दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) निर्णय 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 ई
दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) निर्णय 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 ई
प्रदोष काल : दीपावली एक नवंबर को ही मनाई जाएगी
इस वर्ष दीपावली पर्व की तिथि को लेकर मतभेद और भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
धर्म सिंधु के अनुसार दीपावली की अमावस्या को प्रदोष व्यापिनी होना चाहिए, यानी अमावस्या का समापन समय उस दिन के संध्याकाल को छूना चाहिए ।
इस साल अर्थात 2024 में कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:56 से प्रारंभ होगी और एक नवंबर को सायं 5:32 पर समाप्त होगी।
जो एक प्रदोष काल है। ऐसे में प्रदोष काल को देखते हुए दीपावली 1 नवंबर को ही मनाई जानी चाहिए और बहुत से विद्वान भी इस बात पर एकमत है।
दीपावली (कार्त्तिक अमावस्या)
प्रदोष (सूर्यास्त के बाद त्रिमुहूर्त्त) व्यापिनी कार्त्तिक अमावस्या के दिन 'दीपावली' मनाने की शास्त्राज्ञा है। इस दिन प्रदोष में लोग' श्रीमहालक्ष्मी पूजन' करते हैं।
दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या का अभाव होने पर पहले दिन ही लक्ष्मीपूजन करने का धर्मसिन्धुकार ने निर्देश किया है, देखिए-
"परदिन एव, दिनद्वये वा प्रदोषव्यातौ परा।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजादौ पूर्वा,
अभ्यङ्ग-स्नानादौ परा, एवम-उभयत्र प्रदोष-व्याप्त्य-भावेऽपि।"
दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या की व्याप्ति या अव्याप्ति होने पर दीपावली दूसरे ही न दिन मनाई जाए-यही शास्त्रकारों का अन्तिम निर्णय है-
"दिनद्वये सत्त्वाऽसत्त्वे परा" - (तिथिनिर्णयः)
इस वर्ष 31 अक्तू. और 1 नवं., 2024 ई. को-दोनों दिन पड़ने वाली कार्तिक कृष्णपक्ष की यह अमावस्या दोनों ही दिन प्रदोषव्यापिनी है। अतः उपरोक्त नियमानुसार इस वर्ष दीपावली दूसरे दिन यानी 1 नवं., 2024 ई. को ही मनाई जाएगी।
अमावस्या यदि दो दिन पड़ती है और दोनों दिन प्रदोष काल को छूती है, तो दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन करना उचित होता है। प्रथम दिन की अमावस्या पितरों के लिए मानी जाती है, इसलिए पहले पितरों की पूजा की जाती है और इसके बाद ही लक्ष्मी पूजन होता है।
पं कृष्णा पाराशर के अनुसार, धार्मिक ग्रंथ' धर्म सिंधु' और 'निर्णय सिंधु' के आधार पर दीपावली का पर्व 1 नवंबर को मनाया जाना उचित है, जबकि धनतेरस 29 अक्टूबर को पड़ रहा है।
निर्णय सिंधु के अनुसार भी, यदि अमावस्या प्रदोष काल को दोनों दिन व्यापती है, तो दीपावली का पूजन अगले दिन करना चाहिए। बताया कि इस वर्ष 29 अक्टूबर को धनतेरस का पर्व होगा, जो दीपावली की पूर्व तैयारी का प्रतीक है। इस प्रकार, 1 नवंबर को अमावस्या प्रदोष व्यापिनी होने के कारण दीपावली और लक्ष्मी पूजन का सही समय वही होगा।
प्रदोषव्यापिनी (सूर्यास्त के बाद त्रिमुहूर्त्त) कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने की शास्त्राज्ञा है। इसवर्ष (वि. संवत् 2081 में) 31 अक्तूबर, 2024 ई. के दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समाप्तिकाल 15घं.-53 मिं. है। अतः चतुर्दशी समाप्ति के साथ ही कार्तिक अमावस्या शुरु होकर अगले दिन 1 नवम्बर, शुक्रवार सायं 18:17 मिं. तक व्याप्त है।
इससे स्पष्ट है कि -अगले दिन (1) नवम्बर) प्रदोषकाल में अमावस तिथि की व्याप्ति कम समय के लिए है। (क्योंकि पंजाब, हिमाचल, जम्मू आदि राज्यों में सूर्यास्त लगभग 17-35 मिं. पर होगा।), जबकि 31 अक्तूबर, 2024 ई. को अमावस्या पूर्णतया प्रदोष एवं निशीथकाल को व्याप्त कर रही है।
परन्तु फिर भी शास्त्रनिर्देशानुसार 'दीपावली पर्व' (महालक्ष्मी-पूजन) 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 ई. को ही मनाना शास्त्रसम्मत होगा।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए हम शास्त्र सम्मत जानकारी उदाहरण सहित आपके सामने रख रहे हैं।
यथा शास्त्र वाक्य-
'अथाश्विनामावस्यायां प्रातरभ्यंगः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मी-पूजनादि विहितम् ।
तत्र सूर्योदयं व्याप्ति-अस्तोत्तरं घटिकाधिकरात्रिव्यापिनी दर्श सति न संदेहः ।।' (धर्मसिन्धु)
(अर्थात् कार्तिक अमावस्या को प्रदोष के समय लक्ष्मीपूजनादि कहा गया है। उसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के अनन्तर 1 घड़ी (24 मिनट) से अधिक रात्रि तक (प्रदोषकाल) अमावस्या हो, तो कुछ सन्देह की बात नहीं है।)
परदिने एव दिनद्वयेपि वा प्रदोषव्याप्तौ परा।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा ।। (धर्मसिन्धुः) ।
अर्थात् अमावस्या दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी हो तो परले अर्थात परली (आगामी दिन) ही लेनी होगी। तिथिनिर्णय (भट्टोजिदीक्षितकृत) पुरुषार्थ चिन्तामणि में तो यहाँ तक लिखा है कि यदि दोनों दिन अमावस प्रदोष का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
'इयं प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या।
दिनद्वये सत्त्वासत्त्वे परा ।।' (तिथिनिर्णयः)
इसी प्रकार
पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापिदर्श दर्शापेक्षया प्रतिपद्बुद्धिसत्त्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम् ।। एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्ति-पक्षेपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिक व्याप्ति-त्वात्परैव युक्तेति भाति ।। (पुरुषार्थ चिन्तामणि)
[ अर्थात् यदि अमावस्या केवल पहिले दिन ही प्रदोषव्याप्त हो, तथा यदि अगले दिन अमावस्या तीन प्रहर से अधिक व्याप्त हो तथा दूसरे दिन भी प्रतिपदा वृद्धिगामिनी होकर तीन प्रहर के उपरान्त समाप्त हो रही हो, तो लक्ष्मीपूजन अगले दिन (अमावस) ही करें। इसी प्रकार यदि दोनों दिन अमावस्या प्रदोषव्याप्त होने से अगले दिन लक्ष्मीपूजन युक्तियुक्त होगा।]
उभयदिने प्रदोषव्याप्तौ परा ग्राह्या।
'दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि ।
तदा विहाय पूर्वेद्यु परेऽह्नि सुखरात्रिकाः ।' (तिथितत्त्व)
अर्थात् यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी हो, तो अगले दिन करें - क्योंकि तिथितत्त्व में ज्योतिष का वाक्य है - एक घड़ी रात्रि (प्रदोष) का योग हो तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।
यद्यपि-दीपावली के दिन निशीथकाल में लक्ष्मी का आगमन शास्त्रों में अवश्य वर्णित है, लेकिन कर्मकाल (लक्ष्मी पूजन, दीपदान आदि का काल) तो प्रदोष ही माना जाता है। लक्ष्मीपूजन, दीपदान के लिए प्रदोषकाल ही शास्त्र प्रतिपादित है-
प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात् ।
दीपवृक्षाश्च दातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ।।
निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, पुरुषार्थ चिन्तामणि, तिथि-निर्णय आदि ग्रन्थों में दिए गए शास्त्रवचनों के अनुसार दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होने पर दूसरे दिन ही अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त (प्रदोषव्यापिनी) वाली अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा।
अतएव सभी शास्त्र-वचनों पर विचार कर हमारे मतानुसार 1 नवम्बर, 2024 ई., शुक्रवार को ही दीपावली पर्व तथा लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा। सम्पूर्ण भारत में यह पर्व इसी दिन होगा। यही निर्णय भारत के अधिकतर पंचाङ्गकारों को मान्य है। परम्परा अनुसार तथा गत अनेक उदाहरण भी इसी मत को मान्यता देते हैं।
[ ध्यान दें, कुछ विद्वानों/पंचांगकारों के मतानुसार पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरला आदि राज्यों में जहाँ अमावस्या तिथि 1 नवम्बर के दिन प्रदोषकाल को 1 घड़ी से कम (अर्थात् जहाँ सूर्यास्त 17:53 के बाद होगा) अथवा प्रदोष से पूर्व ही समाप्त (18:17 के बाद सूर्यास्त होगा।) हो जाएगी, वहाँ दीपावली पर्व 31 अक्तूबर, बृहस्पतिवार को करना चाहिए-तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि ]
'यां तिथिं समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः।
सा तिथि सकला ज्ञेया स्नान-दान-व्रतादिषु ।।
इस शास्त्रवचनानुसार इसी दिन (1 नवम्बर, 2024 ई.) प्रदोषकाल में साकल्यापादित अमावस तो विद्यमान् रहेगी ही। इसका अभिप्राय यह भी है कि भले ही गणितागत तिथि किसी दिन कर्मकाल के एक ही पल को व्याप्त क्यों न करे, उसका पूर्ण कर्मकाल धर्मशास्त्रानुसार साकल्यापादिता तिथि से व्याप्त होने के कारण व्रत-पूजानुष्ठान के योग्य होता है। अतः इस वर्ष 1 नवम्बर, शुक्रवार को ही प्रदोष में महालक्ष्मी पूजन होगा।
पंजी० सं० 1249 & U/s 12AA of I.T. Act. 1961
।। श्री वामनाय नमः ।।
!! स्थापित 1960!!
श्री विद्वत्परिषद् संस्थान (पंजी.) मथुरा
संस्थापक : आचार्य महर्षि पं० शिवचरण लाल शास्त्री "विद्यावाचस्पति"
कार्यालय: 340, सब्जी मण्डी, चौक बाजार, मयुरा (उ0प्र0) 281001
स्वरदूत: 09412885184, 08449123335
पं. गजेन्द्र शर्मा "चेयरमैन लक्ष्मीयुप"
संरक्षक डा. घनश्याम पाण्डेय "वरिष्ठ चिकित्सक"
सचिव आचार्य श्रीकान्त शास्त्री "इन्दुराजा"
पत्रांक :
प्रकाशनार्थ
दिनांक : 19 अक्टूबर 2024 ई.
श्री विद्वत्पषिद् संस्थान (पंजी.) मथुरा के तत्वाधान में मथुरा के समस्त ज्योतिषाचार्यों एवं कर्मकाण्डकर्ता विद्वानों द्वारा निर्णय लिया गया कि आर्षग्रन्ध धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु के आधार पर आगामी श्रीधनवन्तरिजयन्ती (धनतेरस) दि. 30 अक्टूबर 2024 बुधवार, एवं श्रीमहालक्ष्मीपूजन (दीपावली) दि. 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को मनाना शास्त्रसम्मत उचित रहेगा।
1 - श्रीधनवन्तरि जयन्ती (धनतेरस) निर्णय
दिनांक 30 अक्टूबर 2024 मान्यता है कि पूर्वकाल में परात्पर परब्रह्म श्रीहरि के बारहवें अवतार श्री धनवन्तरिजी (आयुर्वेद प्रवर्तक) का जन्म (प्राकट्य) कार्तिक वदी त्रयोदशी (तेरस) को हस्त नक्षत्र में हुआ था।
त्रयोदशी के दो भेद हैं
अ त्रयोदशी।
ब जयन्ती ।
अ त्रयोदशी: त्रयोदशी के दिन हस्त नक्षत्र एक कला भी नहीं हो, केवल त्रयोदशी तिथि सूर्योदय समय पर हो, तो वह तिथि त्रयोदशी (तेरस) कहलाती है, और उसी दिन त्रयोदशी (धनतेरस) मनानी चाहिए ।
ब - जयन्ती : जिस त्रयोदशी तिथि में एक कला भी हस्त नक्षत्र हो, तो वह जयन्ती कहलाती है, और पद्मपुराण का यह निर्णय है कि
"मुहूर्तेनापि संयुक्ता सम्पूर्णा सत्रयोदशी भवेत्।
किं पुनर्चतुर्दशीयुक्ता कुलकोट्यास्तु मुक्तिदा।।"
अर्थात् दो घड़ी भी त्रयोदशी सूर्योदय समय पर हो, तो वह सम्पूर्ण (सवदिन) मानी जाती है। उस तिथि में किया हुआ, धार्मिक कार्य (पूजन) करोड़ो कुलों को मुक्तिदाता कहा गया है।
उपरोक्तानुसार अबकी वार बहुत समय के बाद त्रयोदशी एवं जयन्ती दोनों का एक साथ संयोग बन रहा है। अतः दिनांक 30 अक्टूबर 2024 बुधवार को श्रीधनवन्तरि जयन्ती (धनतेरस) मनाना शास्त्र सम्मत उचित रहेगा ।
2 - श्रीमहालक्ष्मीपूजन (दीपावली) निर्णय
दिनांक 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार मान्यता है कि कार्तिक मास में प्रदोष व्यापिनी अमावस्या में,
"प्रदोषसमये राजन्कर्तव्या दीपमालिका"
स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करना चाहिए । इस वर्ष सम्वत् 2081 में कार्तिक अमावस्या दि. 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को अपराह्न 03 52 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन दि. 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार शाम को 06 16 मिनट तक रहेगी। इस स्थिति में अमावस्या तिथि दो दिन प्रदोष काल में व्याप्त है, और प्रदोष काल का समय सूर्यास्त के बाद लगभग 144 मिनट, अर्थात् 02 घण्टा 24 मिनट माना गया है। धर्मशास्त्र की आज्ञा है, कि यदि दो दिन अमावस्या प्रदोष व्यापिनी हो, तो दूसरे दिन वाली ही अमावस्या में लक्ष्मी पूजन करना चाहिए ।
निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के द्वितीय परिच्छेद में लिखा है कि
"दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि ।
तदा विहाय पूर्वेद्युः परेऽह्नि सुखरात्रिका"
तिथितत्त्वे ज्योतिर्वचनात्
अर्थात् यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी होवे, तो तिथि तत्त्व में ज्योतिषों का कहना है कि एक घड़ी रात्रि का योग हो, तो अमावस्या दूसरे दिन होती है और तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।
"इयं प्रदोषव्यापिनी साह्या, दिनद्वये सत्त्वाऽसत्त्वे परा" इति तिथि निर्णयः ।
अर्थात् दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या की व्याप्ति या अव्याप्ति होने पर लक्ष्मी पूजन (दीपावली) दूसरे दिन ही करनी चाहिए यही शास्त्रकारों का अन्तिम निर्णय है। निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के प्रथम परिच्छेद में स्पष्ट निर्देश है कि
"कर्मकालस्य प्रधानांगत्वाच्व, युग्मवाक्यं तु निगमः ।"
अर्थात् जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो, तो निर्णय युग्मानुसार करें:-
"प्रतिपद्यप्यमावास्यातिथ्योर्युग्मं महाफलम्"
निर्णय सिन्धु ग्रन्थ में अमावस्या को प्रतिपदायुता ग्रहण करने का महाफल बताया गया है। प्रतिपदायुता अमावस्या ग्रहण किये जाने युग्म का जो निर्देश है, उसके अनुसार भी प्रदोष का स्पर्श मात्र ही पर्याप्त है। यदि दो घड़ी से कम व्याप्ति होने के कारण प्रथम दिन ग्रहण किया जाता है, तो युग्म व्यवस्था के उल्लंघन का दोष होगा।
निर्णय सिन्धु ग्रन्थ में नक्षत्र का उल्लेख करते हुए कहा है कि:-
"स्वॉतिस्थिते रवाविन्दुर्यदि स्वॉतिगतो भवेत् । पञ्चत्वगुदकस्नायी क्ताभ्यङ्गविधिर्नरः ।
नीराजितो महालक्ष्मीमचंयन् श्रियमश्नुते"
अर्थात् स्वाँति नक्षत्र में सूर्य, चन्द्रमा हो, तो उस दिन मनुष्य को पञ्चस्नान करके (लक्ष्मी पूजन) दीपावली मनानी चाहिए। अबकी वार यह संयोग भी बन रहा है कि दि. 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को स्वाँति नक्षत्र है, और सूर्य, चन्द्रमा दोनों तुला राशि व स्वाँति नक्षत्र पर है।
धर्मसिन्धु ग्रन्थ में निर्देश किया गया है कि
"परदिन एवं, दिनद्वये वा प्रदोषव्याप्तौ परा ।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजादौ पूर्वा,
अभ्यङ्गस्नानादौ परा, एवमुभयत्र प्रदोषव्याप्तयभावेऽपि ।"
अर्थात् दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या की व्याप्ति या अव्याप्ति होने पर लक्ष्मी पूजन (दीपावली) दूसरे दिन ही करनी चाहिए । दीपावली निर्णय प्रकरण में कहा है कि
"तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकादिक रात्रि व्यापिनी दशैं न सन्देहः "
अर्थात् यहाँ सूर्योदय में व्याप्त होकर अस्तकाल के उपरान्त एक घड़ी से अधिक व्यापी अमावस्या होवें, तब भी सन्देह नही है, के अनुसार दि. 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को दूसरे दिन सूर्योदय में व्याप्त होकर सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में एक घड़ी से अधिक विद्यमान है। अतः उपरोक्त सभी धर्म ग्रन्थों के आधार पर दि. 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को श्रीमहालक्ष्मी पूजन (दीपावली) मनाना शास्त्र सम्मत उचित रहेगा ।
पञ्चदिवसीय दीपोत्सव पर्व क्रमः
1) 30 अक्टूबर 2024 बुधवार श्री धनवन्तरिजी पूजन (धनतेरस) ।
2) 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार रूपचौदस (नरक चतुर्दशी) ।
3) 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार श्रीमहालक्ष्मी पूजन, दीपोत्सव पर्व दीपावली ।
4) 02 नवम्बर 2024 शनिवार श्रीगोर्वधन पूजन अन्नकूट ।
5) 03 नवम्बर 2024 रविवार यमद्वितीया भाई दौज ।
विशेष नोट :- शास्त्रमत में लोकाचार की मान्यताएं (जैसे अहोई अष्टमी से नवमां दिन या सातवाँ दिन) गौण होती है।
शेष शुभ
।। शुभ्मभूयात् ।।
Comments
Post a Comment