गर्भ- हत्या महापाप
गर्भ- हत्या महापाप
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जिसको जीवित नहीं कर सकते, उसको मारने का अधिकार कैसे हो सकता है? जीव मात्र को जीने का अधिकार है। उसको गर्भ में ही नष्ट करके उसके अधिकार को छीनना महान पाप है। मनुष्य दूसरों की सेवा करने व उसको सुख पहुँचाने का अधिकार है। किसी का नाश करने का भी कभी अधिकार नहीं है। अगर गर्भपात की प्रथा चल पड़ी तो फिर मनुष्य राक्षसों से भी बहुत नीचे हो जाएँगे। रावण और हिरण्यकशिपु के राज्य में भी गर्भपात जैसा महापाप नहीं हुआ। शास्त्रों में जगह-जगहगर्भ- हत्या महापापगर्भपात को महापाप माना गया है। पराशर स्मृति में तो उसको ब्रह्महत्यारूपी महापाप से भी दुगुना पाप बताया गया हैं :--
यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने।
प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागी विधीयते । । "
ब्रह्महत्या से जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात कराने से लगता है। इस गर्भपातरूपी महापाप का कोई प्रायश्चित्त भी नहीं है। इसमें तो उस स्त्री का त्याग कर देने का ही विधान है। यदि अन पर गर्भपात कराने वाले पापी की दृष्टि पड़ जाये तो वह अन्न खाने योग्य नहीं रह जाता।
भ्रूणघ्नावेक्षितं चैव संस्पृष्टं चाप्युदक्यया। पतत्रिणाऽवलीढ च शुना संस्पृष्टमेव च।।
(मनुस्मृति ४।२०८)
गर्भहत्या करने वाले का देखा हुआ, रजस्वला स्त्री का स्पर्श किया हुआ, पक्षी का खाया हुआ और कुत्ते का स्पर्श किया हुआ अन्न नहीं खाना चाहिए।
गर्भपात जैसा महान् पाप करने वाले को घोर नरकों व नीच योनियों की भयङ्कर यातनाएँ भोगनी पड़ेगी। उनको कभी मनुष्य जन्म मिल जाये तो
उसमें उनकी सन्तान नहीं होगी तथा सन्तान के बिना वे रोते रहेंगे। और यह भी सुनिश्चित है कि गर्भपात करने वाले डाक्टर (चिकित्सक), नर्स और अन्य सहायक व समर्थक सभी दोष का भागी बनना पड़ता है।
इति शुभम्
- धर्मसम्राट स्वामीश्री करपात्री जी महाराज
धर्म की जय हो।
विश्व का कल्याण हो ।
अधर्म का नाश हो।
प्राणियों में सद्भावना हो।
हर हर महादेव।
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