भोजन के नियम व रस

।। भोजन के नियम व रस।।

।। भोजन नियम व रस।।

हमारे भोजन में रस होते है। इसीलिए हमारे भोजन को बहरस कहा जाता है।

१. अम्ल (खट्टा) 
२. मधुर मीठा 
३. लवण (नमकीन )
४. कटु कडुवा 
५ तिक्त चरपरा 
६. कषाय (कसैला

प्रत्येक रस का सेवन नियमित एवं सीमिति मात्रा में किया जाता है, अधिक या कम मात्रा में सेवन से विमारियां पैदा होती है।

1. मधुर (Sweet चीनी): मन में तृप्ति मिलती है।

यह बात और पित्त का शमन करता है जबकि कफ को विकृत करता है। धातु एवं ओज की वृद्धि करते हुए ज्ञानेन्द्रियों को स्वच्छ रखता है। इस रस को अधिक सेवन करने से आलस्य व कम सेवन करने से कमजोरी महसूस होती है।

2. अम्ल (खट्टा Acid नीबू): अधिक सेवन से मुंह व गले में जलन उत्पन्न करता है। यह मुंह से लार की उत्पन्न करता है। यह वात का शमन करता है तथा पित्त एवं कफ को विकृत करता है।

3. लवण (नमक / पटु Salt - यह मुँह में डालते ही घुलता है. इसका अधिक सेवन जलन पैदा करता है।  यह वात का शमन करता है। जबकि पित्त एवं काम की विकृत करता है। लवण की अधिकता से नपुंसकता, बांझपन, रक्तपित्त आदि विमारियाँ होती है। लवण के कमी से भोजन में अरुचि व पाचन क्रिया को प्रभावित करता है।

4. कटु (कड़वा purigent करेला, नीम
यह जीभ के संपर्क में आते ही कष्ट पहुँचाता है। इसके संपर्क से आँखों व मुँह से जलखाव होता है। वह कफ का शमन करता है परन्तु वात व पित्त को विकृत करता है। मेथी, मंगरैला, अजवाइन आदि ।

5. तिक्त (उष्ण Bitter मिर्च यह जीभ को अप्रिय होता है. स्वाद में एकाधिकार होने के कारण इसकी उपस्थिति में अन्य स्वाद का पता नहीं लगता है। यह वात को विकृत करता है जबकि पित्त व कफ का शमन करता है। तिक्त रस हल्दी में भी पाया जाता है।

6. कषाय (कसैला Astringent आंवला इसके सेवन से जीभ की चिपचिपाहट दूर होता है। यह अन्य रसों को अनुभव नहीं करने देता है। यह पित्त एवं कफ को शमन करता है परन्तु वात को विकृत करता है। हमें अपना भोजन अपनी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए, तभी आपका वात-

पित्त-कफ इन बडरसों द्वारा नियंत्रित होगा। और आपका आहार सुखदायी होगा। अपनी प्रकृति के विपरीत स्सों के सेवन से आपका वात-पित्त-कफ कुपित होगा और आप अस्वस्थ्य होंगें

प्रातः के सूखा पदार्थ सर्वप्रथम खायें, फिर द्रव्य पदार्थ लें इसके बाद भारी चिकना और हल्का मीठा पदार्थ पहले लें, यदि फल है तो पहले मीठे फल खाएं। अम्ल व लवण मध्य में खायें, कडुवा तीखा व कसैला अंत में खायें। यदि भूख कम लगती है तो गर्म पदार्थ पहले खायें । अति मधुर भोजन अग्नि को नष्ट करता है। अत्यंत लवण युक्त भोजन आंखो के लिए हानिकारक है। अति तीक्ष्ण व अति अम्ल युक्त भोजन वृद्धावस्था को बढ़ाता है।

• दही, मधु घृत, सत्तू, खीर, कांजी, को छोड़कर अन्य आहार द्रव्य खाते समय थोड़ा छोड़ना चाहिए।

पेट दर्द मेंथी के साथ मिश्रित हींग

पुराने ज्वर में मधु के साथ पेपर वातरोग में घी में भुना लहसुन लाभप्रद है।

इसे ऐसे समझे

रसों का दोषों से सम्बन्ध :-
दोष लाभकारी रस प्रकोप वात मधुर, अन्त। कटु. लवण। तिक्त, कषाय रस, पित्त तिक्त, कषाय। अम्ल, मधुर। कटु, लवण, कफ कटु तिक्त। मधुर, कषाय। अम्ल, लवण

।। रसों का पंचभूतों से सम्बन्ध ।।

रस

महाभूत 1. मधुर रस पृथ्वी, जल 2. अम्ल रस 3. लवण रस पृथ्वी, अग्नि जल, अग्नि 4. तिक्त रस कटु रस वायु, आकाश वायु, अग्नि कषाय रस वायु, पृथ्वी

आयुर्वेद में तीन-तीन रसों का संयुग्म बनाया गया है, जिनसे वात-पित्त-कफ असंतुलित भी होते और संतुलित भी होते है जाने कैसे?

तत्राद्या मारूतं धन्ति त्रयस्तदायः किम्, 
कषायतिक्तमधुराः पित्तमन्ये तु कुर्ते ।।

कफ वर्धक व कफ शामक यदि आपके भोजन में मीठे, खट्टे, और नमकीन पदार्थ होंगे तो आपका कफ बढ़ेगा। लेकिन यदि आपके भोजन में कटुवे, घरपरे, कसैले पदार्थ हैं तो आपका कफ शांत होगा।

पित्त वर्धक व पित्त शामक यदि आपके भोजन में कडुवे, नमकीन, बट्टे पदार्थ होंगे तो यह आपके पित्त को बढ़ाएंगे जबकि मीठे, चरपरे कसैले पदार्थ पित्त को शांत करेंगे।

बात-वर्धक व वात शामक कडुवे चरपरे

कसैले आहार आपके वात को बढ़ा देते हैं जबकि मीठे, खट्टे और नमकीन युक्त भोज्य पदार्थों के सेवन से आपका वात नियंत्रित होता है

यह हमेशा ध्यान रखे कि आपके भोजन में आपके प्रकृति के विपरीत पदार्थों की मात्रा अल्प हो तथा आपके प्रकृति के अनुरूप भोजन में पदार्थों की मात्रा अधिक हो ।

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