जपमाला में १०८ दाने

"जपमाला में १०८ दाने ही क्यों? — शास्त्रीय, दार्शनिक, गणितीय एवं वैज्ञानिक विश्लेषण" 
✓•प्रस्तावना: भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में जप केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि चेतना-परिष्कार की एक सुसंगठित साधना-पद्धति है। जप की गणनात्मक, अनुशासनात्मक एवं ध्यानात्मक व्यवस्था का मूर्त रूप जपमाला है। प्रश्न यह नहीं कि जपमाला में दाने क्यों हैं, बल्कि यह कि दाने १०८ ही क्यों—यह प्रश्न वेद, उपनिषद्, पुराण, आगम, तंत्र, योग, आयुर्वेद, खगोल तथा गणित—सभी क्षेत्रों को स्पर्श करता है। प्रस्तुत शोधप्रबंध में १०८ की संख्या का शास्त्रीय प्रमाणों सहित बहुआयामी विवेचन किया गया है।

✓•१. वैदिक परिप्रेक्ष्य में १०८:

✓•१.१ वेदों में संख्या-चेतना:
ऋग्वेद में संख्याएँ केवल गणना का उपकरण नहीं, बल्कि ऋत (cosmic order) की अभिव्यक्ति हैं। वेदों में ३, ७, १२, २७, १०८ जैसी संख्याएँ बार-बार प्रकट होती हैं।
•१२ आदित्य
•२७ नक्षत्र
•३६० दिन = २७ × १३⅓
•१०८ = १२ × ९ या २७ × ४
यह दर्शाता है कि १०८ सौर-नाक्षत्रीय गणना से संबद्ध एक पूर्ण संख्या है।

✓•१.२ उपनिषदों में १०८:
मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार १०८ उपनिषद् माने गए हैं। यह संख्या केवल सूचीगत नहीं, बल्कि यह संकेत देती है कि १०८ ज्ञान-द्वार हैं जिनसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

 “अष्टोत्तरशतं प्रोक्तं उपनिषदां महात्मभिः।”

अर्थात् १०८ उपनिषद् आत्मविद्या के १०८ सोपान हैं।

✓•२. पुराणिक एवं आगमिक दृष्टि:

✓•२.१ पुराणों में १०८ का महत्त्व:
शिवपुराण, विष्णुपुराण तथा देवीभागवत पुराण में—
•१०८ शिवनाम
•१०८ विष्णुनाम
•१०८ शक्तिपीठ (कई परम्पराओं में)
का उल्लेख मिलता है। नाम-जप की पूर्णता १०८ आवृत्तियों से मानी गई है।

✓•२.२ आगम और तंत्र:
तांत्रिक ग्रंथों में कहा गया है कि—
•१०८ नाड़ियाँ प्रमुख मानी जाती हैं
•हृदय से निकलने वाली १०८ सूक्ष्म ऊर्जा-धाराएँ हैं
अतः १०८ जप करने से सम्पूर्ण नाड़ी-तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।

✓•३. योगशास्त्र और १०८:

✓•३.१ नाड़ी एवं चक्र सिद्धांत:
योगशास्त्र के अनुसार—
•७ मुख्य चक्र
•प्रत्येक चक्र से १०८ ऊर्जा-स्पंदन संबद्ध
•इसलिए १०८ जप करने से चक्र-संतुलन होता है।
हठयोगप्रदीपिका में जप को प्राण-संयम का साधन कहा गया है।

✓•३.२ प्राण और श्वास गणना:
औसतन—
एक व्यक्ति एक दिन में लगभग २१,६०० श्वास-प्रश्वास लेता है
२१,६०० ÷ २ = १०,८००
१०,८०० ÷ १० = १०८
अर्थात् १०८ जप दैनिक श्वास-चक्र का प्रतीकात्मक संक्षेप है।

✓•४. आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:
आयुर्वेद में—
१०८ मर्म स्थान बताए गए हैं
मर्म = प्राण-आश्रय बिंदु
जप करते समय अंगुलियों की गति इन मर्मों को अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय करती है।
सुश्रुत संहिता में मर्म-तत्त्व का विस्तृत वर्णन मिलता है।

✓•५. खगोलशास्त्रीय एवं गणितीय आधार:

✓•५.१ सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा:
आधुनिक खगोलिकी भी प्राचीन भारतीय गणना की पुष्टि करती है—
•सूर्य का व्यास ≈ पृथ्वी से दूरी ÷ १०८
•चंद्रमा का व्यास ≈ पृथ्वी से दूरी ÷ १०८
यह आश्चर्यजनक संयोग नहीं, बल्कि भारतीय खगोल-चेतना की सूक्ष्मता का प्रमाण है।

✓•५.२ नक्षत्रीय गणना:
•२७ नक्षत्र
•प्रत्येक नक्षत्र के ४ चरण
•२७ × ४ = १०८
जपमाला का प्रत्येक दाना एक नक्षत्र-पाद का प्रतीक है।

✓•६. भाषिक एवं मंत्र-शास्त्रीय पक्ष:
संस्कृत वर्णमाला—
५ स्वर-वर्ग
८ व्यंजन-वर्ग
कुल वर्ण-शक्तियाँ = ५ × ८ = ४०
विविध स्वर-भेद जोड़ने पर यह संख्या १०८ के समीप पहुँचती है
अर्थात् १०८ जप से सम्पूर्ण ध्वनि-ब्रह्म का स्पर्श होता है।

तैत्तिरीय उपनिषद् में कहा गया है—

 “शब्दो वै ब्रह्म।”

✓•७. जपमाला की संरचना:

✓•७.१ मेरु दाना (सुमेरु):
१०८ दानों के अतिरिक्त एक मेरु दाना होता है—
यह अहं-लोप का प्रतीक है
साधक उसे पार नहीं करता, बल्कि माला घुमा देता है
यह दर्शाता है कि पूर्णता के बाद पुनः आत्मावलोकन आवश्यक है।

✓•८. मनोवैज्ञानिक एवं ध्यानात्मक प्रभाव:
आधुनिक न्यूरोसाइंस के अनुसार—
१००–११० बार दोहराव से मस्तिष्क में थीटा वेव्स सक्रिय होती हैं
यह अवस्था ध्यान एवं समाधि के लिए अनुकूल है
अतः १०८ कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि मानसिक अनुकूलन की आदर्श संख्या है।

✓•९. अन्य परम्पराओं में १०८:
•बौद्ध परम्परा: १०८ क्लेश
•जैन परम्परा: १०८ गुण
•तिब्बती परम्परा: १०८ प्रार्थना-चक्र
यह सिद्ध करता है कि १०८ भारतीय उपमहाद्वीप की साझा आध्यात्मिक संख्या है।

✓•निष्कर्ष:
जपमाला में १०८ दानों की संख्या—
•वैदिक
•उपनिषदिक
•पुराणिक
•योगिक
•आयुर्वेदिक
•खगोलशास्त्रीय
•गणितीय
•मनोवैज्ञानिक
सभी स्तरों पर पूर्णतः संगत, तर्कसंगत और शास्त्रसम्मत है। यह संख्या न तो संयोग है, न परम्परा-जनित रूढ़ि—बल्कि ब्रह्माण्डीय लय (Cosmic Rhythm) का प्रतीक है।
अतः जपमाला के १०८ दाने साधक को यह स्मरण कराते हैं कि—
एक सीमित देह में बैठकर भी वह अनन्त ब्रह्माण्ड से तादात्म्य कर सकता है।
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद्

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