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Showing posts from June, 2022

प्राचीन भारत में मंदिर बनाने का नक्शा

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इतना एडवांस धर्म हिन्दू धर्म के अलावा दूसरा कोई नहीं हो सकता ।  धर्म के लोग जब कपड़े पहनना भी नहीं जानते थे हिन्दू धर्म मनुष्य की कुण्डलिनी शक्तियों को जागरूक करने की शक्ति रखता था । हमे हमारी इस धरोहर को बचाने की जरूरत है । || प्राचीन भारत में मंदिर बनाने का नक्शा || || कुण्डलिनी जाग्रत करने के स्थान थे प्राचीन मंदिर || प्राचीन भारत में मंदिर बनाने से पहले जगह और दिशा का विशेष महत्व होता था | मंदिरो का निर्माण अलग अलग शैलियों के हिसाब से हुआ करता था पर अधिकतर मंदिर ऐसी पद्धति से बनते थे जिसमे हर एक कुण्डलिनी चक्र के हिसाब से गर्भगृह, मंडप, प्रस्थान, परिक्रमा आदि का निर्माण होता था और जिस चक्र के हिसाब से उस जगह का निर्माण होता था वहा व्यक्ति को चलकर या बैठकर उस चक्र को जागृत करने में सहयोग मिलता था | यही कारण होता है की प्राचीन मंदिरो में आज भी जाने पर व्यक्ति मानसिक रूप से शांति और संतुष्टि का अनुभव होता है | एक चित्र साझा कर रहे है जिसमे आपको बताया गया है की मंदिर निर्माण का विचार कैसा होता था |   # सत्य सनातन वैदिक धर्म__की_जय_हो 🚩

भूमिगत जल संग्रहण

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हर खोज पर हमें बताया जाता है कि 100 साल पहले नल का अविष्कार अंग्रेजों ने किया,वरणा हम टोंटी देख ही नही पाते।ये है 1000 साल पूर्व निर्मित बृहदेश्वर मंदिर तंजावुर,तमिलनाडु भारतवर्ष..🚩जहां मंदिर के कलश, गुंबद से लेकर किनारो तक का जल एक स्थान पर एकत्रित करते हुए निकासी का सुव्यवस्थित प्रबंधन कर भूमिगत जल संग्रहण करने का अदभूत उदाहरण प्रस्तुत किया है! जल संग्रहण व जल की महत्ता हमसे बेहतर कौन समझ सकता है ?✍🙏🙏

अथ मण्डपविधानं वेदीनिर्वर्तनं च

#अथ मण्डपविधानं वेदीनिर्वर्तनं च ।। अंकुरार्पणतः पश्चात् द्वितीयेऽहनि शोभने । कृत्वा वास्तुबलिं सर्व-मंडपानि प्रसाधयेत् ।। 1 ।। नांदीमंगलतः पूर्वं, दिवसेषु कियत्स्वपि। यष्ट्राहूय च सम्मान्य, प्रार्थितो याजकोत्तमः ।। 2 ।। सज्जयित्वोपकरणं, याजको यज्ञसिद्धये । सम्यक्शांतिविधिं कृत्वा, कारयेन्मंडपादिकम् ।। 3 ।। खात्वा विशोध्य संपूर्य, समीकृत्य पवित्रिते । भूभागे मंडपं कार्यं, पूगक्षीरद्रुमादिभिः ।। 4 ।। जिनधामाग्रतो मूल-वेदीमंडपमिष्यते। त्र्यादित्रिवद्र्धिष्णु-चतुर्विंशत्यंतकरप्रमम् ।। 5 ।। तन्मध्ये नवमे भागे, वेदी निर्वत्र्यते बुधैः ।  एकाद्यष्टांत्यहस्तैः सा, प्रमिता वेदिकाष्टधा ।। 6 ।। क्रमान्नंदा सुनंदा च, प्रबुद्धा सुप्रभाभिधा । मंगला कुमुदा च स्याद्विमला पुंडरीकिका ।। 7 ।। सा सर्वाष्टविधा वेदी, स्वस्वव्याससमायतिः ।  भवेद् व्यासषडंशोच्चा, चतुरस्त्रेशदिक्प्लवा ।। 8 ।। तास्विष्टा वेदिका काचिद्विधेयामेष्टिकादिभिः । तन्निर्माणविधिः सर्वस्तद्विधौ वर्णयिष्यते ।। 9 ।। तस्याश्चतुर्दिक्षुहस्त-विस्तारायामगाधकम् । चतुरस्रं चतुर्मात्र, मेखलात्रयकुंडकम् ।। 10 ।। तत्पुरस्ताच्चतुद्र्वारं, च...

भारतीय ऋषियों के आविष्कार

*आज आप सबके बीच में मैं सनातन युग से संबंधित ऋषि मुनियों के बारे में उनके आविष्कार जो आज के युग में प्रचलित है उन्होंने पहले ही सिद्ध कर दिया था आज जो भी संसार में है वह हमारे ऋषि-मुनियों की दी हुई ज्ञान पर आधारित ही है* *प्रस्तुत है पोस्ट के माध्यम से ऋषि मुनियों द्वारा उस युग के वैज्ञानिक सिद्धांत* *⚜️भारतीय ऋषियों के आविष्कार⚜️* *इन आविष्कारों की हजारों साल पहले हुई थी खोज.....* *भारतीय संस्कृति की पहचान वेदों, पुराणों, उपनिषदों से है। इन ग्रंथों में रचित श्लोकों में ज्ञान विज्ञान का समुचित भंडार छिपा है। हजारों साल पहले रचित इन ग्रंथों में भारतीय ऋषियों मुनियों द्वारा किए गए आविष्कारों का समूचा विवरण संग्रहित है। इन आविष्कारों का आधुनिक विज्ञान भी कायल हो चुका है। चाहे हमारे भारतीय ऋषियों के आविष्कारों को पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने अपनी खोज बना कर प्रसिद्धि हासिल की है। पर सच को कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता है। हम आपको भारत के उन महान ऋषियों के किए गए आविष्कारों के बारे जानकारी प्रदान करेंगे। जो असल में इन आविष्कारों के ज्ञाता थे। परंतु कहीं भी भारतीय महान ऋषियों के आविष्कारों ...

*सा रे ग म स्वरों का,और छन्दों का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है।*

*सा रे ग म स्वरों का,और छन्दों का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है।*   ***********************   *श्रीमद् भागवत के तृतीय स्कंध के 12 वें अध्याय के 46 वें 47 वें और 48 वें श्लोक में मैत्रेय ऋषि ने विदुर जी को सम्पूर्ण विश्व के निर्माण को बताते हुए, मनुष्यों में विद्यमान विविध विद्याओं की उत्पत्ति और 24 अक्षर वाले गायत्री छन्द आदि की उत्पत्ति बताते हुए,सा रे ग म प ध नी सा इन सात स्वरों की उत्पत्ति बताकर, अ से लेकर ज्ञ तक के वर्णों की अनादिकालीन उत्पत्ति बताते हुए कहा कि -*   *तस्योष्णिगासील्लोमभ्यो गायत्री च त्वचो विभो:।*   *त्रिष्टुब् मांसात् स्नुतोsनुष्टुप् जगत्यस्थन:प्रजापते:।।46।।*  जिसने वनस्पतियों का निर्माण किया है। कीट-पतंगों से लेकर देवताओं तक का निर्माण किया है। नारद, वसिष्ठ, पुलस्त्य आदि ऋषियों का निर्माण किया है। मनुष्यों का निर्माण किया है,उस ब्रह्म शब्द से कहे जानेवाले भगवान ने ही इस सृष्टि में देवताओं को, ऋषियों को तथा मनुष्यों को सभी वेदों को तथा उपवेदों को भी प्रदान किया है।  वेदों का निर्माण किसी ऋषि ने या देवता ने नही...

हिंदुओ के चार धाम की रोचक जानकारी

*हिंदुओ के चार धाम की रोचक जानकारी* ================== हिंदू मान्यता के अनुसार चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका। प्राचीन समय से ही चारधाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनकी महिमा का प्रचार आद्यशंकराचार्यजी ने किया था। माना जाता है, उन्होंने चार धाम व बारह ज्योर्तिलिंग को सुचीबद्ध किया था। क्यों बनाए गए चार धाम? ================== चारों धाम चार दिशा में स्थित करने के पीछे जो सांंस्कृतिक लक्ष्य था, वह यह कि इनके दर्शन के बहाने भारत के लोग कम से कम पूरे भारत का दर्शन कर सके। वे विविधता और अनेक रंगों से भरी भारतीय संस्कृति से परिचित हों। अपने देश की सभ्यता और परंपराओं को जानें। ध्यान रहे सदियों से लोग आस्था से भरकर इन धामों के दर्शन के लिए जाते रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से आवागमन के साधनों और सुविधा में विकास ने चारधाम यात्रा को सुगम बना दिया है। किस धाम की क्या विशेषता है? ==================== बद्रीनाथ धाम-बद्रीनाथ उत्तर दिशा मेंओं का मुख्य यात्रा...

अक्षौहिणी सेना

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🙏 अक्षौहिणी सेना ----------- 🙏 एक अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है?  अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का एक माप हुआ करता था। महाभारत के युद्ध में कुल १८ अक्षीहिणी सेना लड़ी थी। जिसमें से कौरवों के पास ११ अक्षौहिणी सेना थी और पाण्डवों के पास ७ अक्षौहिणी सेना थी। लेकिन वास्तव में एक अक्षौहिणी सेना कितनी होती है? इसके लिए, हम महाभारत के प्रमाणों से जानने की कोशिश करेंगे कि एक अक्षोहिणी सेना में कुल कितने पैदल, घुड़सवार, रथसवार और हाथीसवार होते है?  ----------- 🙏 मुख्य अंग  प्राचीन भारत में, एक अक्षौहिणी सेना के चार अंग होते थे। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह चतुरंगिणी सेना कहलाती थी। वह चार अंग निम्नलिखित होती थी ~ १. सैनिक (पैदल सिपाही) २. घोड़े (घुड़सवार) ३. गज (हाथी सवार) ४. रथ (रथ सवार) अब यदि घोड़े की बात करे, तो एक घोड़े पर एक सवार बैठा था। ऐसे ही हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक तो पीलवान (हाथी हौकने वाला) और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और काम से काम तीन चार घोड़े रहे होंगे। यह सब मिल कर ...

सूर्योदय सूर्यास्त की पौराणिक रोचक कथा।

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सूर्योदय सूर्यास्त की पौराणिक रोचक कथा। --------------------------------------------------- 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 स्कंद महापुराण के काशी खंड में एक कथा वर्णित है कि त्रैलोक्य संचारी महर्षि नारद एक बार महादेव के दर्शन करने के लिए गगन मार्ग से जा रहे थें। मार्ग के बीच में उनकी दृष्टि उत्तुंग विंध्याद्रि पर केंद्रित हुई।ब्रह्मा के मानस पुत्र देवर्षि नारद को देख कर विंध्या देवी अति प्रसन्न हुई। तत्काल उनका स्वागत कर विंध्या ने देवर्षि को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। देवर्षि नारद ने आह्लादित होकर विंध्या को आशीर्वाद दिया।  इसके बाद विंध्या ने यथोचित सत्कार करके नारद को उचित आसन पर बैठाया। यात्रा की थकान दूर करने के लिए उनके चरण दबाते हुए विंध्या ने कहा कि देवर्षि, मैंने सुना है कि मेरु पर्वत अहंकार के वशीभूत हो सर्वत्र यह प्रचार कर रहा है कि वही समस्त भूमंडल का वहन कर रहा है। हिमवंत गौरीदेवी के पिता हैं। इस कारण से उनको गिरिराज की उपाधि उपलब्ध हो गई है।कहा जाता है कि हिमगिरी में रत्नभंडार है और वह स्वर्णमय है, परंतु मैं इस कारण उसे अधिक ...

चौरासी लाख योनियों का रहस्य

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चौरासी लाख योनियों का रहस्य हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित ८४००००० योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। अब समस्या ये है कि कई लोग ये नहीं समझ पाते कि वास्तव में इन योनियों का अर्थ क्या है?   गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। तो आइये आज इसे समझने का प्रयत्न करते हैं।  सबसे पहले ये प्रश्न आता है कि क्या एक जीव के लिए ये संभव है कि वो इतने सारे योनियों में जन्म ले सके? तो उत्तर है - हाँ। एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन ८४००००० योनियों में भटकती रहती है। अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही ८४००००० योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है। ये तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है।  अब प्रश्न ये है कि यहाँ "योनि" का अर्थ क्या है? अगर आसान भाषा में समझा जाये तो योनि का अर्थ है जाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम स्पीशीज (Species) कहते हैं। अर्थात इस विश्व में जितने भ...

स्वर परिवर्तन प्राणायाम द्वारा

स्वर परिवर्तन  प्राणायाम द्वारा       क) अनुलोम-विलोम / नाड़ीशोधन योग की पद्धति में प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य चित्त की स्थिरता पाना है । पूर्वोक्त चतुर्विध प्राणायाम ध्यान के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं। अब स्वास्थ्य उपयोगी प्राणायाम की कुछ विधियाँ बताई जाती हैं। हठयोग में प्राणायाम को स्वास्थ्य एवं शारीरिक बल प्राप्ति का अनूप साधन माना गया है । हठयोग में वर्णित प्राणायाम की विधियाँ विविध रोगों के उपचारों के लिये उपयोगी मानी जाती हैं । सूर्यभेदी प्राणायाम या स्वर परिवर्तन प्राणायाम रोग निवारण के लिये अत्यन्त उपयोगी है ।  इस प्रकार भस्त्रिका, शीतली, उज्जायी, भ्रामरी आदि कई प्राणायाम की विधियाँ हैं जो स्वास्थ्य के लिये उपयोगी हैं। इनसे रोग पास नहीं फटकते और कई रोगों का निवारण भी होता है। प्रायः मनुष्य एक समय पर एक नासिका से श्वास लेता है । जब वह दाहिनी नासिका से श्वास-प्रश्वास करता है, उसे सूर्य - स्वर (इडा नाड़ी/गंगा स्वर) और जब श्वास-प्रश्वास बाईं नासिका से चलता है तो उसे चन्द्र-स्वर (पिगला नाड़ी/यमुना स्वर) कहते हैं । जब दोनों नासिकाओं से श्वास-प्रश्वास चलता...

रथमुसल" युद्ध हथियार।चित्र 2:- "महाशिलाकंटाक" युद्ध हथियार।

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चित्र 1:- "रथमुसल" युद्ध हथियार। चित्र 2:- "महाशिलाकंटाक" युद्ध हथियार। लगभग २५०० सालो पहले भारत की धरती पर सम्राट  अजातशत्रु और वज्जि साम्राज्य के बीच गंगा के किनारे मिलने वाले मूल्यवान हीरे ,मोतियो ओर सोने के खनन के लिए भयानक युद्ध हुआ, वज्जि साम्राज्य और अजातशत्रु की सेना की ताकत बराबर थी। लेकिन अजातशत्रु के वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार किये गए इन 2 शस्त्रों का नाम "महाशिलकंटाक और रथमुसल" था। इन हथियारों ने वज्जि साम्राज्य की सेना को काटकर रख दिया, अजातशत्रु ने ये युद्ध निर्णायक रूप से जीतकर मगध साम्राज्य का विस्तार किया। यही हथियार बाहुबली फिल्म में भी दिखाए गये थे।

सोलह वैदिक संस्कार कौन-२ से हैं व इनको करने का क्या प्रयोजन हैं ?

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प्रश्न - सोलह वैदिक संस्कार कौन-२  से हैं व इनको करने का क्या प्रयोजन  हैं ? उत्तर -  मनुष्य की उन्नति के लिए करणीय सोलह वैदिक संस्कार -  1. गर्भाधान संस्कार - युवा स्त्री-पुरुष उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये विशेष तत्परता से प्रसन्नतापूर्वक गर्भाधान करे। 2. पुंसवन संस्कार - जब गर्भ की स्थिति का ज्ञान हो जाए, तब दुसरे या तीसरे महिने में गर्भ की रक्षा के लिए स्त्री व पुरुष प्रतिज्ञा लेते है कि हम आज ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे गर्भ गिरने का भय हो। 3. सीमन्तोन्नयन संस्कार - यह संस्कार गर्भ के चौथे मास में शिशु की मानसिक शक्तियों की वृद्धि के लिए किया जाता है इसमें ऐसे साधन प्रस्तुत किये जाते है जिससे स्त्री प्रसन्न रहें। 4. जातकर्म संस्कार - यह संस्कार शिशु के जन्म लेने पर होता है। इसमें पिता सलाई द्वारा घी या शहद से जिह्वा पर ओ३म् लिखते हैं और कान में 'वेदोऽसि' कहते है। 5. नामकरण संस्कार- जन्म से ग्यारहवें या एक सौ एक या दूसरे वर्ष के आरम्भ में शिशु का नाम प्रिय व सार्थक रखा जाता है।  6. निष्क्रमण संस्कार - यह संस्कार जन्म के चौथे माह में उसी तिथि पर जिसमें...