घर में सुखशांति-समृद्धि*#वास्तुदेव_विश्वकर्मापूजन!!
*घर में सुखशांति-समृद्धि*
#वास्तुदेव_विश्वकर्मापूजन!!
यदि आपको अपने घर में शांति अनुभव नहीं होती, निरन्तर ऐसा आभास होता है, कि घर में कुछ कमी है। घर में उन्नति नहीं हो रही है, घर में प्रवेश करते ही कुछ अजीब लगता है, यदि आपके साथ ऐसा है, वास्तुकला की दृष्टि से आपका भवन पूर्ण नहीं है, तो इसका भी उपाय स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने प्रदान किया है।
वह है ‘#विश्वकर्माप्रयोग’, जिसके द्वारा आप अपने घर में व्याप्त आधि-व्याधि मिटा सकते हैं और घर को सुख, शांति, सौभाग्य, धन-धान्य, यश, प्रतिष्ठा आदि से भर सकते हैं।
क्या आप मकान का निर्माण कराने जा रहे हैं? यदि हां, तो क्या आपका मकान वास्तुशास्त्र की दृष्टि से पूर्ण है? इसे एक जरूरी लेख के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। यदि आप भवन का निर्माण करवाने जा रहे हैं, तो कुछ जरूरी बातों का ध्यान रख लीजिये, जिससे आप अपने घर में सुख-शांति स्थापित कर सकें।
क्योंकि भवन का निर्माण कराना इतना आसान नहीं है, यह ऐसा नहीं है, कि बस बाजार गये, सामान खरीद लाये और पसंद नहीं आया, तो बदल लिया। घर के सम्बन्ध में यह इतना सहज नहीं हो पाता, कि अनुकूलता नहीं मिली, तो इसे बेचा, दूसरा खरीद लिया। एक सामान्य व्यक्ति जीवन भर पूंजी इकठ्ठी करता है, अतः चाहता है, कि वह जिस स्थान को खरीदे, वह पूर्णतः उसके अनुकूल हो, क्योंकि वह तो अपने पूरे जीवनकाल में बहुत ही कठिनाई से एक भवन निर्माण करा पाता है, जिसको वास्तु शास्त्र की दृष्टि से पूर्ण होना ही चाहिए।
यद्यपि कुछ लोगों ने भवनों का निर्माण अपने स्वार्थ हेतु कर वास्तुकला के महत्व को गौण कर दिया है परन्तु यदि भवन का निर्माण शास्त्रोक्त विधि से न हुआ हो, तो उस भू स्वामी को रोग-शोक, भौतिक तथा आध्यात्मिक अवनति के साथ-साथ घोर मानसिक अशांति व्याप्त रहती है। अनेक तत्त्वदर्शियों ने मानव जीवन में वास्तुशास्त्र की महत्ता स्वीकार की है और इसकी उपयोगिता की व्याख्या की है।
तत्त्वदर्शियों की व्याख्या के अनुसार व्यक्ति को ग्रहों का ज्योतिषीय अध्ययन करके ही गृह निर्माण के कार्य की ओर अग्रसर होना चाहिए, मात्र गृह निर्माण ही नहीं, वरन् भूमि चयन से लेकर निर्माण तक की समस्त प्रक्रियाएं एवं शुभ मुहूर्त में भूमि में शिला न्यास, वास्तु विधि से शांति एवं गृह प्रवेश तक का भी पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक होता है, ताकि व्यक्ति वास्तुकला के आधार पर स्वयं और परिवार हेतु भवन का निर्माण कराकर सुख-शांति स्थापित कर सके।
प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है, कि उसका घर स्वर्ग की तरह हो, जहां वह पूर्ण रूप से भौतिक सुख और मानसिक शांति प्राप्त कर सके। वह उत्तम संतान, रोग रहित और धन-धान्य से युक्त जीवन तथा मान-प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का सदैव इच्छुक रहता है और वह इन सबको पाने के लिए प्रयत्नशील भी रहता ही है।
यह तो उसकी आंतरिक बातें हैं, जिन्हें वह घर में स्पष्टतः देखना चाहता है, परन्तु कुछ बातें वह व्यावहारिक रूप से ध्यान रखता है, कि घर का पड़ोस कैसा है, आसपास का वातावरण कैसा है, जल व्यवस्था तो ठीक है, यातायात का क्या माध्यम है?
वह इन विषयों को तो बाह्य रूप से देखकर जानकारी प्राप्त कर लेता है, परन्तु उस जमीन के विषय में वह नहीं जान पाता, कि वह कितनी फलप्रदायिनी है?
इसके लिए तो उसे किसी वास्तु शास्त्री के पास ही जाना पड़ता है या वह स्वयं में इतना ज्ञानी हो, कि वह यह जान सके, कि भूमि कैसी फलप्रदायिनी है? वास्तुकला का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है, अतः विस्तार में न जाकर यहां संक्षिप्त रूप में जानकारी प्रस्तुत की जा रही है, यदि व्यक्ति इन बातों को ही ध्यान में रख ले, तो भी उसे काफी अनुकूलता मिल सकती है।
भूमि चार प्रकार की होती है। –
1. ब्राह्मणी – सफेद रंग की मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणी कहलाती है, यह कुशा युक्त, सुगन्ध युक्त तथा मधुर रस से युक्त होती है। यह भूमि सुख-शांति प्रदान करती है।
2. क्षत्रिया – लाल रंग की मिट्टी, मूंज (शर) युक्त, कषाय रस तथा रक्त गन्ध युक्त होती है, यह भूमि क्षत्रिया कहलाती है। यह राज्यप्रदा होती है, अर्थात् राज्य सुख प्राप्त होता है।
3. वैश्या – हरे रंग की मिट्टी वाली, सस्य (अन्न) गंध वाली, कुश-***काश*** युक्त तथा अम्ल (खट्टा) रस युक्त भूमि वैश्या होती है। यह भूमि धनप्रदायिनी होती है।
4. क्षुद्रा – काले रंग की मिट्टी वाली, सब प्रकार की घास से युक्त, मद्य गंध तथा कटु (कडवा) रस युक्त भूमि क्षुद्रा कहलाती है। यह भूमि सब प्रकार से त्यागने योग्य होती है।
व्यक्ति को चाहिए, कि वह अपने ग्रहों के अनुकूल ही भूमि खरीदे। कुछ विशेष तिथियां होती हैं, जिनमें व्यक्ति यदि भूमि का क्रय-विक्रय करता है, तो लाभ प्राप्त करता है, ज्योतिषीय दृष्टि से ऐसी विशेष तिथियां मैं आगे स्पष्ट कर रहा हूं
दोनों पक्षों की 5, 6, 10, 11, 15 तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथियों में गुरुवार तथा शुक्रवार को पुनर्वसु, मृगशिरा, मघा, अश्लेषा, विशाखा, अनुराधा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ तथा पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र हो, तो भूमि खरीदना एवं बेचना शुभ होता है।
वास्तुशास्त्र का महत्व:-
प्राचीन काल में एक प्राणी का जन्म हुआ, जिसकी देहयष्टि अत्यन्त विशाल थी, उसकी देह समस्त लोकों में फैली हुई थी। यह देख इन्द्रादि देवता आश्चर्यचकित हुए और उसकी विशालता को देखकर अत्यन्त भयभीत भी।
उसे देखकर देवताओं ने निश्चय किया, कि इस प्राणी को नीचे गिरा दिया जाय। यह निश्चय कर उन्होंने उस विशाल देहधारी प्राणी को पृथ्वी पर गिरा दिया। ब्रह्मा ने इसे ‘वास्तु पुरुष’ का नाम दिया, जो सदैव भूमि में वास करता है।
‘अवाङ्मुखी निपतित ईशान्यां दिशि संस्थितः’
देवताओं ने इस पुरुष को गिराया था, तो इसका सिर ईशान (उत्तर-पूर्व दिशा) तथा पांव नैॠत्य में था। वास्तु पुरुष भूमि पर शयन करते हैं, अधोमुख वास्तु पुरुष की देह में शिखा से पैर तक देवों का स्थापन किया जाना चाहिए तथा पूजाकाल में उत्तान देह का ध्यान करना चाहिए।
आवास मनुष्य की प्रथम आवश्यकता बताई गई है। इसलिए ही विश्वकर्मा ने भवन निर्माण की शास्त्रोक्त विधि बनाई और उसे वास्तुशास्त्र अथवा वास्तुकला के नाम से उद्बोधित किया।
इसके पीछे इनका मात्र इतना ही हेतु था, कि प्राणी को भू लोक में ही स्त्री, बन्धु, बान्धव एवं समाज में चतुर्वर्ग फल की प्राप्ति हो। शास्त्रों में शुभ कार्यों को केवल उसी भूमि पर करने की आज्ञा दी गई है, जिसके स्वामी वे स्वयं हों या फिर उस भूमि का शुल्क प्रदान किया गया हो, क्योंकि जिस भूमि पर शुभ कार्य किये जाते हैं, उस कार्य का फल भू-स्वामी को ही मिलता है। यदि शुल्क प्रदान कर दिया गया हो, तो फल ‘कर्ता’ को ही प्राप्त होता है। इसी कारण लोग किसी अन्य स्थान पर निर्धारित शुभ कार्य शुल्क प्रदान कर सहजता से करवा लेते हैं।
इन्हीं कारणों से भूलोक का सबसे पुण्यदायक कर्म भवन निर्माण ही माना गया है।
पूर्ण वास्तुकला की दृष्टि से घर बनाना आसान नहीं, क्योंकि पहली बात तो यह है, कि आजकल लोग इतने अधिक व्यस्त हो गये हैं, कि उन्हें स्वयं के लिए ही समय निकालना कठिन हो गया है, फिर कहां वे वास्तुशास्त्री के चक्कर में पड़ें। दूसरी बात यह है, कि दिनों-दिन लोगों के रहने के लिए स्थान की कमी हो रही है, फ्लैट सिस्टम बन गया है या बने-बनाये मकान खरीद लिये जाते हैं और फिर लोग कहते हैं कि यह घर हमें सूट नहीं किया।
यदि आपके साथ ऐसा है, वास्तुकला की दृष्टि से आपका भवन पूर्ण नहीं है, तो इसका भी उपाय स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने प्रदान किया है। यह है ‘विश्वकर्मा प्रयोग’, जिसके द्वारा आप अपने घर में व्याप्त आधि-व्याधि मिटा सकते हैं और घर को सुख, शांति, सौभाग्य, धन-धान्य, यश, प्रतिष्ठा आदि से भर सकते हैं।
यह प्रयोग सम्पन्न करने से यदि आपका घर वास्तुकला की दृष्टि से पूर्ण नहीं है, तो भी आपको अनुकूलता प्रदान करने में सहायक होगा। मेरी राय में तो प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रयोग सम्पन्न कर ही लेना चाहिए, ऐसा करने से जीवन की अनेक समस्याएं तो अपने आप ही दूर हो जाती हैं और पूर्ण भाग्योदय होने लगता है।
साधना विधान:-इस साधना हेतु ‘प्राण प्रतिष्ठित विश्वकर्मा यंत्र’ तथा ‘चिरमी के 108 दाने’आवश्यक हैं। यह प्रातःकालीन साधना है, जिसे किसी भी सर्वार्थ सिद्धि योग अथवा सोमवार को सम्पन्न किया जा सकता है। साधक साधना दिवस पर शुद्ध, स्वच्छ, श्वेत वस्त्र धारण कर, गुरु पीताम्बर ओढ़ लें।
साधना दिवस पर भवन के मध्य स्थान अथवा बरामदे में सफेद आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। अपने सामने एक बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछा लें। उस पर गुरु चित्र/गुरु यंत्र/गुरु पादुका स्थापित कर निखिल ध्यान करें!
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
निखिल ध्यान के पश्चात् गुरु चित्र/यंत्र/पादुका को जल से स्नान करावें –
ॐ निखिलम् स्नानम् समर्पयामि॥
इसके पश्चात् स्वच्छ वस्त्र से पौंछ लें निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए कुंकुम, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, धूप-दीप से पंचोपचार पूजन करें –
ॐ निखिलम् कुंकुम समर्पयामि।
ॐ निखिलम् अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् पुष्पम् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् नैवेद्यम् निवेदयामि।
ॐ निखिलम् धूपम् आघ्रापयामि, दीपम् दर्शयामि। (धूप, दीप दिखाएं)
अब तीन आचमनी जल गुरु चित्र/यंत्र/पादुका पर घुमाकर छोड़ दें। इसके पश्चात् गुरु माला से गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें –
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः।
गुरु मंत्र के जप के पश्चात् गुरु चित्र के सम्मुख ही किसी ताम्रपात्र में प्राण प्रतिष्ठित विश्वकर्मा यंत्र को स्थापित करें और सर्वप्रथम पवित्रीकरण और आचमन करें।
पवित्रीकरण –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वास्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः॥
आचमन करें –
ॐ केशवाय नमः।
ॐ नारायणाय नमः।
ॐ माधवाय नमः।
आचमन के बाद ‘ॐ हृषिकेशाय नमः’ बोलकर हाथ धो लें और संकल्प करें।
संकल्प –दाहिने हाथ में जल, गंधाक्षत, पुष्प, दूर्वा और दक्षिणा लेकर देशकाल का स्मरण कर यह कहते हुए , कि मैं ‘पुत्र-पौत्रादि समेत इस नूतन भवन में चिरकाल तक सुख पूर्वक निवास हेतु सर्व आपत्ति रहित अनेक प्रकार के रोगादि से मुक्ति, सर्वोपद्रव शांति; सम्पत्ति, आयु, आरोग्य, धन-धान्य, द्विपद, चतुष्पद, पुत्र-पौत्रादि का वृद्धिपूर्वक; सुवर्ण, रजत, ताम्र, त्रपु, सीसा, कांस्य, लोहा, पाषाण आदि आठ भूमि शल्य दोष, आय-व्ययादि अन्य भवन के अन्तर्गत विविध हिंसा-दोष परिहार द्वारा यह भवन क्षेत्र अनवरत भूमि में अधिष्ठित देवताओं के उपरोध अनितोपसर्ग निवृत्ति पूर्वक वास्तु की शुभता सिद्धि द्वारा श्री परमेश्वर के प्रीत्यर्थ गृह प्रवेश/गृहदोष निवारण के निमित्त वास्तुशांति हेतु विश्वकर्मा प्रयोग कर रहा हूं।’
ऐसा बोलकर जल छोड़ दें तथा हाथ जोड़कर वास्तुदेवता का आह्वान और ध्यान करें।
आवाहन् –
भगवन्! देव देवेश! ब्रह्मादि देवतात्मक!।
तव पूजां करिष्यामि प्रसादं कुरु मे प्रभो॥
यंत्र का पूजन गंध, अक्षत, पुष्प, धूप तथा दीप से करें।
ध्यान –
पूजितोऽसि मया वास्तो! होमाद्यैरर्चनैः शुभैः।
प्रसीद पाहि विश्वेश! देहि मे गृहजं सुखम्॥
फिर निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जप करें –
मंत्र:- ॐ श्रीं विश्वकर्मात्वं सिद्धये फट्॥
मंत्र जप के पश्चात् हवन सम्पन्न करें। उपरोक्त मंत्र को बोलते हुए चिरमी के दानों से 108 आहुतियां हवन सामग्री के साथ प्रदान करें।
इसके पश्चात् 5आहुति बिल्वपत्रों से उपरोक्त मंत्र बोलते हुए दें।
आहुतियों के पश्चात् साधक अपने हाथ में जलपात्र लेकर खड़े हो जाएं तथा निम्न स्तुति पाठ करें –
पूजितोऽसि मया वासतो होमाद्यैरर्चनैः शुभैः।
प्रसीद पाहि विश्वेश देहि मे गृहजं सुखम्॥
नमस्ते वास्तु पुरुष! भूशय्याभिरत प्रभो।
मद्गृहं धन-धान्यादि समृद्धं कुरु सर्वदा॥
प्रार्थयामीत्यहं देवं शालाया अधिपस्तु यः।
प्रायश्चितं प्रसंगेन गृहार्थं यन्मया कृतम्॥
मूलच्छेदं तृणच्छेदं कृमिकीट निपातनम्।
हननं जल जीवानां भूमौ शस्त्रेण घातनम्॥
अनृतं भाषितं यच्च किञ्चिद् वृक्षस्य पातनम्।
एतत्सर्वं क्षमस्वैनं यन्मया दृष्कृतं कृतम्॥
गृहार्थे यत्कृतं पापमज्ञानेनाथ चेतसा।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव! गृहशालां शुभां कुरु॥
सशैल सागरां पृथ्वीं यथा वहसि मूर्धनि।
तथा मां वह कल्याण! सम्पत्सन्ततिभिः सह॥
साधक प्रार्थना समाप्त कर अपने पूरे परिवार (बन्धु-बान्धव) के साथ भोजन करें तथा अगले दिन यंत्र को अपने घर के आंगन, लॉन या किचन गॉडर्न में या फ्लेट हो तो किसी गमले में गड्ढा खोदकर स्थापित कर लें। यदि मकान अभी बन रहा है तो उसकी नींव में डलवा दें। हवन की राख पेड़-पौधों की जड़ो मे डाल दे।
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