मत्स्य अवतार

जब सतयुग का अंत होने लगा, तब एक बार भगवान ब्रह्मा के दिन का संध्या समय आ गया। उस समय हयग्रीव नामक एक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया और उन्हें समुद्र की गहराइयों में छिपा दिया। वेदों के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं था।
इसी समय सत्यव्रत नाम के राजा (जो आगे चलकर वैवस्वत मनु कहलाए) नदी में स्नान कर रहे थे। उन्होंने एक छोटे से मछली को अपने करों में उठाकर जल में डालना चाहा। लेकिन वह मछली बोली—

“हे राजन! मुझे बड़ी मछलियाँ खा लेंगी, कृपा करके मेरी रक्षा कीजिए।”

राजा ने करुणा से उसे अपने कमंडलु में रख लिया। परंतु वह मछली धीरे-धीरे बड़ी होती चली गई—कमंडलु से तालाब, फिर झील और अंत में समुद्र तक। तब राजा को समझ आया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है।

वह मछली स्वयं भगवान विष्णु थे, जिन्होंने कहा—

“राजन! सात दिन बाद प्रलय आएगा। तुम एक विशाल नौका बनवाओ और उसमें सप्तऋषियों, औषधियों और जीवों के बीज रखो। जब प्रलय आएगा, तब मैं मत्स्य रूप में आकर तुम्हारी नौका को सुरक्षित स्थान तक ले जाऊँगा।”

फिर वही हुआ। प्रलय का समय आया, चारों ओर जल ही जल हो गया। राजा मनु ने नौका को लेकर समुद्र में विचरण किया। भगवान मत्स्य ने प्रकट होकर अपनी विशाल शृंग (सींग) से उस नौका को बाँध लिया और सप्तऋषियों समेत सबकी रक्षा करते हुए हिमालय की ओर पहुँचा दिया।

इसी अवतार में भगवान विष्णु ने हयग्रीव दैत्य का वध किया और समुद्र से वेदों को निकालकर ब्रह्मा जी को पुनः सौंप दिया।

👉 संदेश:

मत्स्य अवतार हमें सिखाता है कि भगवान हर युग में अपने भक्तों और धर्म की रक्षा करने के लिए किसी भी रूप में प्रकट होते हैं।

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