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Showing posts from December, 2025

चेतना का प्रवाह ऊपर की शुद्धता से नीचे के स्थूल रूपों तक उतरता है।

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यह  विवरण सांख्य दर्शन की तत्त्व-उत्पत्ति पर आधारित है।। यह  चित्र बताता है कि चेतना की यात्रा कैसे शुद्ध पुरुष से प्रारंभ होकर पदार्थ तक पहुँचती है। सबसे ऊपर दो मूल तत्व हैं पुरुष और प्रकृति।  पुरुष शुद्ध चेतना है: अकर्ता, निष्क्रिय, केवल साक्षी। प्रकृति मूल ऊर्जा है, जिसमें तीन गुण: सत्त्व, रजस और तमस सदैव संतुलन में रहते हैं।  पुरुष का केवल देखना ही प्रकृति में हलचल पैदा करता है, जिससे सबसे पहले महत (ब्रह्मांड की प्रथम जागरूकता) उत्पन्न होती है। महत का ही विकसित रूप है बुद्धि, जो विवेक, निर्णय, पहचान और जानने की क्षमता का स्रोत है।  बुद्धि से आगे प्रकट होता है अहंकार, वह शक्ति जो चेतना में “मैं” और “मेरा” की अनुभूति पैदा करती है अहंकार बुरा नहीं होता; यह वही द्वार है जिससे पूरी प्रकृति बाहर आती है। यही अहंकार तीन धाराओं में विभाजित होकर पूरा जगत रचता है।  सत्त्व-प्रधान अहंकार प्रकाश और स्पष्टता से युक्त होकर पाँच ज्ञानेंद्रियों (श्रवण–ध्वनि, दृष्टि–रूप, रसना–स्वाद, घ्राण–गंध, स्पर्श–स्पर्श) और पाँच कर्मेंद्रियों (वाणी, हाथ, पैर, उत्सर्ग, प्रज...

ग्रहों के प्रभाव से होने वाली बिमारियों के बारे में जान सकते हैं

कई बार आप बीमार पड़ते हैं और लगातार इलाज के बाद भी बीमारी ठीक नहीं होती है तो कई बार आपकी बीमारी डॉक्टर की समझ से भी बाहर होती है। यह सब ग्रहों के प्रकोप के कारण होता है। प्रत्येक ग्रह का हमारी धरती और हमारे शरीर सहित मन- मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते हमें सामान्य या गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। सतर्क रहकर हम कई सारी बीमारियों से बच सकते हैं। यहां आप विभिन्न ग्रहों के प्रभाव से होने वाली बिमारियों के बारे में जान सकते हैं  ● सूर्य • दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है। • सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है। • मुंह में थूक बना रहता है। • व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है। • दिल का रोग हो जाता है।  • मुंह और दांतों में तकलीफ होती है। • सिरदर्द बना रहता है। _सूर्य ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_ • इलाइची, केसर एवं गुलहठी, लाल रंग के फूल मिश्रित जल द्वारा स्‍नान करने से सूर्य के दुष्‍प्रभाव कम होत ● चंद्रमा • चन्द्रमा मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है। • मिर्गी का रोग। • पागलपन। • बेहोशी। • फेफड़े संबंधी रोग। • मासिक धर्म ...

हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को चुराकर 'समुद्र' में छिपा दिया। कैसे?

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हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को चुराकर 'समुद्र' में छिपा दिया। कैसे? एक पौराणिक पहेली और ब्रह्मांडीय सत्य... 🌍✨ शास्त्र कहते हैं कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को चुराकर 'समुद्र' में छिपा दिया था, जहाँ से भगवान वराह उसे निकालकर लाए। यह बात आज के तार्किक दिमाग को खटकती है—भला पृथ्वी समुद्र में कैसे छिप सकती है? इस भ्रम को दूर किया है आधुनिक खगोल विज्ञान ने। वैज्ञानिकों ने सुदूर अंतरिक्ष में एक 'महासागर' खोजा है, जो पृथ्वी के जल से खरबों गुना विशाल है। यह खोज हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे ऋषियों का 'भवसागर' का ज्ञान कितना गहरा था। जो इस ब्रह्मांड का रचयिता है, उसकी लीला को हमारी सीमित बुद्धि से समझना असंभव है। मानव तो अपनी आँखों से उनके विराट स्वरूप को भी नहीं देख सकता। दुःख की बात है कि आज हम अपनी ही महान विरासत पर शक करते हैं। जहाँ सभ्यता, ज्ञान, विज्ञान और धर्म का सूर्य सबसे पहले उगा, आज उसी भारत के लोग पश्चिमी चकाचौंध में अपने इतिहास को भूल रहे हैं। चाहे आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान हो या वेदों का गूढ़ ज्ञान—भारत हमेशा विश्व गुरु रहा है। प्रकृति का यह ...
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#भौतिकवादी_विचार_के_अनुसार स्त्री पुरुष के शारीरिक सम्बन्ध के कारण बच्चे का जन्म होता है -- यह आधुनिक बायोलॉजी की मान्यता है, इस मान्यता को गीता में "आसुरी" चिन्तन कहा गया है | इस आसुरी विचार के कारण ही इस शास्त्र को "आनुवांशिकी" कहा जाता है, क्योंकि इस मान्यता के अनुसार मनुष्य को सारे जेनेटिक गुण-अवगुण अपने माँ-बाप के वंशों द्वारा ही मिलते हैं | किन्तु वैदिक विचारधारा के अनुसार बच्चा अपने पूर्वकर्मों के फलस्वरूप जन्म लेता है | अपने कर्मफलों के अनुरूप मेल खाने वाले वंश में ही ईश्वर की कृपा से जन्म लेता है, जिस कारण भ्रम होता है कि माँ-बाप के गुणसूत्र ही बच्चे की जेनेटिक प्रणाली के नियन्ता हैं | माँ-बाप के गुणसूत्र निर्जीव अणु-समूह हैं, आत्मा निकल जाय तो मिट्टी हैं | वे भला जीते-जागते बच्चे को क्या बनायेंगे !! वे केवल सूचनाओं की आणविक पुस्तिका हैं, वे "जीव" नहीं हैं | जीव है निराकार निष्क्रिय शुद्ध चैतन्य आत्मा का प्रकृति के साथ बद्ध स्वरुप, जिसमें जीव अपने वास्तविक आत्मा को भूलकर चित्त के पटल पर जैसा दिखता रहता है वैसी ही अविद्या पाले रहता है |...

वेदों_में_है_ब्रह्मांड_का_ध्वनि_विज्ञान

#वेदों_में_है_ब्रह्मांड_का_ध्वनि_विज्ञान वेद ज्ञान को आधार मान कर न्यूलैंड के एक वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने एक डिवाइस विकसित कर लिया। ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है। इस बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे के मुताबिक इस डिवाइस का नाम भी ‘ओम’ डिवाइस रखा गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुष भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना ब्रह्मांड की ध्वनियों से हुई है। उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली ...

दुनिया के नौ जाने माने लोगों के वचन-

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दुनिया के नौ जाने माने लोगों के वचन- 1. *लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):* "हिन्दू धर्म दुनियाँ पर राज करेगा, क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।  2. *हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946):* " हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा, तभी एक दिन पूरी दुनियाँ उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी, उसी दिन ही दिलशाद होंगे और उसी दिन दुनियाँ आबाद होगी । सलाम हो उस दिन को "। 3. *अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955):* "मैं समझता हूँ कि हिन्दूओ ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके । हिन्दुत्व मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।  4. *हस्टन स्मिथ (1919):* "जो विश्वास हम पर है और इस हम से बेहतर कुछ भी दुनियाँ में है तो वो हिन्दुत्व है । अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी"। 5. *माइकल नोस्टरैडैमस (1503 - 1566):* " हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा"।  6. *बर्टरेंड रसेल (1872...

सनातन परंपरा: जहाँ हर चीज़ एक गुरु है।”

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सुप्रभात  🕉️ “सनातन परंपरा: जहाँ हर चीज़ एक गुरु है।” --- 🌸 सनातन संस्कृति की सीख 🌸 📚 पुस्तकों में – गीता 🐄 प्राणियों में – गाय 🕊️ पक्षियों में – गरुड़ 🌊 नदियों में – गंगा 🌿 पौधों में – तुलसी 🕉️ प्रतीकों में – ॐ ✨ हर वस्तु एक संदेश देती है: ⏰ समय मत गँवाओ – घड़ी 🐜 संगठन में रहो – चींटी ☀️ नियमित बनो – सूर्य 🌹 दुख में भी खुश रहो – गुलाब 💖 रिश्तों की आँखों में छिपा खजाना: 👩 माँ – ममता 👨 पिता – कर्तव्य 👨‍🏫 गुरु – ज्ञान 👩 पत्नी – प्रेम 👩‍🦰 बहन – प्यार 🙏 यही है सनातन संस्कृति का चमत्कार 🙏 #जयश्रीराम  #सनातन_संस्कृति  #जीवन_की_सीख  #भारतीय_परंपरा

ऋषि_मुनियों की भूमि भारत एक रहस्यमय देश

ऋषि_मुनियों की भूमि भारत एक रहस्यमय देश है, आईये जानते हैं इसकी महानता के कारण.... 1. प्रकृति:  एक ओर समुद्र तो दूसरी ओर बर्फीले हिमालय है, एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घने जंगल है एक ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ तो दूसरी ओर मैदानी इलाके है। प्रकृति के ऐसे सारे रंग किसी अन्य देश में नहीं है। भारतीय मौसम दुनिया के सभी देशों के मौसम से बेहतर है। सिर्फ यहीं पर प्रमुख रूप से चार ऋतुएं होती है। विदेशी यहां आकर भारत के वातावरण से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। 2. ऋषि_मुनि:  सप्त ऋषियों के अलावा, कपिल, कणाद, गौतम, जैमिनि, व्यास, पतंजलि, बृहस्पति, अष्टावक्र, शंकराचार्य, गोरखनाथ, मत्स्येंद्र नाथ, जालंधर, गोगादेव, झुलेलाल, तेजाजी महाराज, संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, रामानंद, कबीर, पीपा, रामसापीर बाबा रामदेव, पाबूजी, मेहाजी मांगलिया, हड़बू, रैदास, मीराबाई, गुरुनानक, धन्ना, तुलसीदास, दादू दयाल, मलूकदास, पलटू, चरणदास, सहजोबाई, दयाबाई, एकनाथ, तुकाराम, समर्थ रामदास, भीखा, वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, विट्ठलनाथ, संत सिंगाजी, हितहरिवंश, गुरु गोविंदसिंह, हरिदास, दूलनदास, महामति प्राणनाथ, शैगांव के गजानन महाराज, ...

सनातन वैज्ञानिक ऋषि-मुनि :

सनातन वैज्ञानिक ऋषि-मुनि :  जानिए कल्पना को साश्वत बनाने वाले उनके आविष्कार    #भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।          कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।  #भास्कराचार्य –  आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। #भास्कराचार्यजी ने अपने #‘स...

संस्कृत की शक्ति

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संस्कृत की सामर्थ्य देखिए अंग्रेजी में  एक प्रसिद्ध वाक्य है "THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG" -  कहा जाता है कि इसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए । जबकि यदि हम ध्यान से देखे तो आप पायेंगे कि , अंग्रेजी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उपलब्ध हैं, जबकि उपरोक्त वाक्य में 33 अक्षर प्रयोग किये गए हैं, जिसमे  चार बार O का प्रयोग A, E, U तथा R अक्षर के क्रमशः 2 बार प्रयोग दिख रहे हैं। अपितु अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है।  आप किसी भी भाषा को उठा के देखिए, आपको कभी भी संस्कृत जितनी खूबसूरत और समृद्ध भाषा देखने को नहीं मिलेगी । संस्कृत वर्णमाला के सभी अक्षर एक श्लोक में व्यवस्थित क्रम में देखने को मिल जाएगा -                       "क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।               तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।" अनुवाद -  पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल...

हमारा शरीर एक देवालय (मंदिर) है

हमारा शरीर एक देवालय (मंदिर) है ईश्वर ने अपनी माया से चौरासी लाख योनियों की रचना की  लेकिन जब उन्हें संतोष न हुआ तो उन्होंने मनुष्य शरीर की रचना की।  मनुष्य शरीर की रचना करके ईश्वर बहुत  ही प्रसन्न हुए क्योंकि मनुष्य ऐसी बुद्धि से युक्त है जिससे वह ईश्वर के साथ साक्षात्कार कर सकता है।  मानव शरीर एक देवालय है। ईश्वर ने पंचभूतों (आकाश ,वायु ,अग्नि भूमि और जल ) से मानव शरीर का निर्माण कर उसमें भूख-प्यास भर दी।  देवताओं ने ईश्वर से कहा कि हमारे रहने योग्य कोई स्थान बताएं जिसमें रह कर हम अपने भोज्य-पदार्थ का भक्षण कर सकें। देवताओं के आग्रह पर जल से गौ और अश्व बाहर आए पर देवताओं ने यह कह कर उन्हें ठुकरा दिया कि यह हमारे रहने के योग्य नहीं हैं।  जब मानव शरीर प्रकट हुआ तब सभी देवता प्रसन्न हो गए।  तब ईश्वर ने कहा—अपने रहने योग्य स्थानों में तुम प्रवेश करो ।  तब सूर्य नेत्रों में ज्योति (प्रकाश) बन कर, वायु छाती और नासिका-छिद्रों में प्राण बन कर,  अग्नि मुख में वाणी और उदर में जठराग्नि बन कर,  दिशाएं श्रोत्रेन्द्रिय (सुनना ) बन कर कानों में,...

चूडामणि

चूडामणि का अदभुत रहस्य ...... आज हम रामायण में वर्णित चूडामणि की कथा बता रहे है। इस कथा में आप जानेंगे की  १–कहाँ से आई चूडा मणि ? २–किसने दी सीता जी को चूडामणि ? ३–क्यों दिया लंका में हनुमानजी को सीता जी ने चूडामणि ? ४–कैसे हुआ वैष्णो माता का जन्म? चौ.-मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।। चौ–चूडामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।। चूडामणि कहाँ से आई? सागर मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ– १– रत्नाकर नन्दिनी २– महालक्ष्मी रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया ! जब उनसे मिलने के लिए आगे बढीं तो सागर ने अपनी पुत्री को विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रत्न जटित चूडा मणि प्रदान की ( जो सुर पूजित मणि से बनी) थी। इतने में महालक्षमी का प्रादुर्भाव हो गया और लक्षमी जी ने विष्णु जी को देखा और मनही मन वरण कर लिया यह देखकर रत्नाकर नन्दिनी मन ही मन अकुलाकर रह गईं सब के मन की बात जानने वाले श्रीहरि रत्नाकर नन्दिनी के पास पहुँचे और धीरे से बोले ,मैं तुम्हारा भाव जानता हूँ, पृथ्वी को भार- निवृत करने के ल...

चक्रव्यूह

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महाभारत चक्रव्यूह विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध। इतिहास में इतना भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ था। अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में परमाणू हथियारों का उपयॊग भी किया गया था। ‘चक्र’ यानी ‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘गठन’। पहिए के जैसे घूमता हुआ व्यूह है चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक रण तंत्र था चक्रव्यूह। यधपि आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनभिज्ञ हैं। चक्रव्यू या पद्मव्यूह को बेधना असंभव था। द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे बेधना जानते थे। भगवान कृष्ण के अलावा अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न ही व्यूह को बेध सकते थे जानते हैं। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानता था। चक्रव्यूह में कुल सात परत होती थी। सबसे अंदरूनी परत में सबसे शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे। यह परत इस प्रकार बनाये जाते थे कि बाहरी परत के सैनिकों से अंदर की परत के सैनिक शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा बलशाली होते थे। *सबसे बाहरी परत में पैदल सैन्य के सैनिक तैनात हुआ करते थे। अंदरूनी परत में अस्र शत्र स...

पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता |।

।।पुनः कुछ मित्रो के अनुरोध पर।। पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता |। एक विश्लेषण।। अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है । इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही ! और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है । १. xx गुणसूत्र ;- xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है । २. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है । तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह प...

हिन्दू देवी-देवताओं का समूह और उनके कार्य ।

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हिन्दू देवी-देवताओं का समूह और उनके कार्य । सर्वोच्च शक्ति परमेश्वर के बाद हिन्दू धर्म में देवी और देवताओं का क्रम आता है। देवताओं जैसे को देवगण कहते हैं। देवगण भी देवताओं के लिए कार्य करते हैं। देवताओं के देवता अर्थात देवाधिदेव महादेव हैं तो देवगणों के अधिपति भगवान गणेशजी हैं। जैसे शिव के गण होते हैं उसी तरह देवों के भी गण होते हैं। गण का अर्थ है वर्ग, समूह, समुदाय। जहां राजा वहीं मंत्री इसी प्रकार जहां देवता वहां देवगण भी। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, तो दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य। रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च॥ गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥॥11-22॥ अर्थात : जो 11 रुद्र और 12 आदित्य तथा 8 वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं, वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं। आदित्य-विश्व-वसवस् तुषिताभास्वरानिलाः महाराजिक-साध्याश् च रुद्राश् च गणदेवताः ॥10॥-नामलिङ्गानुशासनम् कुल 424 देवता और देवगण हैं : - वेदों के अनुसार प्रमुख 33 देवता हैं...

मूर्ति में क्यों बसते हैं भगवान?

*मूर्ति में क्यों बसते हैं भगवान?* किसी नए काम को शुरू करने से पहले या किसी स्थान पर जाने से पहले यह कहा जाता है कि मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि मंदिर के वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा आपके मस्तिष्क को स्वच्छ और सजीव कर, आपको सही दिशा में सोचने के लिए विवश करे। भक्तों की उपासना के लिए मूर्ति में बसते हैं भगवान:-  अन्तर्यामी रूप से भगवान सबके हृदय में हर समय विद्यमान रहते हैं, सिद्ध, योगी आदि समाधि में भगवान के अन्तर्यामी रूप का दर्शन कर सकते हैं परन्तु सभी लोग इस रूप में भगवान के दर्शन का आनन्द नहीं ले पाते हैं।  भक्तों को दर्शन देने के लिए भगवान ने अर्चावतार धारण किया जो भगवान का सभी के लिए सबसे सुलभ रूप है। अर्चा का अर्थ है पूजा उपासना; इसके लिए होने वाले अवतार का नाम है अर्चावतार, मूर्तियों का ही दूसरा नाम अर्चावतार है। घर में, मन्दिरों में, तीर्थस्थानों पर, गोवर्धन आदि पर्वतों पर प्रतिष्ठित भगवान की मूर्तियां अर्चावतार कहलाती हैं। चार प्रकार के अर्चावतार:- (1) भगवान की कुछ मूर्तियां स्वयं प्रकट होती हैं, ये ‘स्वयंव्यक्त’, ‘स्वयंभू’ या ‘स्व...

शारीरिक तंत्र विज्ञान

शारीरिक तंत्र विज्ञान हमारे शरीर में नौ द्वार हैं, दो आँख, दो कान, दो नाभि छिद्र, एक मुख इस प्रकार सिर में सात द्वार हुये आठवाँ गुद्दा द्वार और नौवाँ मूत्र द्वार ।  सात द्वार देवताओं के ठहरने का स्थान है। इसपर रहने वाले समस्त  देवता परस्पर एक दूसरे की भलाई के लिये अपने-अपने स्थान पर हर समय सतर्क व जागरुक हैं। अग्निदेव, नेत्र और जठराग्नि के रूप में; पवनदेव श्वाँस-प्रश्वाँस व दस प्राणों के रूप में; वरुण देव जिह्वा और रक्त आदि के रूप में रहते हैं। इसी प्रकार अन्य देव भी शरीर के भिन्न-2 स्थानों में निवास करते है। चैतन्य आत्मा और परमात्मा का यही निवास स्थान है। ये समस्त देव इस शरीर में सद्भाव और सहयोग से प्रीतिपूर्वक रहते हैं सबके काम बंटे हुये हैं सब अपने कार्यों को सम्पादन करने में सभी सचेष्ट एवं दक्ष हैं।  नौ द्वार अर्थात नौ चक्र प्रकृति के है। तीन द्वार अधोमुखी तथा छह ऊर्ध्वमुखी हैं । भौतिक मृत्यु के समय हमारे कर्मों के फल के अनुसार ,किसी एक द्वार से हमारे प्राण निकलते हैं।  दशम द्वार जिसे शून्य चक्र भी कहते हैं; परमात्मा का स्थान है। योगी जन इसी से होकर प्राण त्यागते...