मात् देवो भव:पितृ देवो भव:
#वेदों_में_माता_का_स्थान........
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भगवान वेदव्यास जी ने बडा मार्मिक चित्रण पुराणों में किया है।
मात् देवो भव:पितृ देवो भव:
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1. पितुरप्यधिका माता गर्भधारणपोषणात् ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु नास्ति मातृसमो गुरुः॥
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गर्भ को धारण करने और पालनपोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से भी बढकर है। इसलिए तीनों लोकों में माता के समान कोई गुरु नहीं अर्थात् माता परमगुरु है!
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2. नास्ति गङ्गासमं तीर्थं नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो नास्ति मातृसमो गुरुः॥
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गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान प्रभु नहीं और शिव के समान कोई पूज्य नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं।
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3. नास्ति चैकादशीतुल्यं व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
तपो नाशनात् तुल्यं नास्ति मातृसमो गुरुः॥
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एकादशी के समान त्रिलोक में प्रसिद्ध कोई व्रत नहीं, अनशन से बढकर कोई तप नहीं और माता के समान गुरु नहीं!
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4. नास्ति भार्यासमं मित्रं नास्ति पुत्रसमः प्रियः।
नास्ति भगिनीसमा मान्या नास्ति मातृसमो गुरुः॥
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पत्नी के समान कोई मित्र नहीं, पुत्र के समान कोई प्रिय नहीं, बहन के समान कोई माननीय नहीं और माता के समान गुरु नही!
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5. न जामातृसमं पात्रं न दानं कन्यया समम्।
न भ्रातृसदृशो बन्धुः न च मातृसमो गुरुः ॥
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दामाद के समान कोई दान का पात्र नहीं, कन्यादान के समान कोई दान नहीं, भाई के जैसा कोई बन्धु नहीं और माता जैसा गुरु नहीं!
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6. देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो दलेषु तुलसीदलम्।
वर्णेषु ब्राह्मणः श्रेष्ठो गुरुर्माता गुरुष्वपि ॥
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गंगा के किनारे का प्रदेश अत्यन्त श्रेष्ठ होता है, पत्रों में तुलसीपत्र, वर्णों में ब्राह्मण और माता तो गुरुओं की भी गुरु है!
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7. पुरुषः पुत्ररूपेण भार्यामाश्रित्य जायते।
पूर्वभावाश्रया माता तेन सैव गुरुः परः ॥
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पत्नी का आश्रय लेकर पुरुष ही पुत्र रूप में उत्पन्न होता है, इस दृष्टि से अपने पूर्वज पिता का भी आश्रय माता होती है और इसीलिए वह परमगुरु है!
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8. मातरं पितरं चोभौ दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
प्रणम्य मातरं पश्चात् प्रणमेत् पितरं गुरुम् ॥
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धर्म को जानने वाला पुत्र माता पिता को साथ देखकर पहले माता को प्रणाम करे फिर पिता और गुरु को!
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9. माता धरित्री जननी दयार्द्रहृदया शिवा ।
देवी त्रिभुवनश्रेष्ठा निर्दोषा सर्वदुःखहा॥
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माता, धरित्री , जननी , दयार्द्रहृदया, शिवा, देवी , त्रिभुवनश्रेष्ठा, निर्दोषा, सभी दुःखों का नाश करने वाली है!
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10. आराधनीया परमा दया शान्तिः क्षमा धृतिः ।
स्वाहा स्वधा च गौरी च पद्मा च विजया जया ॥
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आराधनीया, परमा, दया , शान्ति , क्षमा, धृति, स्वाहा , स्वधा, गौरी , पद्मा, विजया , जया,
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11. दुःखहन्त्रीति नामानि मातुरेवैकविंशतिम् ।
शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः सर्वदुःखाद् विमुच्यते ॥
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और दुःखहन्त्री -ये माता के इक्कीस नाम हैं। इन्हें सुनने सुनाने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है!
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12. दुःखैर्महद्भिः दूनोऽपि दृष्ट्वा मातरमीश्वरीम्।
यमानन्दं लभेन्मर्त्यः स किं वाचोपपद्यते ॥
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बड़े बड़े दुःखों से पीडित होने पर भी भगवती माता को देखकर मनुष्य जो आनन्द प्राप्त करता है उसे वाणी द्वारा नहीं कहा जा सकता!
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13. इति ते कथितं विप्र मातृस्तोत्रं महागुणम्।
पराशरमुखात् पूर्वम् अश्रौषं मातृसंस्तवम्॥
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हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने तुमसे महान् गुण वाले मातृस्तोत्र को कहा , इसे मैंने अपने पिता पराशर के मुख से पहले सुना था!
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14. सेवित्वा पितरौ कश्चित् व्याधः परमधर्मवित्।
लेभे सर्वज्ञतां या तु साध्यते न तपस्विभिः॥
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अपने माता पिता की सेवा करके ही किसी परम धर्मज्ञ व्याध ने उस सर्वज्ञता को पा लिया था जो बडे बडे तपस्वी भी नहीं पाते!
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15. तस्मात् सर्वप्रयत्नेन भक्तिः कार्या तु मातरि।
पितर्यपीति चोक्तं वै पित्रा शक्तिसुतेन मे ॥
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इसलिए सब प्रयत्न करके माता और पिता की भक्ति करनी चाहिए, मेरे पिता शक्तिपुत्र पराशर जी ने भी मुझसे यही कहा था!
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इसी लिए कहा गया है.......
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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
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नारियों का सम्मान करो जब तक नारियों का सम्मान नही करोगे तब तक जीवन में तुम्हें सफलता नही मिलेगी ।।
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यही नारी मां है, पत्नी है, बहन है, बेटी है ।
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यही दुर्गा है, यही गंगा है, यही पुरुष की शक्ति प्रकृति है।
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