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Showing posts from May, 2025

मंदिर की पैड़ी पर बैठकर

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं। क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। आप इस श्लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं। यह श्लोक इस प्रकार है:- अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्। देहान्त तव सानिध्यम्,  देहि मे परमेश्वरम्।। इस श्लोक का अर्थ है: अनायासेन मरणम्... अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं। बिना देन्येन जीवनम्... अर्थात् परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ...

EEG रिपोर्ट

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यह जो रिपोर्ट आपने साझा की है, वह एक ECG (Electrocardiogram) रिपोर्ट है। ECG एक सामान्य, गैर-हानिकारक परीक्षण होता है जिसका उपयोग हृदय (दिल) की इलेक्ट्रिकल गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं: 🩺 ECG रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण: रिपोर्ट तिथि और समय: 28-05-2025, 01:46:53 PM रोगी: पुरुष, आयु 55 वर्ष हृदय गति (HR): 69 bpm (बिलकुल सामान्य) P-Wave, PR Interval, QRS Complex, QT/QTc, आदि सभी मानक सीमा में हैं। Diagnosis Information: Sinus Rhythm: इसका अर्थ है कि दिल की धड़कन सामान्य प्रकार से हो रही है (सिनस नोड से उत्पन्न)। Normal ECG: यह सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी है – ECG पूर्णतः सामान्य है। 📉 Lead Details (V1–V6, I, II, III, aVR, aVL, aVF): ECG में 12 लीड्स होती हैं जो दिल के विभिन्न भागों से इलेक्ट्रिकल संकेत रिकॉर्ड करती हैं: V1-V6: चेस्ट लीड्स (दिल के विभिन्न हिस्सों को दर्शाती हैं) I, II, III और aVR, aVL, aVF: ये शरीर की बाहरी सतह से संकेत लेती हैं। आपकी रिपोर्ट में इन सभी लीड्स में कोई असामान्यता नहीं ...

गर्भ- हत्या महापाप

गर्भ- हत्या महापाप ============= जिसको जीवित नहीं कर सकते, उसको मारने का अधिकार कैसे हो सकता है? जीव मात्र को जीने का अधिकार है। उसको गर्भ में ही नष्ट करके उसके अधिकार को छीनना महान पाप है। मनुष्य दूसरों की सेवा करने व उसको सुख पहुँचाने का अधिकार है। किसी का नाश करने का भी कभी अधिकार नहीं है। अगर गर्भपात की प्रथा चल पड़ी तो फिर मनुष्य राक्षसों से भी बहुत नीचे हो जाएँगे। रावण और हिरण्यकशिपु के राज्य में भी गर्भपात जैसा महापाप नहीं हुआ। शास्त्रों में जगह-जगहगर्भ- हत्या महापापगर्भपात को महापाप माना गया है। पराशर स्मृति में तो उसको ब्रह्महत्यारूपी महापाप से भी दुगुना पाप बताया गया हैं :-- यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने। प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागी विधीयते । । " ब्रह्महत्या से जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात कराने से लगता है। इस गर्भपातरूपी महापाप का कोई प्रायश्चित्त भी नहीं है। इसमें तो उस स्त्री का त्याग कर देने का ही विधान है। यदि अन पर गर्भपात कराने वाले पापी की दृष्टि पड़ जाये तो वह अन्न खाने योग्य नहीं रह जाता। भ्रूणघ्नावेक्षितं चैव संस्पृष्टं चाप्यु...

विचित्र जन्म

भारतीय संस्कृति में "जन्म" की अवधारणा एक अत्यंत गूढ़ और बहुआयामी विषय है। यह केवल शारीरिक रूप से किसी जीव का इस संसार में आगमन भर नहीं है, बल्कि यह आत्मा के अनादि-अनंत यात्रा का एक पड़ाव होता है। जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म, और कर्म – ये चारों तत्व भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के केंद्र में स्थित हैं। इस ग्रंथन में हम जन्म की भारतीय अवधारणा को वैदिक, उपनिषदिक, पुराणिक, योग, जैन, बौद्ध तथा आधुनिक भारतीय चिंतन के परिप्रेक्ष्य में विस्तार से समझेंगे। 1. वैदिक साहित्य में जन्म की अवधारणा: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में "जन्म" की धारणा को अनेक रूपों में प्रस्तुत किया गया है। वेदों में आत्मा को अविनाशी कहा गया है: "न जायते म्रियते वा कदाचि‍न्‍ नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।" – भगवद्गीता 2.20 (वैदिक भावना का ही अंश) वेदों में अग्नि और प्रजापति के माध्यम से जन्म की प्रक्रिया को भी प्रतीकात्मक रूप से समझाया गया है। "हिरण्यगर्भ" का उल्लेख जन्म की ब्रह्मांडीय प्रक्रिया को निरूपित कर...

मृत्यु के पश्च्यात क्या होता है?

हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के पश्च्यात क्या होता है? हिन्दू धर्मा के अनुसार मरने के बाद आत्मा की दो तरह की गतियां होती हैं- 1.गति और 2. अगति। जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे दिवंगत अर्थात गत के नाम से पुकारा जाता है । जिसका अर्थ है जो चला गया अर्थात मर गया।  हिन्दू धर्मा के अनुसार मरने के बाद आत्मा की दो तरह की गतियां होती हैं- गति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। 2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है। हिन्दू धर्मा के अनुसार मरने के बाद आत्मा की तीन तरह की गतियां होती हैं- 1.उर्ध्व गति, 2.स्थिर गति और 3.अधोगति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है। वेदों, उपनिषदों और गीता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की 8 तरह की गतियां मानी गई है। यह गतियां ही आत्मा की दशा या दिशा तय करती है। यह चित्त की अवस्था और कर्मानुसार संचालित होती है। इन आठ तरह की गतियों को मूलत: दो भागों में बांटा गया है- 1.अगति और 2. गति। 1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। 2. गति : गति में जीव को किस...

मृत्यु की उत्पत्ति कहां से और कब उत्पन्न हुई

*★कभी मरने की भी सोचो ★*  *=================* *🌹🚩क्या आप जानते हैं कि मृत्यु की उत्पत्ति कहां से और कब उत्पन्न हुई है?🚩🌹*  *=================* आत्मा जिस शरीर में रहता है , उसको छोड़ना ही नहीं चाहता है । भले ही उस शरीर से उसे हजारों साल से कष्ट ही मिल रहा हो । इसी को जिजीविषा कहते हैं । जिजीविषा अर्थात जीने की इच्छा ।  *🌹🚩🌷" महाभारत के "द्रोणपर्व " के अन्तर्गत "अभिमन्युवधपर्व , के 54 वें अध्याय में अभिमन्यु के वध से अतिदुखी युधिष्ठिर ने व्यास भगवान से पूंछा कि*  *🌹🌷"ये मृत्यु क्यों होती है ? ये कैसे कहां से उत्पन्न हुई है ?🌷🌹*   तब व्यास जी ने बताया कि एकबार यही प्रश्न नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूंछा था । तब ब्रह्मा जी ने नारद जी को बताया कि मुझे सृष्टि की आज्ञा हुई तो मैं सृष्टि रचना में लग गया । लेकिन देखा कि अब तो कहीं किसी को बैठने तक की भी जगह नहीं है । क्योंकि यहां सृष्टि तो बड़े वेग से हो रही थी , लेकिन निवास स्थान पृथिवी आदि लोक तो उतने ही थे । तो मुझे अपने इस कार्य से बहुत क्रोध आया । उसी क्रोधावेश में मेरे शरीर की सभी इन्द्रियों से एक तेजस्विन...