अपने अनुभव का आदर करें

‼️अपने अनुभव का आदर करें ‼️                
    🛐एक बहुत सीधी-सरल और सबके अनुभव की बात है | केवल उसका आदर करना है, उसको महत्व देना है, उसको कीमती समझना है | जिस तरह आपने रुपया, सोना, चाँदी, हीरा, पन्ना आदि को कीमती समझ रखा है, इस तरह इस बात को कीमती समझो, इसको महत्व दो, तो अभी इसी क्षण उद्धार हो जाय | इसको महत्व नहीं देते, इसी कारण से बन्धन हो रहा है; और कोई कारण नहीं है | रूपये तो किसी के पास हैं और किसी के पास नहीं, पर यह बात सबके पास है | कोई भी इससे रहित नहीं है | परंतु इस बात को महत्व न देने से इसका अनुभव नहीं हो रहा है –🛐
     लाली लाली सब कहे, 
सबके पल्ले लाल |
     गाँठ खोल देखे नहीं, 
ताते फिरे कंगाल ||
    🧘वह गाँठ खुलने की बात बताता हूँ | जो सन्त-महात्माओं से सुनी है, पुस्तकों में पढ़ी है, वह बात कहता हूँ | एकदम सच्ची बात है | श्रुति, युक्ति और अनुभूति – ये तीन प्रमाण मुख्य माने गये हैं | अभी मैं जो बात कहने जा रहा हूँ, वह श्रुति- (शास्त्र-)  सम्मत, युक्तिसंगत और अनुभवसिद्ध है | आप अपने को मानते हैं कि ‘मैं वही हूँ, जो बचपन में था अर्थात बालकपन में जो था वही आज हूँ और मरने तक मैं वहीँ रहूँगा |’ शास्त्र, सन्त अपनी संस्कृति के अनुसार आप ऐसा भी मानते हैं कि पहले जन्मों में भी मैं था और इसके बाद भी अगर मेरे जन्म होंगे तो मैं रहूँगा | बालकपन भी अभी नही है और मृत्यु का समय भी अभी नहीं है; पहले के जन्म भी अभी नहीं हैं और आगे के जन्म भी अभी नहीं हैं; परन्तु ‘मैं अभी हूँ |’ तात्पर्य यह हुआ कि मैं नित्य-निरन्तर हूँ और शरीर बदलते हैं | शरीरों के बदलने पर भी मैं किंचिन्मात्र भी नहीं बदलता | शरीर तो प्रतिक्षण बदलते रहते हैं | एक क्षण भी ऐसा नहीं है, जिसमे ये न बदलते हों | परन्तु इनमे रहने वाला मैं (स्वरूप) अनन्त युग, अनन्त ब्रहम बीतने पर भी कभी बदलता नहीं | अत: बदलने वाले शरीर और न बदलने वाले अपने-आपको मिलाएं नहीं, प्रत्युत अलग-अलग कर लें | बस, इतना ही काम है | जब इन दोनों को मिलाकर देखते हैं, तब अज्ञान हो जाता है; और जब इनको अलग-अलग देखते हैं तब ज्ञान हो जाता है |🧘

Comments

Popular posts from this blog

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार

वेद-शास्त्रों का परिचय

the yuga