रता,इन्द्रिय-संयम,बुद्धि,विद्या,सत्य और क्रोधना करना।                                                                                                                       

*कुग्रामवासःकुलहीनसेवाकुभोजनंक्रोधमुखी चभार्या।
पुत्रश्चमूर्खोविधवाचकन्या विनाग्निमेतेप्रदहन्तिकायम्॥
चाणक्य* 

जिसव्यक्तिको दुष्टोंके गांवमें रहना पड़े,कुलहीन की सेवाकरनी पड़े,जोनही खानाचाहिए वोखाना पड़े,हमेशाक्रोध तथा अपशब्द बोलनेवाली पत्नी हो,मूर्खपुत्रहो तथा विधवापुत्रीहो।तोव्यक्ति शरीर में बिनाआग लगायेही सदा जलतारहता है।                    

*शिरःशार्वंस्वर्गात्पशुपतिशिरस्तःक्षितिधरंमहि- घादुत्तुङा्दवनिमवनेश्चापिजलधिम्।अधो- ऽधोगङ्गेयंपदमुपगतास्तोकमथवाविवेक भ्रष्टानांभवतिविनिपातःशतमुखः।।नीतिशतक*                                                              

गंगा स्वर्गसे शिवजीके सिरपर आई,वहांसे पर्वत पर(हिमालयपर)और उत्तुंगपर्वतसे पृथिवीपर और वहांसे समुद्रपर पहुंवी।(इसप्रकार)वह नीचे से नीचे स्थानपर आतीगई।अथवा(क्याकहा जाए)विवेकहीनका सैंकङोंप्रकारसे पतनहोता है।

*तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। 
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः॥*

उसज्ञानको तूतत्वदर्शी ज्ञानियोंके पासजाकर समझ,उनको भलीभाँति दण्डवत्‌प्रणाम करनेसे, उनकी सेवाकरनेसे और कपटछोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्नकरनेसे वेपरमात्मतत्वको भलीभाँति जाननेवाले ज्ञानीमहात्मा तुझे उसतत्वज्ञान का उपदेशकरेंगे॥

*मुखोपवित्रं यदिरामनामं।
हृदयपवित्रंयदि ब्रह्मज्ञानं।।
चरणौपवित्रं यदितीर्थगमनं।
हस्तौपवित्रं यदिपुण्यदानं।।*

रामनामसे मुखपवित्र होताहै,ब्रह्मज्ञानसे ह्रदय पवित्र होताहै, तीर्थगमनसे चरणपवित्र होतेहै, और दानपुण्यसे हाथपवित्र होतेहै।

*यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा॥*

क्योंकि हेअर्जुन!जैसे एल प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्ममय करदेता है,वैसेही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मोंको भस्ममय करदेता है॥

*गन्धःसुवर्णेफलमिक्षुदण्डेनाकरिपुष्पंखलु चन्दनस्य। 
विद्वान्धनाढ्यश्च नृपश्चिरायुः धातु:पुराकोSपि न बुद्धिदोSभूत||*

स्वर्णमेंसुगन्धक्यों नहींहोती है,ईख(गन्ना)के दण्ड में फलक्यों नहींलगते हैं.चन्दनकेवृक्षमे पुष्प क्यो नही खिलते हैं,विद्वानव्यक्ति धनवानक्यों नहीं होते हैं,तथा राजा दीर्घायुक्यों नहींहोते हैं?इन सबका कारण सनातनकालसे बडेबडे विद्वानभी सचमुचनहीं जानते हैं|                                                                

*चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपिचन्द्रमाः। 
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः॥*

चन्दनको संसारमें सबसेशीतल लेप मानागया है, लेकिन कहते हैं ‘चंद्रमा’ उससेभी ज्यादाशीतलता देता है,लेकिन इनसबके अलावा अच्छेमित्रोंका साथ सबसेअधिक शीतलता एवं शांतिदेता है।

*धर्मार्थदः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम्। 
धर्मेण लभते सर्वं धर्मप्रसारमिदं जगत्॥*

धर्मसेही धन,सुख तथा सबकुछ प्राप्तहोता है। इससंसारमें धर्महीसार वस्तु है।

*सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः। सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्॥*

सत्यहीसंसारमें ईश्वरहै धर्मभी सत्यकेही आश्रित है सत्यही समस्तभव -विभवका मूलहै सत्यसे बढ़कर और कुछनहीं है।

*उत्साहोबलवानार्यनास्त्युत्साहात्परंबलम्। 
सोत्साहस्यहिलोकेषुनकिञ्चदपि दुर्लभम्॥*

उत्साह बड़ाबलवान होता है;उत्साहसे बढ़करकोईबल नहींहै।उत्साहीपुरुषके लिए संसारमें कुछभी दुर्लभनहीं है।

*दग्धंदग्धंत्यजतिनपुनःकाञ्चनं कान्तिवर्णं।
छिन्नं छिन्नंत्यजतिनपुनः स्वादुतामिक्षु दण्डम्।धृष्टंधृष्टंत्यजतिनपुनश्चन्दनंचारुगन्धं।
प्राणान्तेऽपिप्रकृतिविकृतिर्नायतेनोत्तमानाम्।*

बारबार आगमें जलानेपरभी सोना अपनीचमक और रंगनहीं छोड़ताहैबारबार काटेजानेपरभी इक्षुदण्ड(गन्ना)अपनी मिठासनहीं छोड़ताहै।चन्दनभी बारबार घिसेजाने परभी अपनी सुगन्ध नहींछोड़ता है।इसीप्रकार महानव्यक्ति अपने आचरण और स्वभावमें विकृति(गिरावट)नहीं आनेदेते,चाहे उनके प्राणहीक्यों न चलेजायें।

*छायाम्अन्यस्यकुर्वन्तितिष्ठन्तिस्वयमातपे। फलान्यपिपरार्थायवृक्षाःसत्पुरुषाइव।।*

वृक्षोंकोदेखिये दूसरोंकेलिये छाँवदेकर खुदगरमी में तपरहे हैं।फलभी सारेसंसारको देदेते हैं। संसार मे सज्जनपुरुषोके चरित्रभी इनवृक्षोंके समानही होते हैं अर्थात सज्जनपुरुष निस्वार्थ परोपकारमे लगेरहते है।

*क्षिप्रंविजानातिचिरंशृणोतिविज्ञायचार्थभतेनकामात्।
नासम्पृष्टोव्युपयुङ्क्तेपरार्थेतत्प्रज्ञानं प्रथमंपण्डितस्य।।*

ज्ञानीलोग किसीभी विषयको शीघ्र समझलेते हैं, लेकिन उसेधैर्यपूर्वक देरतकसुनतेरहते हैं।किसी भी कार्यको कर्तव्यसमझकर करते है,कामना समझकर नहीं और व्यर्थकिसीके विषयमें बात नहीं करते।

*क्रोधोहर्षश्च दर्पश्चह्रीःस्तम्भो मान्यमानिता। 
यमर्थान्नापकर्षन्ति स वैपण्डित उच्यते।।*

जोव्यक्तिक्रोध,अहंकार,दुष्कर्म,अति-उत्साह,स्वार्थ, उद्दंडताइत्यादि दुर्गुणोंकी और आकर्षितनहीं होते,वे ही सच्चेज्ञानी हैं।

*यस्यकृत्यं नविघ्नन्तिशीतमुष्णं भयं रतिः। 
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।।*

जोव्यक्तिसर्दी-गरमी,अमीरी-गरीबी,प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियोंमें भी विचलितनहीं होता और तटस्थ भावसे अपना राजधर्मनिभाता है,वही सच्चाज्ञानी हैं।

*नाप्राप्यमभिवाञ्छन्तिनष्टं नेच्छन्तिशोचितुम्। 
आपत्सुच नमुह्यन्तिनराः पण्डितबुद्धयः।।*

जोव्यक्ति दुर्लभवस्तुको पानेकी इच्छानहीं रखते, नाशवान वस्तुके विषयमें शोकनहीं करते तथा विपत्ति आपड़नेपर घबराते नहींहैं,डटकर उसका सामनाकरते हैं,वहीज्ञानी हैं।

*निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः। 
अवन्ध्यकालोवश्यात्मा सवैपण्डितउच्यते।।*

जोव्यक्ति किसीभी कार्य-व्यवहारको निश्चयपूर्वक आरंभकरता हैं।उसे बीचमें नहीं रोकता,समयको बरबादनहीं करता तथा अपनेमनको नियंत्रणमें रखता हैं,वहीज्ञानी हैं।

*आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते। 
हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिता भरतर्षभ।।*

ज्ञानीजन श्रेष्ठकार्य करते हैं, कल्याणकारी व राज्य की उन्नतिके कार्यकरते हैं। ऐसे लोग अपने हितमें दोष नही निकालते।

*नहृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।  
गाङ्गोह्रद ईवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते।।*

जोव्यक्ति न तो सम्मानपाकर अहंकारकरता हैं और न अपमानसे पीड़ितहोता हैं।जो जलाशयकी भाँति सदैव क्षोभरहित और शांत रहता हैं,वही ज्ञानी हैं।

*अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामनाः। 
अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः।।*

बिनापढ़ेही स्वयंको ज्ञानी समझकर अहंकार करनेवाला,दरिद्रहोकरभी।बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनानेवाला तथा बैठे-बिठाए धनपानेकी कामना करनेवाला व्यक्तिमूर्ख कहलाता हैं।

*स्वमर्थं यःपरित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति। 
मिथ्याचरति मित्रार्थे यश्च मूढःसउच्यते।।*

जोव्यक्ति अपना कामछोड़कर दूसरोंके काममें हाथडालता हैं।तथा मित्रके कहनेपर उसके गलत कार्योमें उसकासाथदेता है,वहमूर्ख कहलाता हैं।

*अकामान्कामयति यःकामयानान्परित्यजेत्। 
बलवन्तंच योद्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम्।।*

जोव्यक्ति अपने हितैषियोंको त्यागदेता हैं,तथा अपने शत्रुओंको गलेलगाता हैं और जोअपनेसे शक्तिशाली लोगोंसे शत्रुता रखता हैं,उसेमहामूर्ख कहते हैं।

*अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च। 
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्।।*

जो व्यक्ति शत्रु से दोस्ती करता तथा मित्र और शुभ चिंतकों को दुःख देता है,उनसे ईर्ष्या-द्वेष करता हैं।सदैव बुरे कार्यों में लिप्त रहता है,वह मूर्ख कहलाता है। 
          _जय श्रीराम_ जय हनुमान_
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