शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र

शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र

हमारे पूर्वज अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने हजारों वर्षों पूर्व वेदों व पुराणों में महामारी की रोकथाम के लिए परिपूर्ण स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे रखें हैं-

1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च ।
लेहां पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।। (धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक)

नामक, घी, तेल, चावल, एवं अन्य खाद्य पदार्थ चम्मच से परोसना चाहिए हाथों से नही।

2. अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः ।। ( मनुस्मृति ४/१४४)

अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नही चाहिए।

3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।। ( मार्कण्डेय पुराण ३४/५२)

एक बार पहने हुए वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।

4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत् ।।(पद्म० सृष्टि.५१/८८)
नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत ।। (सुश्रुतसंहिता चिकित्सा २४/९८)

अपने हाथ, मुहँ व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

5. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाःस्युः निष्फलाः क्रियाः ।।(वाघलस्मृति ६९)

बिना स्नान व शुद्धि के यदि कोई कर्म किये जाते है तो वो निष्फल रहते हैं।

6. न धारयेत् परस्यैवं स्नानवस्त्रं कदाचन ।। (पद्म० सृष्टि. ५१/८६)

स्नान के बाद अपना शरीर पोंछने के लिए किसी अन्य द्वारा उपयोग किया गया वस्त्र (टॉवेल) उपयोग में नहीं लाना चाहिये।

7. अन्यदेव भवद्वासः शयनीये नरोत्तम ।
अन्यद् रथ्यासु देवानाम अर्चायाम् अन्यदेव हि ।। (महाभारत अनु १०४/८६)

पूजन, शयन एवं घर के बाहर जाते समय अलग- अलग वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।

8. तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं धार्यम् ।। (महाभारत अनु १०४/८६)

दूसरे द्वारा पहने गए वस्त्रों को नही पहनना चाहिए।

9. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद् ।। (विष्णुस्मृति ६४)

एक बार पहने हुए वस्त्रों को स्वच्छ करने के बाद ही दूसरी बार पहनना चाहिए।

10. न आद्रं परिदधीत ।। (गोभिसगृह्यसूत्र ३/५/२४)

गीले वस्त्र न पहनें।

सनातन धर्म ग्रंथो के माध्यम से ये सभी सावधानियां समस्त भारतवासियों को हजारों वर्षों पूर्व से सिखाई जाती रही है।

इस पद्धति से हमें अपनी व्यग्तिगत स्वच्छता को बनाये रखने के लिए सावधानियां बरतने के निर्देश तब दिए गए थे जब आज के जमाने के माइक्रोस्कोप नही थे। लेकिन हमारे पूर्वजों ने वैदिक ज्ञान का उपयोग कर धार्मिकता व सदाचरण का अभ्यास दैनिक जीवन में स्थापित किया था। आज भी ये सावधानियां अत्यन्त प्रासंगिक है। यदि हमें ये उपयोगी लगती हो तो इनका पालन कर सकते हैं।

सनातन संस्कृति

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