हिंदी कैलेंडर
पृथ्वी के चारों ओर परिभ्रमण करते हुए चंद्रमा भी पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य का परिभ्रमण करता है। इन्हीं दोनों परिभ्रमणों से वर्ष और मास की गणनाएँ होती हैं।
सामान्यतः तीस दिनों के महीने होते हैं जिन्हें चंद्रमा की वार्षिक गति को बारह महीनों में विभाजित करके निर्धारित किया जाता है। तीस दिनों में पंद्रह-पंद्रह दिनों के दो पक्ष होते हैं।
जिन पंद्रह दिनों में चंद्रमा बढ़ते-बढ़ते पूर्णिमा तक पहुँचता है, उसे शुक्लपक्ष और जिन पंद्रह दिनों में चंद्रमा घटते-घटते अमावस्या तक जाता है, उसे कृष्णपक्ष कहते है।
इसी तरह एक वर्ष के बारह महीनों में छह-छह माह के दो अयन होते हैं। जिन छह महीनों में मौसम का तापमान बढ़ता है, उसे उत्तरायण और जिन छह महीनों में मौसम का तापमान घटता है, उसे दक्षिणायन कहते हैं।
संवत् के बारह महीनों के नाम इस प्रकार हैं-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।
अंग्रेजो कैलेंडर की वार्षिक गणना सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिभ्रमण की अवधि के अनुसार तीन सौ पैसठ दिनों की होती है। इसके महीनों की गणना पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा के परिभ्रमण पर आधारित नहीं है।
इसमें वर्ष के तीन सौ पैसठ दिनों को ही बारह महीनों में विभाजित किया गया है। इस कैलेंडर के सभी महीने तीस-तीस दिन के नहीं होते। अप्रैल, नवंबर, जून, सितंबर इनके हैं। दिन तीस। फरवरी है अट्ठाइस दिन की, बाकी सब इकत्तीस
मासों के नाम
1. चैत्र, 2. वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, वृष न 5. श्रावण, 6. भाद्रपद (भादों), 7. आश्विन (कुवार), 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष (अगहन), कर्क - 10. पौष, 11. माघ, 12. फाल्गुन ।
पक्ष क्या है
विक्रम संवत् के हर मास (चंद्रमास) में दो तुल - पक्ष होते हैं-
(1) शुक्ल पक्ष (सुदी)-अमावस्या के बाद प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की तिथियों को मक शुक्ल पक्ष कहते हैं। यानि अमावस्या के के बाद बढ़ता हुआ चन्द्रमा पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष का सूचक है।
2) कृष्ण पक्ष (बदी)- पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं। यानि पूर्णिमा के बाद घटता हुआ चन्द्रमा अमावस्या तक कृष्ण पक्ष का ज सूचक है।
पूरे मास की तिथियों के नाम
(1) प्रतिपदा, (2) द्वितीया, (3) तृतीया, (4) चतुर्थी, (5) पंचमी, (6) षष्ठी, (7) सप्तमी, (8) अष्टमी, (१) नवमी, (10) दशमी, (11) एकादशी, (12) द्वादशी, (13) त्रयोदशी, (14) चतुर्दशी, (15) पूर्णिमा एवं (30) अमावस्या।
नोट-पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से चतुर्दशी तक पूर्वानुसार तिथियों के नाम एवं अंक चलते हैं। अमावस्या को 30 लिखते हैं।
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