प्रश्न : क्या महाभारत काल में ग्रहण का वर्णन मिलता है?
प्रश्न : क्या महाभारत काल में ग्रहण का वर्णन मिलता है?
उत्तर : पांडवों और कौरवों के बीच लड़ाई 18 दिन चली थी। इसका जिक्र करते हुए महाभारत में कहा गया है कि युद्ध के दौरान पूर्णिमा और संभावित पूर्ण सूर्य ग्रहण (इसे कुरुक्षेत्र के मैदान से देखा जाना था) के बीच सिर्फ 13 दिनों का अंतर था।
योद्धा अर्जुन की जान बचाने के लिए किया था। अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि सूर्यास्त होने से पहले वे अपने पुत्र अभिमन्यु के हत्यारे को मृत्युदण्ड देंगे अन्यथा गाण्डीव सहित जीवित अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे। उस दिन असमय ही सूर्यास्त हो गया। तारे चमक उठे पाण्डवों के खेमें में उदासी छा गई। चिता सजाई गई। अर्जुन गाण्डीव सहित चिता में बैठ गया। कौरवों ने खुशियां मनाई। महाभारत काल में सूर्यास्त के बाद अस्त्र-शस्त्र चलाने का नियम नहीं था। कौरण पाण्डव भी आपस में मिलते थे। अभिमन्यु का हत्यारा राजा जयद्रथ उन्मत्त होकर नाचने लगा और आत्मदाह की यह विचित्र दृश्य देखने निर्भीक होकर चिता स्थल पर आ पहुंचा। तुरन्त कृष्ण ने अर्जुन को आदेश दिया- "गाण्डीव उठाओं और जयद्रथ को मृत्युदण्ड दो। वो देखो सूर्य आकाश में चमक रहा है।" सभी हैरान और परेशान अंधेरा समाप्त हो चुका था और तेजस्वी सूर्य आकाश में चमक रहा था। यह वस्तुतः पूर्ण सूर्य ग्रहण का ही दृश्य था जिसका रहस्य केवल श्रीकृष्ण ही जानते थे।
उन दिनों ग्रहणों की सटीक भविष्यवाणी की जाती थी। ग्रहण कब शुरू होगा, कब चरम पर पहुंचेगा और कब खत्म होगा, भारतीय पंचांगों में इन सबका उल्लेख है। ग्रहण के इस पूरे काल को 'पर्व काल' कहा जाता है। ग्रहण के समय हिंदुओं में जो प्रथाएं प्रचलित हैं, उनका उल्लेख मनुस्मृति, ग्रहलाघव, निर्णय सिंधु, अथर्ववेद समेत कई ग्रंथों में है।
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