सम्मोहन शक्ति क्या है ?
सम्मोहन शक्ति क्या है ?
स म्मोहन का सीधा सा अर्थ है समान रूप से मोहित करना। अर्थात् दूसरे को अपने समान बना लेना। चूंकि किसी को अपने समान तो बनाया नहीं जा सकता इसलिए अपने समान बनाने का सीधा सा अर्थ लेना चाहिए अपने अनुरूप बना लेना या अपने अनुकूल कर लेना।
इस लेख का दूसरा शब्द है शक्ति। शक्ति का अर्थ सामान्यतः सभी जानते हैं। ताकत, बल, पराक्रम आदि। सम्मोहन शक्ति का पूर्ण अर्थ हुआ वह शक्ति, जो किसी दूसरे को अपने अनुरूप बना ले।
अंग्रेजी भाषा में इसी को हिप्नोटिज्म कहते हैं। कुछ लोग सम्मोहन को ही हिमोटिज्म के स्थान पर मेस्मेरिज्म का नाम देते हैं। ऐसे लोग हिप्नोटिज्म और मेस्मेरिज्म में कोई भेद नहीं रखते और दोनों शब्दों को पर्यायवाची समझते हैं। किंतु ऐसा नहीं है। दोनों शब्द एक दूसरे से उसी तरह भिन्न हैं जैसे सम्मोहन और वशीकरण। आम भारतीय भी सम्मोहन और वशीकरण को एक जैसे ही अर्थ में प्रयोग करते हैं और स्वीकारते हैं। परंतु सम्मोहन तथा वशीकरण में अंतर है।
हां, यह तर्क स्वीकार किया जा सकता है और सत्य भी है कि सम्मोहन और वशीकरण में साम्यता अधिक है भिन्नतां कम है। उसी प्रकार हिप्प्रोटिज्म में साम्यता अधिक है किंतु भिन्नता कम है। परंतु भिन्नता है और वह स्पष्ट सिद्धांत, साधना और प्रयोगों में परिलक्षित होती है। अतः हमें हिंदी तथा अंग्रेजी के इन दोनों साम्यता रखनेवाले शब्दों के अर्थ को समझते हुए उनका प्रयोग करना उचित होगा।
सम्मोहन को हिप्नोटिज्म और वशीकरण को मेस्मेरिज्म के अर्थ में लें तो हमें इन्हें समझने में आसानी होगी। मैंने ऊपर पाठकों के समझने के लिए हिप्रोटिज्म को अंग्रेजी भाषा का शब्द कह दिया है। परंतु यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि हिप्नोटिज्म शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के हिप्प्रोज शब्द से मानी जाती है। हिप्नोज का स्पष्ट अर्थ होता है निद्रा। हिप्नोज शब्द से बना हिप्नोटिज्म का अर्थ होगा निद्रावस्या में लानेवाला सिद्धांत। किसी को निद्रा अवस्था में पहुंचाना ही
हिप्नोटिज्म कहा जा सकता है। परंतु अब हिप्नोटिज्म का व्यापक अर्थ किया जाता है और पूर्ण व्याख्या करके इसे विद्या, विज्ञान, सिद्धांत, ज्ञान और महान शक्ति के रूप में स्वीकारा जाता है।
अब किसी को भी यह संदेह नहीं रहा कि सम्मोहन या हिप्नोटिज्म एक शक्ति है और यह अपने विशाल एवं व्यापक रूप में निरंतर परमाणु शक्ति के समान ही शक्तिवान तथा प्रबल होती जा रही है। 'सम्मोहन शक्ति है' सिर्फ इतना स्वीकार कर लेने से या भाव लेने से संभवतः कोई भी पाठक संतुष्ट नहीं होगा। अब हमें यह जानना आवश्यक हो जाता है कि सम्मोहन शक्ति है क्या और इसका आधार प्रयोग क्या है। बस इतने से भी आप संतुष्ट नहीं होंगे। बरन् यह जानना चाहेंगे कि इसका उपयोग क्यों? तथा किसलिए? कैसे किया जाना चाहिए? ताकि सम्मोहन शक्ति के प्रति पाठकों की जिज्ञासा शांत हो सके। बरंतु वहां तक पहुंचकर भी आपकी जिज्ञासा शांत नहीं होगी जब तक कि आप यह न जान, समझ लें कि सम्मोहन शक्ति के प्रयोग से मानव जाति को, क्या और कैसे लाभ मिल सकते हैं।
यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि सम्मोहन शक्ति द्वारा किसी मानच या प्राणी के अतिरिक्त सजीव तथा निर्जीव पदार्थ तक को वश में किया जा सकता है। किंतु इसे यदि कोई जादू टोना अथवा चमत्कार की संज्ञा देता है तो यह उसकी धूल होगी। सम्मोहन शक्ति एक विशुद्ध मानसिक एवं आध्यात्मिक विज्ञान है, विद्या है। यह कठोर साधना निरंतर अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है। आम से खास व्यक्ति भी इसमें निपुण हो सकता है। सम्मोहन के द्वारा विभिन्न मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों को शमन किया जा सकता है और अपने अंदर ऐसी प्रबल इच्छा शक्ति तथा चुंबकत्व शक्ति का संचार किया जा सकता है जिससे जन कल्याण करने के साथ ही स्वयं के जीवन में आनंदमय संसार का निर्माण किया जा सकता है।
सम्मोहन शक्ति भारत की देन हैः-
सम्मोहन जिसे हिप्रोटिज्म कहते हैं वह विद्या अन्य देशों से भारत में नहीं आई वरन् भारत में या कहें आर्यावर्त में अनादि काल से ही विद्यमान थी। जो लोग हिमोटिज्य तथा मेस्मेरिज्मि को विदेशी विद्या या शक्ति मानते हैं वे या तो भारतीय दर्शन से परिचित नहीं हैं अथवा वे पाश्चात्य साहित्य एवं दर्शन के पोषक हैं। ऐसे तमाम लोगों को अपना भ्रम दूर कर लेना चाहिए और प्राचीन योग दर्शन का अध्ययन कर वह समय काल निकालना चाहिए कि हिप्रोटिज्म एवं मेस्मेरेज्मि का प्रारंभ काल क्या है और तब तुलना करना चाहिए कि भारतीय योग दर्शन में सम्मोहन विद्या का काल क्या था। मात्र इतने से ही उन्हें समझ में आ जाएगा कि यह विद्या हमारी है या विदेशियों की है।
भारतीय शिक्षा पद्धति विदेशों से हट कर रही है। छात्र ग्रामों एवं शहरी क्षेत्रों के कोलाहल से दूर आश्रमों में रहकर गुरूकुल प्रथा से शिक्षा प्राप्त करते थे। शिक्षा के साथ-साथ उन्हें व्यायाम, योग, धर्म, अध्यात्म ज्ञान के अलावा विभिन्न प्रकार की साधनाएं सिखाई और कराई जाती थीं। वैदिक मंत्र हो या तांत्रिक साधना हो, गणित हो या ज्योतिष हो सभी की शिक्षा प्रयोगात्मक स्तर पर कराई जाती रही। वहां का वातावरण भी शांत और प्रदूषण रहित हुआ करता था। छात्रों के साथ गुरू जो स्वयं एक योग्य साधक और वेद शास्त्र के अध्येता होते थे। उनको नित नयी खोज तथा यौगिक साधनाओं को करना आवश्यक होता था। यही कारण है कि हमारे मनीषियों ने जो साधनाएं प्रयोगात्मक ढंग से करके निर्णय प्राप्त किए वे सिद्धांत की कसौटी पर सदैव सत्य उत्तरे। गणित के क्षेत्र में शून्य और दशमलव की देन सारे विश्व को भारत से ही प्राप्त हुई है।
सम्मोहन शक्ति से भारतीय साधक केवल मनुष्यों को हो नहीं वरन् पशु-पक्षी के साथ ही जड़ पदार्थों को भी अपने वश में कर सकता है। सम्मोहन, वशीकरण, मोहन, विद्वेषण तथा मारण क्रियाएं भारतीय साधना में साधारण स्थान रखते हैं जबकि पाश्चात्य देशों के विद्वान केवल सम्मोहन पर कुछ प्रयोग करके गौरवांवित हैं। भारतीय योगी अपने योग शक्ति से हवा में उड़ सकता है, पानी पर चल सकता है, एक स्थान पर बैठा या सोया रहकर विश्व के किसी कोने में अपने सूक्ष्म शरीर से जा सकता है और वहां का अक्षरशः वर्णन कर सकता है। इतना ही नहीं इसके आगे भी वह श्रवण साधना करके अपनी प्राणशक्ति को, आला को दूसरे के शरीर में प्रवेश करा सकता है। अथवा किसी जीव की आत्मा किसी दूसरे जीव के शरीर में प्रवेश करा सकता है। इतनी बड़ी उपलब्धियां पाने के लिए पाञ्चात्य विद्वानों को कई जन्म लेने पड़ेंगे।
परंतु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी विद्या पर विदेशी, मोहर लगाकर हमारे ही समक्ष परोसी जा रही है और हम ऐसे हैं कि उन्हें अपने धर्मग्रंथों न खोजकर उनके बताए मार्ग और सिद्धांत पर चलने को आतुर हो उठते हैं। साथ ही यह मान लेते हैं, कि यह सम्मोहन वशीकरण जैसी शक्तियां पाश्चात् विद्वानों की देन हैं। उन्हें बड़े गर्व से हिप्रोटिज्म कहकर अपना रहे हैं।
यहां में केवल एक उदाहरण दूंगा जिसे शायद धार्मिक भावना से परे लोग अब तक कपोल कल्पित ही मानते रहें। वह यह है कि श्रीकृष्ण जब रास लीला करते थे तो उनके साथ सैकड़ों गोपिकाएं होती थीं। श्रीकृष्ण एक ही थे किंतु रास लीला के मध्य समस्त गोपिकाओं की बाहों में एक-एक कृष्ण हो जाते हैं और तब प्रत्येक गोपी यही समझती थी कि वास्तविक कृष्ण उसी के साथ नृत्य कर रहे हैं। इसमें एक में अनेक की धार्मिक भावना ही नहीं छुपी है। वरन् यह कृष्ण द्वारा किया गया सामूहिक सम्मोहन होता था।
श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा जाता था। उनको यदि ईश्वर न मानकर हम एक योगी माने तो उनकी प्रत्येक चमत्कारिक क्रियाओं में हमें योग साधना के सिद्धांत ही दिखाई पड़ेंगे। बस आवश्यकता है तो नये ढंग से, नयी सोच से. नये प्रयोगों से शोध व चिंतन करने की।
हमारा विषय सम्मोहन शक्ति है अतः हमें हिमोटिज्म यानी सम्मोहन पर ही विचार करना चाहिए। विस्तृत जानकारी तो मैं यहां जान बूझकर प्रस्तुत नहीं करूंगा क्योंकि इस अंक से पूर्व 'नूतन कहानियां' के मई, ६३ अंक, जिसका नाम 'अलौकिक महाविशेषांक' था, में 'सम्मोहन का जादू' नामक शीर्षक में विस्तृत विवेचना हो चुकी है।
जिन पाठकों ने अलौकिक महाविशेषांक नहीं पढ़ा और उन्हें सम्मोहन पर कुछ अधिक जानने की चाह है तो उन्हें मेरा परामर्श है कि वे 'नूतन कहानियां के कार्यालय से वह अंक मंगाकर अध्ययन कर सकते हैं।
सम्मोहन शक्ति का प्रथम चरण आकर्षण होता है और भारतीय साधना के अनुसार आकर्षण का सफल प्रयोग कर लेनेवाला ही सम्मोहन शक्ति में निपुण हो सकता है। सम्मोहन शक्ति एक प्रवल शक्ति है। इसलिए वहां तक पहुंचकर यह मान लेना कि सम्मोहन शक्ति प्राप्त हो गयी है भले ही यह उचित न हो, फिर भी साधक की स्थिति ऐसी हो गयी तो निश्चित ही वह एक स्तर तक पहुंचकर ठहर जाएगा और तब वह एक आकर्षणकर्ता ही बन जाएगा।
अतः सम्मोहन साधना करनेवाले को निरंतर अपनी नित्य की साधनाएं करते रहना चाहिए और आकर्षण शक्ति के आगे बढ़ना चाहिए। जब शक्ति चक्र पर या दीपक त्राटक करते समय मन में सोचे गये चित्र दिखाई पड़ने लगे या बिना किसी से कुछ कहे ही अपनी इच्छा मात्र से या मन में सोची हुई बात की पूर्ति स्वयमेव होने लगे तो यह समझना चाहिए कि अब सम्मोहन शक्ति का प्रादुर्भाव होने लगा है। इसके आगे छोटे बड़े प्रयोगों से आप किसी को केबल कुछ क्षणों के लिए नीद में मुलाने में सक्षम हो जाएं तब समझें कि अच आपको आगे बढ़ना चाहिए। ऐसी स्थिति में पहुंच जाने पर भी निरंतर साधना तो करते रहें और साथ ही उपयोग, प्रयोग भी करें जिससे सम्मोहन शक्ति का प्रभाव एवं प्रयोग भली प्रकार समझ सकें। इससे क्रमशः निम्न प्रयोग करें।
माध्यम का चुनाव और प्रयोग-
किसी भी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर या पलंग पर लिटाकर आप उसको सम्मोहित कर सकते हैं। सम्मोहन करने के लिए उसके चेतन मस्तिष्क को निर्विकार तथा अशक्त कर देना होगा। ऐसी स्थिति तभी आ सकती है जब आप उसे सम्मोहित करके अर्थ निद्रा, मोह निद्रा या पूर्ण निद्रा में डाल दें। इसके लिए आप अपनी आंखों का, स्वर का, आदेशों का अथवा मानसिक सम्मोहन करते हुए उल्टी गिनती गिनने या वर्णमाला के अक्षरों को धीरे-धीरे बोलने को कहेंगे। ऐसा करते-करते वह स्वयं नींद में आता जाएगा।
यहां कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होगा। वह यह कि आपने जिस माध्यम को प्रयोग के लिए चुना हो अथवा जिस माध्यम पर आपको प्रयोग करना हो उसे यह ज्ञात हो कि आप उसे सम्मोहित करने जा रहे हैं और वह स्वयं आपसे सम्मोहित होने के लिए तैयार हो। ऐसा होने के कारण वह आपको पूर्ण सहयोग करेगा।
प्रथम प्रयोग के रूप में आप माध्यम को आराम से कुर्सी पर बैठा दें फिर उससे पूछें कि क्या वह सम्मोहित होने के लिए पूर्ण तैयार हैं। जब वह अपनी स्वीकृति दे दें तो उसकी आंखों के सामने चाभी का गुच्छा या कोई आकर्षक वस्तु या लाकेट धीरे धीरे हिलाएं। उसे कहें कि वह अपनी अपलक आंखों से उसे देखता रहे। वह देखेगा और देर तक देखता रहेगा। तब आप उससे प्रेम पूर्वक आदेश दें कि तुम्हें तो नींद आ रही है, तुम तो सोना चाहते हो। तुम्हारी पलकें तो भारी होती जा रही हैं। हां...हां तुम्हें नींद आ गयी है। पलकें... भारी हो रही हैं, अब तुम सोना चाहते हो। सो जाओ... यदि बोझिल हो रही है आंखें तो उन्हें कष्ट मत दो। सो... जाओ... पलकें... बंद... कर लो... तुम्हें कोई कष्ट होगा ही नहीं।
इस प्रकार के आदेश होठों से कोमल हों परंतु वाणी से अत्यंत दृढ़ तथा पूर्ण इच्छा शक्ति से परिपूर्ण हों। आपका प्रत्येक स्वर मन की एकाग्रता से बंधा हो और आपकी आंखें माध्यम की आंखों पर हों। इसी प्रकार माध्यम को आराम कुर्सी पर, सोफे पर या पलंग पर बैठा या लिटाकर भी आप कर सकते हैं। माध्यम सहयोग करेगा तो उसे शीघ्र नींद आ जाएगी।
इस प्रयोग के अतिरिक्त आप अपनी आंखों तथा इच्छा शक्ति का प्रभाव माध्यम पर डालकर उससे अंग्रेजी या हिंदी की उल्टी गिनती या उल्टा वर्णमाला बोलने के लिए कह सकते हैं। सौ से एक तक पहुंचने पर वह सो जाएगा और यदि नहीं सोता तो दुवारा गिनने को कहें।
माध्यम के साथ आप तीसरा प्रयोग अपनी उंगलियों से कर सकते हैं। उसकी आंखों के समक्ष अपनी उंगलियों को गोलाकार किंतु तनावपूर्ण यानि खिंचाव रखकर चक्रित करें। मन-ही-मन पूर्ण आलवल से सम्मोहन का आदेश देते रहें सोने के आदेश पूर्ववत दें।
शक्ति चक्रों में से किसी चक्र को माध्यम के समक्ष रखकर भी सम्मोहित किया जा सकता है। स्थिर रखकर शक्ति चक्र पर दृष्टि गड़ाने को कहें और साथ ही पूर्व वर्णित आदेश दें। शक्ति चक्र के स्थान पर क्रिस्टल बाल या चमकता हुआ नगीना या विभिन्न रलों की बनी अंगूठी का प्रयोग भी कर सकते हैं। लोग करते
भी हैं। किंतु इन पदार्थों पर पहले कुछ दिन आपको भी साधना करना होगा। जब माध्यम सो जाए तो उससे प्रश्न पूछें। वास्तव में आप उसकी अर्थ निद्रा और अर्थ चेतना की स्थिति को समझना चाहिए। अर्थ निद्रा की अवस्या में ही उससे जो बातें पूछना चाहते हैं उसके बारे में बारंबार प्रश्न करें और उससे उत्तर प्राप्त करें यदि प्रारंभ में वह उत्तर न दे तो परेशान कदापि न करें और यदि वह गहरी नींद सो गया है या सोना चाहता है तो उसे सोने दें। किंतु स्वयं हटने से पूर्व उसे पूर्ण आराम से सोने की व्यवस्था कर दें। यदि कुर्सी पर बैठाकर सम्मोहन क्रिया प्रारंभ की है तो उसके पैरों को उठाकर किसी स्टूल तिपाई या कुर्सी के सामानांतर मेज पर आराम से, धीरे से रख दें। यदि सोफे या पलंग पर प्रयोग कर रहे हैं तो आराम से सोने दें। पहले दिन ही प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने का प्रयास कदापि न करें। माध्यम को कई दिनों तक इसी तरह प्रयोग करें। स्वयं जिद न करें और न स्वयं धैर्य छोड़े। उसके साथ भावुकता पूर्ण और कोमल व्यवहार तथा बातें करें।
यहां एक बात विशेष ध्यान रखें कि आपको उस समय जब आपका माध्यम गहरी नींद सोना चाहता है और आप उसे सोने की व्यवस्था कर रहे हैं तब उसके जागने का यह आदेश अवश्य दे दें-तुम्हें (माध्यम का नाम लेकर) एक घंटे, दो घंटे जो समय उचित हो वह कहकर कहें कि उठ जाना है। समय ही कह सकते हैं। मान लें माध्यम का नाम राजेश है।
सोते हुए माध्यम से कहें, "राजेश... प्रिय राजेश सुन रहे हो न, तुम्हें एक घंटे की गहरी नींद के बाद स्वयं उठ जाना है। हे राजेश तुम बहुत अच्छे हो मेरी बात को तुम भली प्रकार समझ कर ठीक एक घंटे बाद अपने से उठ जाना है।"
सम्मोहक का कर्तव्य इसके बाद भी समाप्त नहीं होता। उसे तब तक वहीं पर रहना चाहिए जब तक उसका माध्यम ठीक समय से न उठ जाए। आप यह निश्चिंत जरूर रहें कि वह सम्मोहक के आदेशानुसार अवश्य उठ जाएगा। घड़ी देखेंगे तो ठीक समय पर वह जाग जाएगा। भले ही उसे उठने में ५-१० मिनट की देर हो जाए। यदि अधिक देर होती है तो आप कोमल, भावुक स्वर से उसे आवाज दें, "राजेश बेटे, उठी सोने का समय समाप्त हुआ।"
जब माध्यम उठकर बैठ जाए चाहे अपने मन से या पूर्व निश्चित समय से या आपके जगाने से तो आप उसका हाथ मुंह धुलाने का प्रयास न करें। पहले उसे गर्म चाय या कॉफी दें फिर हल्की-फुल्की बातें करें। चाहें तो स्वयं तथा अन्य लोग साथ-साथ चाय पिये।
कई दिनों के प्रयास एवं प्रयोग के बाद से वह आपकी सम्मोहन शक्ति की गिरफ्त में आ जाएगा। तब आप उससे जो पूछेंगे उसका उत्तर वह देगा।
दूसरों के बारे में नहीं स्वयं अपने बारे में, अपने विगत, वर्तमान के बारे में आदतों एवं व्यवहार के बारे में। अधिक-से-अधिक अपने प्रिय मित्रों, प्रिय संबंधियों, प्रेमी प्रेमिकाओं के बारे में उत्तर देगा।
परंतु यहां भी सम्मोहक ध्यान रखे कि एक ही दिन में प्रश्नों की पोटली कदापि न खोल दें। उसे कुछ ही साधारण प्रश्न पूछने चाहिए। फिर अगले दिन कुछ अधिक पूछने होंगे। इसी प्रकार धीरे-धीरे उसके अचेतन मन की सारी बातें जानकर अपनी बातों को उसके अचेतन मस्तिष्क में डालकर उसे चेतन तक लाने का प्रयास करें। तब सफल होंगे।
यहां अपनी विचारधारा एवं अनुभव से एक बात और स्पष्ट कर दूं तो अच्छा होगा। व्यक्ति के मनोवेग या मनोविकार या प्रबल आकांक्षा दमित (डिस्प्रेस्ड) शमित होकर समयानुसार चेतन मस्तिष्क से अचेतन मस्तिष्क के कोष में जमा हो जाती है और वर्षों तक या मृत्युपर्यंत जमी रहती है। वही दवी, दलित, शमित भावना मानसिक व्याधि बनकर मनुष्य को, मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है। सम्मोहन से उसे निकाल सकते हैं या निकाल दिया जाता है और फिर विपरीत क्रिया कराई जाती है। अर्थात् सम्मोहित अवस्था में अचेतन मस्तिष्क को शुद्ध साफ करके उस पर शुद्ध पवित्र एवं माध्यम की शुभ कामना अनुसार अथवा अपनी इच्छानुसार प्रभाव, भावना, विचार डाला जाता है। वही बातें फिर स्वयमेव अचेतन से चेतन की ओर अग्रसर होती जाएगी। यही सम्मोहन शक्ति होगी।
संक्षेप में इसी विचार को इन शब्दों में कहा जाए तो उचित होगा पर व्याख्या करना होगा-
"चेतन से अचेतन में जमी दबी भावनाओं को सम्मोहन शक्ति के माध्यम से निकालकर अचेतन पर अपनी भावना आरोपित कर चेतन तक लाना ही सम्मोहन क्रिया है।"
मैं समझता हूं पाठकों को सम्मोहन शक्ति और उसकी साधना तथा प्रयोग एवं महत्व समझ में आ गया होगा। परंतु पाश्चात्य विचारधारा या सिद्धांत या प्रयोग से भी बढ़कर जो भारतीय योग दर्शन के अन्य सम्मोहन प्रयोग हैं उनके बारे में पाठकों को परिचित कराना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूं। भारतीय सम्मोहन में माध्यम का सहारा लिया भी जाता है और नहीं भी लिया जाता। वे जिस सम्मोहन शक्ति को प्राप्त करते हैं उसमें उनकी आध्यात्मिक शक्ति अधिक प्रभावपूर्ण होती है। प्रवल आत्मिक शक्ति के साथ उनके अंदर प्रबल इच्छा शक्ति एवं आत्मबल आ जाता है। उनकी आंखों में इतनी प्रबल शक्ति और तेज आ जाता है कि वे मात्र अपनी इच्छा शक्ति और आंखों के द्वारा दृष्टिपात करके ही किसी को सरलता से सम्मोहित कर लेते हैं। इतना ही नहीं हमने जिस शारीरिक ऊर्जा तथा चुंबकत्व शक्ति का ऊपर पहले वर्णन किया है वह इतनी बड़ी एवं प्रबल शक्ति के रूप में उनके संपूर्ण शरीर में दौड़ती रहती है कि बिना उनके चाहे भी कोई उनका स्पर्श कर लें तो उसके शरीर में करेंट-सा लग जाता है। परंतु ऐसी शक्ति सामान्य या मध्यम श्रेणी के साधकों में नहीं आ सकती। ऐसी शक्ति मात्र सम्मोहन शक्ति तक सीमित रहने वालों में नहीं आ सकती। ऐसी शक्ति तो योग साधना की कठोर साधना करनेवालों में स्वयमेव आ जाती है। वे ऐसे महापुरुष होते हैं जो योग साधना की तपाग्नि में तपकर शुद्ध कुंदन की भांति शुद्धाला बन चुके होते हैं। वे ऋषि-मनीषी, योगी और संत होते हैं।
परंतु अपवाद स्वरूप कुछ लोग संसार में ऐसे भी हुए हैं जिनके अंदर संपूर्ण सम्मोहन शक्ति अतींद्रिय, आलिक, शक्ति जन्ग जात प्राप्त हो गयी है और हो भी सकती है। इसी हमारे भारतीय दर्शन में जन्म-जन्मांतरों का प्रभाव एवं संस्कार मानते हैं। ऐसे लोग किसी भी देश काल परिस्थिति एवं धर्म- जाति में पैदा हो सकते हैं। पैदा हुये हैं और पैदा होते रहेंगे।
सामान्यतः साधना मार्ग से चलकर या साधना करके भारतीय योग दर्शन के अनुसार निम्न प्रकार से सम्मोहनकर्ता किसी को भी सम्मोहित करने की प्रबल क्षमता रखता है।
स्पर्श से सम्मोहनः
किसी को भी सम्मोहित करने का कोई कारण अवश्य होना चाहिए इस बात का ध्यान भारतीय सम्मोहन करता अवश्य रखते हैं। ऐसा करना जनहित में उचित भी है। वे जिस पात्र को सम्मोहन क्रिया द्वारा ठीक करना चाहते हैं उसे अपने पास बुलाते हैं। उसके हाथ को हाथ में लेकर मानसिक आदेशों से क्षण मात्र में सम्मोहित कर देते हैं। अधिकतर लोग स्पर्श क्रिया मस्तक या ललाट पर करते हैं। स्पर्श मात्र से वह व्यक्ति सम्मोहन निद्रा में चला जाता है।
चित्र सम्मोहन
स्पर्श सम्मोहन तो उसी का होता है जो सामने उपस्थित होता है। किंतु यदि विशेष परिस्थिति में कोई व्यक्ति नहीं है अथवा दूर है तो उसके चित्र को सामने रखकर उसे सम्मोहित किया जाता है। ऐसा सम्मोहन किसी विशेष लक्ष्य को रखकर ही किया जाता है। यह अवश्य है कि व्यक्ति जितनी दूर है उस पर सम्मोहन का उतने विलंब से प्रभाव पड़ेगा। मैंने स्वयं घर से भागे हुए लड़कों, युवकों के चित्र पर प्रयोग करके उन्हें वापस बुलाया है।
ध्यान सम्मोहन
व्यक्ति भी न हो, चित्र भी न हो या चित्र सम्मोहन करने से सम्मोहक का भेद, खुलने का संदेह हो तो ध्यान सम्मोहन का प्रयोग किया जाता है। किंतु ध्यान सम्मोहन में समोहक के समक्ष यह समस्या अवश्य रहती है कि उसने जिस व्यक्ति को कभी नहीं देखा उसे पहचानता तक नहीं है तो उसके ध्यान में उस व्यक्ति का रूप या चित्र उभरेगा ही नहीं। जब उसकी रूप रेखा स्वरूप का ध्यान ही नहीं हो सकेगा तो फिर उसका सम्मोहन कैसे हो पाएगा। किंतु जिसका ध्यान मानस पटल पर हो सकता है उसे सम्मोहित किया जा सकता है।
मंत्र सम्मोहनः
स्पर्श, चित्र, ध्यान सम्मोहन से ज्यादा प्रचलित मंत्र सम्मोहन है। परंतु यह क्रिया तांत्रिक मांत्रिक क्रियाओं के अंतर्गत आती है। भारतीय वैदिक ग्रंथों में, मंत्र ग्रंथों में तथा तंत्र ग्रंथों में ऐसे मंत्र-तंत्र भरे पड़े हैं। जिनके माध्यम से किसी को भी सम्मोहित किया जा सकता है। इन मंत्र यंत्रों में तंत्रों में जहां अमकं या अमुकस्य लिखा होता है वहां उस व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, गोत्र आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें भी समय अवश्य लगता है। परंतु सम्मोहन क्रिया असफल नहीं होती। इसकी विधियां भिन्न-भिन्त्र अवश्य होती हैं। परंतु चाष्ठ जो विधि अपनाई जाए सम्मोहन शक्ति की सफलता निश्चित होगी। चमत्कारी होगी।
में, उक्त संपूर्ण विवरण से पाठकगण सम्मोहन शक्ति क्या है? का उत्तर ही नहीं पा गये होंगे वरन् सम्मोहन की अन्यान्य जानकारियां भी प्राप्त कर चुके होंगे। यहां पाठकों को एक चेतावनी दे देना अपना नैतिक कर्तव्य समझता हूं कि जो चाहे वह सम्मोहन शक्ति की साधना कर सकता है परंतु गुरू का होना आवश्यक है।
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