बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि चौसर का निर्माण भी भगवान शिव ने ही किया था।
*बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि चौसर का निर्माण भी भगवान शिव ने ही किया था।*
भगवान शिव और माता पार्वती के चौसर खेलने का वर्णन पुराणों में वर्णित है। मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर मंदिर में आज भी रात में शिव-पार्वती चौसर खेलते हैं। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यह चौसर बदली जाती है। फिर वर्ष भर गर्भगृह में रोज रात शिव और पार्वती के लिए चौसर-पासे की बिसात बिछाई जाती है।
यह परंपरा यहां हजारों साल से चली आ रही है। यह मंदिर भगवान राम के पूर्वजों का है।
नर्मदा किनारे बसा ओंकारेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसके दर्शन के बिना चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना राजामांधाता ने की थी। उन्हें भगवान राम का पूर्वज माना जाता है। यह मंदिर वेदकालीन है। भगवान शिव के सोलह सोमवार के व्रत की कथा में भी इसका उल्लेख आता है। मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती रोज रात में यहां आकर चौसर-पांसे खेलते हैं।
रात में शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। ये परंपरा मंदिर की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। कई बार ऐसा हुआ है कि चौसर और पांसे रात में रखे स्थान से हटकर सुबह दूसरी जगह मिले।
ओंकारेश्वर शिव भगवान का अकेला ऐसा मंदिर है जहां रोज गुप्त आरती होती है। इस दौरान पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भगृह में नहीं जा सकता। इसकी शुरुआत रात 8 :30 बजे रुद्राभिषेक से होती है। अभिषेक के बाद पुजारी पट बंद कर शयन आरती करते हैं। आरती के बाद पट खोले जाते हैं और चौसर-पांसे सजाकर फिर से पट बंद कर देते हैं। हर साल शिवरात्रि को भगवान के लिए नए चौसर-पांसे लाए जाते हैं।
बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि चौसर का निर्माण भी भगवान शिव ने ही किया था। एक दिन महादेव ने देवी पार्वती से कहा कि आज मैंने एक नए खेल का निर्माण किया है। उनके अनुरोध पर दोनों चौसर का खेल खेलने लगे। चूंकि चौसर का निर्माण महादेव ने किया था, वे जीतते जा रहे थे।
अंत में माता पार्वती ने कहा कि यह उचित नहीं है। अगर ये एक खेल है, तो उसके नियम भी होने चाहिए। उनके ऐसा कहने पर महादेव ने चौसर के नियम बनाए ! एक बार फिर चौसर का खेल आरंभ हो गया। इस बार माता पर्वती बार-बार विजयी होने लगी और थोड़े ही समय में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए।
अंत में भगवान शिव ने लीला करते हुए कैलाश को भी दांव पर लगाया और हार गए। इसके बाद भगवान शिव अपनी लीला रचाने के लिए हारने के बाद पत्तों के वस्त्र पहन कर देवी पार्वती से रूठने का नाटक करते हुए गंगा नदी के तट पर चले गए। थोड़ी देर बाद जब कार्तिकेय कैलाश लौटे, तो उन्होंने भगवान शिव की माता पर्वती से चौसर के खेल में हारने की बात सुनी।
वे अपने पिता को अपनी माता से अधिक प्रेम करते थे, इसी कारण अपने पिता को वापस लाने के लिए उन्होंने माता पार्वती को चौसर में हराकर भगवान शिव की सारी वस्तुएं प्राप्त कर ली और अपने पिता को लेने के लिए गंगा के तट पर चल दिए।इधर माता पार्वती परेशान हो गई कि पुत्र कार्तिकेय जीत कर महादेव का सारा समान भी ले गया और उनके स्वामी भी उनसे दूर चले गए। यह बात उन्होंने अपने पुत्र गणेश को बतलाई। गणेश अपनी माता को अपने पिता से अधिक प्रेम करते थे इसी कारण उनका दुःख सहन न कर सके और अपनी मां की इस समस्या का निवारण करने के लिए वे भगवान शिव को ढूढने निकल गए।
गंगा के तट पर जब उनकी भेट भगवान शिव से हुई, तो उन्होंने उनके साथ चौसर का खेल खेला तथा उन्हीं की माया से उन्हें हराकर उनकी सभी वस्तुए पुनः प्राप्त कर ली। भगवान शिव के सभी वस्तुए लेकर गणेश मां पार्वती के पास पहुंचे तथा उन्हें अपनी विजय का समाचार सुनाया। गणेश को अकेले देखकर, वह बोलीं कि तुम्हंे अपने पिता को भी साथ लेकर आना चाहिए था। तब गणेश पुनः भगवान शिव को ढूढने निकल पड़े। भगवान शिव गणेश को हरिद्वार में कार्तिकेय के साथ भ्रमण करते हुए मिले।
जब भगवान गणेश ने शिव से वापस कैलाश पर्वत चलने की बात कही, तो उन्होंने गणेश के बार-बार निवेदन करने पर कहा कि यदि तुम्हारी माता मेरे साथ एक बार फिर चौसर का खेल खेलेंगी, तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूं। गणेश ने माता पार्वती को भगवान शिव की शर्त बतलाई और उन्हें लेकर अपने पिता के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर माता पार्वती हंसते हुए भगवान शिव से बोलीं कि हे नाथ! आप के पास हारने के लिए अब बचा ही क्या है।
तब नारद जी ने अपनी वीणा भगवान शिव को दांव पर लगाने के लिए दे दी। भगवान शिव की इच्छा से भगवान विष्णु पासों के रूप में भगवान शिव के पास आ गए और भगवान बह्म मध्यस्थ बनें। इस बार भगवान शिव चौसर के खेल में माता पर्वती को बार-बार हराने लगे।
जब माता पार्वती अपना सब कुछ हार गइर्ं, तब महादेव ने हंसते हुए इसका रहस्य बताया। हालांकि भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ यूं ही ठिठोली की थी, किंतु देवी पार्वती को बड़ा क्रोध आया।
उन्होंने क्रोधित होकर भगवान शिव से कहा कि आप हमेशा अपने सिर के ऊपर गंगा का बोझ सहेंगे। देवर्षि नारद को कभी एक जगह न टिकने का श्राप मिला तथा भगवान विष्णु को धरती में जन्म लेकर स्त्री वियोग का श्राप मिला। माता पार्वती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय पर भी क्रोधित होते हुए श्राप दिया कि वे सदैव बाल्यवस्था में ही बने रहेंगे।
बाद में माता पार्वती को अपने श्राप पर बड़ा क्षोभ हुआ और उन्होंने भगवान शिव और नारायण से प्रार्थना की कि वे उनके श्राप को निष्फल कर दें, किंतु भगवान विष्णु ने कहा कि वे जगत माता हैं और वे उनका श्राप निष्फल कर उनका अपमान नहीं कर सकते। इस कारण सभी को माता पार्वती द्वारा दिया गया श्राप झेलना पड़ा।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
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