ब्रह्महत्या ना करके भी जिन पापों सेब्रह्महत्या लगती है।

ब्रह्महत्या ना करके भी जिन पापों सेब्रह्महत्या लगती है।
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यः प्रवृत्तां श्रुतिं सम्यक् शास्त्रं वा मुनिभिः कृतम् ।दूषयत्नभिज्ञाय तमाहुर्ब्रह्मघातकम् ।। 
जो परम्परागत वैदिक श्रुतियों और ऋषिप्रणीत सच्छास्त्रों ( सत् शास्त्रों ) पर बिना समझे - बूझे दोषारोपण करता है - वह ब्रह्मघाती है ।
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गोकुलस्य तृषार्तस्य जलान्ते वसुधाधिप ।
उत्पादयति यो विघ्नं तमाहुर्ब्रह्मघातकम्।। 
पृथ्वीनाथ ! प्यास से तड़पते हुए गोसमुदाय को जो पानी के निकट पहुँचने में बाधा डालता है - उसे ब्रह्मघाती कहा जाता है ।
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ब्राह्मणं स्वयमाहू भिक्षार्थं  वृत्तिकर्शितम् । 
ब्रूयान्धास्तीति यः पश्चात् तमाहुर्ब्रह्मघातकम् ।।
राजन् ! जो जीविका रहित ब्राह्मण को स्वयं ही भिक्षा देने के लिए बुलाकर पीछे मना कर जाता है - उसे ब्रह्महत्यारा कहते हैं ।
जो दुष्ट बुद्धिवाला पुरूष मध्यस्थ और ब्रह्मवेता ब्राह्मण की जीविका छीन लेता है - उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं। 
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चक्षुषा वापि हीनस्य पङ्गोर्वापि जडस्य वा ।
हरेद् वा यस्तु सर्वस्वं  तमाहुर्ब्रह्मघातकम् ।।
जो अंधे - पंगु और गूँगे मनुष्य का सर्वस्व हरण कर लेता है - उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं ।
जो क्रोध में भर कर किसी आश्रम - घर - गाँव अथवा नगर में आग लगा देता है - उसे ब्रह्मघाती कहते हैं ।
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गुरूं त्वंकृत्य हुंकृत्य अतिक्रम्य च शासनम् ।
वर्तते  यस्तु मूढात्मा  तमाहुर्ब्रह्मघातकम् ।। 
जो मुर्खतावश गुरू को "तू" कहकर पुकारता है - हुंकार के द्वारा उनका तिरस्कार करता है तथा उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके मनमाना बर्ताव करता है - उनकी अवहेलना करता है - उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं।

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