अग्नि की सात जिह्वाएँ और उनका आध्यात्मिक महत्व
अग्नि की सात जिह्वाएँ और उनका आध्यात्मिक महत्व
हर हर महादेव 🙏🙏प्रिय पाठकों,
आशा करते हैं कि आप स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगे।
मित्रों! जब हम अग्नि को देखते हैं तो हमें केवल लौ दिखाई देती है, परंतु शास्त्रों में अग्नि को केवल एक साधारण ज्वाला नहीं माना गया है। वेद और पुराण बताते हैं कि अग्नि की सात अद्भुत जिह्वाएँ (जीभें) होती हैं। ये जिह्वाएँ अग्नि के सात अलग-अलग रूप और शक्तियों का प्रतीक हैं। कहीं अग्नि संहारिणी बनकर बुराई को नष्ट करती है, तो कहीं मनोजवा बनकर साधक के विचारों को तेज करती है। कहीं यह चिंगारियों के रूप में ऊर्जा फैलाती है, तो कहीं देवताओं तक आहुति पहुँचाने वाली दिव्य वाहिका बन जाती है।
अग्नि की इन सात जिह्वाओं का रहस्य हमें न केवल प्रकृति की गहराई समझाता है, बल्कि यह भी बताता है कि साधना और जीवन दोनों में अग्नि कैसे हमारी राह को प्रकाशित करती है। आइए एक एक करके समझते हैं इन सातों जिह्वाओं के रहस्य को।
1. काली (Kālī)
अर्थ- काली का अर्थ है काली यानी गहरे काले रंग की।
प्रतीकात्मक महत्व- यह जिह्वा अग्नि की संहार शक्ति का प्रतीक है। जैसे अग्नि सब कुछ जलाकर राख कर देती है, वैसे ही जीवन के अहंकार और बुराइयों को भी समाप्त करती है।
आध्यात्मिक अर्थ- साधक के भीतर की नकारात्मकता और अज्ञान को जलाकर शुद्धि प्रदान करना।
2. कराली (Karālī)
अर्थ- कराली का अर्थ है भयानक रूप वाली।
प्रतीकात्मक महत्व- यह जिह्वा अग्नि की भयंकरता और अनुशासन को दर्शाती है।
आध्यात्मिक अर्थ- यह हमें याद दिलाती है कि अधर्म, आलस्य और असत्य की राह पर चलने वालों के लिए अग्नि दंडस्वरूप है।
3. मनोजवा (Manojavā)
अर्थ- मन की गति जैसी तेज।
प्रतीकात्मक महत्व- यह जिह्वा अग्नि की तेज़ और सूक्ष्म गति का प्रतीक है।
आध्यात्मिक अर्थ- यह बताती है कि अग्नि सिर्फ भौतिक ही नहीं, बल्कि चेतना की गति भी है। साधक के विचारों और ध्यान को पवित्र दिशा देती है।
4. सुलोहिता (Sulohitā)
अर्थ- गहरी लाल अग्नि।
प्रतीकात्मक महत्व- यह जिह्वा अग्नि की उष्मा और जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रतीक है।
आध्यात्मिक अर्थ- यह सृजन शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। जैसे लाल रंग जीवन, शक्ति और उत्साह का द्योतक है, वैसे ही यह जिह्वा जीवन में उत्साह और उमंग भरती है।
5. सुधूम्रवर्णा (Sudhūmravarṇā)
अर्थ- धुएँ के रंग वाली।
प्रतीकात्मक महत्व- यह अग्नि की वह स्थिति है जिसमें धुआँ निकलता है, यानी आच्छादन या आभास।
आध्यात्मिक अर्थ- यह हमें यह सिखाती है कि जब साधना अपूर्ण या अशुद्ध होती है तो धुएँ की तरह आवरण बनता है। लेकिन यह भी संकेत है कि शुद्ध अग्नि के लिए धैर्य और पूर्णता जरूरी है।
6. स्फुलिङ्गिनी (Sphuliṅginī)
अर्थ- चिंगारियाँ निकालने वाली।
प्रतीकात्मक महत्व- यह अग्नि की चेतन चिंगारियाँ हैं, जो चारों ओर फैलती हैं।
आध्यात्मिक अर्थ- साधक के भीतर उठने वाली दिव्य चेतना की छोटी-छोटी लहरें। यह ऊर्जा जगाती है और आत्मा को उच्च लक्ष्य की ओर प्रेरित करती है।
7. विश्वरुची / हव्या-वहिनी (Viśvaruci / Havyavāhinī)
अर्थ- जिसकी ज्योति सर्वव्यापी है / जो हवि को देवताओं तक पहुँचाती है।
प्रतीकात्मक महत्व- यह अग्नि की सबसे पवित्र और धर्मरक्षक जिह्वा है।
आध्यात्मिक अर्थ- यह जिह्वा पृथ्वी और देवताओं के बीच सेतु का काम करती है। जब हम अग्नि में आहुति डालते हैं, तो यही शक्ति उन आहुतियों को देवताओं तक पहुँचाती है।
गूढ़ महत्व- यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है, जो साधक को आत्मा से परमात्मा तक जोड़ती है।
संक्षेप में
अग्नि की ये सात जिह्वाएँ केवल अग्नि की भौतिक विशेषताएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन, साधना और आध्यात्मिक मार्ग की भी गहराई को दर्शाती हैं।
काली और कराली हमें असत्य और नकारात्मकता से बचाती हैं।
मनोजवा और सुलोहिता साधक को ऊर्जा और उत्साह देती हैं।
सुधूम्रवर्णा और स्फुलिङ्गिनी साधना की प्रक्रिया को समझाती हैं।
विश्वरुची/हव्यवाहिनी हमें देवताओं और परम सत्य से जोड़ती है।
मित्रों अग्नि केवल एक अग्नि नहीं है ब्लकि इसमें जीवन के रहस्य छुपे हैं जानिए क्यों अग्नि तत्व सबसे रहस्यमय माना गया है
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