सम्मोहन से रोग निवारण
सम्मोहन से रोग निवारण
लेखक –> रमेश चंद्र श्रीवास्तव (नूतन कहानियां जनवरी, 1995)
पहले लोग सम्मोहन का अर्थ तांत्रिक क्रियाओं से लेते थे। उसके पश्चात् यह समझने लगे कि सम्मोहन के द्वारा किसी मानसिक विकार को दूर किया जा सकता है। काफी दिनों तक हम यही जानते और देखते थे कि वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, योगी, तांत्रिक जो सच्चे हों और उनमें सम्मोहन शक्ति का विकास, संचार एवं अभ्यास हो चुका हो, बे लोग मानसिक रोग ग्रसित व्यक्ति का उपचार बिना किसी औषधि या चिकित्सा के कर सकते हैं।
परंतु सम्मोहन शक्ति पर निरंतर अभ्यास, साधना एवं प्रयोग करते करते अब इस निष्कर्ष पर पहुंच गये हैं कि सम्मोहन शक्ति के द्वारा बिना किसी प्रकार की बेहोशी की दवा दिए ही छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा आपरेशन तक किया जा सकता है। मरीज को किसी भी दवा से बेहोश नहीं किया जाएगा और एक निश्चित अवधि के अंदर उसके नाजुक से नाजुक आऔर महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण अंगों का चिकित्सीय आजाग से काटा, चीरा, छांटा और फिर सिला जा सकता है। उस एक निश्चित अवधि में मराज को न किसी प्रकार का कष्ट अनुभव होगा और न उसे किसी प्रकार की आपरेशन संबंधी पीड़ा का एहसास होगा।
आप चौके कदापि नहीं ऐसा संभव है। संभावना तक ही न रहिए विभिन्न देशों में सम्मोहन पद्धति से आपरेशन हो रहे हैं। सम्मोहन के द्वारा शारीरिक मानसिक रोगों का निवारण करना तो अब आम बात हो गयी है। सम्मोहन शक्ति का महत्व आज सारा विश्व मान चुका है और इसे एक विद्या मानकर स्वीकारा जा चुका है। शायद ही ऐसा देश होगा जहां सम्मोहन शक्ति को नाकारा जा रहा हो अथवा इसे एक आध्यात्मिक विज्ञान के रूप में न लेकर केवल तांत्रिक क्रिया या झाड़-फूंक की कला माना जा रहा हो। हां यह बात स्वीकार की जा सकती है कि आज से हजारों साल पहले इसके बारे में इतना प्रचार-प्रसार नहीं हुआ था कि लोग सम्मोहन जैसी प्रबल शक्ति पर वैज्ञानिक तरीके से सोचते या कार्य करते। जबकि यह भारतवर्ष के योगियों एवं ऋषियों की प्राचीन बिद्या एवं साधना थी।
परंतु उन्होंने सम्मोहन शक्ति का प्रचार प्रसार इसलिए नहीं किया था कि इसकी उच्च शक्ति पाकर कोई भी व्यक्ति समाज में अनाचार, दुराचार एवं अपराध जैसी अनैतिक क्रियाएं किसी भी व्यक्ति को सम्मोहित करके उसके साथ कर सकता था या उसी स्व० डॉ० कपूर सम्मोहन से चिकित्सा करते हुए
फिर भी सम्मोहन की क्रिया छोटे स्तर पर समाज के सामान्य व्यक्तियों में प्रचलित थी। ये आवेश प्रभावित या भूत-प्रेत ग्रसित या मनोविकार के रोगियों पर इसका प्रयोग करते थे। भले ही वे लोग भी यही समझते थे कि जो क्रिया वह रोगी के साथ कर रहे हैं वह सम्मोहन हैं। वे और उनके रोगी या रोगी के स्वजन यही समझते थे कि यह सब तांत्रिक क्रियाएं हैं। यह लोग भी आज के आधुनिक सम्मोहकों की ही भांति पागल या आवेश ग्रसित व्यक्ति या भूत-प्रेत से पीड़ित स्त्री-पुरुष को अपने तरीके से कटु शब्दों में गालियां देते थे या आज्ञा देते थे। आज भी माध्यम को सम्मोहित करने के बाद सम्मोहक आदेश देता था, उससे पूछता है उसको निर्देश देता है। यही आदेश-निर्देश वे अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग आज भी देते हैं पा यह समझकर नहीं कि यह उनकी सम्मोहन क्रिया से संबंधित बातें हैं। शहरों से अधिक गांवों में इस बात पर ज्यादा और सरलता से विश्वास किया जाता है कि आवेश ग्रसित व्यक्ति पर भूत प्रेतं बाधा है। मनोरोग, साइको, फोविया, सीजोप्रेनिया, फ्रिजीडिटी, इन्सोमेनिया, कुंठा आि रोगों का कुप्रभाव ही ऐसा होता है जिसको भूत-प्रेत बाधा मान लिया जाता है। जिसका इलाज साधारण डॉक्टर नहीं कर सकता।
भारतीय विद्वान या योगी या सम्मोहन शक्ति का साधक इन बातों को समझता है फिर भी बह रोगोपचार के बारे में सब कुछ जानते हुए भी मनोरोगी या उसके परिवारवालों को विश्वास ही नहीं दिला पाता कि तुम्हारा स्वजन मनोरोगी है। यदि विश्वास, भी दिलाना चाहे तो लोग विश्वास ही नहीं करते क्योंकि तांत्रिक मांत्रिक दुकान चलानेवाले उन्हें पहले ही समझा चुकते हैं कि वह एक नहीं कई भूतों, प्रेतों, चुड़ैलों, ब्रह्म राक्षस के प्रकोप से ग्रसित हैं। अतः वे उन्हीं बातों का उपचार कराना चाहता है। आए दिन ऐसे लोगों का सामना मुझे व्यक्तिगत रूप से करना पड़ता है। लाख कहो कि योग्य मनोचिकित्सक के पास जाइये, दवाइयों का भी सहारा लीजिए पर वे लोग मानते ही नहीं हैं।
सम्मोहन शक्ति तथा सम्मोहन चिकित्सा के माध्यम से भारतीय योगी अपने कृपा पात्रों के भयंकर से भयंकर रोगों को ठीक कर देते थे और स्व-सम्मोहन की सहायता से अपने आध्यात्मिक क्षेत्र को बढ़ाकर लंबी, निरोग, आयु तक प्राप्त कर लेते थे। वास्तव में जिसे अंग्रेजी में मेडीटेशन कहते हैं, उसी को भारतीय ध्यान कहते हैं। परंतु सम्मोहन उसके आगे की योगिक क्रिया है ऐसा सभी स्वीकार करते हैं।
सर्वप्रथम भारत में इस विधा के विद्यमान होने के प्रमाण हमारे ही नहीं, विश्व के ग्रंथों में मौजूद हैं। भारत से होती हुई यह विद्या रोम, मिश्र तथा इटली तक पहुंच गयी। और फिर धीरे धीरे अन्य देशों ने इस पर शोध करके अपनाना प्रारंभ कर दिया। आज तो अमेरिका जैसा विकसित देश अपनी चिकित्सा पद्धति में सम्मोहन को काफी महत्व दे रहा है और उनके प्रयोग सफल भी है।
किंतु आज से ढाई-तीन सौ वर्ष पहले सम्मोहन की भारतीय पद्धति के आधार पर कुछ प्रयोग करने जब रोम निवासी डॉ० मेस्मोर ने इस विद्या के माध्यम से रोग निवारण का पता लगाकर आम लोगों पर इसका सफल प्रयोग किया तो रोमवासियों ने उन्हें जादू टोना करनेवाला और इस सम्मोहन विद्या को जादू टोना की विधि समझकर उनका बड़ा अपमान किया। फलस्वरूप डॉ० मेस्मोर को रोम छोड़ना पड़ा। वे रोम छोड़कर इंग्लैंड में जा बसे। वहां उनके सफल प्रयोगों के फलस्वरूप उन्हें बड़ा मान मिला। यहां तक कि सम्मोहन के दूसरे स्वरूप जिसे कुछ लोग सम्मोहन ही समझते हैं। उसका नाम डॉ० मेस्मेर के नाम पर ही मेस्मेरिज्म पड़ा। मेस्मेरिज्म भारत में प्रचलित मोहिनी विद्या को या अधिक कहें तो वशीकरण विद्या को कहते हैं। तब अन्य देशों की भी आंखें खुल गयीं। सामान्य समझे जानेवाली क्रिया या जादू टोना कहकर उपेक्षित कर दी जानेवाली विद्या ने जब अपना विस्तार पाया तो प्रत्येक देश में सम्मोहन विद्या के जानकार, साधक और सम्मोहक बन गये। हर देश अपने अपने वैज्ञानिकों के माध्यम से इस विद्या की खोजबीन शोध कराने लगा। हर देश में मानसिक रोगों से संबंधित तथा सम्मोहन से संबंधित कोई न कोई संस्था बन गयी।
अमेरिका में भी 'न्यूरो इम्यूनो रिसर्च सोसाइटी बनी। उसने भारत, ग्रीस, मिश्र, इंग्लैंड में बनी सोसाइटीज तथा संस्थानों से संपर्क किया और भारत तथा अन्य देशों में पूर्व प्रचलित सम्मोहन पद्धति की चिकित्सा पर गहन शोध किया कराया और आज वहां इस चिकित्सा पद्धति को काफी महत्व दिया जाता है। अमेरिका के लोग यानी डॉक्टर बिना किसी बेहोशी की दवा दिए ऑपरेशन तक करने की क्षमता पैदा कर चुके हैं। जबकि यह चिंता का विषय है कि भारत देश अभी वहां तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है। हमारी ही विद्या हमारी पद्धति से हम उतना अच्छा लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
चूंकि सम्मोहन विद्या का दुरुपयोग भी हो सकता सम्मोहित नारी है। इसीलिए पहली बार लगभग ५० वर्ष पूर्व जब इंग्लैंड में विभिन्न देशों के सम्मोहक वैज्ञानिक जमा हुए और उन्होंने एक हाल में विचार विनिमय किया तो सारा लंदन ही नहीं बरन् यूरोप के विभिन्न देशों में उनका विरोध किया गया। सम्मेलन के प्रबंधकों को विभिन्न देशों से धमकियां मिलने लगीं। वास्तव में उस समय लोगों ने इस विद्या के सुप्रभावों तथा लाभप्रद पहलू पर ठीक विचार नहीं किया। सभी लोगों ने इसके कुपरिणामों की ओर ही ज्यादा ध्यान दिया। उन लोगों के मन में यह धारणा बन गयी कि इस सम्मोहन शक्ति को प्राप्तकर लोग किसी को भी सम्मोहित करके मन की बातें जान लेंगे और इसका कुप्रभाव पड़ेगा। लोगों के अंदर यह भी धारणा कर गयी कि सम्मोहनकर्ता किसी को भी अपने वश में कर लेगा और फिर उससे मनचाहा कार्य करा सकता हैः। उन लोगों ने यहां तक समझ लिया और अन्य लोगों को समझा दिया कि कुछ सम्मोहनकर्ता युवतियों को सम्मोहितकर उनके साथ दुराचार या यौनाचार की क्रिया कर सकते हैं अथवा किसी को भी मोहित कर आत्महत्या करने या दूसरे की हत्या करवाने में सफल हो सकते हैं। ऐसे लोगों ने यही समझा था कि सम्मोहन का अर्थ है किसी को भी अपने वश में करके उससे मनचाहा कार्य करा लेना या उसे आदेश-निर्देश देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
यहां पाठकों को विश्वव्यापी सम्मोहन शक्ति की पृष्ठभूमि समझाने या रोगों के निवारणार्थ इस चिकित्मा पद्धति के बारे में विवरण प्रस्तुत करने से पूर्व यह बता दूं कि इस अंक में सम्मोहन से संबंधित जितने भी लेख हैं उन्हें आप भली प्रकार पढ़ लें, समझ लें।
आपको सम्मोहन से रोग निवारण संबंधी बातें जानने से पूर्व भी यह जान लेना आवश्यक है कि सम्मोहन शक्ति क्या है। सम्मोहन शक्ति की साधनाएं क्या हैं। सम्मोहन शक्ति का प्रयोग कैसे करे। और माध्यम किसे कहते हैं। स्व-सम्मोहन की क्रिया क्या होती है। यह सब जान लेने के बाद ही आप भली प्रकार यह समझ सकते हैं कि सम्मोहन द्वारा रोगों की चिकित्सा कैसे की जाती है या की जा सकती है।
लंदन में हुए सम्मेलन का विरोध होने का कारण यही था कि लोगों ने यह नहीं समझा कि हिप्नोटिज्म या सम्मोहन या हिप्नोथिरेपी से व्यक्ति के चेतन मन को गहरी नींद में इतना नहीं डाला जाता कि उसे अपना अनुभव एवं आवास तक न हो। यह सत्य है कि सम्मोहन में व्यक्ति के चेतन मन को सुप्ता अवस्था या निद्रा अवस्था में लाकर अवचेतन मन से डाइरेक्टर, सीधा संपर्क कर लिया जाता है। परंतु यह धारणा गलत है कि सम्मोहन की स्थिति
स्थिति सम्मोहित व्यक्ति की पूर्ण चेतना ही लुप्त हो जाती है । वास्तव में सम्मोहन की पूर्ण अवस्था में भी कम से कम दस प्रतिशत चेतन मन जागरूक तथा जागृत अवस्था में बना रहता है। किसी-किसी का तो १० से २० प्रतिशत तक यह जागृत रह जाता है। ८० से ६० प्रतिशत अवचेतन मन या उपमस्तिष्क जागृत हो जाता है और इसी में पड़ी, दबी, शमित या कुंठित भावनाओं को उभारा जाता है अथवा चिकित्सा पद्धति में इसी मन पर अपने आदेशों, निर्देशों का प्रभाव डालकर व्यक्ति की शारीरिक मानसिक व्याधियों ठीक की जाती हैं।
यहां यह भी समझ लेना चाहिए कि जिस बात की सम्मोहित व्यक्ति न मानना चाहेगा या जो बात उसे अनैतिक, अनौचित्यपूर्ण लगेगी उससे वह स्पष्ट इनकार कर सकता है। उसकी यह अस्वीकृति उसके दस से बीस पञ्चीस, चेतन मन से जागृत रहने के कारण ही संभव होती है।
एक बार फिर जब इंग्लैंड तथा एमस्टईम में सम्मोहन कर्ताओं की बर्ड कांग्रेस ऑफ हिमोटिस्ट एंड सेक्सोलॉजिस्ट का सम्मेलन आयोजित किया गया तो यूरोप के ही नहीं विश्व भर के मनोचिकित्सकों, सम्मोहनकर्ताओं ने भाग लिया। भारत से भी पांच सम्मोहन शास्त्रियों का एक ग्रुप वहां भाग लेने के लिए गया था वहां के सम्मेलन में कैलफोर्निया विश्वविद्यालय के हिप्नोटिज्म एंड सेक्सोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० गोल्डेन तथा वहीं के उपाध्यक्ष डॉ० ब्लैकबेल ने अपने भाषण में यह घोषणा करके भारतवर्ष को गौरवांवित किया कि यह सम्मोहन चिकित्सा पद्धति सर्व प्रथम भारत में ही विकसित हुई है और धीरे-धीरे जर्मनी तथा इंग्लैंड जैसे देशों से होती हुई विश्व में फैल गयी है।
उक्त सम्मेलन में भारत के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एवं सम्मोहक डॉ० जे० गिरीश ने यौन रोग पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत में भी मनोरोगियों तथा यौन रोगियों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है। सम्मेलन के दौरान जो चर्चा हुई उससे निष्कर्ष निकाला गया कि यौन रोगियों का प्रतिशत मनोचिकित्सा में शत-प्रतिशत है और अन्य कारणों से रोगियों का ६५ से ६८ प्रतिशत है। फ्रांस से आई एक हिप्नोटिज्म स्पेशलिस्ट ने यह कहा कि उसके पास चिकित्सा के लिए आनेवाले रोगियों में लड़कियों की संख्या ज्यादा होती है। उनमें अधिकांश का कारण यौन विकृतियां होता है।
उपरोक्त समस्त विवरण सम्मेलनों के निर्णय से यह समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति के मानसिक रोग का कारण ८०, ६० प्रतिशत विख्यात मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार यौन से ही संबंधित होता है। अब हमें यह देखना चाहिए कि क्या मानसिक रोगों का या यौन विकृतियों का कुप्रभाव हमारे शरीर पर या शरीर के किसी अंग पर भी पड़ता है?
समस्त शरीर इंद्रियों के वश में है और समस्त इंद्रियां मन के वश में हैं। अतः मन सबसे बड़ा एवं शक्तिशाली होने के साथ हमारे लिए महत्वपूर्ण है। यही मन जब विकारग्रस्त हो जाता है तब वे इंद्रियां या उनमें से कोई इंद्रिय बेकार या विकारग्रस्त हो जाती है। अतः यह स्पष्ट हो गया कि मन मस्तिष्क के विकार ग्रस्त होने पर शारीरिक विकार भी पैदा उंगलियों से सम्मोहन क्रिया चेतना से अक्चेतना तक हो जाता है।
मस्तिष्क पर चोट के लगने या शारीरिक विकार से मस्तिष्क पर जब विकार पैदा होता है तो उसे चिकित्सा प्रणाली से, ऑपरेशन से, दवाओं से ठीक कर लेते हैं अच्छे चिकित्सक। किंतु जब मन के विकार ग्रसित हो जाने से मानसिक रोग या शारीरिक रोग हो जाते हैं तब उसे साधारण डॉक्टर ठीक नहीं कर सकते। ऐसी अवस्था में रोगी को मनोरोग विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक अथवा किसी योग्य सम्मोहन शास्त्री के पास ले जाना होता है। सम्मोहन शास्त्री मानसिक विकार का कारण तो जानने का प्रयास करता ही है साथ ही वह मानसिक विकार के कारण उत्पन्न शारीरिक विकार का कारण भी सम्मोहन विद्या का प्रयोग करके जान लेता है। तब सम्मोहन से उपचार करता है।
मानसिक रोगी की जब साधारण अवस्था रहती है तो उसे हम आवेग या आवेश ग्रसित मान लेते हैं। किंतु जब वही आवेग या आवेश तीव्रतम हो जाता है तो उसे पागल करार कर दिया जाता है। ऐसे तीव्रतर आवेग वाले पागलों का सम्मोहन शक्ति, सम्मोहन चिकित्सा से उपचार हो जाता है।
फिर भी ऐसे लोगों के परिवार वाले सामान्य चिकित्सा से थक हारकर उन्हें किसी पागलखाने में भेज देते हैं। वहां भी उनका इलाज मनोवैज्ञानिक पद्धति और सम्मोहन द्वारा हो सकता है। परंतु शायद होता नहीं है। खैर पागलों और पागलखाने के बारे में अंत में कुछ तथ्य दूंगा। यहां पर सर्वप्रथम यह जान लेना परम आवश्यक है कि सामान्य से विशेष मनोरोगी बनता कैसे है।
मानसिक रोगों के कारण-मानसिक रोग दो प्रकार के होते हैं। पहली श्रेणी में तो ऐसे लोग आते हैं जो जन्मजात मानसिक रोगी होते हैं। दूसरी श्रेणी उन मानसिक रोगियों की है जो जीवन के किसी मोड़ पर, किसी आयु वर्ग पर पहुंचकर मानसिक रोगी बन जाते हैं।
जन्मजात रोगियों के संबंध में भारतीय धर्म एवं दर्शन यह मानता है कि ऐसे लोगों के मानसिक विकार का कारण उसके पूर्व जन्मों का कुप्रभाव है जो परोक्ष रूप से उसके मन पर जमा रहता है अर्थात् पूर्व जन्म की कुंठाएं, कुविचार, कुकर्मों तथा अनैतिकता का पछतावा ऐसे लोगों के चेतन मस्तिष्क पर भी और अचेतन मस्तिष्क पर भी छाया रहता है। इसे इस प्रकार भी जान लें कि अचेतन मस्तिष्क, चेतन मस्तिष्क या मन पर हावी रहता है। पुनर्जन्म के संस्कार इस जन्म में आते हैं या नहीं इसका विवेचन करना यहां संभव नहीं है। परंतु यदि पाठकों ने इस विषय में 'नूतन कहानियां' के 'पुनर्जन्म महाविशेषांक' में जानकारी, ज्ञान प्राप्त कर लिया है तो वे मेरी इस बात को भली-भांति समझ जाएंगे। जिन पाठकों के 'पुनर्जन्म महाविशेषांक' नहीं पढ़ा या पुनर्जन्म संबंधी अच्छा ज्ञान कहीं से प्राप्त नहीं किया। उन्हें मेरा परामर्श है कि वे पुनर्जन्म संबंधी ज्ञान के लिए और इस विषय को समझने के लिए 'पुनर्जन्म महाविशेषांक' कुसुम प्रकाशन के 'नूतन कहानियां' कार्यालय से मंगाकर अवश्य पढ़े।
धर्म एवं दर्शन को अलगकर यदि हम चिकित्सकों से ऐसे जन्मजात पागलों या मानसिक रोगियों या मानसिक विकृतियों के कारण शारीरिक रोगियों के बारे में कारण पूछें तो उनका सीधा सा उत्तर होगा कि प्रसव पूर्व ही ऐसे लोगों का मानसिक श्रायु तंतुओं, मस्तिष्क की कोशिकाओं का विकास नहीं हुआ। अथवा प्रसवकाल की कुछ अज्ञात अनियमितताओं अथवा गलत ढंग के प्रसव के
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