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Showing posts from May, 2023

कुलदेवी की पूजा किस दिन करनी चाहिए?

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कुलदेवी की पूजा किस दिन करनी चाहिए? कुलदेवी क्या होती है ? कुलदेवी को कैसे प्रसन्न करें ? हमें कुलदेवी का पता नहीं है ? कुलदेवी की पूजा कैसे करें ? कुलदेवी का क्या महत्व है ? मुझ से ऐसे बहुत से सवाल पूछे जाते हैं , इंस्टाग्राम पर मैंने इस विषय पर काफी बताया भी हुआ है। आज सोचा इस विषय पर एक विस्तृत जानकारी देनी चाहिए। प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज अपनी कुलदेवी ( कुल के जनक ) की पूजा करते आए हैं , ताकि उनके घर-परिवार और कुल का कल्याण होता रहे। कुल देवी या देवता आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से कुलों की रक्षा करते हैं। जिससे नकारात्मक शक्तियों और ऊर्जाओं का खात्मा होता है। घर के मेन गेट पर कुलदेवी माता का पहरा होता है पुराने समय के घर और हवेलिया अब भी मिल जायेंगे ,जिसके दोनों और चौकी और दीपक जलाने का आला मिल जायेगा। वो दीपक कुलदेवी का ही लगता था। घर में जल छिड़क कर मेन गेट पर दोनों और जल चढ़ाया जाता है ,वो भी कुलदेवी को ही चढ़ाया जाता है। अब बिज़नेस ,रोजी रोटी ,नौकरी के चक्कर में लोग अपनी जड़ों से दूर होगये , अपने पूर्वजो के जन्म स्थान से दूर हो गए , और अपने पूर्वजो के रीती रिवाज छोड़ दिए। क्या...

पूजा करते समय

पूजा करते समय किस तरह के आसन पर बैठना ठीक रहता है? जी तो चलिए देखते है क्या कहते है हमारे धार्मिक ग्रन्थ और धर्म के जानकार और फिर इन सबके मध्यनजर होगा अपना विश्लेषण सा। ध। क। को। बि। ना। आसन के पूजा-जप आदि नहीं करना चाहिए। इसका पूर्ण फल भूमि में समाहित हो जाता है और साधक को कोई लाभ नहीं मिल पाता। ।।।। ये तो कहना है हमारे बुजर्गो का,,और हम अक्षर यही बाते ज्यादा सुनते भी है ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ में आसनों का विशेष उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। जिस आसन पर कोई साधक साधना कर चुका है, साधना के लिए पुन: आसन का प्रयोग न करें। दूसरे के द्वारा प्रयुक्त आसन में दोष आ जाते हैं। जो नए साधक के लिए शुभ और मंगल नहीं होता। इसलिए साधना के लिए साधक को सदैव नवीन आसन पर ही बैठकर पूजा-तप करना चाहिए। पूजा-तप करने से पहले उस आसन को मंत्र द्वारा शुद्ध और पवित्र कर लेना चाहिए। संपूर्ण स्थानों और दिशाओं के पश्चात जो मध्य हो उसे सर्वोच्च एवं ब्रह्म स्थान कहते हैं। इसी ब्रह्म स्थान पर ही साधक को साधना करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। बिना आसन के साधक को धार्मिक कृत्यों-अनुष्ठानों में सिद्धि प्राप्त नहीं होती।...

क्या आप ॐ के जप की विधि बता सकते हैं?

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क्या आप ॐ के जप की विधि बता सकते हैं? ॐ जप यज्ञ के संबंध में कुछ आवश्यक जानकारियां नीचे दी जारही हैं:- ओम अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है, हमें कभी भी ॐ अकेला नहीं जपना चाहिये, यह प्रतिकूल प्रभाव डालता है, आपको (हरिओम) या (ॐनमः शिवाय) या ॐ गायत्री मंत्र का जप करना उत्तम कल्याणकारी सिद्ध होगा…। 1.—जप के लिए प्रातःकाल एवं ब्राह्म मुहूर्त काल सर्वोत्तम है। दो घण्टे रात रहे से सूर्योदय तक ब्राह्म मुहूर्त कहलाता है। सूर्योदय से दो घण्टे दिन चढ़े तक प्रातः काल होता है। प्रातःकाल से भी ब्राह्म मुहूर्त अधिक श्रेष्ठ है। 2—जप के लिए पवित्र एकान्त स्थान चुनना चाहिए मन्दिर, तीर्थ, बगीचा, जलाशय आदि एकान्त के शुद्ध स्थान जप के लिए अधिक उपयुक्त हैं। घर में जप करना हो तो भी ऐसी जगह चुननी चाहिए जहां अधिक खटपट न होती हो। 3—संध्या को जप करना हो तो सूर्य अस्त से एक घण्टा उपरान्त तक जप समाप्त कर लेना चाहिए। प्रातःकाल के दो घण्टे और सायंकाल का एक घण्टा इन तीन घण्टों को छोड़कर रात्रि के अन्य भागों में ॐ /गायत्री मंत्र नहीं जपा जाता। 4—जप के लिये शुद्ध शरीर और शुद्ध वस्त्रों से बैठना चाहिए। साधारणतः स्नान द्वार...

माला जपने से पूर्व जानें किस साधना में कौन-सी माला उपयोग में लाएं...

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* माला जपने से पूर्व जानें किस साधना में कौन-सी माला उपयोग में लाएं...    मोक्ष प्राप्ति एवं सिद्धि प्राप्त करने के लिए मनुष्य जप साधना करता है। किसी भी जप अनुष्ठान में माला का बहुत महत्व है। माला में मनकों का प्रयोग किया जाता है, जिनके द्वारा हम जप की संख्या की निश्चित गणना करते है। किसे कहते हैं सुमेरू माला के दानों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए। जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है। मन्त्र जप में अनुशाशन का बहुत महत्त्व है, और इसिलिए हर एक माला जप त्रुटि-रहित होना चाहिए। ऐसे में अगर आप सुमेरु लांघेंगे तो शायद गिनती 108 से आगे पीछे हो जाए। इसी कारणवश सुमेरु को न लांघने का नियम है। जब आप सुमेरु से माल पलट लेते है तो एक माला जप पूर्ण होता है...