शक्ति चक्र और सम्मोहन
शक्ति चक्र और सम्मोहन

शक्ति चक्र का चित्र आकर्षक एवं चमकदार होना आवश्यक है ताकि आंखों पर उसका असर पड़े तथा साधक की दृष्टि का चुंबकीय प्रभाव सरलता से पड़ सके क्योंकि साधक की दृष्टि का केंद्र बिंदु शक्ति चक्र होता है।
सम्मोहन एक अस्वाभाविक प्रक्रिया है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। व्यक्ति इसे ज्ञान शक्ति या प्रयोग के रूप में ग्रहण करता है तो यह उसके लिए विशेष विद्या का विषय बन जाता है। यों हम आमतौर पर राह चलते या पार्टियों में या सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी विचारधारा के या पूर्व परिचय के किसी-न- किसी की ओर आकर्षित तो होते ही हैं और अन्य किसी-न-किसी को या बहुतों को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं।
आकर्षित होना और आकर्षित करना एक सामाजिक मानवीय मूल प्रवृत्ति है। हर कोई चाहता है कि हम आकर्षक दिखें। इसी भावना से कुछ महान एवं श्रेष्ठ भावना है-सम्मोहन। अधिकांश लोग सोचते हैं कि हमारे अंदर दूसरों को सम्मोहित करने की क्षमता आ जाए। आकर्षक एवं सुंदर शारीरिक क्षमता वाले स्त्री-पुरुष चाहते हैं कि वे अपने रूप-सौंदर्य से वाह्य व्यक्तित्व से और बड़ी-बड़ी या चमकीली आंखों से जिस किसी को चाहें उसे सम्मोहित करके अपने वश में कर लें अथवा अपने अनुकूल बना लें।
इसी तरह एक अच्छा वक्ता अपनी वाणी से, कुशल कलाकार अपनी कला से, श्रेष्ठ खिलाड़ी, अपने खेल से तथा चित्रकार-शिल्पकार, रचनाकार अपनी रचना से अन्य को अपने प्रति आकर्षित करना ही नहीं वरन् सम्मोहित करना चाहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सामान्य व्यक्ति से लेकर महान व्यक्ति तक के अंदर दूसरों को सम्मोहित करके अपने अनुकूल बना लेने की प्रबल इच्छा होती ही है।
कुछ लोगों में यह गुण यह शक्ति जन्म-जात पाई जाती है। वह दैवी गुण होता है या पूर्व जन्मों की साधना का फल होता है। ऐसे लोग साधारण सम्मोहन से लेकर विशिष्ट सम्मोहन क्रिया तक कर लेते हैं। उनकी मुखाकृति, आंखों, वाणी तथा संपूर्ण व्यक्तित्व में ऐसा चमत्कारिक प्रभाव स्वयमेव दिखाई पड़ता है जो दूसरों को सहज में ही मोहित कर लेता है। ऐसे लोग यदि सम्मोहन विद्या की क्रियाओं का साधारण अध्ययन एवं अभ्यास करें तो उनके अंदर प्रबल सम्मोहन शक्ति का संचार हो सकता है और वे बड़ी सरलता से सम्मोहन विद्या एवं शक्ति से रोगियों को ठीक कर सकते हैं।
ऐसे लोग भारत देश में ऋषि-मुनियों के अतिरिक्त सामान्य जीवन जीनेवाले भी हुए हैं। विदेशों में भी ऐसी दैवी शक्ति प्राप्त लोगों का वर्णन मिलता है जिनके अंदर बिना किसी विशेष अभ्यास या क्रिया के सम्मोहन शक्ति का प्रादुर्भाव हो गया था और वे जन-कल्याण करते हुए विश्व विख्यात हो गये।
कुछ भी हो पर यह सत्य है कि कुछ सामान्य सी साधनाएं या यौगिक क्रियाएं करके कोई भी व्यक्ति एक अच्छा सम्मोहनकर्ता बन सकता है। हां, उसे कुछ दिनों, महीनों या एक-दो वर्षों तक १०-१५ मिनट से लेकर आधे घंटे तक का अभ्यास करना होगा।
सम्मोहन में शक्ति चक्र का महत्व :-
यह कोई अद्भुत यंत्र या मशीन नहीं है और ऐसी कोई वस्तु भी नहीं है जिसे कहीं से खरीदा या बनवाया जा सकता है। यह एक प्रकार का विचित्र-सा चित्र है। इसे एक विशेष प्रकार की डिजाइन या सामान्य यंत्र कह सकते हैं। भारतीय तांत्रिक ग्रंथों में जिस प्रकार विभिन्न सीधी टेढ़ी, कोणाकार, वर्गाकार, त्रिभुजाकार, बिंदु आकार, दोहरे त्रिभुज से मिले आकार, कमल पुष्प की पंखुड़ियों के आकार के चित्र बनते हैं और उन्हें हम यंत्र कहते हैं तथा उनकी प्राण-प्रतिष्ठा करके उनकी पूजा करते हैं। उसी प्रकार सम्मोहन के क्षेत्र में जिस चित्र का प्रयोग किया जाता है उसे शक्ति चक्र के नाम से संबोधित किया जाता है।
यह शक्ति चक्र कई प्रकार का होता है। अमेरिकन प्रणाली और ग्रीस प्रणाली के चक्रों में वड़ा अंतर है। यहीं यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि भारतीय शक्ति चक्र भी होते हैं और उन्हें दो प्रकार से बनाया जाता है। अमेरिकन शक्ति चक्र का सम्मोहन साधना में इसलिए महत्व अधिक बढ़ गया है क्योंकि विश्व के सम्मोहन विशेषज्ञ उसे अधिक महत्व देते रहे हैं। इसी तरह ग्रीस देश के सम्मोहकों द्वारा तैयार किया गया शक्ति चक्र अमेरिकन शक्ति चक्र से किसी भी अर्थ एवं प्रयोजन में कम नहीं हैं। अध्ययन एवं प्रयोगों के आधार पर कहा जा सकता है कि सम्मोहन विद्या का प्रारंभ, आविष्कार एवं विकास भारत देश में ही सर्वप्रथम अनादि काल हुआ था। विदेशियों ने इस विद्या या शक्ति को बहुत बाद में पहचाना और अपनाया। फिर भी प्रचार-प्रसार के माध्यम और अपने को प्रचारित प्रसारित करने की भावना से ग्रीस तथा अमेरिका के लोगों ने इस विद्या को अपने हिसाब से अपनी खोज बनाकर प्रचारित अधिक किया जबकि भारतीय योगियों, मनीषियों ने इसे आम जनता के लिए गोपनीय विद्या ही बनाए रखा। क्योंकि वे इस विद्या के सदुपयोग के साथ दुरुपयोग का पक्ष भी समझते हैं।
अमेरिकन शक्ति चक्र और ग्रीस शक्ति चक्र के साथ भारतीय शक्ति चक्रों को, यंत्रों को यहां पर एक साथ इसीलिए जोड़ा जा रहा है कि पाठकगण समझ सकें और भेद कर सकें कि किस शक्ति चक्र में क्या अंतर है और किसे अपनाकर साधना करना शीघ्र लाभदायक होगा।
अमेरिकन सम्मोहन शक्ति चक्रः-
यह शक्ति चक्र पांच डैनेवाले सिलिंग फैन की तरह की आकृति का होता है। इन पांचों परों का बाहरी सिरा मोटा होता है जबकि अंदर की ओर वे पांचों पर निरंतर गोलाकार होते हुए पतले होते हुए अंत में बारीक रेखाओं का एक चक बन जाता है। इसके केंद्र में एक बिंदु- सा बन जाता है जो उन्हीं पांच परों की निरंतर बारीक होती हुई रेखाओं से बनता है। चाहें तो पाठकगण इसे स्वयं बना सकते हैं।
शक्ति चक्क बनाने के लिए एक चौकोर, चिकना, मोटा सफेद कागज ले लें। इसके साथ ही चमकदार काली स्याही या काला स्केच पेन, काली इंक का पाइलट पेन या निव वाला कलम ले सकते हैं। अथवा मोटे-पतले नंबर वाले ड्राइंग ब्रश खरीद सकते हैं। कार्ड शीट से १०×१० इंच का एक टुकड़ा काटकर उसके मध्य में काली चमकदार स्याही से शीर्षक पृष्ठ पर बने चित्र के अनुसार शक्ति चक्र की डिजाइन बना सकते हैं।
शक्ति चक्र का चित्र देखने में आकर्षक एवं चमकदार होना नितांत आवश्यक है ताकि आंखों पर उत्तका प्रभाव पड़े तथा साधक की दृष्टि का चुंबकीय प्रभाव सरलता से पड़ सके। क्योंकि साधक की दृष्टि का केंद्र बिंदु यही शक्ति चक्र होगा।
आगे का विवरण और शक्ति चक्र पर सम्मोहन साधना का वर्णन करने के पूर्व ग्रीस शक्ति चक्र तथा भारतीय शक्ति चक्र की विधि और उनका वर्णन कर दिया जाए। ताकि सुहृद पाठक विभिन्न शक्ति चक्रों में से अपना सुलभ शक्ति चक्र चुन सकें।
ग्रीक या ग्रीस शक्ति चक्र-
कागज, कार्ड बोर्ड और स्याही उसी की तरह चाहिए जिस तरह का अमेरिकन शक्ति चक्र के लिए प्रयोग किया जाता है। अंतर केवल इतना होता है कि इसका चित्र अमेरिकन शक्ति चक्र से भिन्न आकार का होता है। १०×१० के पेपर पर आप सेंटर में एक बिंदु बना लें। फिर उस बिंदु से बाएं दाएं ३४ ३ की रेखा खीचें और ऊपर-नीचे भी ३४३ इंच की रेखा खींचकर एक वर्ग बना लें। इस रेखा से एक इंच के अंतर पर एक दूसरा वर्ग बना लें। पहले और दूसरे वर्ग को कोनों से रेखा खींचकर मिला दें। फिर ऊपर-नीचे की रेखाओं का मध्य भाग निकलकर काले रंग का आधे इंच का काला गोला बना दें और वर्ग के मध्य में जो बिंदु बना है उसे चित्र में बने दोहरे त्रिकोण के रूप में बनाकर चमकीली काली स्याही से भर दें।
इस प्रकार चित्र में बने शक्ति चक्र के समान बना लें। अब साधना करने के लिए ग्रीस सम्मोहन शक्ति चक्र बन गया।
भारतीय शक्ति चक्र
हमारे यहां दो प्रकार के शक्ति चक्रों के बनाने और उन पर त्राटक साधना करने का निर्देश दिया जाता है। वास्तव में चाहे जैसा शक्ति चक्र हो उस पर जो क्रिया या साधना की जाती है उसे भारतीय योग एवं तंत्र साधना में एक ही नाम दिया जाता है। उसे 'त्राटक साधना' कहते हैं। इन दोनों प्रकार के शक्ति चक्र उसी प्रकार के कागज या सफेद कार्ड शीट पर काली चमकदार स्याही से बनाया जाता है। इसमें भी कागज के बीचों बीच २x२ इंच का गोला १०×१० इंच के रेखांकित वर्ग के बीच बनाया जाता है। साधना में इसी काले गोले को क्रमशः छोटा करते रहना चाहिए। यह पहले प्रकार का काले गोलेवाला भारतीय सम्मोहन चक्र है। इसी पर सम्मोहन साधना या त्राटक साधना की जाती है।
दूसरे प्रकार का भारतीय सम्मोहन चक्र आधुनिक सम्मोहन साधकों ने बनाया है। इस प्रकार का भारतीय सम्मोहन शक्ति चक्र भी उन्हीं वस्तुओं से निर्मित करना चाहिए। इसके निर्माण में १० x १० के वर्ग के अंदर मध्य में एक बिंदु बनाकर उसी से गोलाकार चक्र रेखाएं बनानी चाहिए ये रेखाएं बिंदु से दो-दो इंच चारों ओर तक बनानी चाहिए। रेखाओं के मध्य में जो बिंदु बनाया जाए उसे तेज काले रंग का आंख के अंदर स्थित काले तिल के बराबर होना चाहिए।
इस प्रकार आप उपरोक्त विधि से चार प्रकार के शक्ति चक्र बना सकते हैं और साधना करने के लिए इनमें से किसी एक शक्ति चक्र का उपयोग कर सकते हैं। आपको यह साधना के प्रारंभ में ही निर्णय कर लेना होगा कि आप किस शक्ति चक्र का उपयोग करें। याद रहे कि एक बार जिस शक्ति चक्र पर साधना प्रारंभ कीजिए उसे फिर परिवर्तन नहीं कर सकते। यदि परिवर्तन करेंगे तो आपकी पिछली साधना का महत्व या प्रयोग समाप्त हो जाएगा और आप फिर उसी स्थान पर पहुंच जाएंगे जहां से आपने साधना प्रारंभ की थी।
शक्ति चक्र पर अभ्यास के पूर्व प्राणायाम
भारतीय योग शास्त्र में ही नहीं वरन् पूजा उपासना तथा प्राकृतिक चिकित्सा में प्राणायाम को काफी महत्व दिया गया है। विदेशी पद्धति में भी प्राणायाम करने का निर्देश है। किंतु उनके प्राणायाम का जो तरीका सम्मोहन शक्ति प्राप्त करने के लिए तथा शक्ति चक्र में अभ्यास करने के लिए बताया गया है वह कुछ भिन्त्र है। यह भिन्त्रता देश काल एवं परिस्थितियों की है। भारतीय योग शास्त्र के अनुसार मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम किया जाता है।
प्राणायाम के लिए एकांत स्थान एवं खुली जगह आवश्यक है। आसन के लिए तख्त या विना डनलप के गद्दे वाली पलंग का जिस पर प्लाई लगा हो उसका प्रयोग कर सकते हैं। आसन की जगह पर कंबल, कालीन या मोटी दरी के ऊपर साफ शुद्ध चादर बिछा दें। बेहतर होगा चिकनी समतल फर्श का प्रयोग करें और उस पर उपरोक्त बस्तुएं बिछा लें। फिर पीठ के बल सीधे लेट जाएं। दोनों पैर और हाथ सीधे रहें। न शरीर से बहुत चिपके रहे न बहुत दूर रहें। जैसा कि शवासन की स्थिति में लेटते हैं। सर सीधा रहे। सर के नीचे तकिया भी न लगाएं। सर से लेकर पांव तक सारे अंगों को शिथिल छोड़ दें। स्वयमेव ढीला छोड़ने के बाद भी आप मन ही मन एक-एक अंग के बारे में सोचते हुए मन-ही-मन यह कहते जाएं, "मेरा यह अंग अब पूर्ण शिथिल हो रहा है...होता जा रहा है... हो गया है।" यह क्रिया पांव के पंजों से प्रारंभ करके मस्तक तक लाएं। ऊपर के वाक्य में जहां यह शब्द लिखा है वहां उन अंगों का नाम लें। धीरे-धीरे सारे अंग ढीले हो जाएंगे और पहली दूसरी बार न भी हो तो समझ लें कि सारे अंग शिथिल होकर संज्ञा शून्य से हो गये हैं। अब मन और मस्तिष्क की बारी आती है। आप अपने मन को शून्य और मस्तिष्क को विचार शून्य करने का प्रयास करें। कोई भी विचार आए तो उसे झटके से अलग करने का पूर्ण प्रयास करें। हालांकि मन चंचल है और वह ऐसे अवसरों पर और तेज इधर उधर भागने का प्रयास करता फिर भी बार बार एक के बाद एक आनेवाले विचारों को दूर करने का प्रयास करते रहें और अभ्यास करते रहे।
यह क्रिया, सरल नहीं है और न एक दिन में आपको सफलता ही प्राप्त हो सकती हैं। फिर भी आप नित्य १०-१५ मिनट की क्रिया करें। १०-१५ मिनट में एक दो क्षण के लिए मस्तिष्क व मन शून्यता अवश्य प्राप्त कर लेगा। इसी शून्यता को नित्य १०-१५ मिनट के प्राणायाम की क्रिया करके एक- दो मिनट में फिर चार-पांच मिनट तक ला सकते हैं। ऐसा प्रतिदिन करते समय न घबराएं, न परेशान हों और न उकताहट महसूस करें। यदि आप डटे रहे और आपकी इच्छा शक्ति दृढ़ है तो एक-दो माह में आपका मन एकाग्र होने लगेगा। मस्तिष्क भी शून्यता ग्रहण करने लगेगा। इसी क्रिया को हमारे योग में ध्यान योग की क्रिया का प्रारंभिक स्तर मानते हैं। शवासन भी इसी तरह होता है।
जब आपका मस्तिष्क शून्य होने का अभ्यस्त हो जाए तो उपर्युक्त वर्णन अनुसार क्रिया करके आप आगे की क्रिया का अभ्यास करें। मन मस्तिष्क को पूर्ण एकाग्र एवं भाव विचार शून्य कर लेने के बाद आप नाक से पूरी श्वांस को धीरे धीरे अंदर खींचें। इस बात की सावधानी आवश्यक है कि मुंह, होंठ पूरी तरह बंद रखें। ताकि मुंह से श्वांस अंदर न जाए। जब पूरी तरह श्वांस को खीच लें तो दोनों होंठों को गोल करके फूंक मारने जैसी स्थिति में लाकर श्वांस को धीरे-धीरे बाहर की ओर छोड़ें। इसी प्रकार इसी क्रिया को बार-बार कम से कम पांच मिनट तक करें या २५ से ३० आवृत्ति करें। आगे चलकर इसका अभ्यास और बढ़ाते जाएं। इस प्रकार एक सप्ताह तक ऐसी ही क्रिया करते रहें। फिर इस क्रिया में थोड़ा सा परिवर्तन कर लें। नासिका से श्वांस खीचें और उसे कुछ देर तक अंदर ही रोके रहें। पहले पहल उतनी ही देर रोकने को प्रयास करें जितनी देर तक आप बिना कष्ट के रोक सकते हैं। फिर ऊपर बताएं ढंग से मुंह से श्वांस को धीरे धीरे बाहर निकालें। यह क्रिया लगभग एक माह तक का अभ्यास करके अधिक से अधिक श्वांस खीचें। अधिक समय तक रोकने और देर तक धीरे-धीरे छोड़ने की करें।
जब दस दिन, बीस दिन, तीस दिन में यह अभ्यास अच्छा हो जाए तब आप श्वांस को रोक लेने की स्थिति में अपने अंग अंग को चेतना मुक्त प्राणशक्ति युक्त, प्राण ऊर्जा युक्त तथा चुंबकत्व शक्ति, मुक्त बनाने का प्रयास कीजिए। इसमें आप उस समय जब आपने श्वांस को रोक रखा है तब सोचे कि मेरी टांगों में प्राण ऊर्जा शक्ति का संचार हो रहा है। इसी प्रकार क्रमशः एक-एक अंग को बार बार आदेश दें, चिंतन करें, अंगों में शक्ति संचार की सूचना या आदेश दें। एक बार श्वांस रोके रहने की स्थिति में आप संपूर्ण अंगों को मन और मस्तिष्क को कम-से-कम दो तीन बार शक्ति संचार का आदेश दे दें। श्वांस रोकने की इतनी क्षमता आपको पहले ही अभ्यास में कर लेनी चाहिए तभी यह अभ्यास प्रारंभ करें। इस अभ्यास को भी धीरे धीरे बढ़ाते रहें। और यहां तक पहुंच जाने पर नित्य इस क्रिया को करते रहें।
इस प्रकार के प्राणायाम करने से आपका मन-मस्तिष्क एकाग्र होने तथा शून्य होने लगेगा और उसमें एक प्रकार की शक्ति का संचरण होने लगेगा। यही ध्यान योग क्रिया है।
अब आपको आगे की क्रिया करनी है जिससे आपका मन-मस्तिष्क तथा आंखें एक ही स्थान पर केंद्रित हो जाएं और उनमें शक्ति की पूंजीभूत स्थिति समाहित हो जाए।
शक्ति चक्र पर साधना-
पाश्चात्य प्रक्रिया और भारतीय प्रक्रिया में कुछ अंतर तो होना स्वाभाविक है। यह अंतर भौगोलिक एवं देश काल का परिवर्तन माना जा सकता है। शीत एवं उष्ण प्रदेशों के अंतर भी प्रत्येक कार्य एवं साधनाओं को प्रभावित करते हैं। जो साधनाएं भारतीय योग में पद्मासन, सिद्धासन, शवासन आदि में बैठकर की जाती हैं वही क्रियाएं एवं साधनाएं विदेशी साधक कुर्सी पर बैठकर फर्श व पलंग पर बैठकर, मेज का सहारा लेकर या पलंग पर लेटकर भी करते हैं। शक्ति चक्रों के चारों प्रकार के वर्णन बताए गये हैं जिन्हें प्रकाशित चित्रों में भी देख सकते हैं। उनमें से किसी भी एक शक्ति चक्र का चुनाव आप कर सकते हैं और उस पर अपनी दृष्टि साधना कर सकते हैं।
आपको जिस शक्ति चक्र का उपयोग करना हो उसे आप बना लें और प्राणायाम तथा संपूर्ण शरीर में शक्ति संचार की साधना करने के बाद जब मन दो-चार मिनट तक एकाग्र होने लगे तो शक्ति चक्र पर दृष्टि जमाने की क्रिया या साधना प्रारंभ करें. इसी क्रिया को शक्ति चक्र पर सम्मोहन साधना कहते हैं। इसी को भारतीय योग एवं तंत्र दर्शन में बिंदु त्राटक या चक्र त्राटक भी कहते हैं।
शक्ति चक्क्र का अभ्यास या साधना करने के लिए ऐसा स्थान कमरा चुनें कि शुद्ध वायु और प्रकाश आ सके। यदि प्रकाश की संभावना कम हो या आपके पास दिन में, प्रातः काल में साधना करने का समय नहीं है तो आप लाइट की ऐसी व्यवस्था करें कि प्रकाश शक्ति चक्र पर तो पड़े, परंतु आपकी आंखों पर प्रकाश किरणें कदापि न पड़ें। यह साधना आप जमीन पर बैठकर, कुर्सी पर बैठकर, चौकी पर बैठकर या पलंग पर बैठकर अथवा पलंग पर लेटकर भी कर सकते हैं। शक्ति चक्र को दीवार पर अपनी आंख के ठीक
सीध पर ढाई से तीन फुट की दूरी पर रखें। यह ध्यान रखना परमावश्यक है कि आपकी आंखों को न ऊंचा उठाना पड़े और न नीचे झुकाना पड़े। सामान्य ढंग से आपकी आंखें खुली रहें तो सामने टंगे शक्ति चक्र पर बिना किसी कष्ट तथा असुविधा के दृष्टि पड़े। साधना से पूर्व आपको एक बात का ध्यान और रखना है-वह यह कि जिस समय आप अभ्यास करने जा रहे हों, साधना के लिए बैठ रहे हों तो उस समय आप चिंताओं से पूर्ण मुक्त हों। खुली आंखों से, एकाग्र मन से आपको शक्ति चक्र को निरंतर देखते रहना है। यदि आपका मन भटकता है तो आपको अपने मन में यह कहना चाहिए यानी स्वयं को आदेश देना चाहिए, "मैं शीघ्र ही विचार शून्य हो जाऊंगा... मैं विचार शून्य हो रहा हूं... अब मैं विचार शून्य हो गया हूं।" इस प्रकार के कथन या चिंतन से आपके अंदर आनेवाले विभिन्न अवांछित विचार दूर हो जाएंगे। यदि दृष्टि के अपलक देखने से किसी प्रकार का कष्ट होता है तो आपको मन-ही-मन कहना चाहिए कि मेरी आंखों को कोई कष्ट नहीं हो रहा है... मेरी आंखें तो हलकापन महसूस कर रही हैं। ऐसा करने से आंखों का तनाव जाता रहेगा और आप वास्तव में हलका पन महसूस करेंगे। इसी के साथ आपको मन में, कंठ से भी यही सोचना और स्फुटित करते रहना चाहिए कि मेरे अंदर चुंबकत्व शक्ति आ रही है। मेरी आंखों में सम्मोहन शक्ति आ रही है। मेरे संपूर्ण शरीर में ऊर्जा शक्ति का संचार हो रहा है। मेरी आंखों की ज्योति बढ़ रही है। वह निरंतर तेजोमय हो रही है। मेरी आंखों में आकर्षण शक्ति एवं विद्युत शक्ति के साथ चमत्कारिक ऊर्जा एवं चुंबकत्व शक्ति पैदा हो गयी है।
ये बातें आप अभ्यास काल के अतिरिक्त अन्य खाली एवं शांत समय में किसी भी वस्तु को अपलक देखते हुए कभी भी या निरंतर करते रह सकते हैं। इस कथन को मात्र कथन ही न रहने दें, वरन् हृदय में स्वीकार भी करें कि मेरे अंदर एक महानशक्ति का संचार हो रहा है, मेरी आंखों में चुंबकत्व शक्ति बढ़ती जा रही है।
इस तरह शक्ति चक्र पर दृष्टि रखते हुए जब आपको २० से ३० दिन का समय हो जाएगा तब आपको शक्ति चक्र के अभ्यास का परिणाम दिखाई देने लगेगा।
शक्ति चक्र का प्रभावः-
शक्ति चक्र पर अभ्यास करते करते जब आपको कुछ समय व्यतीत हो जाए तो आपको शक्ति चक्र में बहुत से परिवर्तन दिखाई पड़ेंगे। यह परिवर्तन दिखना प्रत्येक व्यक्ति की मानसिकता व एकाग्रता पर निर्भर करता है। किसी को दस दिन में या उससे कम में ही दिखाई पड़ने लगेगा तो किसी-किसी को ३० दिन अथवा उससे अधिक दिन भी हो सकते हैं।
कब क्या-कैसा दिखाई पड़ेगा। ताकि पाठक या अभ्यासकर्ता यह समझ सकें कि उनकी अभ्यास दिशा अथवा साधना ठीक दिशा में जा रही है।
सर्वप्रथम साधक को शक्ति चक्र में एक प्रकार का कंपन दिखाई देगा। कंपन धीरे धीरे ऊपर-नीचे उठता हुआ या चित्र बाहर की ओर दिख सकता है। कभी-कभी अंधकार में शक्ति चक्र विलुम हो जाएगा और फिर प्रकट हो जाएगा। साधना के दिन ज्यों-ज्यों बढ़ते जाएंगे त्यों-त्यों शक्ति चक्र में चमक आती जाएगी। आपको ऐसा भी आभास होगा कि वह काले रंग का न होकर इंद्र धनुषी रंग का गोला है। आगे चलकर उसमें से आतिशबाजी की तरह फुलझड़ियां दिखाई पड़ेंगी। कभी कभी वह सूर्य की गोलाई की भांति चमकता और नाचता दिखाई पड़ेगा। कभी उसमें से किरणें फूटने लगेंगी। कभी वह बहुत छोटा और कभी बहुत बड़ा होता प्रतीत होगा। साधना के दिन और बढ़ते जाएंगे तो आपके मन में जो दृश्य जमे हैं उनमें से विभिन्न दृश्य दिखाई पड़ने लगेंगे। कभी कभी देवी-देवताओं या आपके अपने प्रियजनों के छाया चित्र दिखाई पड़ेंगे और कभी भयानक आकृतियां भी दिखाई पड़ेंगी। आप इन्हें अपने अभ्यास के शुभ लक्षण मानें। इससे समझे कि आपकी साधना सुचारू रूप से आगे बढ़ रही है।
अभ्यास या साधना का प्रारंभिक प्रयोग कैसे करें
यह मनोवैज्ञानिक है कि हम जो कुछ कर रहे हैं और जिस लक्ष्य को पाने के लिए कर रहे हैं उसकी परीक्षा लें। आपके मन में भी यह उत्सुकता उत्पन्न हो सकती है कि हमने कई माह का समय इस अभ्यास में लगाया है तो क्या इसमें कुछ सफलता मिली या नहीं। सामान्य परीक्षण के लिए कुछ उपाए बताए जा रहे हैं। इन्हें आप आजमाकर देखें तो आप अपना परीक्षण स्वयं कर लेंगे।
आप किसी भी व्यक्ति को पूर्ण इच्छा शक्ति से अपने पास आने का मानसिक आमंत्रण दें। यह ध्यान रहे कि वह आपके आस पास का हो। आपके बार-बार आमंत्रण देने पर वह व्यक्ति कुछ ही देर में आपके पास आ जाएगा और यह कहेगा भी कि मुझे आपसे मिलने की इच्छा थी।
★ आप मार्ग में जा रहे हों और किसी आगे जा रहे व्यक्ति के सर के निचले भाग पर दृष्टि गड़ाकर आप भी चलते रहें या कहीं खड़े रहें। वह व्यक्ति अवश्य पलटकर देखेगा।
★ किसी फूल-डाल या डाल पर लगे फल की ओर देखते रहें देखते रहें और मन-ही मन या अस्पष्ट भाव में आदेश दें कि वह हिलने लगे या टूटकर गिर जाए। ऐसा कुछ देर तक करते रहने पर आप देखेंगे कि वह वस्तु हिलने लगेगी या फल गिर पड़ेगा।
★ किसी मित्र से या अपरिचिता से आंखें मिलाकर बातें करें तो आपकी बातों का प्रभाव उस पर पड़ेगा। हो सकता हो पहले वह आपके उन विचारों से सहमत न रहा हो जिन्हें आप कह रहे हैं, परंतु अब उसे सहमत होना पड़ेगा।
★ इन सबके समान कुछ अन्य प्रयोग भी आप कर सकते हैं यथा आप अपने किसी मित्र या प्रियजन की हथेली किसी मेज पर चिपका कर रखया दें फिर अपलक उस हथेली के पृष्ठ भाग को देखते हुए उसका नाम लेकर कहें देखो, तुम्हारी हथेली गर्म हो रही है जबकि मेज की सतह ठंडी है। हां-हां, कुछ ही देर में हथेली गर्म हो जाएगी, यह अवश्य गर्म होगी। कई बार इसी तरह के वाकूय हथेली के पाठ भाग पर दृष्टि गड़ाकर कहें। फिर मित्र से बीच बीच में पूछते जाएं क्या तुम्हें कुछ गर्मी का एहसास हो रहा है, हो हां, गर्मी का एहसास अवश्य हो रहा होगा। तुम्हारी हथेली गर्म हो गयी है और तुम जलन का एहसास कर रहे हो। बार-बार कहने पर आप उससे मनवा लेंगे कि उसकी हथेली वास्तव में गर्मी से जलने लगी है। आगे प्रयोग करना चाहे तो हथेली को लाल करने की क्रिया इसी प्रकार के आदेशात्मक स्वर और दृष्टिपात से कर सकते हैं। इसी प्रकार किसी को कुर्सी पर बैठ दे फिर उसकी टांगों की ओर देखते हुए कहें आपकी टांग में कोई विकार हैं क्या। मैं समझता हूं आपकी टांगें भारी हो रही हैं। हां हां टांगें भारी हो गयी हैं। आप अब अपनी टांगों को ऊपर नहीं उठा सकते। कदापि उठा ही नहीं सकते, क्योंकि इन टांगों में अब शक्ति ही नहीं रही, ये टांगें भारी होकर निर्जीव हो गयी हैं।" इस तरह बार-बार एक-एक वाक्य दुहराते रहें। आदेश देते रहें और मन की एकाग्रता से सोचते रहें तो आप व्यक्ति से यह स्वीकार करवा लेंगे कि वास्तव में उसकी टांगों को अचानक क्या हो गया है कि वह भारी हो गयी है और अब निर्जीव भी हो गयी है। यही नहीं कि वह आपके कहने से मान लेगा। मान भी ले तो भी ठीक है, परंतु वास्तव में उसकी टांगें भारी और इतनी निर्जीव जैसी हो जाएगी कि आप भी आश्चर्य में पड़ जाएंगे। परंतु उन्हें फिर उल्टे आदेश देकर हल्का और सजीव कर दें। अन्यथा यह प्रयोग आपको भारी पड़ जाएगा।
★ उस शक्ति चक्र में अभ्यास करने के बाद मन में किसी व्यक्ति का ध्यान करो और उसके चेहरे या वह इस समय क्या कर रहा है। यह देखने की इच्छा करो तो मन-ही-मन आदेश दो कि वह दृश्य तुम्हें शक्ति चक्र में दिखाई पड़े। कुछ देर प्रयास करने पर वह दृश्य तुम्हें शक्ति चक्र के प्रकाश में घूमता हुआ या स्थिर दिखाई पड़ सकता है।
★ जब किसी से हाथ मिलाओ तो अपनी हथेली से उसकी हथेली दबाकर हथेली की ओर देखते हुए मन ही मन आदेश दो कि वह तुम्हारी चुंबकत्व शक्ति से सम्मोहित हो जाए। ऐसा शीघ्रता से करें तब उसके अभिवान का उत्तर दें। वह तुम्हारी बातों को स्वीकार करेगा
यह सब प्रारंभिक शक्ति चक्र पर किए गये अभ्यास या साधना का परीक्षण तुम कर सकते हो। प्रारंभ सफलता मिलने में विलंब होगी, परंतु सफलता बार बार करने पर अवश्य मिलेगी। अपना शक्ति चक्र का अभ्यास जारी रखो साल-दो-साल, चार साल या सदैव।
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