स्थाण्वीश्वर_और_कुरुक्षेत्र
#स्थाण्वीश्वर_और_कुरुक्षेत्र
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सम्पादकीय
वृंदावन, हरिद्वार ,नैमिष,बद्री ,केदार आदि तीर्थों के महत्व का प्रसार उनके गुणगान पर आधारित है। जितना गुणगान करेंगे जनमानस उतना ही परिचित होगा। लेकिन कुरुक्षेत्र के महत्व को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी सहित समस्त ऋषियों नदियों तीर्थों ने पहचाना और यहीं सृष्टि रचना का कार्य सम्पन्न हुआ। भगवान् श्रीकृष्ण ने देख लिया कि महाभारत के युद्ध में मारे गए समस्त पापियों को जो मुक्ति दे सके ऐसा दिव्य स्थान धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त विश्व में दूसरा नहीं है। भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान हरिद्वार की ओर गया लेकिन वहां केवल जल में मुक्ति है। बनारस की ओर गया लेकिन वहां केवल स्थल में मुक्ति है। कुरुक्षेत्र ही वह धर्मक्षेत्र है जो मेदिनी से मुक्त ब्रह्मक्षेत्र है। जहां जल स्थल और अंतरिक्ष तीनों में मुक्ति देने का सामर्थ्य है। कुरुक्षेत्र केवल महाभारत का क्षेत्र नहीं है अपितु वेद,ज्ञान,तप, और मोक्ष की भूमि है। इन गुणों को देखकर ही भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र की ओर आकृष्ट हुए और समस्त वेदोपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीतामृत विश्व को प्रदान किया।
अविमुक्तं वै कुरुक्षेत्रं देवानां देवयजनं सर्वेषां भूतानां ब्रह्मसदनम्”
कुरुक्षेत्र को काशी के समान ही अविमुक्त क्षेत्र माना गया है। अविमुक्त का अर्थ है प्रलयकाल में भी जिस स्थान को शिवशक्ति नहीं छोड़ते हैं अर्थात् वहीं निवास करते हैं। जैसे काशी का महत्त्व विश्वनाथ जी से है वैसे ही कुरुक्षेत्र का महत्त्व भी देवाधिदेव स्थाण्वीश्वर शिव के कारण से ही है।
स्थाण्वीश्वर शिवलिंग विश्व का प्रथम शिवलिंग है। सृष्टि रचना का आरंभ यहीं से हुआ है। यहां सृष्टि में हुए समस्त अवतारों, ऋषियों, तीर्थों, पवित्र नदियों और प्रमुख पात्रों का प्रथम अवतरण हुआ। इसीलिए उनका मूल स्थान धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में विद्यमान है। समस्त पृथ्वी राक्षसों की मेदा से ढ़कने के कारण मेदिनी कहलाती है लेकिन कुरुक्षेत्र भूमि पद्मयोनि ब्रह्मा जी के आसन के रूप में उसी आकार की है जैसे किसी महात्मा के बैठने का पद्मासन लगा हो। अतः यह धर्मक्षेत्र कहलाती है।इसे ब्रह्मासन भी कहते हैं।
इसी कारण यह परम पावन श्रेत्र है।
महाभारत के युद्ध के लिए यह स्थान इसलिए चुना गया था क्योंकि इस स्थान के जल, स्थल और अंतरिक्ष तीनों मुक्तिप्रद हैं। इस धर्मक्षेत्र में जो प्राण त्यागते हैं वे शुभ लोकों में जाते हैं--
इह ये पुरुषाः क्षेत्रे मरिष्यन्ति शतक्रतो! ।
ते गमिष्यन्ति सुकृतान् लोकान् पापविवर्ज्जितान्।।
ग्रह नक्षत्र ताराओं का समय आने पर पतन होता है लेकिन कुरुक्षेत्र में मरने वालों का पतन नहीं होता है-
ग्रहनक्षत्रताराणां कालेन पतनाद् भयम। कुरुक्षेत्रमृतानां तु न भूय: पतनं भवेत्॥ नारदीय पुराण (उत्तर, 2।64।23-24), वामन पुराण (33।16)।
कुरुक्षेत्र वह धर्मक्षेत्र है जहां विश्व के सभी क्षेत्रों से राजाओं के समूह आकर यहां धर्म की शिक्षा ग्रहण करते थे। उसके बाद उनको धर्मज्ञ होने का प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता था ।
इस धर्मक्षेत्र पर स्थाण्वीश्वर महादेव का प्रभाव है। काशी विश्वनाथ जी को सभी जानते हैं लेकिन कुरुक्षेत्र स्थित स्थाण्वीश्वर जी के महत्त्व से कम लोग परिचित हैं। इसका भी एक विशेष कारण है। वामन पुराण के अनुसार स्थाण्वीश्वर महादेव के दर्शन से सब लोग स्वर्ग को जाने लगे। स्वर्ग में बढ़ती हुई भीड़ देखकर इन्द्र ने इस शिवलिंग को धूली से ढ़क दिया। उस धूली को अंगों में मलकर भी लोग मुक्त होने लगे। तब ऋषियों ने उस दिव्य शिवलिंग को भूमिगत करके ऊपर दूसरा शिवलिंग स्थापित कर दिया लेकिन दर्शन से मुक्ति का सिलसिला तब भी नहीं रूका। ऐसा करते करते सात शिवलिंग मूल शिवलिंग के ऊपर स्थापित कर दिए। लेकिन स्थाण्वीश्वर महादेव का महत्त्व वैसे का का वैसा ही है। यहां की धूली भी मुक्ति देने वाली है। तभी तो १८ अक्षौहिणी सेना यहां युद्ध में वीरगति को प्राप्त करके मुक्त हुई।
स्थाण्वीश्वर के इस गुप्त रहस्य को जनमानस के समक्ष प्रकट और प्रसारित कर रहा हूं इस हेतु महादेव के चरणों में पुनः पुनः क्षमा प्रार्थना सहित दंडवत प्रणाम समर्पित है। जो स्थाण्वीश्वर को याद करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है--
स्थाण्वीश्वरे स्थितो यस्मात्स्थाण्वीश्वरस्ततः स्मृतः
ये स्मरन्ति सदा स्थाणुं ते मुक्ताः सर्वकिल्बिषैः ४३.१५ वामन पु०
पुराण और महाभारत के परिप्रेक्ष्य में कुरुक्षेत्र भूमि का महत्त्व जन साधारण तक पहुंचे तथा कुरुक्षेत्र भूमि में स्थित समस्त तीर्थों की यात्रा का मार्ग , तीर्थों का इतिहास तथा प्रचलित लोक कथाओं से भक्त अवगत हों यही उद्देश्य है। साथ में पुराणों और महाभारत के अनुसार किस तीर्थ पर किस दिन/तिथि में पूजा अर्चना की जाए तथा किस देवता का मंत्रजप/ यज्ञ किया जाए इसका भी निर्देश किया गया है। कुरुक्षेत्र तीर्थयात्रा के मार्ग तथा तीर्थों के स्थान के विषय में दिव्य विभूति गुरुदेव स्वामी नारायण गिरी ( पं साधुराम ) जी के निर्देशन को वामन पुराण तथा महाभारत वनपर्व के परिप्रेक्ष्य में रखकर आधार माना गया है। स्वामीजी को कोटिशः प्रणाम अर्पित करता हूं। स्थाण्वीश्वर मंदिर के वर्तमान महंत स्वामी रोशनपुरी जी महाराज के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं कि आपने अपना शुभाशीर्वाद प्रदान किया। इस ग्रंथ में राजा वेन द्वारा किया गया स्तुतिपाठात्मक देवाधिदेव महादेव का वह स्तोत्र भी दिया गया है जिसका पाठ करने से स्थाण्वीश्वर महादेव प्रसन्न हो कर तत्काल आशीर्वाद देते हैं। आशा है भक्त इससे लाभान्वित होंगे।
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