मानव में शुक्राणु में एक आत्मा होती है
मानव में शुक्राणु में एक आत्मा होती है. डिम्ब अथवा स्त्री के अंडाणु में स्वतंत्र एवं अलग आत्मा विद्यमान होती है. दोनों के संयोग से मानव शरीर की संरचना प्रारंभ होती है. किन्तु मानव शरीर के प्रत्येक अंग के प्रत्येक अणु में स्वतंत्र आत्मा होती है जिसे संचालित करने की ऊर्जा, क्षमता तथा प्रेरणा मस्तिष्क में स्थित ब्रह्माण्ड (का अंश) अथवा सूक्ष्म ऊर्जा जिसे हम भौतिक अथवा वैज्ञानिक रूप से आत्मा मानते हैं, उसके पास रहती है. इसे दूसरे सरल शब्दों में इस प्रकार से समझ सकते हैं कि सूर्य अग्नि तथा अथाह ऊर्जा का एक पिण्ड है जिसके हर बिंदु में अनंत ऊर्जा विद्यमान है. किन्तु यह अनंत ऊर्जा सूर्य के मूलतत्व क्रोड अथवा कोर के बिना शून्य हो जाती है. सूर्य अथवा किसी भी तारे की कोर अपनी मृत्यु के पश्चात अनंत ऋणात्मक ऊर्जा तथा परम घनत्व का पिण्ड बन जाता है जिसे हम वैज्ञानिक रूप से ब्लैकहोल (ब्लैक होल) के नाम से जानते हैं. वह समस्त उत्सर्जित ऊर्जा को पुनः अवशोषित कर पुनः ऊर्जा का स्रोत बनने की प्रक्रिया में रत हो जाता है. इसी प्रकार से मानव शरीर स्थित ब्रह्माण्ड से अनंत ऊर्जा जिससे शरीर के अन्य अवयव संचालित ह...