भीष्म_पंचक_व्रत
#भीष्म_पंचक_व्रत 2025
“पीड़ा में भी ज्ञान है, त्याग में ही मुक्ति।”
#भीष्म_पंचक: भीष्म पितामह की शरशय्या से जुड़ा पवित्र व्रत
आज, 1 नवंबर 2025, से आरंभ हो रहा है भीष्म पंचक व्रत — एक ऐसा काल जो त्याग, धर्म और मोक्ष का जीवंत प्रतीक है।
यह वही समय है जब महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह शरशय्या पर लेटे हुए, युधिष्ठिर को धर्म, भक्ति और कर्मयोग का गूढ़ उपदेश दे रहे थे।
भीष्म पंचक केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का उत्सव है —
जहाँ आत्मा तपती है, अहं गलता है, और भक्ति प्रकट होती है।
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⚔️ भीष्म पितामह की शरशय्या – अमर कथा और आध्यात्मिक संदेश
महाभारत के दसवें दिन, जब युद्ध चरम पर था, अर्जुन के बाणों से भीष्म बुरी तरह घायल हुए और भूमि पर गिर पड़े।
उनका शरीर बाणों से भेदित था — इतना कि एक तिनका रखने की भी जगह नहीं बची।
फिर भी उन्होंने मृत्यु को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनके पास था — इच्छा मृत्यु का वरदान।
> उन्होंने कहा — “जब तक धर्म की विजय न हो, मैं देह नहीं त्यागूँगा।”
युद्ध समाप्त होने के बाद, भीष्म 58 दिनों तक शरशय्या पर लेटे रहे, सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में।
इस दौरान उन्होंने युधिष्ठिर को शांति पर्व और अनुशासन पर्व के उपदेश दिए —
राजधर्म, आत्मधर्म, सत्य, दान, और कर्म के गूढ़ रहस्य समझाए।
🌺 आध्यात्मिक दृष्टि से शरशय्या का अर्थ
1. त्याग और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक – भीष्म की इच्छा मृत्यु दर्शाती है कि जो आत्मसंयमी होता है, वही मृत्यु पर विजय पा सकता है।
2. कर्मयोग का साक्षात उदाहरण – असहनीय वेदना में भी धर्म की शिक्षा देना; यही सच्चा योग है।
3. ज्ञान और करुणा का संगम – शरशय्या पर भी उन्होंने दूसरों के कल्याण के लिए उपदेश दिए; यह दैवी भाव का प्रतीक है।
4. मोक्ष और पितृ-शांति का माध्यम – उनका देहत्याग सूर्य के उत्तरायण काल में हुआ; जो मोक्ष का द्वार माना गया है।
भीष्म की यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन की शरशय्या (कठिनाइयाँ) ही हमारी आत्मा की परीक्षा हैं।
जो सहन कर ले, वही मुक्त होता है।
भीष्म पंचक व्रत तिथियाँ (2025)
तिथि दिन विशेष कार्य
1 नवम्बर (एकादशी) शनिवार विष्णु पूजन, तुलसी विवाह, पद्मा एकादशी कथा
2 नवम्बर (द्वादशी) रविवार तुलसी सज्जा, दीप प्रज्वलन, भीष्म कथा पाठ
3 नवम्बर (त्रयोदशी) सोमवार पितृ तर्पण, तिल-जल अर्पण, ब्राह्मण दान
4 नवम्बर (चतुर्दशी) मंगलवार जल पूजा, अग्निहोम, रोग निवारण हेतु हवन
5 नवम्बर (पूर्णिमा) बुधवार कार्तिक स्नान, चंद्र अर्पण, व्रत उद्यापन, गौदान
🌿 व्रत विधि-विधान
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें, गंगा जल से आचमन।
विष्णु/कृष्ण की पूजा करें, दीपक जलाएं, तुलसी अर्पित करें।
जप करें –
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ नमः शिवाय” – 108 बार
सात्त्विक भोजन (फल, दूध, गुड़, चावल) लें।
क्रोध, असत्य, अहंकार से दूर रहें।
पाँचवें दिन दान करें — अन्न, वस्त्र, गौ या दीपदान।
🔱 भीष्म पंचक का गूढ़ अर्थ
यह व्रत पंच तत्वों की साधना है —
🌍 पृथ्वी में धैर्य, 💧 जल में शुद्धता, 🔥 अग्नि में तप, 🌬 वायु में त्याग, 🌌 आकाश में विस्तार।
जो इन पाँच गुणों को आत्मसात कर लेता है, वह भीष्म की तरह अमर चेतना प्राप्त करता है।
💫 भीष्म पंचक से मिलने वाले दिव्य फल
पितृ दोष का नाश
मोक्ष की प्राप्ति
मानसिक शांति और दीर्घायु
गृह में सुख, सौभाग्य और संतति लाभ
सात पीढ़ियों तक पुण्य प्रभाव
आज का संदेश
> “शरशय्या केवल बाणों की नहीं थी,
वह त्याग, संयम और धर्म की परीक्षा थी।”
भीष्म पंचक हमें यही सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी पीड़ा हो,
धर्म और भक्ति से विचलित न होना ही सच्ची विजय है।
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