खाने-पकाने के सबसे बढ़िया बर्तन
खाने-पकाने के सबसे बढ़िया बर्तन
संडे नवभारत टाइम्स । नई दिल्ली। 12 अक्टूबर 2025
जस्ट ज़िदगां
चौका बर्तन
1. लकड़ी से बने चम्मच या दूसरे प्रॉडक्ट हो या फिर मिट्टी के बर्तन जो खाने, पकाने या फिर किसी चीज को फर्मेट करने (जैसे दूध से दही बनाने) के काम आते है, उनकी सफाई अच्छी तरह से होनी चाहिए क्योंकि इनके ऊपर मौजूद छोटे-छोटे पोर्स (सुराखो) मे गंदगी फंस जाती है। फिर बैक्टीरिया, फंगस आदि पनपने लगते है।
2. सूखी चीजो (दाल, चावल आदि) को स्टोर करने के लिए अच्छी 2 2 क्वॉलिटी का प्लास्टिक भी ठीक है। लेकिन किसी भी तरह के प्लास्टिक में खाने-पीने की गर्म चीजें कभी नहीं रखनी चाहिए। चंद मिनटों के लिए भी नहीं। ऐसा बार-बार करने से यह कैंसर की वजह बन सकता है।
3 वजह बताते है। ऐसा न कोई सबूत है और न ही कोई स्टडी हुई है। यह पूरी चर्चा सिर्फ अंदाजे से चल रही है। दरअसल, जब रोटी कुछ जल जाती है तो जले हुए हिस्से पर कार्बन फ्लेम की तुलना कोयला, पेट्रोलियम के अधजले फ्लेम से करने लगते है।
4. क्लैडिंग (परत चढ़ाना) में ऐल्युमिनियम या कॉपर का इस्तेमाल होता 4 है। यह हीट का कंडक्शन सही करता है। कई बर्तनों में पूरी क्लैडिंग होती है। कुछ में सिर्फ बेस में ही होती है। ऐल्युमिनियम के बर्तनों का उपयोग कम ही करना चाहिए। फिर भी अगर उपयोग करना मजबूरी हो तो इन्हें 1 से 2 साल बाद बदल देना चाहिए।
खाने-पकाने के सबसे बढ़िया बर्तन
हम इंसानों ने जब आग की खोज की तो उसके बाद खाना पकाने के लिए बर्तन बनाने शुरू किए। शुरुआती बर्तन स्वाभाविक तौर पर मिट्टी के ही थे। इसी वजह से इतिहास के पन्नों को जब हम खोलते हैं तो ज्यादातर मिट्टी के बर्तन ही मिलते हैं। चाहे वे हड़प्पा काल के हों या फिर उससे भी पहले के। उस दौरान ही लकड़ी की सामग्री का उपयोग भी अलग-अलग तरीके से खाना पकाने या स्टोरेज में शुरू हो गया था। हां, जब मेटल यानी धातु की खोज हो गई तो धातु के बर्तन बनने लगे। इसमें तांबा, कांसा और लोहा अहम था। ऐल्युमिनियम के बर्तन काफी बाद के बरसों में खोजे गए। कहा जाता है कि 1868 ई. में फ्रांस के पेरिस में हुए एक कार्यक्रम में खास मेहमानों के लिए ऐल्युमिनियम के बर्तनों का इस्तेमाल किया गया था। शुरुआत में ऐल्युमिनियम सोने यानी गोल्ड से भी महंगी थी। जहां तक भारतीय खानपान परंपरा की बात है तो इसमें मिट्टी और लोहे के बर्तनों की अहमियत काफी रही है। कुछ खास अवसरों पर पीतल और कांसे के बर्तनों में भी खाना पकाए जाने की परंपरा रही है। वहीं, स्टोरेज के लिए कांच के जार और प्लास्टिक के डिब्बे काफी उपयोग में आ रहे है। जब चीजें इतनी बदली हैं तो इनके सेहत पर पड़ने वाले असर की चर्चा भी स्वाभाविक है।
ऐल्युमिनियम को धीरे-धीरे हटाया
कुछ महीनों पहले की बात है। दूसरों की तरह 40 साल के प्रकाश को सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने की आदत थी। उन्होंने एक मेसेज देखा। उन्होंने फौरन ही मेसेज अपनी फैमिली और ऑफिस के ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया। प्रकाश ने जो मेसेज फॉरवर्ड किया था उसमें बर्तनों को लेकर जानकारी थी कि किस बर्तन में खाना पकाना चाहिए और किसमें नहीं? किसमें स्टोर करना चाहिए और किसमें नहीं ? इनमें कुछ बातें सही तो कुछ गलत थीं। लेकिन मेसेज इस तरह से लिखा गया था कि जिसे पढ़कर ऐसा लगा कि अगर आज ही ऐल्युमिनियम के बर्तनों को किचन से नहीं हटाया तो दुनिया की हर बीमारी लग जाएगी। हालांकि, यह तरीका सही नहीं था कि कोई भी मेसेज बिना जानकारी की सत्यता जांचे किसी भी ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया जाए। मेसेज तभी फॉरवर्ड करने चाहिए जब वह शख्स खुद उसके बारे में पूरी जानकारी रखे। यह मेसेज जब प्रकाश की पत्नी सुरभि ने पढ़ा तो वही काफी परेशान हो गई। वह भी किचन में ऐल्युमिनियम के बर्तनों का उपयोग करती थी। सुरभि ने करीब सालभर पहले ही किचन के लिए ऐल्युमिनियम का पूरा सेट खरीदा था और स्टोरेज के लिए प्लास्टिक कंटेनर। सुरभि ने एक परिचित डाइटिशन को फोन लगाया और अपनी चिंता जाहिर की। डाइटिशन ने समझाया कि हां! ऐल्युमिनियम में खाना पकाने से बचना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है कि अगर आज या आगे कुछ हफ्ते या महीनों तक ऐल्युमिनियम में खाना पका लेंगे तो बहुत बुरा होगा। इसे धीरे-धीरे किचन से बाहर कर दें। इसमें घबराने और स्ट्रेस लेने वाली कोई बात नहीं है। वहीं, प्लास्टिक कंटेनर की अगर क्वॉलिटी अच्छी हो तो सूखी दाल आदि को स्टोर कर सकते हैं। यह सब सुनकर सुरभि की फिक्र कुछ कम हुई। फिर अगले 5 महीनों में किचन से ऐल्युमिनियम को बाहर कर दिया। इससे घर के बजट पर भी असर नहीं पड़ा। पुराने ऐल्युमिनियम के बर्तनों को 1 से 2 साल में हटाने से फायदा ही है, नुकसान तो हरगिज नहीं।
किचन में हैं 12 तरह के बर्तन
1. तांबे के बर्तन
अपने देश में इस बर्तन की उपयोगिता सदियों से रही है। कई जगहों पर आज भी इसका काफी इस्तेमाल होता है। बिरयानी बनाने, धानी रखने आदि के काम में आता है।
तांबे में पानीः
कॉपर के बर्तन में पानी रखकर पीने से फायदे की बात बताई जाती है। मुमकिन है इसमें पानी रखने से पानी में इसका कुछ गुण आ जाए। चूंकि कॉपर हमारे शरीर के कुछ कामों के लिए जरूरी है। कॉपर का उपयोग जहा इम्यूनिटी मजबूत करने में है, वही हीमोग्लोबिन बनाने और हड्डियों की मजबूती में भी है। इसका मतलब यह नहीं कि तांबे के बर्तन में रखे पानी को हम हर दिन, हर वक्त पीते रहे। रात में साफ तांबे के बर्तन में पानी रख दे तो सुबह एक गिलास पीने से काम हो जाएगा। फिर दिनभर सामान्य या गुनगुना पानी पिए। यह सिलसिला 30 से 40 दिनों तक जारी रख सकते हैं। फिर थोड़ा ब्रेक लेकर यही सिलसिला रिपीट करें। वैसे कॉपर की कमी को हम अमूमन अपने खानपान से पूरी कर लेते है।
खासियत
★ प्राचीन काल से खाना पकाने, पानी रखने मे उपयोग
★ इसमे ऐटिमाइक्रोबियल गुण होते हैं, पानी शुद्ध रहता है।
★ जल्दी गर्म होता है, ईधन की बचत होती है।
खामियां
★ अम्लीय पदार्थों (खट्टे) के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करता है, जिससे कॉपर टॉक्सिसिटी का खतरा हो सकता है। ★ इसके बर्तन में टिन की परत चढ़ाकर उपयोग करना जरूरी है।
2. मिट्टी के बर्तन
आज भी कई लोग मिट्टी के बर्तन में दूध उबालते है। कुछ लोग खीर भी बनाते है। कुल्हड़ वाली चाय तो हम सभी को पसंद आती है। मिट्टी के बर्तन में खाने या पीने से मिट्टी में मौजूद कुछ गुण यानी मिनरल्स आदि फूड आइटम्स के साथ शामिल हो सकते है। वही, ये गुण शामिल हो न हो, पर मिट्टी की सौधी-सौधी खुशबू तो शामिल हो ही जाती है। इससे चाय भी अच्छी लगती है और अगर कोई दूध पिए तो दूध भी।
खासियत
कुदरती और पूरी तरह से सुरक्षित है।
खाना धीरे-धीरे पकता है, स्वाद और सुगंध अलग।
पानी को ठंडा और शुद्ध रखता है (मटका)।
न्यूट्रिएंट्स का थोड़ा-बहुत फायदा मुमकिन है।
खामियां
ये जल्दी टूटते हैं।
ज्यादा तैलीय और तीखे मसाले वाले भोजन से इनमें दरारें आ सकती है।
सफाई करना थोड़ा मुश्किल है। इनके टूटने की आशंका इसी दौरान ज्यादा होती है।
3 सिरेमिक और पोर्सिलेन
बहुत-से घरों में इसक उपयोग होता है। इसे अमूमन विकन्नी मिट्टी से तैयार किया जाता है। यह हाई हीट को आसानी से बर्दाश्त करता है।
खासियत
★ दिखने में आकर्षक
★ गर्मी को लंबे समय तक बनाए रखता है।
★ माइक्रोवेव और ओवन फ्रेंडली
★ सेहत के लिए सुरक्षित।
खामियां
★ महंगे और नाजुक
★ सस्ती कोटेड बर्तनों में लेड या दूसरे टॉक्सिन हो सकते है। ★ खरोंच लगने पर कोटिंग हट सकती है।
4. कांच के बर्तन
स्टोर करने के लिए इससे बढ़िया बर्तन कोई दूसरा नहीं हो सकता। अचार, चटनी सभी चीजों को स्टोर करने के लिए सबसे बढ़िया है। सर्व करने के लिए भी यह अच्छा है। हां, बच्चों से दूर जरूर रखना पड़ता है।
खासियत
★ स्टोरेज में सेफ (रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं)
★ पारदर्शी, इसलिए अंदर क्या है साफ दिखता है।
★ अचार, शहद, घी, मसाले रखने के लिए बेहतरीन।
खामियां
★ नाजुक और भारी
★ अचानक तापमान बदलने पर टूट सकता है।
★ यह थोड़ा महंगा होता है।
5. प्लास्टिक
इसका उपयोग खाने की चीज़ो को स्टोर करने में होता है। यह ध्यान रहे कि इसमें गर्म चीज़ो को हरगिज़ न रखें। ज्यादा तापमान पर इसका केमिकल बदलने लगता है। अगर प्लास्टिक अच्छी क्वॉलिटी का नहीं है तो खानपान के लिहाज से हरगिज उपयोग न करे। सबसे बड़ी बात यह कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। प्लास्टिक के बर्तन को कभी भी माइक्रोवेव आदि में नही रखना चाहिए। ब्रैडेड बोटल, लंच बॉक्स या फिर दूसरे सामान के पीछे ISI लिखा होता है या फिर एक सिंबल बना होता है।
खासियत
★ हल्के और सस्ते
★ बच्चों के लिए सुरक्षित (टूटने का डर नहीं)
★ ढेरो डिजाइन और रंगों में मौजूद रहता है।
★ इसलिए लोगो को पसंद आता है।
खामियां
★ गर्म भोजन रखने पर BPA, थैलेट्स जैसे हानिकारक केमिकल खाने में घुल सकते है।
★ लंबे समय तक स्टोर करने के लिए सुरक्षित नहीं है।
6. लकड़ी, बांस के बर्तन
किचन के लिए उपयोगी बांस और लकड़ी से बनने वाली सामग्री ज्यादातर ऐसे इलाकों में तैयार होती है जहां जंगल ज्यादा हो। नॉर्थ-ईस्ट, उत्तराखंड और हिमाचल आदि प्रदेशों में बांस में भी कई तरह के व्यंजनों को पकाया जाता है। कई जगह बांस और लकड़ी से तैयार बर्तनों में भोजन परोसा जाता है। दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर खाने का चलन्न लोगों को बहुत लुभाता है। यह कुदरती भी लगता है।
खासियत
★ कुदरती और इको-फ्रेंडली है। लकड़ी के चम्मच और बेलन भोजन के स्वाद को नहीं बदलते। बास के कटोरे/प्लेटें हल्की और सुंदर होती है।
खामियां
★ नमी से खराब हो सकते हैं।
★ ज्यादा टिकाऊ नहीं
★ बैक्टीरिया पनपने का खतरा रहता है, इसलिए नियमित सफाई जरूरी है।
7. स्टेनलेस स्टील
इसमें क्रोमियम होता है (कम से कम 10.5%)। इससे यह हवा में ऑक्सीजन से मिलकर एक पतली परत (Chromium Oxide) बना देता है जो जंग से बचाती है।
इसलिए यह लोहे की तरह जंग नहीं पकड़ता। यह सेहत के लिए सबसे सुरक्षित है। इसमें ऐल्युमिनियम की तरह मेटल भोजन में नहीं घुलती। इसकी सतह चिकनी होती है, जिस पर बैक्टीरिया आसानी से नहीं चिपकते। आसानी से धुल जाता है। लंबे समय तक चमक बनी रहती है। खाना पकाने, सर्व करने और स्टोर करने, तीनों कामों के लिए उपयुक्त है। प्लेट, गिलास, कड़ाही, प्रेशर कुकर, यहां तक कि पानी की बोतल और लंच बॉक्स तक सब बनते है। मोटे बेस वाले स्टेनलेस स्टील के बर्तनों में खाना समान रूप से पकता है और कम चिपकता है। वहीं पतले या हल्के स्टील के बर्तनों में खाना चिपकने की समस्या ज्यादा होती है।
खासियत
★ सबसे ज्यादा प्रचलित
★ मजबूत, जंगरोधी और लंबे समय तक टिकाऊ
★ सेहत के लिए सुरक्षित, भोजन में मेटल का रिसाव न के बराबर, साथ ही इसमें नीबू, टमाटर, दही जैसी खट्टी चीजे भी सुरक्षित पकाई और स्टोर की जा सकती है।
खामियां
★ गर्मी धीरे पकड़ते है, इसलिए गैस खपत थोड़ी ज्यादा होती है।
★ जल्दी ठंडा भी हो जाता है।
★ पतले बेस वाले बर्तन में खाना कभी-कभी नीचे चिपक जाता है (नॉनस्टिक न हो तो)।
8. लोहे के बर्तन
ये कई तरह के होते हैं: रॉट आयरन, कार्बन स्टील, ब्लैक आयरन, इनैमल्ड कास्ट आयरन, डक्टाइल आयरन और कास्ट आयरन। कास्ट आयरनः कास्ट आयरन सदियो से भारतीय रसोई का हिस्सा रहा है। लोहे की कढ़ाई, तवा, पतीला या हांडी में पका हुआ खाना अलग ही स्वाद देता है। ये बर्तन धीमी आंच पर समान रूप से गर्मी फैलाते है और लंबे समय तक तापमान बनाए रखते है। आज भी इनका उपयोग काफी होता है। इनमें पकाने से थोड़ी मात्रा में आयरन खाने में मिलता है जो खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए फायदेमंद है।
खासियत
★ कढ़ाई और तवे में इस्तेमाल ज्यादा। अगर तेल लगाकर पकाएं तो यह भी काफी हद तक नॉनस्टिक की तरह हो जाता है। इसमें खाना नही जलेगा और मुमकिन है कि सब्जियों का रंग काला भी नहीं होगा। हाई हीट भी सहता है।
खामियां
★ जंग लगने की हमेशा आशंका
★ नियमित तेल/घी से सीज्जनिंग करनी पड़ती है ताकि जंग न लगे। ज्यादा अम्लीय भोजन (खट्टे टमाटर आदि) पकाने से धातु खाने में ज्यादा घुल सकती है।
सफाई और देखभाल
★ साबुन से बार-बार न धोए, गर्म पानी और सॉफ्ट स्क्रबर से साफ करें।
★ खाना पकाने से पहले बर्तन को हल्का तेल लगाकर धीमी आंच पर गर्म करें। यह सतह पर सुरक्षात्मक परत बना देता है।
★ जंग से बचाव के लिए लोहे के बर्तन धोने के बाद तुरंत सुखा लेने चाहिए और हल्की तेल की परत लगाकर रखें।
★ सूखी जगह रखें। अगर लंबे समय तक इस्तेमाल न करना हो तो कपड़े में लपेटकर रखें।
9. नॉनस्टिक बर्तन
अगर कम आंच पर किसी चीज को पकाना हो तो नॉनस्टिक बेहतरीन है। अगर कोई इसमें तेल को ज्यादा गर्म कर उसमें चीज्जे फ्राई करने की कोशिश करे, बार-बार उसमे ऐल्युमिनियम या स्टील आदि धातु की चम्मच चलाई जाए तो यह मुमकिन है कि उस बर्तन की नॉनस्टिक कोटिंग न सिर्फ हट जाएगी बल्कि सब्जी, दाल आदि जो भी खाने की चीज बर्तन में मौजूद होगी, उसमे मिल भी जाए। अगर किसी को अपना वजन कम करना हो तो इससे बढ़िया बर्तन दूसरा हो नही सकता। इसमें तेल, घी आदि का उपयोग अगर न भी किया जाए और हल्की आंच पर पकाएं तो खाना तैयार हो जाता है। ध्यान बस यह रखना है कि धातु की चम्मच की जगह लकड़ी की चम्मच का उपयोग हो। इससे नॉनस्टिक कोटिंग नहीं हटेगी। इनमें खाना पकाने से कैंसर होने की पुष्टि नहीं हुई है।
खासियत
★ कम तेल में खाना बनाने की सुविधा
★ वजन कम करने में मदद
★ सफाई करना आसान
खामियां
★ ज्यादा गर्मी (260 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) पर कोटिंग टूटकर हानिकारक धुआ निकल सकता है।
10. पीतल के बर्तन
पीतल (Brass) में तांबा (Copper) और जिंक (Zinc) का मिश्रण होता है। ये दोनों धातुएं शरीर के लिए फायदेमंद मानी जाती है। इनमें पकाया गया भोजन शरीर मे तांबे और जिंक का कुछ अंश पहुंचा सकता है जो इम्यूनिटी बढ़ाने और पाचन में मददगार होते है। दही, इमली, नीबू, टमाटर जैसे खट्टे पदार्थों को पीतल में पकाना या रखना हानिकारक हो सकता है।
खासियत
★ धार्मिक व पारंपरिक अहमियत
★ भोजन को स्वादिष्ट बनाता है।
★ टिकाऊ और आकर्षक
★ ये जल्दी गर्म होते है, इसलिए खाना भी जल्दी पकता है।
★ ऐटिबैक्टीरियल गुण होता है।
खामियां
★ बिना टिन की परत के इस्तेमाल करने पर जिंक और कॉपर का रिसाव हो सकता है।
★ टिन की परत हटे नहीं, यह यह देखते रहना भी जरूरी है।
11. ऐल्युमिनियम
शुरुआत में सोने से भी ज्यादा महंगी धातु थी, लेकिन आज धातुओं में अमूमन सबसे सस्ती है। इसका उपयोग उन घरों में ज्यादा किया जाता है जिनकी स्थिति बर्तनों पर ज्यादा पैसे खर्च की नहीं होती। BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) के नए निर्देश के अनुसार हल्के (लाइटवेट) ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 12 महीने में बदलने की सलाह दी गई है। वहीं, भारी गुणवत्ता वाले ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 24 महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
खासियत
★ हल्के और सस्ते होते है। कम बजट वालों के लिए बढ़िया विकल्प है। 1-2 साल पुराने बर्तनो को हटाना सेहत के लिहाज से भी ठीक ही रहता है। ये बिक भी जाते हैं।
★ जल्दी गर्म हो जाते है, इसलिए ईंधन की बचत होती है।
★ बाजार में आसानी से मिलते है। बड़े पैमाने पर घरों और ढाबों मे इस्तेमाल
खामियां
★ नरम धातु होने से जल्दी खरोच पड़ती है। अम्लीय और नमकीन भोजन (जैसे टमाटर, इमली, दही) पकाने पर ऐल्युमिनियम घुलकर खाने में मिल सकती है। लंबे समय तक इस्तेमाल से न्यूरोलॉजिकल और किडनी की बीमारियों का खतरा हो सकता है (हालांकि कैंसर से सीधे संबंध का साइंटिफिक सबूत नहीं है)।
12. एनोडाइज्ड ऐल्युमिनियम
सामान्य ऐल्युमिनियम की तुलना में यह ज्यादा बेहतर है। एनोडाइजिंग (Anodizing) इलेक्ट्रोकेमिकल प्रोसेस से बनाई गई ऑक्साइड की परत है। इससे ऐल्युमिनियम की सतह पर ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की मोटी परत बन जाती है।
खासियत
★ अमूमन खाने के साथ प्रतिक्रिया नहीं और साधारण ऐल्युमिनियम से कहीं ज्यादा मजबूत है। इसकी उम्र लंबी होती है। कभी-कभी डाई डालकर रंगीन एनोडाइजिंग भी की जाती है।
खामियां
★ ये सामान्य ऐल्युमिनियम से महंगे है।
★ अगर कोटिंग खराब हो जाए तो वही समस्या आती है जो साधारण ऐल्युमिनियम में है। इसलिए इस बात का खास ध्यान रखना है।
आयुर्वेदः सोने-चांदी के बर्तन भी बढिया
★ सोने और चांदी के बर्तन सभी तरह के दोषनाशक व दृष्टिवर्धक यानी आंखों की रोशनी बढ़ाने वाले होते हैं।
★ कासे का बर्तन बुद्धिवर्धक, रुचिकर और रक्तपित्त यानी भोजन के पाचन को बढ़ाने वाला होता है।
★ पीतल का बर्तन वातकारक, रुक्ष, कृमि व कफ नाशक होता है।
★ लोहे व कांच के बर्तन में भोजन करने से आंतरिक सूजन, पीलिया खत्म होता है
★ लकड़ी के पात्र में भोजन करना रुचिप्रद और कफकारक (शीतल प्रकृति की वजह से) होता है।
★ मिट्टी के बर्तन में छोटे-छोटे सुराख होते है जो भाप और नमी को बहार निकलने देते हैं। भोजन में नमी और पोषक तत्व बने रहते हैं। वही, मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है। जब इसमें खाना पकाया जाता है तो यह भोजन में मौजूद एसिड को बेअसर करने में भी मदद करता है। इनके अलावा मिट्टी के बर्तन में धीरे-धीरे खाना पकता है, जिससे भोजन पकाने के लिए ज्यादा तेल की जरूरत नहीं होती। हां, कफ थोड़ा बढ़ा सकते हैं।
★ केले के पत्ते पर भोजन करना रुचिकर होता है। यह बलवर्धक, जठराग्नि दीपक होता है यानी शरीर के भोजन पचाने की शक्ति को बढ़ाने वाला होता है, साथ ही भोजन से अधिकतम ऊर्जा देने वाला भी होता है।
★ पलाश के पत्ते में भोजन करने से वात, कफ, उदर रोग का नाश होता है।
★ आक (मदार) के पत्तों से बने बर्तन में भोजन करना अति रुक्षता जनक (शरीर से पानी निकालने वाला), परम पित्तकारक (भोजन पाचन में सहयोग करने वाला) होता है। अरण्ड के पत्ते पर भोजन करना वातहर, कृमिनाशक (पेट के कीड़े को मारने वाला), पित्तकारक होता है।
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