चारों वेदों के विषय में
🙏 चारों वेदों के विषय में🙏 वेदों का परिमाण तथा स्वरूप वैदिक सनातन धर्म का मूल स्रोत वेद है। इस वैदिक सनातन धर्म से ही समस्त जगत् के अनेक सम्प्रदाय (मत-मतान्तर) हुए हैं अर्थात् वर्तमान काल में जितने सम्प्रदाय हैं वह सनातन धर्म रूपी वृक्ष की शाखाएं-प्रशाखाएँ हैं। सनातन धर्म का लक्षण आचार्यों ने इस प्रकार किया है~~ "श्रुति स्मृति पुराणप्रतिपादित: धर्म: सनातनधर्म:" श्रुति-स्मृति तथा पुराण प्रतिपादित धर्म सनातन धर्म है। सनातन धर्म को जन्म देने वाले निर्गुण, निराकार ब्रह्म है। ब्रह्म अनादि, जन्म रहित है, सनातन धर्म भी अनादि है। सनातन धर्म तथा वेदों का प्रादुर्भाव परमात्मा से हुआ। वेद ब्रह्म का श्वास रूप है। ईश्वर रचित वेद में मनुष्य रचित ग्रन्थों के समान भ्रम-प्रमाद-संशय-भय-विप्रलिप्सा (लोभ) तथा यथार्थ बात न कहना आदि दोष नहीं है, अतः वेद स्वतः प्रमाण है। वेदानुसारी ही आस्तिक दर्शन, स्मृतियां, श्रौतसूत्र, धर्मसूत्र, पुराण, रामायण, महाभारत तथा तन्त्रग्रन्थ प्रमाण माने गये है। "अज्ञात ज्ञापकं प्रमाणं" अज्ञात का ज्ञान कराने वाले ग्रँथ (वेद) प्रमाण है। य...